Saturday, December 14, 2024

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Ganesha Shashthi Vrat for All Obstacles

गणेश षष्ठी व्रत- संतान सुख, मंगल कार्य व सुरक्षा

गणेश षष्ठी व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य जीवन में आने वाले विघ्नों का नाश करना और सुख-समृद्धि प्राप्त करना है। यह व्रत प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है, विशेषकर भाद्रपद मास की षष्ठी को इसका विशेष महत्व होता है।

गणेश षष्ठी व्रत विधि और मंत्र

  1. प्रातः काल स्नान: सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान की शुद्धि: पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. गणेश प्रतिमा स्थापना: भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें।
  4. दीप प्रज्वलन: दीप जलाएं और गणेश जी के सामने रखें।
  5. मंत्र जाप: “ऊं गं गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  6. भोग अर्पण: गणेश जी को मोदक, लड्डू, और फल का भोग अर्पित करें।
  7. आरती और प्रार्थना: गणेश जी की आरती करें और आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

गणेश षष्ठी व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

खाने योग्य:

  • फल, दूध, दही, और मेवे
  • साबूदाना खिचड़ी और सिंघाड़े का आटा

न खाने योग्य:

  • अनाज, दालें, और तामसिक भोजन
  • प्याज, लहसुन, और मसालेदार खाद्य पदार्थ

गणेश षष्ठी व्रत का समय और अवधि

गणेश षष्ठी व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है और अगले दिन सूर्योदय तक चलता है। इस दौरान व्रती को केवल फलाहार और सात्विक भोजन करना चाहिए।

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गणेश षष्ठी व्रत के लाभ

  1. विघ्नों का नाश: जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
  2. धन की प्राप्ति: आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है।
  3. स्वास्थ्य में सुधार: शरीर और मन को शांति मिलती है।
  4. परिवार में शांति: परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
  5. संतान सुख: संतान संबंधी समस्याओं का निवारण होता है।
  6. कार्य में सफलता: हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  7. मानसिक शांति: मन की शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  8. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  9. शिक्षा में प्रगति: विद्यार्थी जीवन में विशेष लाभकारी है।
  10. विवाह में बाधा निवारण: विवाह संबंधित अड़चनें दूर होती हैं।
  11. जीवन में स्थिरता: जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है।
  12. धार्मिक उन्नति: धर्म के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ता है।

गणेश षष्ठी व्रत के नियम

  1. स्नान और शुद्धि: सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. सात्विकता का पालन: पूरे दिन सात्विक आहार और विचार रखें।
  3. झूठ न बोलें: व्रत के दिन झूठ बोलने से बचें।
  4. ब्रह्मचर्य का पालन: इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
  5. सादा जीवन: शारीरिक श्रम और मानसिक तनाव से बचें।
  6. ईश्वर भक्ति: दिनभर गणेश जी की भक्ति में लगे रहें।

Ganesha sadhana samagri with diksha

गणेश षष्ठी व्रत -भोग

गणेश जी को मोदक, लड्डू, गुड़, और फल विशेष प्रिय हैं। भोग के रूप में इनका उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, गणेश जी को दूध और चने का भोग भी लगाया जा सकता है।

गणेश षष्ठी व्रत की सावधानियाँ

  1. अनुचित आहार से बचें: व्रत के दौरान तामसिक और मसालेदार भोजन से बचें।
  2. शारीरिक और मानसिक शुद्धता: शुद्ध विचारों और कर्मों का पालन करें।
  3. अधिकार का दुरुपयोग न करें: व्रत के दौरान कोई अनुचित लाभ प्राप्त करने का प्रयास न करें।
  4. ध्यान और साधना: अधिक से अधिक समय ध्यान और साधना में बिताएं।
  5. अनुशासन का पालन: व्रत के सभी नियमों का पूर्ण पालन करें।

गणेश षष्ठी व्रत की संपूर्ण कथा

गणेश षष्ठी व्रत का धार्मिक और पौराणिक महत्व अत्यधिक है। इस व्रत की कथा भगवान गणेश के जन्म और उनकी शक्तियों से संबंधित है, जिसे सुनने और पालन करने से व्यक्ति को विघ्नों से मुक्ति और समृद्धि प्राप्त होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के शरीर के मैल से हुआ था। एक दिन माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं और उन्होंने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। गणेश जी ने माता के आदेश का पालन करते हुए किसी को भी भीतर प्रवेश करने से मना कर दिया। उसी समय भगवान शिव वहां पहुंचे और गणेश जी को अपने ही घर के द्वार पर रोकता देख क्रोधित हो गए।

गणेश जी ने शिव जी को भी प्रवेश करने से मना कर दिया क्योंकि वे माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे थे। शिव जी ने गणेश जी से वार्तालाप करने का प्रयास किया, लेकिन गणेश जी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए और उन्होंने शिव जी को भीतर जाने से रोक दिया। इस पर शिव जी का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का मस्तक काट दिया।

