Ganesha chalisa paath for success

हर तरह का विघ्न समाप्त करने वाले श्री गणेश चालीसा पाठ करने से गणेश भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उनका आशीर्वाद मिलता है। यह चालीसा गणेश जी की महिमा और गुणों का वर्णन करती है और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करती है।

इस चालीसा को नित्य पढ़ने से मनुष्य को जीवन में सफलता, सुख, शांति, समृद्धि, आरोग्य और धन की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के पाठ से मनोबल बढ़ता है और आत्मविश्वास में सुधार होता है। यह चालीसा भक्ति और निष्काम कर्म की भावना को उत्तेजित करती है और व्यक्ति को जीवन में सकारात्मक दिशा में ले जाती है।

इसके अलावा, गणेश चालीसा के पाठ से भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। इस चालीसा का पाठ करने से गणेश भगवान हर प्रकार की कष्ट, संकट और दुर्भाग्य से रक्षा करते हैं और उन्हें जीवन में सफलता प्रदान करते हैं।

महत्व

गणेश चालीसा भगवान गणेश की स्तुति में रचित 40 पंक्तियों का एक सुंदर भजन है। यह भक्तों द्वारा बड़े श्रद्धा और भक्ति से गाया जाता है। गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

लाभ

  1. विघ्न नाशक: सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं को दूर करता है।
  2. सफलता: कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  3. बुद्धि और ज्ञान: बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  4. धन संपत्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  5. स्वास्थ्य: स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  6. शांति: मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  7. सुख समृद्धि: परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
  8. मनोकामना पूर्ण: सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
  9. शत्रु नाशक: शत्रुओं से रक्षा होती है।
  10. समस्याओं का समाधान: जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है।
  11. शुभता: जीवन में शुभता और सकारात्मकता आती है।
  12. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और जागरूकता बढ़ती है।
  13. कर्ज मुक्ति: कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  14. संकल्प शक्ति: संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है।
  15. समृद्धि: जीवन में समृद्धि और संपन्नता आती है।
  16. प्रसन्नता: मन प्रसन्न रहता है और उदासी दूर होती है।
  17. वाणी की मधुरता: वाणी में मधुरता आती है।
  18. संकटों से रक्षा: सभी प्रकार के संकटों से रक्षा होती है।
  19. दिव्य दृष्टि: आत्मज्ञान और दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है।
  20. अखंड भक्ति: भगवान गणेश की अखंड भक्ति प्राप्त होती है।

दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: बुधवार और चतुर्थी तिथि विशेष रूप से गणेश जी की पूजा के लिए माने जाते हैं। इन दिनों में गणेश चालीसा का पाठ अत्यंत लाभकारी होता है।
  • अवधि: गणेश चालीसा का पाठ नियमित रूप से 40 दिन तक किया जा सकता है। प्रतिदिन कम से कम एक बार इसका पाठ करना चाहिए।
  • मुहूर्त: सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) गणेश चालीसा के पाठ के लिए सर्वोत्तम समय है। शाम के समय सूर्यास्त के बाद भी इसका पाठ किया जा सकता है।

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गणेश चालीसा पाठ की विधि

  1. स्नान और स्वच्छ वस्त्र: सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान: एक साफ और शांत स्थान पर बैठें।
  3. दीप जलाना: एक दीपक जलाकर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने रखें।
  4. संकल्प: अपने मन में संकल्प लें और भगवान गणेश का ध्यान करें।
  5. आरंभ: ‘श्री गणेशाय नमः’ से गणेश चालीसा का पाठ आरंभ करें।
  6. समाप्ति: ‘जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।’ के साथ पाठ समाप्त करें।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद गणेश जी को नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें और फिर उसे सभी में बांटें।
  8. आरती: अंत में गणेश जी की आरती करें।

गणेश चालीसा का पाठ अत्यंत सरल और प्रभावी है। इसके पाठ से भक्तों को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है।

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श्री गणेश चालीसा

दोहा:

॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ॥ ॥ कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

चौपाई:

जय गणेश गिरिजा सुवन।
मंगल मूलकृपा निकेतन॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

हाथ सुदर्शन चक्र विराजे।
कानन कुण्डल नाग फनी के॥

अंग गौर शिर गंग विराजे।
त्रिपुण्ड चन्दन तिलक लगावै॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहै॥

मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल है जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहि जाय पुकारा।
तबहि दुःख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरारि संहारि बनायउ।
भूत बेताल साथ लिवायउ॥

अमित विक्रम कोई नहिं तौलो।
गहिर शत्रु रन लंक सकोलो॥

प्रभु कृपा करि सम्भु अज ध्यावा।
कुमकुम चंदन पाट चढ़ावा॥

कंचन भवन सोभित दृढ़ काहा।
अन्य सभी मुख देखी तुमहिं॥

मांगा मुख क्षण महँ सीव धारी।
दिया नवोज सिद्धि सुर धारी॥

जय जय जय गणपति देवा।
मातु सुत सुर तुल्य हिया॥

सूर्य धूप दीयो हितु गोसाँ।
तासु सूक्ष्म बनाओ हितु तासाँ॥

बन्धु जानिक सुमिरो ताहि।
जीवन मृत्यु वश ताहि॥

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