Saturday, December 21, 2024

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Gauri Kavach Path for Wishes & Relationship

गौरी कवचम् एक दिव्य और शक्तिशाली पाठ है जो देवी गौरी (माँ पार्वती) की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह कवच साधक को सुरक्षा, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से जीवन की कठिनाइयाँ समाप्त होती हैं और संतुलित मानसिक स्थिति प्राप्त होती है।

गौरी कवचम् का संपूर्ण पाठ और उसका अर्थ

कवचम् पाठ

ॐ अस्य श्री गौरी कवचस्य,
ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री गौरी देवता,
श्री गौरी प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ॐ गौरी मे शिरः पातु,
ललाटं चन्द्रवर्णनिभानना।
कर्णयोः पातु कात्यायनी,
नेत्रे मे पार्वती पातु॥

मुखं मे भगवती पातु,
जिव्हां मे श्वेतपद्मा।
कण्ठं मे वाणी पातु,
स्कन्धं मे मंगला सदा॥

भुजं मे पातु जपाकुसुमा,
वक्षः पातु श्वेतपद्मा।
हृदयं च पातु श्रीवेद्या,
नाभिं मे शंकारी सदा॥

कटिं मे पातु लक्ष्मीवती,
ऊरू मम चंद्रमा पातु।
जानुनीं मे गंगा पातु,
जङ्घे मे पातु शारदा॥

पादौ मम कुमुदिनी,
अङ्गं मे पातु शुभा सदा।
अन्तः पातु मङ्गला,
बाह्यं मे च शुभा सदा॥

अर्थ

  • ॐ गौरी मे शिरः पातु: माँ गौरी मेरे सिर की रक्षा करें।
  • ललाटं चन्द्रवर्णनिभानना: चंद्रमा के समान सुंदर और शांतिपूर्ण देवी मेरे ललाट की रक्षा करें।
  • कर्णयोः पातु कात्यायनी: कात्यायनी देवी मेरे कानों की रक्षा करें।
  • नेत्रे मे पार्वती पातु: देवी पार्वती मेरे नेत्रों की रक्षा करें।
  • मुखं मे भगवती पातु: भगवती मेरे मुख की रक्षा करें।
  • जिव्हां मे श्वेतपद्मा: श्वेतपद्मा देवी मेरी जिव्हा की रक्षा करें।
  • कण्ठं मे वाणी पातु: वाणी देवी मेरे कण्ठ की रक्षा करें।
  • स्कन्धं मे मंगला सदा: मंगला देवी मेरे स्कन्ध की रक्षा करें।
  • भुजं मे पातु जपाकुसुमा: जपाकुसुमा देवी मेरे भुजाओं की रक्षा करें।
  • वक्षः पातु श्वेतपद्मा: श्वेतपद्मा देवी मेरे वक्ष की रक्षा करें।
  • हृदयं च पातु श्रीवेद्या: श्रीवेद्या देवी मेरे हृदय की रक्षा करें।
  • नाभिं मे शंकारी सदा: शंकारी देवी मेरी नाभि की रक्षा करें।
  • कटिं मे पातु लक्ष्मीवती: लक्ष्मीवती देवी मेरी कटि की रक्षा करें।
  • ऊरू मम चंद्रमा पातु: चंद्रमा देवी मेरी ऊरुओं की रक्षा करें।
  • जानुनीं मे गंगा पातु: गंगा देवी मेरे जानुओं की रक्षा करें।
  • जङ्घे मे पातु शारदा: शारदा देवी मेरी जङ्घाओं की रक्षा करें।
  • पादौ मम कुमुदिनी: कुमुदिनी देवी मेरे पादों की रक्षा करें।
  • अङ्गं मे पातु शुभा सदा: शुभा देवी मेरे सम्पूर्ण अंगों की रक्षा करें।
  • अन्तः पातु मङ्गला: मङ्गला देवी मेरे आंतरिक अंगों की रक्षा करें।
  • बाह्यं मे च शुभा सदा: बाहरी अंगों की रक्षा भी शुभा देवी करें।

