Vibhrama Yakshini Mantra for Kaam shakti & Wealth

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र – शक्तिशाली साधना से पाएं आकर्षण और सफलता

Vibhrama Yakshini Mantra – कामशक्ति व धन प्रदान करने वाली विभ्रामा यक्षिणी मनुष्य के ग्रहस्थ जीवन को सुखमय बनाती है। विभ्रामा यक्षिणी एक प्रमुख यक्षिणी देवी हैं जो काम, धन, और समृद्धि के लिए जानी जाती हैं। उनका मंत्र और पूजा-अर्चना करने के लिए नियमित ध्यान और साधना की जाती है। ध्यानपूर्वक और नियमित अनुष्ठान करने से उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं विभ्रामा यक्षिणे क्लीं फट्ट”

अर्थ:

  • ॐ: यह बीज मंत्र ब्रह्मांड की ध्वनि है और सभी मंत्रों का आरंभ इससे होता है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति को दर्शाता है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र तंत्र साधना और शक्ति का प्रतीक है।
  • विभ्रामा यक्षिणे: विभ्रामा यक्षिणी को संबोधित करता है।
  • क्लीं: यह बीज मंत्र आकर्षण और मोहकता का प्रतीक है।
  • फट्ट: यह बीज मंत्र समापन का संकेत देता है और मंत्र की सुरक्षा का संकेत है।

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. समृद्धि: साधक को धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
  2. आकर्षण: व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  3. सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  4. मानसिक शांति: तनाव और चिंता से मुक्ति।
  5. सफलता: कार्यों में सफलता मिलती है।
  6. स्वास्थ्य: अच्छे स्वास्थ्य का वरदान।
  7. शत्रु नाश: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  8. मनोकामना पूर्ति: इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  9. अध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की उन्नति होती है।
  10. प्रेम और सौहार्द: रिश्तों में मधुरता आती है।
  11. वाणी की शक्ति: वाणी में मिठास और प्रभाव बढ़ता है।
  12. साहस: डर और भय से मुक्ति मिलती है।
  13. ज्ञान: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  14. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी उन्नति होती है।
  15. व्यापार में वृद्धि: व्यापार में उन्नति होती है।
  16. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  17. बाधा निवारण: जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति।
  18. धैर्य: धैर्य और सहनशक्ति में वृद्धि।
  19. आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति: साधक को विशेष आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  20. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।

मंत्र विधि

दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: किसी शुभ दिन या विशेष तिथि पर प्रारंभ करें।
  • अवधि: 11 से 21 दिन तक रोज जप करें।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम होता है।

सामग्री

  • सफेद वस्त्र
  • आसन (कुश, रेशमी, या ऊनी)
  • विभ्रामा यक्षिणी की मूर्ति या चित्र
  • धूप, दीप, और नैवेद्य
  • पुष्प, चंदन, कुमकुम
  • जल पात्र

जप संख्या

  • एक माला: 108 बार
  • 11 माला: 1188 बार रोज जप करें

मंत्र जप के नियम

  1. पवित्रता: साधना स्थान की पवित्रता का ध्यान रखें।
  2. नियमितता: नियमित रूप से निश्चित समय पर जप करें।
  3. संकल्प: जप प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें।
  4. ध्यान: जप करते समय विभ्रामा यक्षिणी का ध्यान करें।
  5. शुद्धि: शारीरिक और मानसिक शुद्धि बनाए रखें।
  6. सात्विक भोजन: सात्विक भोजन का सेवन करें।
  7. स्मरण: दिन में अन्य समयों में भी देवी का स्मरण करें।
  8. आसन: आसन पर स्थिर बैठकर जप करें।
  9. संयम: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  10. एकाग्रता: ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

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मंत्र जप सावधानी

  1. अपवित्र स्थान पर जप न करें।
  2. जप करते समय अनावश्यक बातों से बचें।
  3. जप के दौरान कोई नकारात्मक विचार मन में न आने दें।
  4. सात्विक और शुद्ध आचरण बनाए रखें।
  5. ध्यान भंग होने से बचें।
  6. विशिष्ट अवधि में मंत्र जप पूरा करें।
  7. पूजा और जप के नियमों का पालन करें।
  8. किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  9. अपशब्दों और कटु वचनों से बचें।
  10. शांति और संयम बनाए रखें।

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विभ्रामा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. विभ्रामा यक्षिणी कौन हैं?
    विभ्रामा यक्षिणी एक दिव्य देवी हैं जिनकी पूजा और मंत्र जाप से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
  2. विभ्रामा यक्षिणी मंत्र का क्या अर्थ है?
    यह मंत्र देवी विभ्रामा यक्षिणी को समर्पित है और विभिन्न शक्तियों का आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम समय है।
  4. इस मंत्र का जप कितने दिनों तक करना चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जप करें।
  5. इस मंत्र का जप कितनी बार करना चाहिए?
    एक माला (108 बार) से लेकर 11 माला (1188 बार) तक रोज जप करें।
  6. मंत्र जप के लिए क्या सामग्री चाहिए?
    सफेद वस्त्र, आसन, विभ्रामा यक्षिणी की मूर्ति या चित्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, चंदन, कुमकुम, और जल पात्र।
  7. मंत्र जप के लिए कौन सा आसन प्रयोग करना चाहिए?
    कुश, रेशमी, या ऊनी आसन प्रयोग करें।
  8. क्या मंत्र जप के समय भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
    हां, सात्विक भोजन का सेवन करें।
  9. मंत्र जप के लिए कौन से नियम पालन करने चाहिए?
    पवित्रता, नियमितता, संकल्प, ध्यान, शुद्धि, संयम, और एकाग्रता बनाए रखें।
  10. मंत्र जप के दौरान कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
    अपवित्र स्थान पर जप न करें, नकारात्मक विचार न आने दें, मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  11. मंत्र जप के लाभ क्या हैं?
    समृद्धि, आकर्षण, सुरक्षा, मानसिक शांति, सफलता, स्वास्थ्य, शत्रु नाश, मनोकामना पूर्ति आदि।
  12. क्या विभ्रामा यक्षिणी मंत्र से शत्रु नाश होता है?
    हां, यह मंत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है।

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