श्री कृष्ण महामंत्र: आध्यात्मिक उन्नति और इच्छापूर्ती
श्री कृष्ण महामंत्र का जप श्रीकृष्ण की कृपा, शांति और आंतरिक शक्ति को प्राप्त करने का विशेष साधन है। इस मंत्र के माध्यम से व्यक्ति को आत्मिक शांति और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। यह मंत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और सभी दुखों का अंत करता है।
दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ
दिग्बंधन मंत्र:
“ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। पूर्वस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। आग्नेय्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। दक्षिणस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। नैऋत्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। पश्चिमस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। वायव्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। उत्तरस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। ईशान्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। ऊर्ध्वस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। अधस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।”
मंत्र का अर्थ:
यह दिग्बंधन मंत्र दसों दिशाओं से सुरक्षा के लिए उच्चारित किया जाता है। इसमें भगवान महादेव के साथ अन्य देवताओं को आह्वान कर सभी दिशाओं से रक्षा की प्रार्थना की जाती है।
- पूर्व (East): जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
- आग्नेय (Southeast): साहस और शक्ति की प्राप्ति।
- दक्षिण (South): भय से मुक्ति और मनोबल में वृद्धि।
- नैऋत्य (Southwest): बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा।
- पश्चिम (West): शांति और आंतरिक शक्ति का संचार।
- वायव्य (Northwest): मानसिक स्थिरता और संतुलन की प्राप्ति।
- उत्तर (North): आत्मिक शांति और समृद्धि का आह्वान।
- ईशान (Northeast): आध्यात्मिक उन्नति और देवताओं का संरक्षण।
- ऊर्ध्व (Upwards): ब्रह्मांडीय ऊर्जा और दिव्य कृपा का संचार।
- अधो (Downwards): पृथ्वी माता से सुरक्षा और स्थिरता की प्राप्ति।
सार:
यह मंत्र साधक के चारों ओर एक ऊर्जा कवच का निर्माण करता है, जिससे नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और चारों दिशाओं से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
श्री कृष्ण महामंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ
मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।”
अर्थ:
- ॐ: यह ब्रह्मांड की परम ध्वनि है, जो हमें परमात्मा से जोड़ती है। यह ध्वनि सभी प्रकार की ऊर्जा का प्रतीक है और मन को शांति प्रदान करती है।
- श्रीं: यह लक्ष्मी का बीज मंत्र है। इसे जपने से धन, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। श्रीकृष्ण के साथ इसे जोड़ने का अर्थ है उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना, जो हर प्रकार की संपन्नता का कारण है।
- ह्रीं: यह शक्ति और संरक्षण का प्रतीक है। ह्रीं के उच्चारण से मन को साहस और आत्मिक शक्ति मिलती है। इसका अर्थ है श्रीकृष्ण की दयालुता और उनकी शक्तिशाली उपस्थिति को अपने भीतर महसूस करना।
- क्लीं: प्रेम, आकर्षण और संबंधों का बीज मंत्र है। यह भगवान कृष्ण के आकर्षण और प्रेम का प्रतीक है, जो भक्तों को उनके दिव्य प्रेम का अनुभव कराता है।
- कृष्णाय: इसका अर्थ है ‘कृष्ण के लिए’ या ‘कृष्ण को समर्पित’। यह हमें उनकी दिव्य लीलाओं और शक्तियों का स्मरण कराता है।
- गोविंदाय: इसका अर्थ है ‘गायों के रक्षक’ या ‘गोपियों का प्रिय’। इस नाम में श्रीकृष्ण की उन सभी लीलाओं का सार है जिनसे वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें आनंद प्रदान करते हैं।
