सुब्रह्मण्य षष्ठी: 26.11.2025
स्कंद षष्ठी, जिसे सुब्रह्मण्य षष्ठी भी कहा जाता है, ये आषाण शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा का एक प्रमुख पर्व है। भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, सुब्रह्मण्य, और षण्मुख भी कहा जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। उन्हें युद्ध के देवता और ज्ञान के प्रदाता माना जाता है। स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
स्कंद षष्ठी मुहुर्थ २०२५
भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में स्कंद षष्ठी के मुख्य तिथियां इस प्रकार हैं:
- 4 जनवरी 2025 (शनिवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 10:30 (4 जनवरी)
समाप्त: सुबह 8:45 (5 जनवरी) - 3 फरवरी 2025 (सोमवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 7:22 (2 फरवरी)
समाप्त: शाम 5:07 (3 फरवरी) - 4 मार्च 2025 (मंगलवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 3:46 (4 मार्च)
समाप्त: रात 1:21 (5 मार्च) - 2 अप्रैल 2025 (बुधवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: दोपहर 1:19 (2 अप्रैल)
समाप्त: सुबह 11:11 (3 अप्रैल) - 2 मई 2025 (शुक्रवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 10:44 (1 मई)
समाप्त: रात 9:21 (2 मई) - 31 मई 2025 (शनिवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 9:45 (31 मई)
समाप्त: सुबह 9:29 (1 जून) - 30 जून 2025 (सोमवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 10:53 (29 जून)
समाप्त: रात 11:50 (30 जून) - 29 जुलाई 2025 (मंगलवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: दोपहर 2:16 (29 जुलाई)
समाप्त: शाम 4:11 (30 जुलाई) - 28 अगस्त 2025 (गुरुवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 7:26 (28 अगस्त)
समाप्त: सुबह 9:51 (29 अगस्त) - 27 सितंबर 2025 (शनिवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 1:33 (27 सितंबर)
समाप्त: सुबह 3:57 (28 सितंबर) - 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
(सूरसम्हारम – स्कंद षष्ठी व्रत का समापन)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 7:34 (26 अक्टूबर)
समाप्त: रात 9:29 (27 अक्टूबर) - 25 नवंबर 2025 (मंगलवार)
(सुब्रह्मण्य षष्ठी)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 11:26 (25 नवंबर)
समाप्त: दोपहर 12:31 (26 नवंबर) - 25 दिसंबर 2025 (गुरुवार)
षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 2:12 (25 दिसंबर)
समाप्त: रात 2:13 (26 दिसंबर)
स्कंद षष्ठी का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नामक एक दानव ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल भगवान शिव के पुत्र ही पराजित कर सकते हैं। उस समय भगवान शिव का विवाह नहीं हुआ था और कोई पुत्र भी नहीं था। तारकासुर ने अपने वरदान का गलत उपयोग करके तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, और अंततः भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने बड़े होने पर तारकासुर का वध किया। इस घटना की स्मृति में स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाता है।
महत्व
स्कंद षष्ठी का व्रत करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इस व्रत से साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है।
पूजा विधि
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
- प्रातःकाल स्नान: व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मूर्ति या चित्र स्थापना: भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
- ध्यान: भगवान कार्तिकेय का ध्यान करें और उन्हें पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं।
- पूजा सामग्री: पूजा में पुष्प, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फल, नैवेद्य (प्रसाद) आदि का उपयोग करें।
- मंत्र जप: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जप करें। प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
- “ॐ षण्मुखाय नमः”
- “ॐ सुब्रह्मण्याय नमः”
- “ॐ स्कंदाय नमः”
- कथा वाचन: स्कंद षष्ठी की कथा का वाचन करें। इसमें तारकासुर वध और भगवान कार्तिकेय के जीवन से संबंधित घटनाओं का वर्णन होता है।
- आरती: पूजा के अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें और भोग अर्पित करें।
- व्रत कथा: स्कंद षष्ठी व्रत कथा सुनें या पढ़ें, जिसमें भगवान कार्तिकेय की लीलाओं और उनकी उपासना का महत्व बताया गया हो।
- भोजन: व्रतधारी दिनभर निराहार रह सकते हैं या फलाहार कर सकते हैं। संध्या समय पूजा के पश्चात भोजन ग्रहण करें।
व्रत के लाभ
- स्वास्थ्य लाभ: इस व्रत के करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- संतान सुख: जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों, उन्हें इस व्रत को विधिपूर्वक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- मानसिक शांति: इस व्रत के करने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
- आध्यात्मिक विकास: व्रतधारी का आध्यात्मिक विकास होता है और उसे भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त होती है।
- समृद्धि: इस व्रत को करने से साधक के जीवन में समृद्धि और खुशहाली आती है।
- विवाह में सफलता: जो अविवाहित युवक-युवतियां शीघ्र विवाह की इच्छा रखते हैं, उन्हें भी इस व्रत के करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
व्रत कथा
स्कंद षष्ठी की व्रत कथा इस प्रकार है:
एक समय की बात है, जब तारकासुर नामक दानव ने तीनों लोकों में आतंक मचाया हुआ था। उसकी अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय को देवताओं की रक्षा के लिए भेजा। कार्तिकेय ने अपनी बुद्धि और पराक्रम से तारकासुर को युद्ध में पराजित किया और उसका वध किया। इस घटना की स्मृति में स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाता है। इस व्रत को करने से साधक को भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके सभी कष्ट दूर होते हैं।
स्कंद षष्ठी के दौरान विशेष आयोजन
तमिलनाडु में विशेष रूप से स्कंद षष्ठी के दौरान बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। यहां के मंदिरों में भव्य पूजा, यज्ञ, और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीर्थयात्री भगवान कार्तिकेय के मंदिरों में जाकर उनकी विशेष पूजा और अभिषेक करते हैं। इस दिन कावड़ यात्रा का भी आयोजन होता है, जिसमें भक्तगण पवित्र जल लेकर भगवान कार्तिकेय के मंदिरों में अभिषेक करने जाते हैं।
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1: भगवान स्कंद कौन हैं?
