Durga Saptashati Chalisa for Wealth & Peace

दुर्गा सप्तशती चालीसा एक पवित्र धार्मिक पाठ है जो देवी दुर्गा की आराधना में किया जाता है। यह चालीसा, जो देवी की महिमा व स्वरूप का वर्णन करती है, न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ करना देवी की कृपा पाने का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। यह चालीसा देवी की महिमा और उनकी शक्तियों का वर्णन करती है, जो भक्तों को उनके जीवन के संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती हैं। इस लेख में हम दुर्गा सप्तशती चालीसा के लाभ, विधि, नियम, सावधानियाँ और उससे संबंधित प्रश्नों पर चर्चा करेंगे।

चालीसा पाठ के लाभ

1. मानसिक शांति प्राप्त होती है

इस चालीसा के पाठ से मन में शांति और संतुलन आता है। यह नकारात्मकता को दूर करता है।

2. भय का नाश होता है

माँ दुर्गा का स्मरण भय और चिंता को समाप्त करता है। यह साहस और आत्मविश्वास बढ़ाता है।

3. स्वास्थ्य में सुधार होता है

चालीसा का नियमित पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है। बीमारियों से बचाव होता है।

4. धन की प्राप्ति होती है

इस चालीसा का पाठ आर्थिक समृद्धि लाता है। धन के स्रोत खुलते हैं।

5. कार्यों में सफलता मिलती है

माँ दुर्गा का आशीर्वाद सभी कार्यों में सफलता सुनिश्चित करता है।

6. शत्रुओं का नाश होता है

यह चालीसा शत्रु और विरोधियों से सुरक्षा प्रदान करती है।

7. परिवार में सुख-शांति बनी रहती है

इस चालीसा के पाठ से परिवार में सौहार्द और एकता आती है।

8. संकटों का समाधान होता है

चालीसा का पाठ जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने में सहायक है।

9. आध्यात्मिक शक्ति मिलती है

यह पाठ आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान प्रदान करता है।

10. जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है

माँ दुर्गा की कृपा से जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।

11. दुर्गुणों का नाश होता है

चालीसा का नियमित पाठ बुरी आदतों और विचारों को समाप्त करता है।

12. संतोष और आशीर्वाद मिलता है

माँ दुर्गा का स्मरण आत्मा को संतोष और कृपा प्रदान करता है।

13. विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं

यह पाठ विवाह संबंधी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।

14. संतान सुख की प्राप्ति होती है

यह चालीसा संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।

15. मोक्ष की प्राप्ति होती है

इसका पाठ व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करता है।

दुर्गा सप्तशती चालीसा

भाग १

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावे। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुभुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीर सिंधु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजे मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुखदाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रुहिं

भाग २

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहूं लोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेना समेत तुम ही संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताहि छूटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रकट कृपा तुम्हारी। रह्यो शम्भु अब ध्यान हमारी॥
दुर्गा सप्तशती जो गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

विधि

  1. दिन और समय:
    दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुक्रवार और मंगलवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। नवरात्रि के दौरान इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है। सुबह और शाम के समय पाठ करना श्रेष्ठ होता है। पाठ के लिए ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) का समय सबसे उत्तम माना जाता है।
  2. स्थल:
    पाठ करने के लिए शुद्ध और शांत स्थान का चयन करें। मंदिर, पूजा स्थल या घर का कोई पवित्र कोना इस कार्य के लिए उपयुक्त है। यदि संभव हो तो पाठ देवी दुर्गा के मंदिर में भी किया जा सकता है।
  3. स्वच्छता:
    पाठ करने से पहले स्वयं को शुद्ध करें। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पाठ करते समय मन, वाणी और शरीर को पवित्र रखें।
  4. आसन:
    पाठ करने के लिए कुश, ऊन, या रेशमी आसन का उपयोग करें। आसन पर स्थिर और सीधा बैठें। पाठ के दौरान दिशाओं का भी ध्यान रखें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना श्रेष्ठ माना जाता है।
  5. पाठ की विधि:
    दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ धीरे-धीरे और स्पष्ट उच्चारण के साथ करें। यदि संभव हो, तो पाठ करते समय देवी दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने बैठें। मन को एकाग्र करें और भक्ति भावना के साथ पाठ करें।
  6. संख्या:
    दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ एक बार या तीन बार करना शुभ माना जाता है। विशेष परिस्थितियों में इसका 9, 11, या 108 बार पाठ किया जा सकता है।

