गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन बदल देगा
हर कार्य को को सफल बनाने वाला गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना हर मनुष्य के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक पवित्र वैदिक स्तोत्र है जो भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है। इस पाठ का नियमित रूप से जाप करने से व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है और सभी बाधाओं का निवारण होता है।
संपूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष पाठ
गणपति अथर्वशीर्ष १ से ७ श्लोक
ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ 1 ॥
ऋतं वच्मि ।
सत्यं वच्मि ॥ 2 ॥
अव त्वं माम् ।
अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ।
अव दातारम् ।
अव धातारम् ।
अवानूचानमव शिष्यम् ॥ 3 ॥
अव पाश्चातात् ।
अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् ।
अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्वात्तात् ।
अवाधरतात् ।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ 4 ॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः ।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ 5 ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रविशति ॥ 6 ॥
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ 7 ॥
त्वं गुणत्रयातीतः ।
त्वं अवस्थात्रयातीतः ।
त्वं देहत्रयातीतः ।
त्वं कालत्रयातीतः ।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ॥ 8 ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः ।
अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् ।
एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् ।
अकारो मध्यरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः संधानम् ।
संपट्टिसंहिताः सैषा गणेशविद्या ॥ 9 ॥
गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः ।
गणपतिर्देवता ।
ॐ गं गणपतये नमः ॥ 10 ॥
एकदन्ताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नोदन्तिः प्रचोदयात् ॥ 11 ॥
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ॥
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्राकृतेः पुरुषात्परम् ॥ 12 ॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ 13 ॥
न मोक्षगामी न मोक्षगामी ॥ 14 ॥
स विध्नं न स विध्नं न करिष्यति ॥ 15 ॥
विनायकव्रतम् ॥ 16 ॥
एतदथर्वशीर्षं यः पठति स ब्रह्मभूयाय कल्पते स सर्वं बाधिते निर्बाधते स सर्वं बध्नाति ॥ 17 ॥
इदं अथर्वशीर्षं शिष्याणां शिष्याणां ॥ 18 ॥
संग्रह्यते संगृह्यते ॥ 19 ॥
एवं विद्वान् यदिच्छति तत्स वै यत्स वै ॥
इदं अथर्वशीर्षं माला मन्त्रं प्रजापतिं परं प्राप्नोति ॥ 20 ॥
न मोक्षगामी स मोक्षगामी ॥ 21 ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तः प्रभवते स कृत्स्नं स्वेन त्वया एव नित्यं स विसर्ज्यते ॥ 22 ॥
सकृत्संकीर्त्यमानम् सर्वदुःखोपशमनम् ॥
सर्वविघ्नानि यस्मात् स शिवो भवति ॥ 23 ॥
एवं स्तुतो महागणपतिः सदा सुखी भुक्तिमुक्तिप्रदः ॥ 24 ॥
ॐ नमः इतिच ॥ 25 ॥
लाभ
गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्धि और सफलता दिलाने में सहायक होता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं:
- बाधाओं का निवारण: यह पाठ सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करता है और जीवन को सरल और सुखमय बनाता है।
- संकटों से मुक्ति: यह पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है। जब भी जीवन में किसी प्रकार का संकट आता है, इसका पाठ किया जा सकता है।
- धन और समृद्धि: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ व्यक्ति को धन और समृद्धि प्रदान करता है। इसके जाप से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है।
- शत्रुओं से रक्षा: इस पाठ के प्रभाव से व्यक्ति को शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा मिलती है।
- विद्या और बुद्धि की प्राप्ति: विद्यार्थी इस पाठ के माध्यम से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं। यह पाठ ज्ञान और बुद्धिमत्ता में वृद्धि करता है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह पाठ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करता है और व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है।
- परिवार में सुख-शांति: इस पाठ का जाप परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होता है।
- जीवन में सफलता: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
- संकल्प सिद्धि: यदि आप किसी विशेष कार्य के लिए संकल्पित हैं, तो यह पाठ आपके संकल्प को पूर्ण करने में सहायक होता है।
- कुंडली दोषों का निवारण: यह पाठ कुंडली के दोषों को दूर करता है और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है।
- संतान सुख: जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही है, उनके लिए यह पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
विधि
