रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र: हर तरह का सुख देने वाली यक्षिणी
रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का साधक को जीवन में अनेकों प्रकार के सुख, समृद्धि, यौवन, और आकर्षण प्रदान करने वाला माना गया है। यह मंत्र विशेषतः पौरुष शक्ति, विवाहित जीवन में प्रेम और सुख, और सौंदर्य में वृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। रतिप्रिया यक्षिणी के आह्वान से साधक को जीवन में न केवल भौतिक सुख बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतोष की प्राप्ति होती है।
दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ
दिग्बंधन मंत्र साधना में सुरक्षा का प्रतीक होता है। यह मंत्र दसों दिशाओं में सुरक्षात्मक घेरा बनाकर साधक को बुरी ऊर्जा से सुरक्षित करता है।
मंत्र:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं दिग्बंधाय नमः”
अर्थ: इस मंत्र से चारों दिशाओं में सुरक्षा का आवाहन होता है ताकि साधक बिना किसी विघ्न के साधना कर सके।
रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का संपूर्ण अर्थ:
“॥ॐ ह्रीं रतिप्रिये क्लीं स्वाहा॥”
इस मंत्र का अर्थ अत्यंत गहन और प्रभावशाली है।
- ॐ: यह शब्द परम तत्व का प्रतीक है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की ऊर्जा का स्रोत है। इसे साधक के भीतर आध्यात्मिक शक्ति जगाने के लिए मंत्र में सम्मिलित किया गया है।
- ह्रीं: इस बीज मंत्र में प्रेम, आकर्षण और शक्ति की संपूर्ण ऊर्जा संचित होती है। यह शक्ति, आकर्षण और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है।
- रतिप्रिये: रति प्रेम की देवी मानी जाती हैं, और “रतिप्रिये” यक्षिणी को प्रेम, आकर्षण, और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। यह शब्द साधक को प्रेम और सुख प्राप्ति में सहायता करता है।
- क्लीं: क्लीं बीज मंत्र में कामना, आकर्षण और शक्ति का संयोजन है। यह साधक की इच्छाओं को सिद्ध करने और आकर्षण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
- स्वाहा: यह शब्द आहुति या पूर्णता का प्रतीक है। मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण साधना को पूर्णता और सफलता की ओर ले जाता है।
संक्षेप में, यह मंत्र साधक के जीवन में प्रेम, आकर्षण, सौंदर्य और सुख को आमंत्रित करता है। इसे करने से साधक को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक संतुलन मिलता है, जिससे जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है।
जप के दौरान इन चीजों का सेवन अधिक करें
साधना के दौरान कुछ विशेष चीजों का सेवन साधक की ऊर्जा और एकाग्रता को बढ़ा सकता है। जैसे:
- दूध और शुद्ध घी
- मेवे जैसे बादाम, अखरोट
- मौसमी फल
इन चीजों का सेवन साधक की ऊर्जा को बढ़ाता है और मंत्र में शक्ति संचारित करता है।
रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र के लाभ
रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र साधना से साधक को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। इस मंत्र के नियमित जप से जीवन में प्रेम, आकर्षण और सुख का संचार होता है। यहाँ इस मंत्र के प्रमुख लाभ दिए गए हैं:
- यौवन शक्ति: साधक में यौवन और ताजगी बनी रहती है।
- पौरुष शक्ति: यह मंत्र शारीरिक और मानसिक बल में वृद्धि करता है।
- विवाहित जीवन का सुख: विवाहित जीवन में प्रेम और आपसी सामंजस्य बढ़ता है।
- आकर्षण शक्ति: साधक की आकर्षण क्षमता में बढ़ोतरी होती है, जिससे लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
- सौंदर्य में वृद्धि: साधक के चेहरे पर तेज और सौंदर्य में वृद्धि होती है।
- बुढ़ापे को रोकने की शक्ति: मंत्र साधना से साधक में युवा ऊर्जा का संचार होता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है।
- प्रेम में सफलता: यह मंत्र साधक को प्रेम संबंधों में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
