श्री कृष्णाष्टकम् – जीवन में शांति और भक्ति का स्रोत
श्री कृष्णाष्टकम् भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति का अद्भुत स्तोत्र है, जिसमें उनके दिव्य रूप, गुण और अद्वितीय लीलाओं का वर्णन किया गया है। यह ८ श्लोकों का मंत्र है, जो कृष्ण प्रेमियों के लिए अत्यंत लाभकारी और मनोरम होता है। इसे नित्य भावपूर्वक पाठ करने से, साधक की जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक विकास के मार्ग खुलते हैं।
श्री कृष्णाष्टकम् के अद्भुत लाभ
- मन की शांति: श्री कृष्णाष्टकम् का नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है।
- दुखों का नाश: यह पाठ जीवन के दुखों को दूर करता है।
- सद्गुणों की वृद्धि: साधक के भीतर सद्गुण और सहनशीलता उत्पन्न होती है।
- सुख-समृद्धि: इस पाठ से घर में सुख-समृद्धि आती है।
- धन-धान्य की प्राप्ति: यह आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति का मार्ग है।
- रोगों का नाश: शारीरिक एवं मानसिक रोगों का नाश होता है।
- कृष्ण का साक्षात्कार: साधक श्रीकृष्ण की कृपा का अनुभव करता है।
- भक्ति का विकास: इस पाठ से भक्ति में वृद्धि होती है।
- अहंकार का नाश: साधक के अहंकार का नाश होता है।
- संतुष्टि: यह मन और आत्मा को संतुष्टि प्रदान करता है।
- अशुभ शक्तियों से रक्षा: यह पाठ साधक को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
- स्वप्न में शांति: इस पाठ के प्रभाव से साधक को शुभ स्वप्न आते हैं।
- कर्म बंधन से मुक्ति: पुराने कर्म बंधनों से मुक्ति मिलती है।
- परिवार में सुख-शांति: परिवार में प्रेम और स्नेह बढ़ता है।
- जीवन में सफलता: यह पाठ कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाता है।
- सदबुद्धि की प्राप्ति: साधक के विचारों में पवित्रता आती है।
- कर्मों का सुधार: यह नकारात्मक प्रवृत्तियों को खत्म करता है।
कृष्णाष्टकम् व उसका अर्थ
यहाँ संपूर्ण कृष्णाष्टकम् (कृष्ण की स्तुति के लिए ८ श्लोक) प्रस्तुत है, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। इसे पढ़ने और मनन करने से कृष्ण भक्ति का अनुभव मिलता है।
कृष्णाष्टकम्
- वसुदेव सुतं देवं, कंस-चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले, देवकी के परमानंद, जगद्गुरु श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
- अतसी पुष्प संकाशं, हार नूपुर शोभितम्। रत्न कङ्कण केयूरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: अतसी पुष्प के समान सुंदर, हार और नूपुर से शोभित, रत्न कंगन और बाजूबंद धारण किए हुए जगद्गुरु श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
- कुटिलालक संयुक्तं, पूर्णचन्द्र निभाननम्। विलसत् कुंडल धरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: घुँघराले बालों से सुशोभित, पूर्णचन्द्र के समान मुखमंडल वाले, कानों में कुंडल धारण किए हुए श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
- मन्दार गन्ध संयुक्तं, चारुहासं चतुर्भुजम्। बर्हि पिञ्छाव चूडाङ्गं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: मंदार के पुष्पों की सुगंध से संयुक्त, मधुर हँसी वाले, चार भुजाओं वाले, सिर पर मोर पंख धारण किए हुए श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
- उत्फुल्ल पद्म पत्राक्षं, नील जीमूत सन्निभम्। यदावदन्त्य संसेव्यं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: पूर्ण खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान नेत्रों वाले, नीले मेघ के समान शरीर वाले, जिनका सब लोग सेवा करते हैं, ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
- रुक्मिणी केलि संयुक्तं, पीताम्बर सुशोभितम्। अवाप्त तुलसी गन्धं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: रुक्मिणी के साथ क्रीड़ा में मग्न, पीताम्बर धारण किए हुए, तुलसी की सुगंध से सुशोभित श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
- गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कित वक्षसम्। श्री निकेतं महेश्वासं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: गोपिकाओं के कुंकुम से अंकित वक्षस्थल वाले, श्री निवास, महान धनुर्धर श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
- श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं, वनमाला विराजितम्। शङ्खचक्र धरं देवं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: श्रीवत्स के चिन्ह से सुशोभित, विशाल वक्षस्थल वाले, वनमाला और शंख-चक्र धारण किए हुए भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
