पित्र पक्ष में वरदान: 100 साल में पहली बार ऐसा दुर्लभ संयोग
Pitra Paksha Yog पित्र पक्ष में वरदान प्राप्त करने का ऐसा अद्भुत संयोग 100 वर्षों में पहली बार बन रहा है। यह संयोग और भी खास बन जाता है जब पितृपक्ष के दौरान चंद्र ग्रहण घटित हो। सनातन धर्म में पितृपक्ष एक ऐसा समय होता है जब दिवंगत आत्माओं को तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के माध्यम से स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
लेकिन इस बार की बात ही कुछ अलग है। 100 वर्षों में पहली बार पितृपक्ष के दौरान चंद्र ग्रहण पड़ रहा है, जो इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से और भी शक्तिशाली बना देता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह काल उन लोगों के लिए विशेष फलदायक हो सकता है जो पित्र दोष से पीड़ित हैं या अपने जीवन में कोई बाधा अनुभव कर रहे हैं।
इस Pitra Paksha Yog में सही विधि से किए गए श्राद्ध, तर्पण और मंत्रजाप से न केवल पित्रगण प्रसन्न होते हैं, बल्कि वे अपने वंशजों को धन, समृद्धि, और मानसिक शांति जैसे वरदान भी प्रदान कर सकते हैं।
पितृपक्ष का महत्व क्या है?
पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है। यह 16 दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन अलग-अलग तिथियों पर पितरों का श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि इस समय पितृलोक के द्वार खुल जाते हैं और पूर्वज अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्रद्धा की अपेक्षा रखते हैं।
इस काल में किया गया हर एक पुण्यकर्म पितरों तक पहुँचता है और उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और शांति मिलती है।
100 वर्षों बाद चंद्र ग्रहण और पितृपक्ष का संयोग क्यों है खास?
इस वर्ष का Pitra Paksha Yog एक विशिष्ट ज्योतिषीय घटना के साथ आया है—चंद्र ग्रहण। जब ग्रहण पितृपक्ष के दौरान होता है, तो यह एक अत्यंत प्रभावशाली मुहूर्त बनाता है।
ग्रहण काल की ऊर्जा
ग्रहण के समय वातावरण में विशेष प्रकार की ऊर्जा सक्रिय होती है। यह समय साधना, जप और श्राद्ध के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। जब यह पितृपक्ष में होता है, तो पित्रगण की उपस्थिति और शक्ति दोनों कई गुना बढ़ जाती हैं।
वरदान प्राप्ति का समय
इस दौरान किया गया तर्पण और श्राद्ध केवल शांति ही नहीं देता, बल्कि यदि विधिपूर्वक किया जाए तो पूर्वज “पित्र पक्ष मे वरदान” भी प्रदान करते हैं। यह वरदान निम्नलिखित रूप में फलदायी हो सकता है:
- लंबे समय से रुके कार्यों में सफलता
- संतान सुख की प्राप्ति
- विवाह में आने वाली अड़चनों का समाधान
- मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति
- व्यवसाय या नौकरी में उन्नति
क्या है पित्र दोष और इससे राहत कैसे मिलेगी?
पित्र दोष का अर्थ है—पूर्वजों की आत्मा किसी कारणवश अशांत होना। यह अशांति विभिन्न कारणों से हो सकती है:
- उनके श्राद्ध कर्म समय पर न होना
- अनादर या उपेक्षा
- कोई अपूर्ण इच्छा
कुंडली में पित्र दोष होने पर जातक को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- विवाह में बाधा
- संतान न होना
- स्वास्थ्य समस्याएँ
- बार-बार आर्थिक हानि
इस संयोग से राहत कैसे मिलेगी?
इस Pitra Paksha Yog में चंद्र ग्रहण का होना उन लोगों के लिए विशेष वरदान है जिनकी कुंडली में पित्र दोष है। इस समय किया गया तर्पण, पिंडदान और मंत्रजप पित्र दोष की शांति में अत्यधिक प्रभावी होता है।
पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण की विधि
1. तर्पण कैसे करें?
