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Bandhamochan Yakshini Mantra Sadhana

बंधमोचन यक्षिणी मंत्र साधना विधि- आर्थिक तरक्की के साथ सुख समृद्धि पाये

बंधमोचन यक्षिणी मंत्र, बहुत ही शक्तिशाली मानी जाती है, जो विघ्न बाधा समस्याओ से बाहर निकलने मे मदत करती है। जो व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। उसे इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिये।

मंत्र विनियोग

विनियोग का अर्थ होता है मंत्र का उद्देश्य और उसका उपयोग। जब किसी मंत्र का जप किया जाता है, तो उससे पहले उसका विनियोग किया जाता है। विनियोग में यह बताया जाता है कि यह मंत्र किसके लिए, किस उद्देश्य से और किस प्रकार से उपयोग किया जा रहा है। विनियोग में मंत्र के दैवता (जिसकी आराधना की जा रही है), ऋषि (जिन्होंने इस मंत्र का निर्माण किया है), छंद (मंत्र का स्वरूप), और देवता (जिसे मंत्र समर्पित किया जा रहा है) का उल्लेख होता है।

ॐ अस्य श्री बंधमोचन यक्षिणी मंत्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बंधमोचन यक्षिणी देवता, मम सर्व विघ्न, बाधा, शत्रु बाधा, ऋण बाधा च नाशाय फट् स्वाहा इति विनियोगः॥

विनियोग का अर्थ:

  • ॐ: यह मंत्र का प्रारंभिक बीज मंत्र है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।
  • अस्य श्री बंधमोचन यक्षिणी मंत्रस्य: यह श्री बंधमोचन यक्षिणी मंत्र का उल्लेख करता है।
  • ब्रह्मा ऋषिः: इस मंत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, जिन्होंने इस मंत्र की रचना की।
  • गायत्री छन्दः: इस मंत्र का छंद गायत्री है।
  • बंधमोचन यक्षिणी देवता: इस मंत्र की देवता बंधमोचन यक्षिणी हैं, जिन्हें यह मंत्र समर्पित है।
  • मम सर्व विघ्न, बाधा, शत्रु बाधा, ऋण बाधा च नाशाय: यह मंत्र साधक के सभी विघ्न, बाधा, शत्रुओं द्वारा उत्पन्न बाधाओं और ऋण संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए है।
  • फट् स्वाहा: यह मंत्र का समाप्ति है, जो कि मंत्र की शक्ति को प्रभावी बनाता है और साधक की इच्छाओं की सिद्धि करता है।

संक्षेप में: विनियोग मंत्र जप की प्रक्रिया में विशेष भूमिका निभाता है, जिससे साधक का संकल्प स्पष्ट होता है और वह मंत्र की शक्ति का प्रभावी रूप से उपयोग कर पाता है।

बंधमोचन यक्षिणी मंत्र का विस्तृत अर्थ

मंत्र:

॥ ॐ ह्रीं क्रीं बंधमोचन यक्षिणे मातः मम सर्वान् विघ्नान् बाधाः शत्रु बाधाः ऋण बाधाः च नाशय फट्ट स्वाहा ॥
  • ॐ: यह सार्वभौमिक ध्वनि है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। यह सकारात्मक ऊर्जा और शांति का स्रोत है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र है जो देवी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। यह आंतरिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का संकेत देता है।
  • क्रीं: यह भी एक शक्तिशाली बीज मंत्र है जो काली शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने में सहायक होता है।
  • बंधमोचन यक्षिणे मातः: यह यक्षिणी देवी का आह्वान है जो सभी बंधनों को मुक्त करने वाली मां के रूप में जानी जाती हैं।
  • मम सर्वान् विघ्नान् बाधाः शत्रु बाधाः ऋण बाधाः च नाशय: यहां साधक अपनी सभी समस्याओं, बाधाओं, शत्रुओं द्वारा उत्पन्न बाधाओं और ऋण संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए देवी से प्रार्थना करता है।
  • फट्ट स्वाहा: यह मंत्र का समापन है जो ऊर्जा को मुक्त करता है और प्रार्थना को सिद्ध करता है।

