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महाविद्या माता तारा हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं, जिनकी पूजा मुख्यतः तंत्र पद्धति से की जाती है। उनकी पूजा अकस्मात धन, लॉटरी, सट्टा और रेस कोर्स में सफलता पाने के लिए की जाती है। माता तारा का स्वरूप काली जैसा होता है और उन्हें काली का एक रूप माना गया है। वे दयालु, करुणामयी और भक्तों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। माता तारा की पूजा तांत्रिक विधियों, मंत्र जप और ध्यान के साथ की जाती है, जिससे भक्त को रक्षा, सुरक्षा और मानसिक सामर्थ्य प्राप्त होता है। उनकी कृपा से मानसिक और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। दस महाविद्याओं में वे दूसरी महाविद्या हैं और देवी दुर्गा के भयंकर रूपों में गिनी जाती हैं। तंत्र शास्त्र में माता तारा को ज्ञान, उन्नति और मोक्ष की देवी के रूप में विशेष महिमा प्राप्त है। उनकी कृपा से उपासक तंत्र विद्या में पारंगत होते हैं और ज्ञान, सुरक्षा तथा मुक्ति का वरदान प्राप्त करते हैं।

स्वरूप

माता तारा का स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली और भयानक है। वे नीले रंग की होती हैं और उनकी चार भुजाएँ होती हैं। उनके एक हाथ में खड्ग (तलवार), दूसरे हाथ में कमंडल, तीसरे हाथ में कपाल और चौथे हाथ में अभय मुद्रा होती है। उनके गले में नरमुंडों की माला होती है और वे मुण्डमाला पहने होती हैं। वे महाकाल (भगवान शिव) के ऊपर खड़ी होती हैं और उनके चरणों में श्मशान की राख होती है। उनका स्वरूप सृजन और विनाश दोनों का प्रतीक है।

पूजा का महत्व

माता तारा की पूजा करने से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. ज्ञान और विद्या की प्राप्ति: माता तारा की कृपा से साधक को ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है।
  2. उन्नति और समृद्धि: माता तारा की उपासना से साधक को उन्नति और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  3. मोक्ष की प्राप्ति: माता तारा की कृपा से साधक को मोक्ष का मार्ग मिलता है।
  4. सुरक्षा: माता तारा की उपासना से साधक को हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  5. मनोकामनाओं की पूर्ति: माता तारा की कृपा से साधक की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  6. आत्मविश्वास में वृद्धि: माता तारा की उपासना से साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।

पूजा विधि

  1. स्थान: माता तारा की पूजा शुद्ध और पवित्र स्थान पर की जाती है। श्मशान या एकांत स्थान भी उपयुक्त माना जाता है।
  2. समय: उनकी पूजा का सबसे उत्तम समय मध्य रात्रि या अमावस्या की रात होती है।
  3. आसन: काले या नीले रंग के आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए।
  4. मंत्र: माता तारा के मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है:
   || ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट् ||
  1. सामग्री: पूजा के लिए काले तिल, काली मिर्च, नीले फूल, श्मशान की राख, और सरसों के तेल का दीपक उपयोगी होता है।

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साधना की अवधि

माता तारा की साधना 21 दिनों तक करनी चाहिए। प्रतिदिन 108 बार मंत्र जप करना अनिवार्य है। इस दौरान साधक को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और साधना के प्रति पूरी निष्ठा रखनी चाहिए।

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अंत में

माता तारा अत्यंत शक्तिशाली और कृपालु देवी हैं। उनकी उपासना से साधक को ज्ञान, विद्या, सुरक्षा, उन्नति, और मोक्ष प्राप्त होता है। उनकी पूजा विधि को सही तरीके से और नियमों का पालन करते हुए करने से साधक को सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। माता तारा की कृपा से साधक जीवन के सभी संकटों से मुक्त होकर उच्चतम स्थिति प्राप्त कर सकता है।

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