- गोपीजनवल्लभाय: इसका अर्थ है ‘गोपियों के प्रिय’। यह भगवान कृष्ण के उस रूप को दर्शाता है जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
- स्वाहा: यह समर्पण का प्रतीक है। इसके उच्चारण से साधक भगवान कृष्ण के प्रति अपनी पूर्ण भक्ति और समर्पण प्रकट करता है।
संपूर्ण अर्थ:
इस मंत्र का जप करने से साधक श्रीकृष्ण के सभी दिव्य गुणों, उनकी कृपा, प्रेम और शक्ति को अपने जीवन में आमंत्रित करता है। यह मंत्र आत्मिक शांति, सुख-समृद्धि, और प्रेम के साथ-साथ सुरक्षा का अनुभव कराता है।
जप के दौरान सेवन की जाने वाली चीजें
- दूध और फल
- ताजे फल और हरी सब्जियां
- तुलसी पत्ते का सेवन
श्री कृष्ण महामंत्र जप के लाभ
- आत्मिक शांति
- मानसिक स्पष्टता
- परिवार में प्रेम
- तनाव मुक्ति
- भौतिक सुख की प्राप्ति
- कार्य में सफलता
- रोगों से मुक्ति
- सकारात्मक ऊर्जा
- प्रेम में वृद्धि
- स्वाभाविक आकर्षण
- दुखों का नाश
- धन में वृद्धि
- भक्तिभाव जागृत
- मनोबल में वृद्धि
- सकारात्मक परिवर्तन
- सुख की प्राप्ति
- सभी संकटों का नाश
- पूर्णता की प्राप्ति
पूजन सामग्री और विधि
पूजा सामग्री में एक तुलसी का पत्ता, एक आसन, शुद्ध जल, पीले वस्त्र आदि सम्मिलित होते हैं। पूजा के दिन (अष्टमी,एकादशी, गुरुवार) और मुहूर्त (सुबह या सूर्यास्त के बाद) में करना उत्तम रहता है।
श्री कृष्ण महामंत्र जप नियम
- जप का समय: 20 मिनट प्रति दिन
- जप की अवधि: 18 दिन तक
- कपड़े: नीले और काले वस्त्र न पहनें।
- अनुशासन: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- वर्जित आहार: धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
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जप करते समय सावधानियाँ
- शुद्ध स्थान पर बैठें।
- मानसिक स्थिरता बनाए रखें।
- जप के समय नकारात्मक विचार न लाएं।
श्री कृष्ण महामंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर
क्या यह मंत्र किसी विशेष देवी-देवता को समर्पित है?
हाँ, यह मंत्र भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जो प्रेम, आनंद और आशीर्वाद के प्रतीक हैं।
श्री कृष्ण महामंत्र का महत्व क्या है?
श्री कृष्ण महामंत्र का जप करने से आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
कौन-कौन लोग इस मंत्र का जप कर सकते हैं?
20 वर्ष से अधिक आयु के स्त्री और पुरुष, चाहे वे किसी भी वर्ग के हों, इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
मंत्र का जप कितने दिन करना चाहिए?
इस मंत्र का जप 18 दिनों तक, प्रतिदिन 20 मिनट के लिए किया जाना चाहिए।
क्या जप के लिए विशेष समय आवश्यक है?
हाँ, सूर्योदय या सूर्यास्त का समय जप के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन सुविधानुसार शांत और स्वच्छ वातावरण में किसी भी समय जप किया जा सकता है।
क्या इस मंत्र के जप में कोई विशेष आहार का पालन करना चाहिए?
हाँ, शुद्ध और सात्विक आहार लेना चाहिए। मांसाहार, मद्यपान, और धूम्रपान से बचना चाहिए।
मंत्र जप के दौरान किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
सफेद, पीले, या हल्के रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। नीले और काले वस्त्र से बचना चाहिए।
इस मंत्र से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
मानसिक शांति, सुख-समृद्धि, संबंधों में प्रेम और आंतरिक शक्ति मिलती है।
क्या मंत्र जप के दौरान कोई विशेष नियम का पालन करना चाहिए?
हाँ, ब्रह्मचर्य का पालन करें और संयमित आचरण बनाए रखें।
मंत्र जप के दौरान किस मुद्रा में बैठना चाहिए?
साधक को सुखासन या पद्मासन में बैठना चाहिए।
मंत्र जप के समय मानसिक स्थिति कैसी होनी चाहिए?
मन को शांति और भक्ति भाव से भरकर जप करना चाहिए।
मंत्र जप से किस प्रकार की सुरक्षा मिलती है?
यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक विचारों से सुरक्षा प्रदान करता है।