Kamakhya sadhana shivir

नियम और सावधानियाँ

  1. आचरण की शुद्धता:
    पाठ के दौरान और उसके पहले, अपने आचरण को शुद्ध रखें। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों, ईर्ष्या, या द्वेष से बचें।
  2. आहार:
    पाठ करने से पहले हल्का और सात्विक भोजन करें। पाठ के दिन मांस, मदिरा, और तामसिक भोजन से बचें।
  3. शुद्धता:
    पाठ करने से पहले अपने मन, वाणी और शरीर को शुद्ध करें। पवित्रता का ध्यान रखें।
  4. समय का पालन:
    पाठ का समय निश्चित करें और उसी समय पर नियमित रूप से पाठ करें। यह सुनिश्चित करें कि पाठ के समय कोई बाधा न हो।
  5. वाणी का संयम:
    पाठ के दौरान वाणी को संयमित रखें। अनावश्यक बातों से बचें और पूर्ण एकाग्रता के साथ पाठ करें।
  6. अधिकार:
    यदि आप किसी विशेष परिस्थिति में दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ कर रहे हैं, जैसे कि ग्रह दोष निवारण या विशेष साधना, तो किसी योग्य गुरु या पंडित की सलाह अवश्य लें।
  7. माहौल:
    पाठ करते समय शांत माहौल बनाए रखें। किसी भी प्रकार का शोर या बाधा पाठ के दौरान नहीं होनी चाहिए।
  8. शुद्धता का ध्यान:
    पाठ करने से पहले और बाद में अपने आस-पास की शुद्धता का ध्यान रखें। पाठ के दौरान किसी प्रकार की अशुद्धि न हो।
  9. पाठ की सामग्री:
    पाठ करते समय उपयोग की जाने वाली सामग्री जैसे कि दीपक, अगरबत्ती, आसन आदि का ध्यान रखें। ये सभी वस्त्र पवित्र और शुद्ध होने चाहिए।
  10. मन की स्थिरता:
    पाठ करते समय मन को स्थिर और शांत रखें। किसी भी प्रकार की चिंता या तनाव से बचें।
  11. नियमितता:
    पाठ को नियमित रूप से करने का संकल्प लें। यदि किसी कारणवश आप पाठ नहीं कर पा रहे हैं, तो इसके लिए देवी से क्षमा प्रार्थना करें।
  12. भक्ति भावना:
    पाठ करते समय देवी के प्रति अपनी भक्ति भावना को प्रगाढ़ बनाएं। इसे मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान न मानें, बल्कि इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।

सामान्य प्रश्न

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  1. दुर्गा सप्तशती चालीसा क्या है?
    दुर्गा सप्तशती चालीसा एक धार्मिक पाठ है जो देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है। इसमें 40 पंक्तियाँ होती हैं, जिनमें देवी के विभिन्न रूपों और उनकी लीलाओं का उल्लेख किया गया है।
  2. दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?
    इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से नवरात्रि, शुक्रवार, और मंगलवार के दिन इसका पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। सुबह और शाम के समय पाठ करना श्रेष्ठ है।
  3. पाठ के दौरान किस दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए?
    पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना उचित है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  4. क्या चालीसा का पाठ किसी भी स्थान पर किया जा सकता है?
    हाँ, लेकिन पाठ करने के लिए पवित्र और शांत स्थान का चयन करना चाहिए। घर के पूजा स्थल या मंदिर में पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
  5. दुर्गा सप्तशती चालीसा का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    इसे एक बार, तीन बार, नौ बार, या विशेष रूप से 108 बार किया जा सकता है। संख्या का चयन व्यक्ति की आस्था और आवश्यकता पर निर्भर करता है।
  6. क्या पाठ के लिए विशेष वस्त्र पहनने की आवश्यकता है?
    हाँ, पाठ के दौरान स्वच्छ और पवित्र वस्त्र पहनने चाहिए। सफेद, पीले या लाल रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।
  7. क्या पाठ के लिए किसी विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए?
    हाँ, पाठ के लिए कुश, ऊन, या रेशमी आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। इससे एकाग्रता बनी रहती है।
  8. क्या पाठ के दौरान भोजन का ध्यान रखना चाहिए?
    हाँ, पाठ के दिन हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए। मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से बचें।
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