बंधमोचन यक्षिणी के लाभ

  1. कार्य में रुकावट का नाश: यह मंत्र कार्यों में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करता है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकता है।
  2. नौकरी में सुधार: नौकरी से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है और करियर में उन्नति के रास्ते खुलते हैं।
  3. दुकान और धंधे की समस्याओं का समाधान: व्यापार में आने वाली मुश्किलें दूर होती हैं और व्यापारिक प्रगति होती है।
  4. व्यापार में गिरावट का निवारण: व्यापार में स्थिरता और वृद्धि आती है, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  5. आर्थिक बंधन से मुक्ति: धन से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  6. संतान बंधन का नाश: संतान से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है और परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
  7. शत्रु बंधन का नाश: शत्रुओं द्वारा उत्पन्न सभी बाधाएं और नकारात्मकता दूर होती है।
  8. रोग बंधन से मुक्ति: स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
  9. मानसिक शांति का प्राप्ति: मानसिक तनाव और चिंता कम होती है, जिससे मन शांत और स्थिर रहता है।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना बढ़ती है और वह आत्मिक शांति का अनुभव करता है।
  11. परिवार में सुख और समृद्धि: परिवारिक जीवन में सौहार्द और खुशहाली आती है।
  12. सामाजिक सम्मान में वृद्धि: समाज में व्यक्ति का मान-सम्मान बढ़ता है और उसकी प्रतिष्ठा में सुधार होता है।
  13. नकारात्मक ऊर्जा से संरक्षण: आस-पास की नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाव होता है और सकारात्मकता का वातावरण बनता है।
  14. विवाह संबंधित समस्याओं का समाधान: विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख और संतुष्टि प्राप्त होती है।
  15. सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति: जीवन के हर क्षेत्र में आने वाले बंधन और रुकावटें दूर होती हैं, जिससे व्यक्ति स्वतंत्र और सफल जीवन जी सकता है।

बंधमोचन यक्षिणी साधना विधि

इस यक्षिणी साधना को सही विधि और नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए ताकि उसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। ११ लौंग को अपने सामने रखे। सरसो के तेल का दीपक जलाये। अब सामने बैठकर ११ दिन तक मंत्र जप करे। जप समाप्त होने के बाद दूध का हवन करे। फिर किसी को फल या भोजन दान दे और ११ लौंग को किसी काले कपड़े मे लपेटकर अपने पूजाघर मे रख दे।

बंधमोचन यक्षिणी हवन सामग्री

५० ग्राम चावल, ५० ग्राम जौ, ५० ग्राम घी और ११ लौंग व ५० ग्राम दूध को एक साथ मिला ले और इस मंत्र साथ आहुति दे। आहुति मंत्र १०% देना होता है, उदाहरण स्वरूप अगर ११ दिन मे ११०० मंत्र का जप किया है तो हवन मे ११० आहुति देनी होगी।

दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन का चयन: इस मंत्र का जप किसी भी शुभ दिन से प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन मंगलवार और शुक्रवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन भी इसे प्रारंभ करना लाभकारी होता है।
  • अवधि: मंत्र जप को निरंतर 11 से 21 दिनों तक किया जाना चाहिए। साधक अपनी सुविधानुसार अवधि चुन सकता है, लेकिन नियमितता और संकल्प का पालन आवश्यक है।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस समय वातावरण शांत और ऊर्जा सकारात्मक होती है, जिससे मंत्र का प्रभाव अधिक होता है।

मंत्र जप सामग्री

  1. रुद्राक्ष या स्फटिक की माला: मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष या स्फटिक की माला का उपयोग करें। यह ऊर्जा को संचालित करने में सहायक होती है।
  2. पीला आसन: जमीन पर बैठने के लिए पीले रंग का आसन उपयोग करें, जो सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
  3. दीपक: घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं, जिससे वातावरण पवित्र और ऊर्जा से भरपूर हो।
  4. अगरबत्ती या धूप: सुगंधित अगरबत्ती या धूप जलाकर वातावरण को शुद्ध करें।
  5. पुष्प: देवी को समर्पित करने के लिए लाल या पीले रंग के ताजे फूल रखें।
  6. चंदन और कुमकुम: पूजा के दौरान तिलक लगाने और देवी की प्रतिमा या चित्र को सजाने के लिए चंदन और कुमकुम का उपयोग करें।
  7. जल का पात्र: शुद्ध जल का एक पात्र रखें जिसे अंत में आचमन के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  8. देवी यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र: अगर संभव हो तो देवी यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र सामने रखकर पूजा करें।

मंत्र जप संख्या

प्रत्येक दिन 11 माला का जप करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। एक माला में 108 मोती होते हैं।
11 माला का अर्थ है 1188 मंत्रों का प्रतिदिन जप करना। यह संख्या मंत्र की शक्ति को बढ़ाती है।
इस विधि से शीघ्र और प्रभावी परिणाम प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

