चेतावनी! पितृपक्ष में ग्रहण: 99% लोग नहीं जानते इसके नियम, गलती से भी न करें ये काम
Pitru Paksha Eclipse पितृपक्ष हिन्दू धर्म में वह पावन समय है जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा, तर्पण और पिंडदान द्वारा याद करते हैं। माना जाता है कि इस अवधि में हमारे पितृ धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से आशीर्वाद देते हैं। ऐसे समय यदि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण घटित हो जाए, तो उसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। लेकिन यही स्थिति अनेक नियमों और सावधानियों को भी जन्म देती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में ग्रहण काल के दौरान किए गए शुभ कर्म फलदायी नहीं माने जाते और कुछ कार्य अशुभ परिणाम भी ला सकते हैं। कई बार लोग अनजाने में उन नियमों का उल्लंघन कर देते हैं, जिससे पितृ अशांत हो सकते हैं और जीवन में बाधाएँ बढ़ सकती हैं। इसलिए इस समय विशेष सावधानी बरतना आवश्यक है।
DivyayogAshram के अनुसार, ग्रहण का समय साधना, मंत्र-जप और ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। लेकिन खान-पान, यात्रा और नए कार्य शुरू करने से बचना चाहिए। इस लेख में हम पितृपक्ष और ग्रहण से जुड़े उन सभी रहस्यों, नियमों और सावधानियों पर प्रकाश डालेंगे जिन्हें जानना हर साधक और श्रद्धालु के लिए आवश्यक है।
पितृपक्ष का महत्व और ग्रहण का प्रभाव
- पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है।
- इस समय हमारे पितृ धरती पर आकर तृप्ति की अपेक्षा रखते हैं।
- ग्रहण काल में वातावरण में विशेष ऊर्जा प्रवाहित होती है।
- सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के कारण सूक्ष्म शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं।
- DivyayogAshram की दृष्टि से यह समय आध्यात्मिक अभ्यास का है, भौतिक कार्यों का नहीं।
ग्रहण के दौरान क्या करें
- मंत्र-जप और ध्यान
- ग्रहण काल में “ॐ नमः शिवाय” या पितृ मंत्र का जप करना शुभ है।
- दिव्य ऊर्जा का प्रवाह तीव्र होने से साधना सिद्ध होती है।
- दान और तर्पण
- ग्रहण समाप्त होने के बाद तर्पण या जल अर्पण करने से पितृ तृप्त होते हैं।
- अन्न, वस्त्र और गौदान का महत्व इस समय और भी बढ़ जाता है।
- पवित्र स्नान
- ग्रहण समाप्त होते ही गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान करना अनिवार्य है।
- इससे शरीर और मन शुद्ध होते हैं।
ग्रहण के दौरान क्या न करें
- भोजन न करें
- ग्रहण के समय भोजन करने से शरीर पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता है।
- वैज्ञानिक दृष्टि से भी ग्रहण काल में भोजन हानिकारक माना गया है।
- नए कार्य न शुरू करें
- नया व्यापार, सौदा या शुभ कार्य ग्रहण के समय शुरू न करें।
- इससे बाधाएँ और रुकावटें बढ़ सकती हैं।
- सोना और शारीरिक संबंध
- ग्रहण काल में नींद और शारीरिक संबंध वर्जित माने गए हैं।
- यह आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करता है।
पितृपक्ष और ग्रहण के संयुक्त नियम
- ग्रहण के दौरान पितृ तर्पण वर्जित है।
- केवल ग्रहण के बाद शुद्ध स्नान और शुद्ध जल से तर्पण करना चाहिए।
- श्राद्ध कर्म ग्रहण समाप्त होने के बाद ही किए जाने चाहिए।
- DivyayogAshram की साधना विधियों में इस समय विशेष प्रयोग बताए गए हैं, जैसे –
- “ॐ पितृभ्यः नमः” या “ॐ सर्व पित्राय स्वधा” मंत्र का 108 बार जप।
- दीपक जलाकर पितरों से क्षमा प्रार्थना।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- ग्रहण के दौरान सूर्य और चंद्रमा की किरणों का संतुलन बदल जाता है।
- यह बदलाव वातावरण में जीवाणुओं और ऊर्जा तरंगों को प्रभावित करता है।
- भोजन में नकारात्मक प्रभाव जल्दी पड़ता है, इसलिए उसे निषिद्ध माना जाता है।
- ध्यान और जप से मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
DivyayogAshram की विशेष दृष्टि
DivyayogAshram का मानना है कि पितृपक्ष और ग्रहण का संगम साधकों के लिए अद्वितीय अवसर होता है। इस समय किए गए मंत्र-जप और ध्यान से पितृ दोष, कालसर्प दोष और ग्रहण दोष से मुक्ति मिल सकती है। साधकों को इस अवधि में आत्मशुद्धि, प्रार्थना और तपस्या पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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सामान्य प्रश्न
प्रश्न 1: क्या ग्रहण काल में पितृ तर्पण करना चाहिए?
उत्तर: नहीं, ग्रहण के दौरान तर्पण वर्जित है। ग्रहण समाप्त होने के बाद ही करें।
प्रश्न 2: क्या गर्भवती महिला को ग्रहण के समय सावधानी रखनी चाहिए?
उत्तर: हाँ, गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान घर के भीतर रहना चाहिए और मंत्र-जप करना चाहिए।
प्रश्न 3: क्या ग्रहण के समय मंत्र जप प्रभावी होता है?
उत्तर: हाँ, इस समय मंत्र जप का फल कई गुना बढ़ जाता है।
प्रश्न 4: क्या ग्रहण में स्नान आवश्यक है?
उत्तर: हाँ, ग्रहण के बाद स्नान करके ही पवित्रता प्राप्त होती है।
प्रश्न 5: क्या ग्रहण के दौरान पूजा कर सकते हैं?
उत्तर: पूजा नहीं, केवल ध्यान और मंत्र जप करना चाहिए।
अंत मे
पितृपक्ष और ग्रहण का संगम अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली माना गया है। यह समय हमें अपने पूर्वजों को याद करने और आत्मशुद्धि का अवसर देता है। यदि हम नियमों और सावधानियों का पालन करें तो यह काल हमें जीवनभर के लिए पितृ आशीर्वाद, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान कर सकता है। DivyayogAshram की शिक्षाओं के अनुसार इस समय साधना और जप ही सबसे बड़ा साधन है।