- मानसिक संतुलन: साधक को मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: साधक के भीतर आध्यात्मिक जागृति का संचार होता है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे वह हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है।
- जीवन में सुख और समृद्धि: साधक के जीवन में भौतिक सुख-समृद्धि बढ़ती है।
- सकारात्मकता: साधक के आस-पास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: साधना से शारीरिक रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
- संबंधों में मधुरता: यह मंत्र साधक के पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में प्रेम और मधुरता लाता है।
- बाधाओं का निवारण: साधक के मार्ग में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
- धन की प्राप्ति: साधक को आर्थिक समृद्धि और धन लाभ का अनुभव होता है।
- मनचाहा जीवनसाथी: अविवाहित साधक को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होने में सहूलियत मिलती है।
- अशुभ प्रभावों से सुरक्षा: यह मंत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाकर सुरक्षा प्रदान करता है।
पूजन सामग्री व मंत्र विधि
आवश्यक सामग्री: लाल या गुलाबी पुष्प, केसर, चंदन, कपूर, शुद्ध घी का दीपक, पवित्र जल, विशेष रूप से नई माला।
जप की अवधि, दिन, मुहूर्त: मंत्र का जप किसी शुभ दिन से प्रारंभ करें और 20 मिनट तक 11 दिन तक इसे करें।
सावधानियाँ: साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि इस दौरान नीले और काले वस्त्र न पहनें, धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
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जप के नियम व सावधानियाँ
- 20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष यह जप कर सकते हैं।
- नीले, काले कपड़े न पहनें।
- धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
प्रश्न-उत्तर: रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र से संबंधित
प्रश्न 1: क्या रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का जप सभी कर सकते हैं?
उत्तर: हां, इसे 20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री और पुरुष कर सकते हैं, लेकिन उन्हें इस दौरान खास नियमों का पालन करना चाहिए।
प्रश्न 2: मंत्र का जप कब और कितने दिनों तक करना चाहिए?
उत्तर: मंत्र का जप सुबह या रात के शांत समय में 11 दिन तक रोज 20 मिनट करना चाहिए।
प्रश्न 3: इस मंत्र से क्या-क्या लाभ प्राप्त हो सकते हैं?
उत्तर: इस मंत्र से यौवन शक्ति, आकर्षण शक्ति, विवाहित जीवन का सुख, पौरुष शक्ति, और सौंदर्य में वृद्धि होती है।
प्रश्न 4: इस साधना में कौन-कौन से नियमों का पालन करना आवश्यक है?
उत्तर: साधक को ब्रह्मचर्य के साथ और मद्यपान-धूम्रपान से दूर रहना चाहिए। काले और नीले वस्त्र भी वर्जित हैं।
प्रश्न 5: क्या साधना के दौरान कोई विशेष भोजन करना चाहिए?
उत्तर: हां, दूध, मेवे, और मौसमी फलों का सेवन करना ऊर्जा को बढ़ाता है।
प्रश्न 6: क्या जप के समय दिग्बंधन आवश्यक है?
उत्तर: हां, दिग्बंधन मंत्र से जप के दौरान सुरक्षा मिलती है।
प्रश्न 7: क्या साधना के लिए विशेष मुहूर्त की आवश्यकता है?
उत्तर: शुभ दिन या पुष्य नक्षत्र में प्रारंभ करना लाभकारी माना जाता है।
प्रश्न 8: इस मंत्र का विनियोग क्या है?
उत्तर: यह प्रेम, आकर्षण और सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
प्रश्न 9: क्या मंत्र जाप के दौरान विशेष आसन जरूरी है?
उत्तर: हां, कुश या ऊनी आसन पर बैठना उचित माना जाता है।
प्रश्न 10: साधना में कौन से पुष्प उपयोगी हैं?
उत्तर: लाल और गुलाबी पुष्प का उपयोग इस साधना में लाभकारी है।
प्रश्न 11: क्या मंत्र के उच्चारण में शुद्धता का ध्यान आवश्यक है?
उत्तर: हां, शुद्ध उच्चारण से मंत्र का प्रभाव बढ़ता है।
प्रश्न 12: क्या मंत्र साधना के बाद विशेष आहार-विहार अपनाना चाहिए?
उत्तर: हां, सात्विक भोजन और संयमित जीवन मंत्र की शक्ति को बनाए रखने में सहायक है।