रुद्राष्टकम्: हर कार्य मे विजयी
हर क्षेत्र मे विजय दिलाने वाली रुद्राष्टकम्, श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक अत्यंत लोकप्रिय स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की स्तुति की गई है। इसमें आठ श्लोक होते हैं, जिनमें भगवान शिव के विभिन्न गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। रुद्राष्टकम् का पाठ करना भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे पढ़ने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
संपूर्ण रुद्राष्टकम् एवं उसका हिंदी में अर्थ
श्लोक 1:
विधि-निन्दकं शील-निन्दकं (वेद-निन्दकं) रुण्डमालं चन्दनप्रियं ।
शंकरमित्येव गीयते मुनिवर्यैः श्रुतिमूलकं चिन्त्य-रूपं ह्यनादिम् ॥
हिंदी अर्थ:
जो विधाता (ब्रह्मा) और शील (कुमारियों) का निन्दक है, जिसकी माला में सिरों की मालाएँ हैं, जो चन्दनप्रिय है, जिसे मुनिगण शंकर के नाम से पुकारते हैं, जो वेदों के मूल रूप हैं, जो चिन्तनीय स्वरूप हैं और जो अनादि है, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 2:
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
हिंदी अर्थ:
मैं उस ईश्वर, ईशान, निर्वाणस्वरूप, सर्वव्यापी, ब्रह्म और वेद के स्वरूप, निजस्वरूप, निर्गुण, निर्विकल्प, और निरीह भगवान शिव को नमन करता हूँ। मैं उन्हें नमन करता हूँ जो चिदाकाश हैं, आकाश में वास करते हैं और समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।
श्लोक 3:
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥
हिंदी अर्थ:
जो निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अवस्था से परे, वाणी, ज्ञान और गोचरता से परे हैं, जो गिरीश (पर्वतराज के ईश्वर) हैं, जो भयानक हैं, जो महाकाल, काल और कृपालु हैं, गुणों के भंडार और संसार सागर के पार लगाने वाले हैं, ऐसे भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 4:
तुषाराद्रिसंकाश गौरं गभीरं मनोभूतकोटिप्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगंगा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
हिंदी अर्थ:
जो हिमालय के समान गौरवर्ण, गंभीर, अनंत मनोभूत कोटियों की प्रभा से युक्त, श्रीस्वरूपधारी हैं। जिनके मस्तक पर कल्याणकारी गंगा बह रही है, जिनके भाल पर चंद्रमा की छटा और गले में सर्प है, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 5:
चलत्कुण्डलं भ्रूलताफेरमत्कं प्रलयाकुलं भेकपादं किरीटम्।
त्रिसूलं कराभ्यां केशं च वामे ह्यहंकाररूपं नमामि शंकरम्॥
हिंदी अर्थ:
जिनके कानों में कुंडल हिल रहे हैं, भौंहों में लता की भाँति क्रीड़ा हो रही है, जो प्रलयकाल के समान विकराल हैं, जिनके सिर पर मुकुट है, जिनके हाथों में त्रिशूल और मस्तक के केश हैं, उन अहंकाररहित भगवान शंकर को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 6:
धनुर्बाणपाशान्वयं क्षीरधारा नमामि सुरेशं पवित्रं शरण्यं।
महेशं गिरिशं चन्द्रचूड़ं त्रिनेत्रं त्रयीमूलकं देवदेवं नमामि॥
हिंदी अर्थ:
जिनके पास धनुष, बाण, पाश और अंकुश हैं, जो क्षीरधारा के समान शीतल हैं, जो सुरेश (देवताओं के ईश्वर) हैं, पवित्र हैं, शरण्य हैं, महेश हैं, गिरिश हैं, चंद्रचूड़ हैं, त्रिनेत्र हैं और वेदों के मूल हैं, उन देवाधिदेव महादेव को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 7:
कला कालरुद्रं च कालात्ययादं नमामि सुरेशं पवित्रं शरण्यं।
महेशं गिरिशं चन्द्रचूड़ं त्रिनेत्रं त्रयीमूलकं देवदेवं नमामि॥
हिंदी अर्थ:
जो कला, काल, रुद्र और काल से भी परे हैं, जो देवताओं के ईश्वर, पवित्र और शरण्य हैं, जो महेश्वर, गिरिश, चंद्रचूड़, त्रिनेत्र, और वेदों के मूल रूप हैं, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक 8:
नमः सोमाय शम्भोर्मे गंगाधराय नमोऽस्तुन्द्रमौलये।
नमः पार्वतीपतये ऊमापतये नमः शिवाय हराय॥
हिंदी अर्थ:
मैं भगवान सोम, शम्भु, गंगाधर, चंद्रमौलि, पार्वतीपति, उमा पति और शिव को नमन करता हूँ। हे हर, आपको मेरा नमस्कार है।
रुद्राष्टकम् के लाभ
- मन की शांति: रुद्राष्टकम् का नियमित पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
- कष्टों का निवारण: जीवन में आने वाले कष्टों और विपत्तियों का निवारण होता है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह स्तोत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
- धन और समृद्धि: भगवान शिव की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और समृद्धि आती है।
- मुक्ति प्राप्ति: मोक्ष की प्राप्ति और भगवान शिव के चरणों में स्थान प्राप्त होता है।
- विवाह में समस्याओं का समाधान: जिनके विवाह में बाधाएं आ रही हों, उन्हें भी इस स्तोत्र के पाठ से लाभ मिलता है।
- भय से मुक्ति: भूत-प्रेत, भय और अज्ञात आशंकाओं से मुक्ति मिलती है।
- शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और उनके द्वारा उत्पन्न कष्टों का निवारण होता है।
