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Hidden Planetary Secrets: Will You Rise or Fall?

कुंडली के ये ग्रह बना सकते हैं राजा या रंक! सावधान रहें!

Hidden Planetary Secrets – हर व्यक्ति के जीवन की दिशा उसकी कुंडली में छिपी होती है। ग्रह राजा बना सकते हैं… और रंक भी। एक ही जन्मपत्री, दो अलग जीवन – क्यों? क्यों कोई राजसी वैभव पाता है और कोई तिल-तिल कर जीता है?

इस रहस्य की चाबी छिपी है ग्रहों की स्थिति और दृष्टियों में।
DivyayogAshram के ज्योतिष अनुभवों के अनुसार, कुछ ग्रह जब शुभ भावों में होते हैं, तो इंसान जीवन में चमत्कार कर जाता है। पर जब वही ग्रह नीच, पाप या शत्रु स्थान में हों – तब जीवन संघर्षों का मैदान बन जाता है।

यह लेख उन विशेष ग्रहों पर प्रकाश डालता है, जो आपको या तो राजा बना सकते हैं… या रंक!


सूर्य: आत्मविश्वास या अहंकार का राजा

सूर्य यदि दशम, नवम या लग्न में उच्च हो तो व्यक्ति नेतृत्वकर्ता बनता है।
उसे समाज, सरकार और पिता से सहयोग मिलता है।
राजसी ठाट, पद-प्रतिष्ठा और आत्मबल – ये सब सूर्य की कृपा से आते हैं।

लेकिन जब सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो जाए,
या नीच (तुला) में चला जाए, तब अहंकार, अपमान और पिता से कष्ट मिलने लगता है।
अधिकार छिनते हैं, सरकारी कार्य अटकते हैं, जीवन दिशाहीन हो जाता है।

सावधानी: अहं को त्यागें, पितृ कर्तव्य निभाएं, सूर्य नमस्कार करें।


चंद्रमा: समृद्धि का स्रोत या मानसिक अशांति का कारण

चंद्रमा यदि चतुर्थ, पंचम या नवम भाव में बलवान हो तो भावनात्मक स्थिरता, सौंदर्य और सुख प्राप्त होते हैं।
व्यक्ति रचनात्मक होता है, माता से लाभ मिलता है और जीवन में धन की वर्षा होती है।

परंतु नीच का चंद्रमा (वृश्चिक में), या शनि-राहु की दृष्टि से पीड़ित हो,
तो मानसिक रोग, अकेलापन, अनिद्रा और धन हानि का कारण बनता है।
ऐसे व्यक्ति के निर्णय अस्थिर होते हैं, जिससे वे बार-बार विफल होते हैं।

सावधानी: चंद्र मंत्र जपें, माता की सेवा करें, चांदी का छल्ला धारण करें।


मंगल: योद्धा या विध्वंसक

मंगल उच्च स्थान पर हो (मेष या मकर में) और दशम, तृतीय, या एकादश भाव में हो –
तो व्यक्ति साहसी, नेता, सफल व्यवसायी या सेनापति जैसा बनता है।
यह भूमि, संपत्ति और ऊर्जा का दाता है।

लेकिन नीच (कर्क), छठे या आठवें भाव में हो, तो क्रोध, दुर्घटना, रक्त विकार और वैवाहिक कष्ट देता है।
अहंकारी स्वभाव, झगड़े और कोर्ट केस तक की नौबत आ सकती है।

सावधानी: हनुमान जी की उपासना करें, लाल वस्त्र दान करें।


बुध: बुद्धिमत्ता या भ्रम का जाल

बुध यदि बुधादित्य योग बनाए या केंद्र में हो,
तो व्यक्ति अत्यंत बुद्धिमान, लेखक, वक्ता, व्यापारी और योजनाकार होता है।

लेकिन जब बुध राहु से ग्रसित हो, नीच राशि (मीन) में हो, या षष्ट-अष्ट भाव में चला जाए,
तो भ्रम, द्वंद्व, झूठ और गलत निर्णय से व्यक्ति सब कुछ खो बैठता है।