लाभ

  1. आध्यात्मिक उन्नति: गौरी कवचम् का पाठ करने से साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  2. मन की शांति: यह पाठ मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  3. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: साधक को नकारात्मक ऊर्जा और शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार: नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  6. धन और समृद्धि: यह कवच आर्थिक समृद्धि और धन की वृद्धि में सहायक है।
  7. सुखी पारिवारिक जीवन: पारिवारिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
  8. मानसिक स्थिरता: मानसिक स्थिरता और संतुलन प्राप्त होता है।
  9. भाग्यवृद्धि: भाग्य में वृद्धि होती है।
  10. आकर्षण शक्ति में वृद्धि: व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  11. धार्मिक कर्तव्यों में सफलता: धार्मिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  12. देवी की कृपा: देवी गौरी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  13. संकटों से मुक्ति: जीवन के संकट और समस्याएँ दूर होती हैं।
  14. सद्गुणों की प्राप्ति: साधक में सद्गुणों का विकास होता है।
  15. अनुकूल परिणाम: साधना में अनुकूल और सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।

गौरी कवचम् का पाठ विधि

दिन और अवधि

  • अवधि: गौरी कवचम् का पाठ ४१ दिन तक निरंतर करना चाहिए।
  • दिन: सोमवार और शुक्रवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
  • समय: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) का समय सर्वोत्तम होता है।

मुहूर्त

  • पंचमी, अष्टमी और पूर्णिमा के दिन इस पाठ की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
  • नवमी तिथि और अमावस्या को भी इस कवच का पाठ करना लाभकारी होता है।

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गौरी कवचम् का नियम और सावधानियां

नियम

  • साधना को गुप्त रखें: साधना के दौरान इसे गुप्त रखना अत्यावश्यक है। इसे किसी के साथ साझा न करें।
  • शुद्ध आचरण: साधक को शुद्ध आचरण और विचार रखने चाहिए।
  • नियमितता: नियमित रूप से इस कवच का पाठ करें।
  • भोजन में सात्विकता: साधक को सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।
  • सद्भावना: साधक के मन में सद्भावना और प्रेम होना चाहिए।

सावधानियां

  • अविश्वास: यदि मन में अविश्वास या संदेह है, तो इस साधना से दूर रहें।
  • अनुचित व्यवहार: साधना के दौरान अनुचित व्यवहार से बचें।
  • अपवित्रता: साधना के समय किसी भी प्रकार की अपवित्रता से बचें।
  • मन्त्र का अपमान: मंत्र का किसी भी रूप में अपमान नहीं होना चाहिए।

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गौरी कवचम् पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: गौरी कवचम् किस देवी को समर्पित है? उत्तर: गौरी कवचम् देवी गौरी (माँ पार्वती) को समर्पित है।

प्रश्न 2: गौरी कवचम् का मुख्य उद्देश्य क्या है? उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य साधक को सुरक्षा, समृद्धि, और देवी गौरी की कृपा प्राप्त करना है।

प्रश्न 3: गौरी कवचम् का पाठ कितने दिन तक करना चाहिए? उत्तर: इसका पाठ ४१ दिन तक करना चाहिए।

प्रश्न 4: कौन से दिन गौरी कवचम् का पाठ करने के लिए सर्वोत्तम हैं? उत्तर: सोमवार और शुक्रवार सर्वोत्तम दिन हैं।

प्रश्न 5: गौरी कवचम् का पाठ कब करना चाहिए? उत्तर: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) इसका सर्वोत्तम समय है।

प्रश्न 6: गौरी कवचम् का पाठ करने से क्या लाभ होता है? उत्तर: इस कवच का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मन की शांति, नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा, स्वास्थ्य में सुधार, शत्रुओं से रक्षा, धन और समृद्धि आदि लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 7: क्या गौरी कवचम् का पाठ करते समय कोई विशेष नियम पालन करना चाहिए? उत्तर: हाँ, साधना को गुप्त रखना, शुद्ध आचरण और विचार, नियमितता, सात्विक भोजन और सद्भावना जैसे नियम पालन करना चाहिए।

प्रश्न 8: इस कवचम् का अर्थ क्या है? उत्तर: इसका का अर्थ है वह श्लोक या मंत्र जो देवी गौरी की कृपा और सुरक्षा के लिए रचा गया है।

प्रश्न 9: गौरी कवचम् का पाठ करने से कौन से संकट दूर होते हैं? उत्तर: जीवन के अनेक संकट, शत्रु बाधा, मानसिक और शारीरिक कष्ट आदि इससे दूर होते हैं।

प्रश्न 10: गौरी कवचम् का पाठ किस मुहूर्त में करना चाहिए? उत्तर: पंचमी, अष्टमी, पूर्णिमा, नवमी तिथि और अमावस्या के दिन इस कवच का पाठ करना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 11: क्या गौरी कवचम् का पाठ किसी भी स्थान पर किया जा सकता है? उत्तर: हाँ, लेकिन स्थान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए।

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