- धार्मिक लाभ: धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है और जीवन में धार्मिकता का संचार होता है।
- धैर्य और साहस में वृद्धि: रुद्राष्टकम् का पाठ धैर्य और साहस को बढ़ाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत सहायक है।
- सुख-शांति की प्राप्ति: जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।
- मनोकामना की पूर्ति: भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
- शिव की कृपा: भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सुख-समृद्धि का कारण बनती है।
- परिवार की सुरक्षा: परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित होता है।
रुद्राष्टकम् का पाठ: विधि और नियम
पाठ की विधि:
- दिन: रुद्राष्टकम् का पाठ सोमवार को प्रारंभ करना शुभ माना जाता है।
- अवधि: इस स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक लगातार करना चाहिए। यह साधना का एक पूर्ण चक्र माना जाता है।
- मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस समय पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
सावधानियाँ और नियम:
- शुद्धता का पालन: पाठ करने से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
- आसन का ध्यान: साधक को कुशासन या ऊनी आसन पर बैठकर पाठ करना चाहिए।
- पूजा सामग्री: पाठ से पहले भगवान शिव का पूजन करना चाहिए, जिसमें बिल्व पत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि का प्रयोग करें।
- गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखना चाहिए, इसे सार्वजनिक रूप से प्रचारित नहीं करना चाहिए।
- संकल्प: पाठ के प्रारंभ में भगवान शिव के समक्ष संकल्प करना चाहिए कि आप यह साधना किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
- नियमितता: पाठ को नियमित रूप से करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में इसे छोड़ना नहीं चाहिए।
- ध्यान और ध्यान की अवस्था: पाठ के बाद ध्यान अवश्य करना चाहिए, जिसमें भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करें।
सावधानियाँ
- अनियमितता से बचें: पाठ के दौरान अनियमितता से बचें। यह साधना में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।
- सामग्री का ध्यान: पूजा सामग्री शुद्ध और स्वच्छ होनी चाहिए। अशुद्ध सामग्री का प्रयोग न करें।
- मन का नियंत्रण: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और किसी भी तरह के विकारों से बचें।
- परिणाम की चिंता न करें: साधना के दौरान किसी भी परिणाम की चिंता न करें, भगवान शिव की कृपा से सभी कष्ट दूर होंगे।
महत्वपूर्ण प्रश्न
- रुद्राष्टकम् का पाठ किस समय करना चाहिए?
- प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) सबसे उत्तम समय है।
- क्या महिलाएं भी रुद्राष्टकम् का पाठ कर सकती हैं?
- हां, महिलाएं भी शुद्धता के साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
- रुद्राष्टकम् का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
- साधारणतः इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
- क्या रुद्राष्टकम् का पाठ किसी विशेष दिन शुरू करना चाहिए?
- सोमवार को प्रारंभ करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव का प्रिय दिन है।
- रुद्राष्टकम् का पाठ किस उद्देश्य से किया जा सकता है?
- शांति, समृद्धि, कष्ट निवारण, स्वास्थ्य लाभ, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह पाठ किया जा सकता है।
- रुद्राष्टकम् का पाठ करते समय कौन-कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?
- शुद्धता, नियमितता, और गुप्त साधना के नियमों का पालन करना चाहिए।
- रुद्राष्टकम् का पाठ किस प्रकार की सामग्री से किया जाना चाहिए?
- भगवान शिव की पूजा सामग्री, जैसे बिल्व पत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि का उपयोग किया जाना चाहिए।
- क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने के बाद ध्यान करना आवश्यक है?
- हां, पाठ के बाद भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करना अत्यंत आवश्यक है।
- रुद्राष्टकम् का पाठ क्या केवल समस्या के समय किया जाना चाहिए?
- नहीं, इसे नियमित रूप से करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाएगा।
- क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने से शत्रु बाधाएं दूर होती हैं?
- हां, रुद्राष्टकम् का पाठ करने से शत्रु बाधाओं का निवारण होता है।
- क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
- हां, भगवान शिव की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
- रुद्राष्टकम् का पाठ क्या केवल संस्कृत में करना चाहिए?
- हां, इसे मूल संस्कृत में ही पाठ करना चाहिए, क्योंकि इसके मंत्रात्मक प्रभाव से ही लाभ प्राप्त होता है।