सावधानी: गायत्री मंत्र का जाप करें, तुलसी सेवन करें, गणेश पूजन करें।


गुरु: आशीर्वाद या आडंबर

गुरु जब नवम, पंचम या लग्न में हो, उच्च राशि (कर्क) में हो,
तो वह जीवन में शिक्षा, धर्म, संतुलन और धन का द्वार खोलता है।
ऐसा व्यक्ति गुरुओं का प्रिय होता है और सामाजिक आदर प्राप्त करता है।

लेकिन नीच (मकर) का गुरु, या शनि-राहु से ग्रसित गुरु –
व्यक्ति को भ्रमित करता है। शिक्षा अधूरी रहती है, गुरु-द्रोह होता है, और अशुभ फल मिलते हैं।

सावधानी: गुरुवार व्रत रखें, पीली वस्तुएँ दान करें, गुरुओं का आदर करें।


शुक्र: वैभव या विलास का पतन

शुक्र यदि उच्च (मीन), लग्न, सप्तम या दशम में हो –
तो जीवन सौंदर्य, प्रेम, विवाह, धन, ऐश्वर्य और कला से भर जाता है।
ऐसे जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं।

लेकिन जब शुक्र नीच (कन्या), षष्ट-अष्ट भाव में हो या राहु के साथ हो –
तो व्यक्ति भटकाव, वासनाओं, अनैतिक संबंधों और धन हानि का शिकार होता है।

सावधानी: दुर्गा उपासना करें, सफेद वस्त्र पहनें, दाम्पत्य जीवन को सम्मान दें।


शनि: न्याय या निराशा का दाता

शनि यदि तीसरे, छठे, एकादश भाव में हो –
तो व्यक्ति परिश्रमी, अनुशासित, कर्मवीर और दीर्घकालिक लाभ पाने वाला बनता है।
उसे मेहनत का फल अवश्य मिलता है।

लेकिन जब यह चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, या द्वादश भाव में हो –
तो व्यक्ति को संघर्ष, अकेलापन, रोग, विलंब, और असफलता का सामना करना पड़ता है।

सावधानी: शनिदेव की सेवा करें, नीले कपड़े पहनें, कर्म में निष्ठा रखें।


राहु: छल या चमत्कार

राहु जब तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में हो,
तो यह चमत्कारिक सफलता, विदेशी संबंध, तकनीक और राजनीति में प्रगति देता है।

पर जब यह पंचम, सप्तम, नवम भाव में हो –
तो राहु भ्रम, धोखा, नशा, विवाह में समस्याएं और मानसिक विकार देता है।

सावधानी: हनुमान चालीसा का पाठ करें, नारियल प्रवाहित करें।


केतु: मोक्ष या मानसिक उलझन

केतु आध्यात्मिकता, त्याग, ध्यान और रहस्यमय विद्या का कारक है।
लग्न, नवम या बारहवें भाव में हो – तो व्यक्ति साधक, तांत्रिक या मोक्ष मार्गी बनता है।

लेकिन जब केतु चतुर्थ, सप्तम या अष्टम भाव में हो –
तो यह मानसिक उलझन, पारिवारिक टूटन और स्थायित्व की कमी देता है।

सावधानी: गाय को भोजन दें, केतु मंत्र जपें, शांत मन रखें।


ग्रहों से डरे नहीं, उन्हें समझें

ग्रह आपको राजा बना सकते हैं, पर केवल कर्म, भक्ति और विवेक से ही रंक से राजा बना जा सकता है।
DivyayogAshram के अनुसार, ज्योतिष भय नहीं – मार्गदर्शन है।

कुंडली देखें, ग्रहों को पहचानें, उपाय करें – और अपने जीवन को सफल बनाएं।
याद रखें, ग्रह आपके कर्मों के दर्पण हैं। उन्हें साधें, डरें नहीं।

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