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Ahoi Ashtami Vrat – Children’s Long Life

अहोई अष्टमी व्रत – संतान की दीर्घायु और समृद्धि के लिए अद्भुत पर्व

अहोई अष्टमी व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि के लिए रखा जाता है। विशेष रूप से यह व्रत पुत्रवती महिलाओं द्वारा किया जाता है, ताकि उनके बच्चों का जीवन सुखी और सुरक्षित रहे। अहोई माता की पूजा कर इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है। इसमें संतान की रक्षा, दीर्घायु और उन्नति की कामना की जाती है। यह व्रत दीपावली से ठीक आठ दिन पहले किया जाता है।

अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी व्रत का मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त सुबह 5:00 बजे से लेकर रात्रि 8:00 बजे तक रहेगा। पूजा का समय शाम 6:00 बजे से 7:00 बजे तक रहेगा। इस समय अहोई माता की पूजा और अहोई का चित्र बनाकर पूजा करें। तारों के दर्शन के बाद व्रत का समापन करें।

अहोई अष्टमी व्रत विधि और मंत्र

व्रत के दिन सुबह स्नान कर संकल्प लें। अहोई माता का चित्र दीवार पर बनाएं या स्थापित करें। शाम को पूजा स्थल को सजाएं। “ॐ ऐं ह्रीं अहोई माते नमः” मंत्र का जाप करें। व्रत के दौरान तारों को जल चढ़ाएं और अहोई माता को चावल, दूध, हल्दी, और मिठाई अर्पित करें। अंत में संतान की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत समाप्त करें।

अहोई अष्टमी व्रत की जरूरत क्यों होती है

यह व्रत माताएं अपनी संतानों के दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए रखती हैं। मान्यता है कि अहोई माता की कृपा से संतान की रक्षा होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। विशेषकर यह व्रत उन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिनके बच्चे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हों।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

अहोई अष्टमी के दिन सुबह सरगी के रूप में हल्का फलाहार किया जा सकता है। व्रत में सूखे मेवे, फल, और दूध का सेवन किया जा सकता है। व्रत के दौरान अनाज, तली-भुनी वस्तुओं और भारी भोजन से परहेज करना चाहिए। यह व्रत निर्जल रहकर किया जाता है, परंतु आवश्यकतानुसार पानी और फलाहार लिया जा सकता है।

कब से कब तक व्रत रखें

अहोई अष्टमी व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है और तारों के दर्शन के बाद समाप्त होता है। सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन जल-अन्न का त्याग करें। तारों के दर्शन करने के बाद अहोई माता की पूजा कर व्रत को समाप्त किया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत के लाभ

  1. संतान की दीर्घायु।
  2. संतान के स्वास्थ्य में सुधार।
  3. संतान के जीवन में सुख-समृद्धि।
  4. संतान की सुरक्षा।
  5. मां और संतान के बीच संबंधों में मधुरता।
  6. मानसिक शांति।
  7. आध्यात्मिक उन्नति।
  8. पारिवारिक सुख-शांति।
  9. घर में समृद्धि का आगमन।
  10. धार्मिक पुण्य की प्राप्ति।
  11. समाज में प्रतिष्ठा।
  12. दांपत्य जीवन में स्थिरता।
  13. वंशवृद्धि।
  14. माता-पिता की सेवा में उन्नति।
  15. आर्थिक समृद्धि।
  16. देवी अहोई माता की कृपा।
  17. संतान के भविष्य में उन्नति।

अहोई अष्टमी व्रत के नियम

व्रत रखने वाली महिलाओं को सूर्योदय से पहले सरगी खाकर व्रत का प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के दौरान पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करें। शाम को तारों के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ें। पूजा के समय लाल या पीले वस्त्र पहनें और पूरी श्रद्धा से अहोई माता की पूजा करें। व्रत के दौरान नकारात्मक सोच और बुरे विचारों से बचें।

अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण कथा

प्राचीन समय की बात है। एक साहूकार के सात पुत्र थे। उसकी पत्नी अपने परिवार के साथ सुखी जीवन बिता रही थी। एक दिन दीवाली से पहले वह जंगल में मिट्टी खोदने गई। खुदाई के दौरान उसकी कुदाली से गलती से एक साही (पोरक्यूपाइन) के बच्चे की मौत हो गई। यह दुर्घटना अनजाने में हुई थी, लेकिन साहूकार की पत्नी को इस घटना का बहुत दुख हुआ। उसने पश्चाताप किया, लेकिन वह अनजाने में हुई इस गलती से मुक्ति नहीं पा सकी।

कुछ समय बाद, उसके सभी सात पुत्रों की मृत्यु एक-एक करके हो गई। साहूकार की पत्नी अत्यंत दुखी हो गई। उसने अपने दुख को दूर करने के लिए देवी अहोई की पूजा का संकल्प लिया। उसने कठोर व्रत और तपस्या आरंभ की, जिससे देवी अहोई प्रसन्न हो गईं। देवी अहोई ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके मृत पुत्रों को पुनर्जीवित कर दिया। उस दिन के बाद से महिलाएं अहोई अष्टमी व्रत करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए रखा जाता है।

अहोई अष्टमी में भोग

अहोई अष्टमी की पूजा में अहोई माता को विशेष भोग अर्पित किया जाता है। चावल, दूध, हल्दी, और मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के बाद तारों को अर्घ्य देने के लिए जल अर्पित करें। भोग में विशेष रूप से मिष्ठान्न, दूध और चावल का प्रसाद चढ़ाएं। संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के साथ भोग लगाएं।

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अहोई अष्टमी व्रत में सावधानियां

व्रत रखते समय अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। निर्जल व्रत रखने से पहले अपनी शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखें। यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं हो, तो व्रत के दौरान फलाहार करें। गर्भवती महिलाएं फलाहार लेकर व्रत रख सकती हैं। व्रत के दौरान अत्यधिक शारीरिक श्रम या मानसिक तनाव से बचें। संपूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत करें।

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अहोई अष्टमी व्रत संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: अहोई अष्टमी व्रत का क्या महत्व है?
उत्तर: यह व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि के लिए रखा जाता है।

प्रश्न 2: अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?
उत्तर: तारों के दर्शन के बाद व्रत का समापन किया जाता है।

प्रश्न 3: अहोई अष्टमी व्रत कौन रखता है?
उत्तर: यह व्रत मुख्य रूप से पुत्रवती महिलाएं रखती हैं।

प्रश्न 4: अहोई अष्टमी व्रत कैसे तोड़ा जाता है?
उत्तर: तारों को अर्घ्य देकर और अहोई माता की पूजा कर व्रत तोड़ा जाता है।

प्रश्न 5: अहोई अष्टमी व्रत में क्या खा सकते हैं?
उत्तर: फल, सूखे मेवे, दूध और हल्का फलाहार लिया जा सकता है।

प्रश्न 6: क्या अहोई अष्टमी व्रत में पानी पी सकते हैं?
उत्तर: यह निर्जल व्रत होता है, परंतु जरूरत पड़ने पर पानी पी सकते हैं।

प्रश्न 7: अहोई अष्टमी व्रत में कौन से रंग के कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर: लाल, पीले या सफेद रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 8: अहोई अष्टमी व्रत की कथा क्यों सुननी चाहिए?
उत्तर: व्रत की कथा सुनने से व्रत सफल होता है और देवी की कृपा मिलती है।

प्रश्न 9: अहोई अष्टमी व्रत कब करना चाहिए?
उत्तर: अहोई अष्टमी व्रत दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है।

प्रश्न 10: अहोई अष्टमी व्रत में कौन सी सामग्री आवश्यक है?
उत्तर: जल, चावल, दूध, हल्दी, और मिठाई पूजा के लिए आवश्यक सामग्री हैं।

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