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Three main parts in Durga Shaptashati

दुर्गा सप्तशती (जिसे चंडी पाठ या देवी महात्म्य भी कहा जाता है) एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो देवी दुर्गा की स्तुति में रचा गया है। इसमें 700 श्लोक (सप्तशती) हैं, जो मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत आते हैं। दुर्गा सप्तशती में तीन मुख्य भाग होते हैं:

  1. प्रथम चरित्र (मधु-कैटभ वध) – इसमें महाकाली के रूप में देवी ने मधु और कैटभ नामक असुरों का संहार किया।
  2. मध्यम चरित्र (महिषासुर मर्दिनी) – इसमें देवी महालक्ष्मी के रूप में महिषासुर का वध करती हैं।
  3. उत्तर चरित्र (शुम्भ-निशुम्भ वध) – इसमें देवी महासरस्वती के रूप में शुम्भ-निशुम्भ और उनके सेना का संहार करती हैं।

दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से किया जाता है और इसे शक्ति की आराधना के रूप में माना जाता है। इसमें देवी की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा का विस्तार से वर्णन किया गया है।

प्रथम चरित्र – मधु-कैटभ वध

दुर्गा सप्तशती का प्रथम चरित्र, जिसे “मधु-कैटभ वध” के नाम से जाना जाता है, देवी महाकाली के अद्भुत पराक्रम और शक्ति का वर्णन करता है। यह कथा उस समय की है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे, और ब्रह्मांड के निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी।

सारांश:

सृष्टि की शुरुआत में, जब सारा जगत प्रलय के बाद शून्य में था, भगवान विष्णु अनंतशयन (शेषनाग) पर योगनिद्रा में थे। उनके कानों के मैल से उत्पन्न हुए दो भयंकर असुर, मधु और कैटभ, उत्पन्न हुए। उन्होंने ब्रह्माजी को देखा, जो सृष्टि के निर्माण में लगे हुए थे, और उन पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

ब्रह्माजी भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उन्हें जगाने की प्रार्थना की। किन्तु भगवान विष्णु गहन निद्रा में थे। तब ब्रह्माजी ने योगनिद्रा (देवी महाकाली) की आराधना की, जो भगवान विष्णु की निद्रा का कारण थीं। ब्रह्माजी की स्तुति से प्रसन्न होकर योगनिद्रा ने भगवान विष्णु को जाग्रत किया।

जागने के बाद, भगवान विष्णु ने देखा कि मधु और कैटभ ने पूरे ब्रह्मांड को त्रस्त कर रखा है। तब भगवान विष्णु ने उन दोनों असुरों से युद्ध करना शुरू किया, लेकिन मधु और कैटभ अत्यंत बलशाली थे। उन्होंने 5000 वर्षों तक भगवान विष्णु से युद्ध किया, लेकिन कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था।

अंततः भगवान विष्णु ने देवी महाकाली की सहायता से उन असुरों को माया में फंसा दिया। देवी के प्रभाव से उन असुरों को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया और उन्होंने भगवान विष्णु से वरदान माँगा कि वे स्वयं की इच्छा से मरेंगे। भगवान विष्णु ने उस अवसर का लाभ उठाया और कहा, “तुम्हारी इच्छा है कि तुम्हारी मर्जी से तुम मरोगे, तो मुझे आशीर्वाद दो कि मैं तुम्हें अभी मारूं।”

मधु और कैटभ ने वरदान देने के बाद, भगवान विष्णु से कहा, “हम तुम्हें अपने शरीर दान में देते हैं।” इस प्रकार, भगवान विष्णु ने उनकी गर्दन पकड़कर उन्हें उनके विशाल शरीर से पृथ्वी पर पटक कर मार डाला। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने देवी महाकाली की सहायता से मधु और कैटभ का वध किया और ब्रह्माजी की रक्षा की।

मुख्य श्लोक:

इस चरित्र में देवी की स्तुति करते हुए ब्रह्माजी द्वारा की गई आराधना महत्वपूर्ण है। इन श्लोकों में देवी के अनंत स्वरूपों का वर्णन किया गया है, जैसे:

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थ: जो देवी सभी प्राणियों में चेतना के रूप में विद्यमान हैं, उन देवी को हमारा बारम्बार नमस्कार है।

यह पहला चरित्र देवी के शक्ति और करुणा का अद्वितीय उदाहरण है। देवी महाकाली के इस वीरतापूर्ण कार्य से यह स्पष्ट होता है कि वह अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं।

मध्यम चरित्र – महिषासुर मर्दिनी

दुर्गा सप्तशती के मध्यभाग में आने वाला मध्यम चरित्र देवी महालक्ष्मी के रूप में महिषासुर के वध की कथा को प्रस्तुत करता है। इसे महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। यह कथा देवी दुर्गा के अद्वितीय पराक्रम और महिषासुर जैसे बलशाली असुर का संहार करने की कथा है।