- प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें
- एक पात्र में जल, तिल, कुश, फूल और चावल लेकर ‘तर्पण मंत्र’ बोलते हुए तर्पण करें
- प्रत्येक तर्पण तीन बार करें: पितृ, मातृ और मातामह (ननिहाल) पक्ष के लिए
तर्पण मंत्र:
ॐ पितृभ्यः स्वधायै नमः।
ॐ मातामहभ्यः स्वधायै नमः।
ॐ प्रपितामहभ्यः स्वधायै नमः।
2. पिंडदान कैसे करें?
- काले तिल, चावल और गुड़ से पिंड बनाएं
- इसे कुशा पर रखकर श्राद्ध स्थल (बगीचा, पीपल वृक्ष आदि) में रखें
- भोजन, फल और जल अर्पित करें
- ब्राह्मण या गौ को भोजन कराना शुभ माना जाता है
ग्रहण के समय क्या करें?
- ग्रहण के समय तर्पण और जप करने से विशेष फल मिलता है
- इस समय सूर्य/चंद्र मंत्र, गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें
- स्नान और दान अवश्य करें
ग्रहण व पितृपक्ष में क्या न करें? (सावधानियाँ)
- भोजन ग्रहण से पूर्व करें, ग्रहण के दौरान वर्जित है
- गर्भवती महिलाएँ ग्रहण काल में बाहर न निकलें
- झूठ, क्रोध, विवाद आदि से बचें
- शराब, मांसाहार आदि का सेवन पूर्णतः निषिद्ध है
अमावस्या पर पितृ पूजन का सर्वोत्तम स्थान: DivyayogAshram की पहल
पितृपक्ष में खासकर अमावस्या तिथि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन पित्रगण विशेष रूप से सक्रिय रहते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और जप को सहर्ष स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि देशभर में लाखों श्रद्धालु अमावस्या को पितृ पूजा का संकल्प लेते हैं।
अगर आप भी इस बार के दुर्लभ ग्रहण-पितृपक्ष संयोग में अपने पितरों की शांति और कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो DivyayogAshram द्वारा आयोजित विशेष पितृ तर्पण एवं श्राद्ध अनुष्ठान में भाग ले सकते हैं।
DivyayogAshram क्यों?
- यहां अनुभवी आचार्यों द्वारा वैदिक विधि से तर्पण व पिंडदान कराया जाता है
- शांत और ऊर्जा-पूर्ण वातावरण में ध्यान और मंत्रजाप की व्यवस्था होती है
- ग्रहण और अमावस्या जैसे विशेष मुहूर्तों पर सामूहिक पितृ पूजन का आयोजन
- पित्र दोष निवारण यज्ञ के लिए विशेष स्लॉट बुकिंग उपलब्ध
DivyayogAshram का उद्देश्य सिर्फ कर्मकांड नहीं, बल्कि लोगों को आध्यात्मिक चेतना से जोड़कर जीवन में शांति और संतुलन लाना है। यदि आपके जीवन में रुकावटें, पितृ दोष या कोई अपूर्णता है, तो इस अवसर को हाथ से न जाने दें।
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यह अवसर चूकना नहीं चाहिए
पित्र पक्ष में वरदान प्राप्त करने का यह दुर्लभ अवसर अगली बार शायद हमारे जीवनकाल में ना आए। जब 100 वर्षों में एक बार ग्रहण और पितृपक्ष एक साथ आएं, तो यह महज एक ज्योतिषीय संयोग नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दरवाज़ा होता है।
इस विशेष काल में की गई श्रद्धा, तर्पण, जप और दान से न केवल पित्रगण प्रसन्न होते हैं, बल्कि जीवन की बाधाएँ भी दूर हो सकती हैं। अपने पूर्वजों का स्मरण कर उन्हें सम्मान देना हमारे संस्कारों का हिस्सा है। यही वह समय है जब पूर्वज अपनी संतानों को उन आशीर्वादों से नवाजते हैं, जो जीवन को सार्थक बना सकते हैं।