गुप्त लक्ष्मी मंत्र का जप सही विधि और नियमों का पालन करते हुए ही करना चाहिए।
यह सुनिश्चित करता है कि मंत्र का पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके।
शाम होने से पहले पीपल का पत्ता घर ले आएं।
उसे पहले पानी, फिर कच्चे दूध और अंत में पानी से धो लें।
यदि पीपल का पत्ता न मिले, तो केले का पत्ता उपयोग कर सकते हैं।
पत्ते पर हल्दी का पेस्ट लगाएं और उस पर “श्रीं” लिखें।
अब पत्ते के सामने बैठकर 11 दिनों तक मंत्र का जप करें।
मंत्र जप पूरा होने के बाद फल या भोजन का दान अवश्य करें।

मंत्र जप के नियम

उम्र: मंत्र जप करने वाले की आयु कम से कम 20 वर्ष होनी चाहिए। यह परिपक्वता और दृढ़ संकल्प सुनिश्चित करता है।

लिंग: स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है।

वस्त्र: हल्के रंग के शुद्ध और साफ वस्त्र पहनें। ब्लू और ब्लैक रंग के कपड़े न पहनें।
ये रंग नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकते हैं, इसलिए इन्हें मंत्र जप के दौरान टालना चाहिए।

आहार और आदतें:

  1. धूम्रपान और मद्यपान से बचें: जप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन न करें।
  2. मांसाहार से परहेज करें: इस अवधि में केवल शाकाहारी भोजन करें और मांसाहार पूरी तरह त्याग दें।
  3. ब्रह्मचर्य का पालन करें: जप के समय ब्रह्मचर्य का पालन करें। इससे मानसिक और शारीरिक ऊर्जा एकत्रित होती है।
  1. स्नान और शुद्धि: हर दिन स्नान करके शुद्ध मन और शरीर के साथ मंत्र जप करें।
  2. नियमितता: जप को बिना किसी रुकावट के प्रतिदिन निर्धारित समय पर करें।
  3. ध्यान और एकाग्रता: मंत्र जप के दौरान मन को एकाग्र रखें और देवी की कृपा का ध्यान करें।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियां

  1. नकारात्मक विचारों से दूर रहें: मंत्र जप के दौरान और सामान्य जीवन में नकारात्मक विचारों से बचें और सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  2. शुद्ध स्थान का चयन: मंत्र जप के लिए शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें जहां बाहरी शोर और व्यवधान न हों।
  3. मंत्र का सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और सही तरीके से करें। अगर संभव हो तो किसी गुरु या जानकार से सही उच्चारण सीखें।
  4. विशेष परिस्थितियां: अगर किसी कारणवश जप में रुकावट आती है, तो अगले दिन अतिरिक्त माला जप करके उसकी पूर्ति करें।
  5. अनुशासन का पालन: पूरे जप अवधि के दौरान अनुशासन और नियमों का कठोरता से पालन करें।

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मंत्र से संबंधित सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर

  1. प्रश्न: क्या इस मंत्र को बिना गुरु दीक्षा के जप सकते हैं?
    उत्तर: हां, लेकिन यदि संभव हो तो किसी जानकार से मार्गदर्शन लेकर जप करना अधिक फलदायी होता है।
  2. प्रश्न: क्या महिलाएं मासिक धर्म के दौरान इस मंत्र का जप कर सकती हैं?
    उत्तर: मासिक धर्म के दौरान पूजा और मंत्र जप से परहेज करना चाहिए।
  3. प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान मोबाइल फोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पास रख सकते हैं?
    उत्तर: मंत्र जप के दौरान ध्यान भंग न हो, इसलिए इन उपकरणों को दूर रखना उचित होता है।
  4. प्रश्न: जप पूर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए?
    उत्तर: जप के बाद देवी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
  5. प्रश्न: क्या जप के दौरान किसी विशेष भोजन का सेवन करना चाहिए?
    उत्तर: हल्का और सात्विक भोजन करें। तामसिक और राजसिक भोजन से परहेज करें।
  6. प्रश्न: अगर किसी दिन जप न कर पाएं तो क्या करें?
    उत्तर: कोशिश करें कि जप में रुकावट न आए।
  7. प्रश्न: क्या इस मंत्र का जप समूह में किया जा सकता है?
    उत्तर: हां, लेकिन प्रत्येक साधक को अपने नियमों और अनुशासन का पालन करना होगा।
  8. प्रश्न: जप के बाद माला को कैसे रखना चाहिए?
    उत्तर: माला को स्वच्छ और पवित्र स्थान पर रखें।
  9. प्रश्न: क्या इस मंत्र के जप से तुरंत परिणाम मिलते हैं?
    उत्तर: धैर्य और विश्वास के साथ जप करने से निश्चित ही सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।

BOOK (३० APRIL 2025) MAHALAKSHMI PUJAN SHIVIR (AKSHAYA TRITIYA) AT DIVYAYOGA ASHRAM (ONLINE/ OFFLINE)

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