Kamakhya sadhana shivir

सारांश कथा

महिषासुर एक अत्यंत बलशाली असुर था, जो महिष (भैंसे) का रूप धारण कर सकता था। उसने कठोर तपस्या के बाद ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे कोई भी देवता, दानव या पुरुष पराजित नहीं कर सकेगा। इस वरदान से वह अहंकारी हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को पराजित कर दिया। स्वर्गलोक से पराजित होकर, देवता त्राहि-त्राहि मचाते हुए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे।

देवताओं की व्यथा सुनकर, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी-अपनी शक्तियों का एकत्रीकरण किया, जिससे देवी दुर्गा का प्राकट्य हुआ। देवी दुर्गा महालक्ष्मी के रूप में, असीम शक्ति और तेज से युक्त थीं। सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देवी को प्रदान किए, और देवी ने महिषासुर से युद्ध करने का संकल्प लिया।

देवी के तेज और अद्भुत रूप को देखकर महिषासुर ने उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा। देवी ने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और युद्ध के लिए तैयार हो गईं। तब महिषासुर ने भयंकर युद्ध छेड़ा। महिषासुर अनेक रूप धारण कर युद्ध करता रहा—कभी भैंसा, कभी सिंह, कभी हाथी, और अन्य भयंकर रूप। लेकिन देवी ने हर बार उसे पराजित कर दिया।

अंत में, देवी ने महिषासुर को उसके भैंसे के रूप में पराजित किया। जब वह अपनी वास्तविक असुर अवस्था में आया, तो देवी ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया। इस प्रकार, देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया और देवताओं को स्वर्ग का राज्य पुनः प्राप्त कराया।

महिषासुर मर्दिनी की कथा शक्ति, साहस, और सत्य की विजय की प्रतीक है। यह कथा विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान पढ़ी और सुनी जाती है, जब भक्तजन देवी दुर्गा की आराधना करते हैं और उनके अद्वितीय पराक्रम और शक्ति की सराहना करते हैं। महिषासुर पर देवी की विजय यह संदेश देती है कि जब भी अधर्म और अन्याय बढ़ेगा, तब शक्ति स्वरूपा देवी उसकी समाप्ति के लिए प्रकट होंगी।

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उत्तर चरित्र शुम्भ-निशुम्भ वध

दुर्गा सप्तशती का उत्तर चरित्र देवी दुर्गा के महासरस्वती रूप में शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यों का संहार करने की कथा है। यह कथा नारी शक्ति, साहस, और विजय का उत्कृष्ट उदाहरण है।

कथा

शुम्भ और निशुम्भ दो शक्तिशाली असुर थे, जिन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी देवता, मानव या असुर उन्हें पराजित नहीं कर सकेगा। इन वरदानों के बल पर वे स्वर्गलोक पर आक्रमण कर देते हैं और देवताओं को पराजित कर उनके अधिकार छीन लेते हैं। देवता पुनः भगवान विष्णु और शिवजी की शरण में जाते हैं और उनसे सहायता की प्रार्थना करते हैं।

तब देवताओं की प्रार्थना पर देवी पार्वती के शरीर से एक अद्भुत शक्ति प्रकट होती है, जिसे कौशिकी कहते हैं। कौशिकी देवी अत्यंत सुन्दर और दिव्य रूप धारण करती हैं। उनके इस रूप को देखकर शुम्भ और निशुम्भ उन पर मोहित हो जाते हैं और अपने दूत सुग्रीव को भेजकर देवी को अपने हरम में शामिल होने का प्रस्ताव देते हैं। देवी कौशिकी इस प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं और संदेश भेजती हैं कि वे केवल उसी से विवाह करेंगी जो उन्हें युद्ध में पराजित करेगा।

यह सुनकर शुम्भ और निशुम्भ अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और देवी के खिलाफ युद्ध छेड़ देते हैं। पहले निशुम्भ देवी पर आक्रमण करता है, लेकिन देवी ने उसे युद्ध में पराजित कर दिया। तब शुम्भ स्वयं युद्ध में उतरता है और एक भयंकर संग्राम होता है। इस दौरान, देवी ने अपनी योगमाया से कई और देवियों को उत्पन्न किया, जैसे चामुंडा और काली। ये सभी देवियाँ मिलकर शुम्भ और निशुम्भ की विशाल सेना का संहार करती हैं।

अंत में, निशुम्भ जब देवी पर आक्रमण करने आता है, तो देवी महासरस्वती रूप धारण कर उसका वध करती हैं। फिर शुम्भ भी देवी पर क्रोधित होकर आक्रमण करता है, और एक लंबी लड़ाई के बाद देवी उसे भी पराजित कर देती हैं। शुम्भ को मारने के बाद, देवी ने एक बार फिर से देवताओं को उनके स्वर्गलोक में पुनः स्थापित किया।

शुम्भ-निशुम्भ वध की कथा यह दर्शाती है कि देवी केवल सुंदरता और करुणा की देवी ही नहीं, बल्कि शक्ति, पराक्रम, और न्याय की भी देवी हैं। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि जब भी कोई अधर्म और अन्याय बढ़ेगा, तब देवी दुर्गा का आह्वान करके उसे नष्ट किया जा सकता है। देवी दुर्गा की यह विजय कथा सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला हमेशा विजयी होता है।

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