जब माता पार्वती ने यह देखा तो वह अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गईं। उन्होंने अपनी सृष्टि की शक्तियों का प्रयोग कर सृष्टि को विनाश की धमकी दी। पार्वती जी के क्रोध को शांत करने के लिए, भगवान शिव ने तुरंत गणेश जी को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर जाएं और उन्हें किसी भी जीवित प्राणी का मस्तक लेकर आएं, जो अपने माता-पिता के प्रति अत्यधिक प्रेम और भक्ति रखता हो।

गणों ने एक हाथी के बच्चे का सिर पाया, जो अपने माता-पिता के प्रति अत्यधिक भक्ति रखता था। वे उसका सिर भगवान शिव के पास लेकर आए। शिव जी ने उस हाथी के सिर को गणेश जी के धड़ पर स्थापित कर दिया और उन्हें पुनर्जीवित किया। इस प्रकार गणेश जी का पुनर्जन्म हुआ और उन्हें “गजानन” नाम दिया गया, जिसका अर्थ है “हाथी के समान मुख वाला”।

गणेश जी को विघ्नहर्ता का आशीर्वाद

पुनर्जीवित होने के बाद, भगवान गणेश ने भगवान शिव और माता पार्वती के सामने झुककर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि वे समस्त देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे और उन्हें “विघ्नहर्ता” का पद प्राप्त होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि गणेश जी की पूजा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में सबसे पहले की जाएगी और वे अपने भक्तों के जीवन में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करेंगे।

इस घटना के बाद, गणेश जी को “विघ्ननाशक” और “संकटनाशक” कहा जाने लगा। उनके भक्तों का विश्वास है कि गणेश जी की पूजा और व्रत से सभी प्रकार के संकट, विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं। गणेश षष्ठी व्रत का उद्देश्य गणेश जी की कृपा प्राप्त करना और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि को सुनिश्चित करना है।

इस व्रत को करने से पहले श्रद्धालु अपने घरों की सफाई करते हैं और गणेश जी की प्रतिमा को विशेष आसन पर स्थापित करते हैं। इसके बाद, उन्हें फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और अन्य पूजन सामग्रियों से पूजा जाता है। व्रती लोग दिनभर उपवास रखते हैं और भगवान गणेश की कथा का श्रवण करते हैं। गणेश षष्ठी व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी विघ्न और समस्याएं दूर होती हैं और भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है।

गणेश षष्ठी व्रत की इस कथा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। यह कथा न केवल भगवान गणेश की उत्पत्ति और उनके महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने कर्तव्यों और धर्म का पालन दृढ़ता से करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। गणेश जी की कृपा से जीवन की सभी समस्याएं सुलझ जाती हैं और व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

गणेश षष्ठी व्रत संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: गणेश षष्ठी व्रत कब किया जाता है?
उत्तर: गणेश षष्ठी व्रत प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।

प्रश्न 2: व्रत में कौन-कौन से खाद्य पदार्थ खा सकते हैं?
उत्तर: फल, दूध, दही, मेवे, साबूदाना, और सिंघाड़े का आटा खा सकते हैं।

प्रश्न 3: व्रत के दिन क्या नहीं खाना चाहिए?
उत्तर: अनाज, दालें, प्याज, लहसुन, और मसालेदार भोजन नहीं खाना चाहिए।

प्रश्न 4: गणेश षष्ठी व्रत के नियम क्या हैं?
उत्तर: ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक आहार, और शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 5: व्रत का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: जीवन में सुख-समृद्धि और विघ्नों का नाश करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

प्रश्न 6: क्या व्रत में केवल फलाहार किया जा सकता है?
उत्तर: हां, व्रत में केवल फलाहार और सात्विक भोजन ही करना चाहिए।

प्रश्न 7: व्रत का पारण कब किया जाता है?
उत्तर: व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।

प्रश्न 8: गणेश षष्ठी व्रत के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर: अनुचित आहार से बचें, शुद्धता का ध्यान रखें, और अनुशासन का पालन करें।

प्रश्न 9: व्रत के दौरान कौन सा मंत्र जपना चाहिए?
उत्तर: “ऊं गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।

प्रश्न 10: गणेश षष्ठी व्रत का क्या महत्व है?
उत्तर: गणेश षष्ठी व्रत विघ्नों का नाश और सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 11: क्या व्रत के दौरान केवल उपवास रहना चाहिए?
उत्तर: नहीं, फलाहार और सात्विक भोजन लिया जा सकता है।

प्रश्न 12: गणेश जी को व्रत में कौन-सा भोग अर्पित करें?
उत्तर: मोदक, लड्डू, गुड़, फल, और दूध का भोग अर्पित करें।

गणेश षष्ठी व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है, जिससे भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली सभी विघ्न बाधाएं दूर होती हैं।

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