फलश्रुति
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं, प्रातरुत्थाय यः पठेत्। कोटि जन्म कृतं पापं, स्मरणेन विनश्यति॥
अर्थ: जो भक्त प्रातःकाल इस कृष्णाष्टकम् का पाठ करता है, उसके करोड़ों जन्मों के पाप स्मरण मात्र से नष्ट हो जाते हैं।
कृष्णाष्टकम् संपूर्णम्
श्री कृष्णाष्टकम् का विधि-विधान
दिन: किसी भी दिन श्री कृष्णाष्टकम् का आरंभ किया जा सकता है। किंतु श्रीकृष्णाष्टमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या पूर्णिमा का दिन विशेष शुभ माना गया है।
अवधि: श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ नियमित रूप से ४१ दिन तक करना शुभफलदायी होता है। ४१ दिन के इस साधना काल में साधक को नियमपूर्वक अपने व्रत का पालन करना चाहिए।
मुहूर्त: प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना सर्वोत्तम होता है। यह मुहूर्त आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुकूल माना गया है।
श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करने के नियम
- पूजा विधि: सुबह स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें। श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पाठ करें।
- साधना को गुप्त रखें: श्री कृष्णाष्टकम् की साधना में गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है। इसे गुप्त रखने से इसका प्रभाव अधिक बढ़ता है।
- पवित्रता बनाए रखें: पाठ करने वाले स्थान को पवित्र रखें। मानसिक एवं शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखें।
- नियमितता का पालन: ४१ दिनों तक नित्य श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना अनिवार्य है। इस बीच पाठ में कोई विराम न हो।
- भक्ति का भाव: पूरे मन और श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करें। जितना भक्ति भाव रहेगा, उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होगा।
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श्री कृष्णाष्टकम् पाठ के दौरान सावधानियाँ
- अशुद्ध शब्दों का प्रयोग न करें: श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ करें। अशुद्ध शब्दों से पाठ का प्रभाव कम हो जाता है।
- निर्धारित समय का पालन: एक निश्चित समय पर पाठ करना अच्छा होता है। समय का पालन न करने से साधना की ऊर्जा बिखर जाती है।
- खान-पान का ध्यान रखें: साधना के दौरान सात्त्विक भोजन का सेवन करें। तामसिक भोजन से बचें।
- नकारात्मक विचारों से दूर रहें: साधना काल में नकारात्मक विचारों और नकारात्मक लोगों से दूर रहें। इससे साधना पर बुरा असर नहीं पड़ता।
- धैर्य रखें: श्री कृष्णाष्टकम् का लाभ तुरंत प्राप्त नहीं हो सकता। धैर्य और नियमितता से लाभ निश्चित होता है।
श्री कृष्णाष्टकम् पाठ के प्रश्न-उत्तर
1. श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ क्यों करना चाहिए?
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पाने और जीवन के दुखों को दूर करने के लिए श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना चाहिए।
2. इसका पाठ किस समय करना उचित है?
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ सर्वोत्तम होता है।
3. श्री कृष्णाष्टकम् में कितने श्लोक होते हैं?
श्री कृष्णाष्टकम् में कुल ८ श्लोक होते हैं।
4. क्या इसका पाठ करने के लिए किसी विशेष दिन का चयन करना चाहिए?
श्रीकृष्णाष्टमी, जन्माष्टमी या पूर्णिमा को इसका प्रारंभ करना शुभ होता है।
5. क्या इसका पाठ रोज़ करना आवश्यक है?
हाँ, ४१ दिनों तक नित्य पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
6. पाठ के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए?
पवित्रता, नियमितता, गोपनीयता, और भक्ति भाव रखना आवश्यक है।
7. क्या किसी विशेष वस्त्र पहनना चाहिए?
सफेद या पीले वस्त्र पहनना शुभ माना गया है।
8. श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ कहाँ करना चाहिए?
शुद्ध, शांत और पवित्र स्थान पर करना चाहिए।
9. क्या इसका पाठ अकेले करना चाहिए?
हाँ, अकेले और गोपनीय रूप से पाठ करना चाहिए।
10. क्या साधना के दौरान मौन रहना चाहिए?
हां, साधना के समय मौन धारण करना उचित होता है।
11. क्या स्तोत्र पाठ के लिए मूर्ति की आवश्यकता है?
मूर्ति या तस्वीर के सामने पाठ करने से भक्ति भाव बढ़ता है।
12. क्या श्री कृष्णाष्टकम् से हर कष्ट दूर हो सकता है?
नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।