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण विधियाँ और नियम हैं जिन्हें पालन करना चाहिए:
- पाठ का समय: इस पाठ का सबसे अच्छा समय सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जिससे पाठ का प्रभाव अधिक होता है।
- पाठ की अवधि: विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस पाठ को लगातार 41 दिनों तक करना चाहिए। यदि आप इसे नियमित रूप से करते हैं, तो इसे रोज़ाना एक बार करना पर्याप्त है।
- मुहूर्त: यदि संभव हो तो गणेश चतुर्थी, बुधवार, या किसी शुभ दिन पर इस पाठ को प्रारंभ करना चाहिए।
- आसन: पाठ करते समय सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। यह आसन स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
- विधि: पाठ से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं। गणेश जी को फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद संकल्प लेकर पाठ प्रारंभ करें।
- मंत्र जाप: यदि संभव हो तो पाठ के साथ “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें। इससे पाठ का प्रभाव और भी अधिक हो जाता है।
- संकल्प: पाठ के प्रारंभ में अपने संकल्प को स्पष्ट करें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वह आपके संकल्प को पूरा करें।
- विशेष ध्यान: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और अन्य विचारों को मन में न आने दें। पाठ के समय ध्यान केवल भगवान गणेश पर केंद्रित रखें।
नियम
- पूजा और साधना को गुप्त रखें: किसी भी साधना का प्रभाव तभी अधिक होता है जब इसे गुप्त रखा जाए। इसलिए गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी गुप्त रूप से करना चाहिए।
- सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करना चाहिए। तामसिक और राजसिक आहार से बचें और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- शुद्धता: पाठ करते समय मन, वचन, और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। यह पाठ तभी फलदायक होता है जब इसे शुद्ध मन और भावना से किया जाए।
- नियमितता: यदि आप 41 दिन की साधना कर रहे हैं तो इस दौरान पाठ को नियमित रूप से करें। किसी भी दिन इसे छोड़ने से बचें।
- स्वच्छता: पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ के लिए एक विशेष स्थान का चयन करें जिसे स्वच्छ और पवित्र रखा गया हो।
- साधना का पालन: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते समय अन्य साधनाओं को भी यदि कर सकते हैं तो करें, जैसे गणेश जी का मंत्र जाप, ध्यान, या भजन गाना।
सावधानियाँ
- सचेत रहना: इस पाठ को करते समय मन को अन्य विचारों से मुक्त रखें और इसे पूर्ण एकाग्रता के साथ करें।
- अन्य कार्यों से बचें: पाठ के दौरान अन्य कार्यों में मन नहीं लगाएं और पाठ को ध्यानपूर्वक पूरा करें।
- नियमों का पालन: साधना के दौरान दिए गए नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। नियमों का उल्लंघन करने से साधना का प्रभाव कम हो सकता है।
- विशेष परिस्थितियों में विराम: यदि आप बीमार हैं या किसी विशेष परिस्थिति में हैं, तो पाठ को स्थगित कर सकते हैं। ऐसे समय में आप केवल भगवान गणेश का ध्यान कर सकते हैं।
- संयम: साधना के दौरान संयम का पालन करें, चाहे वह आहार, वाणी, या विचारों में हो। यह पाठ की पवित्रता को बनाए रखता है।
गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के सामान्य प्रश्न
- गणपति अथर्वशीर्ष पाठ कब करना चाहिए?
- सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
- क्या इसे केवल बुधवार को ही करना चाहिए?
- नहीं, इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन बुधवार और गणेश चतुर्थी का दिन विशेष माना जाता है।
- क्या इसे घर पर भी कर सकते हैं?
- हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर भी कर सकते हैं।
- क्या महिलाएं भी गणपति अथर्वशीर्ष पाठ कर सकती हैं?
- हाँ, महिलाएं भी इस पाठ को कर सकती हैं।
- पाठ करते समय किस आसन का उपयोग करना चाहिए?
- सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
- क्या पाठ के दौरान उपवास रखना आवश्यक है?
- नहीं, उपवास आवश्यक नहीं है, लेकिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
- इस पाठ का नियमित रूप से कितने दिनों तक करना चाहिए?
- विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
- क्या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है?
- हाँ, यह पाठ जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं का समाधान करता है।
- क्या इस पाठ का जाप व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि दिलाता है?
- हाँ, यह पाठ आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति में सहायक होता है।
- क्या इस पाठ का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है?
- हाँ, यह पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में सहायक होता है।
- क्या इस पाठ को करने से स्वास्थ्य लाभ होता है?
- हाँ, यह पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।