उत्तर: भगवान स्कंद, जिन्हें कार्तिकेय, मुरुगन, सुब्रह्मण्य और षण्मुख भी कहा जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। वे युद्ध, विजय, ज्ञान, और शक्ति के देवता माने जाते हैं।
प्रश्न 2: स्कंद षष्ठी का क्या महत्व है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी भगवान स्कंद के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से भगवान स्कंद द्वारा तारकासुर नामक दानव का वध करने की स्मृति में मनाया जाता है। इसे संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है।
प्रश्न 3: स्कंद षष्ठी का व्रत कैसे किया जाता है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी का व्रत प्रातःकाल स्नान करके, भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र की स्थापना करके, पंचामृत से स्नान कराकर, पूजा सामग्री जैसे पुष्प, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फल आदि का उपयोग करके, मंत्र जप, कथा वाचन, और आरती करने के पश्चात किया जाता है। व्रतधारी दिनभर निराहार रह सकते हैं या फलाहार कर सकते हैं।
प्रश्न 4: भगवान स्कंद का स्वरूप कैसा है?
उत्तर: भगवान स्कंद के छह मुख (षण्मुख) होते हैं, उनकी बारह भुजाएं होती हैं, जिनमें वे विभिन्न आयुध धारण करते हैं। उनका वाहन मयूर है और उनके ध्वज पर मुर्गा अंकित होता है। वे शक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।
प्रश्न 5: स्कंद षष्ठी व्रत के क्या लाभ हैं?
उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत के अनेक लाभ हैं, जैसे कि स्वास्थ्य, संतान सुख, मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास, समृद्धि, और विवाह में सफलता। यह व्रत भगवान स्कंद की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-शांति लाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 6: स्कंद षष्ठी का व्रत किस दिन मनाया जाता है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से, कार्तिक माह में आने वाली स्कंद षष्ठी का महत्व अधिक होता है।
प्रश्न 7: भगवान स्कंद का प्रमुख मंत्र कौन सा है?
उत्तर: भगवान स्कंद के प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
- “ॐ षण्मुखाय नमः”
- “ॐ सुब्रह्मण्याय नमः”
- “ॐ स्कंदाय नमः”
प्रश्न 8: भगवान स्कंद की पूजा में किन वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: भगवान स्कंद की पूजा में स्वच्छ और नए वस्त्र धारण करना चाहिए। विशेष रूप से सफेद या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।
प्रश्न 9: स्कंद षष्ठी के दिन क्या विशेष भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं?
उत्तर: स्कंद षष्ठी के दिन भगवान स्कंद को विशेष रूप से फल, मिठाई, पंचामृत, और अन्य सात्विक भोज्य पदार्थों का भोग अर्पित किया जाता है। दक्षिण भारत में विशेष रूप से पंचामृतम और विभिन्न प्रकार की प्रसादम तैयार की जाती हैं।
प्रश्न 10: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान संयमित और सात्विक आहार का पालन करें, भगवान स्कंद की भक्ति और पूजा में मन लगाएं, और व्रत की विधि का पूर्ण पालन करें। व्रत के दौरान किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों या कर्मों से बचें।
प्रश्न 11: भगवान स्कंद के अन्य प्रमुख तीर्थ स्थल कौन से हैं?
उत्तर: भगवान स्कंद के प्रमुख तीर्थ स्थल इस प्रकार हैं:
- तिरुपरंकुंद्रम मंदिर (तमिलनाडु)
- पलानी मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
- स्वामिमलाई मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
- तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
- थानिकाई वेल मंदिर (मलेशिया)
- बट्टु मुरुगन मंदिर (सिंगापुर)
प्रश्न 12: क्या महिलाएं भी स्कंद षष्ठी व्रत कर सकती हैं?
उत्तर: हां, महिलाएं भी स्कंद षष्ठी व्रत कर सकती हैं। इस व्रत को करने से महिलाओं को विशेष रूप से संतान सुख और स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होता है।
प्रश्न 13: स्कंद षष्ठी व्रत कथा का क्या महत्व है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत कथा भगवान स्कंद के जीवन और उनके द्वारा तारकासुर दानव के वध की कथा का वर्णन करती है। इस कथा का वाचन करने से व्रतधारी को भगवान स्कंद की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
प्रश्न 14: स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से कहाँ मनाया जाता है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, मलेशिया, सिंगापुर और श्रीलंका में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
प्रश्न 15: क्या स्कंद षष्ठी व्रत केवल विशेष अवसरों पर ही किया जाता है?
उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत को मासिक रूप से शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जा सकता है। हालांकि, कार्तिक माह में आने वाली स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व होता है और इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
अंत में
स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से साधक के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य का वास होता है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से साधक के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है। इस प्रकार, स्कंद षष्ठी व्रत हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और हमें भगवान कार्तिकेय की भक्ति की ओर अग्रसर करता है।