Ancient Mudra for Magnetic Personality Aura
Ancient Mudra for Attraction मानव शरीर केवल हड्डियों और मांस से नहीं बना है। इसमें अदृश्य ऊर्जा भी प्रवाहित होती है। जब यह ऊर्जा संतुलित होती है, तो व्यक्ति का चेहरा आकर्षक और प्रभावशाली दिखता है। प्राचीन ऋषियों ने इस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए विशेष मुद्राओं की खोज की। इन मुद्राओं से साधक का व्यक्तित्व चुंबकीय बनता है और उसकी उपस्थिति लोगों को सहज रूप से प्रभावित करती है।
DivyayogAshram की परंपरा के अनुसार, मुद्रा अभ्यास मन और शरीर को एक ही बिंदु पर केंद्रित करता है। इस केंद्रित शक्ति से भीतर की आभा जागती है। यही आभा दूसरों के मन को छूकर उन्हें सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
मुद्रा और ऊर्जा प्रवाह का रहस्य
मुद्रा का अर्थ है हाथों की विशेष स्थिति। प्रत्येक अंगुली पांच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती है। अंगूठा अग्नि, तर्जनी वायु, मध्यमा आकाश, अनामिका पृथ्वी और कनिष्ठा जल का प्रतीक है। जब हम हाथों को एक निश्चित मुद्रा में रखते हैं, तो यह तत्त्व संतुलित होते हैं।
प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि ऊर्जा प्रवाह में बाधा आने पर व्यक्तित्व कमजोर पड़ जाता है। लेकिन मुद्रा से ऊर्जा का प्रवाह खुल जाता है। जब ऊर्जा सुचारु रूप से बहती है, तो साधक की आभा चमकने लगती है। इस प्रक्रिया को नियमित रूप से करने से चेहरा तेजस्वी और आँखें चुंबकीय हो जाती हैं।
आकर्षण बढ़ाने वाली विशेष मुद्रा
चुंबकीय आभा के लिए सबसे प्रभावी मुद्रा है प्राण मुद्रा। इस मुद्रा में अनामिका और कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से मिलाया जाता है। बाकी दोनों उंगलियाँ सीधी रखी जाती हैं।
यह मुद्रा शरीर में जीवन-शक्ति को बढ़ाती है। इससे भीतर की निष्क्रिय ऊर्जा सक्रिय होकर बाहर प्रकाश रूप में झलकती है। प्राण मुद्रा को प्रतिदिन 15-20 मिनट करने से चेहरा दमकने लगता है। साधक की आवाज़ में भी गहराई आ जाती है। जो लोग समाज में प्रभावी बनना चाहते हैं, उन्हें यह मुद्रा नियमित करनी चाहिए।
व्यक्तित्व पर प्राण मुद्रा का प्रभाव
प्राण मुद्रा से न केवल आभा बढ़ती है बल्कि आत्मविश्वास भी गहराता है। जब व्यक्ति आत्मविश्वासी होता है, तो उसकी उपस्थिति आकर्षक लगती है।
यह मुद्रा आँखों की शक्ति और चेहरे की चमक बढ़ाती है। मानसिक तनाव घटने लगता है और मन स्थिर हो जाता है। स्थिर मन से निकलने वाली ऊर्जा व्यक्ति को संतुलित और प्रभावशाली बनाती है। नियमित अभ्यास से व्यक्तित्व में करिश्माई गुण आ जाता है। लोग साधक की बातों को ध्यान से सुनते हैं और उसका सम्मान करते हैं।
चुंबकीय आभा के लिए अन्य सहायक उपाय
मुद्रा अभ्यास के साथ-साथ कुछ साधारण नियम अपनाने चाहिए। सुबह सूर्य उदय के समय प्राण मुद्रा करने से परिणाम जल्दी मिलते हैं। साथ ही गहरी साँस लेकर ‘ॐ’ का जप करना चाहिए।
शुद्ध आहार भी जरूरी है। सात्विक भोजन करने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सही रहता है। ध्यान और मुद्रा का मेल साधक की आभा को और भी शक्तिशाली बनाता है। जब मन, शरीर और ऊर्जा एक धारा में बहते हैं, तभी वास्तविक चुंबकीय आभा उत्पन्न होती है।
आभा साधना का महत्व
व्यक्तित्व केवल कपड़ों या बाहरी सजावट से नहीं निखरता। वास्तविक चमक भीतर की ऊर्जा से आती है। प्राचीन मुद्राएँ इस ऊर्जा को जगाने का सरल साधन हैं।
DivyayogAshram की शिक्षाओं में यह स्पष्ट किया गया है कि जब व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति पहचानता है, तभी उसकी आभा लोगों को आकर्षित करती है। नियमित अभ्यास से साधक का व्यक्तित्व दिव्य बन जाता है। उसकी उपस्थिति मात्र से वातावरण सकारात्मक हो जाता है। यही है प्राचीन मुद्रा का वास्तविक चमत्कार।