मूलाधार चक्र ठीक करो – जीवन में स्थिरता और शक्ति लाओ
Heal Root Chakra मूलाधार चक्र हमारे अस्तित्व की नींव है। यही चक्र जीवन में स्थिरता, साहस और आत्मविश्वास जगाता है। जब यह चक्र असंतुलित होता है तो डर, असुरक्षा और अनिश्चितता बढ़ जाती है। व्यक्ति भविष्य को लेकर परेशान रहता है और छोटी समस्याएं भी बड़ा बोझ लगती हैं। इसलिए मूलाधार चक्र की शुद्धि जीवन का पहला और सबसे जरूरी कदम बन जाता है।
DivyayogAshram के अनुसार मूलाधार चक्र को ठीक करने से भीतर एक नई शक्ति सक्रिय होती है। यह शक्ति मन को स्थिर करती है। शरीर को ऊर्जा देती है। रिश्तों में भरोसा बढ़ाती है। और धन, सुरक्षा तथा आत्मबल का मार्ग खोलती है।
आज के तनावपूर्ण समय में यह चक्र बहुत तेजी से प्रभावित होता है। लगातार चिंता, नींद में बाधा, अचानक डर और नकारात्मक ऊर्जा इसकी कमजोरी के संकेत बन जाते हैं। सही विधि अपनाकर व्यक्ति अपने भीतर गहरी स्थिरता और शक्ति महसूस कर सकता है।
यह मार्ग कठिन नहीं है। सही नीयत, सही श्वास और सही साधना से कुछ ही दिनों में बदलाव शुरू हो जाता है। यह साधना किसी भी आयु के साधक के लिए उपयुक्त है।
मूलाधार चक्र के संतुलन से मिलने वाले फायदे
- जीवन में गहरी स्थिरता पैदा होती है।
- मन से डर और अनिश्चितता कम होती है।
- आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता मजबूत होती है।
- धन और सुरक्षा से जुड़े मार्ग खुलते हैं।
- शरीर में ऊर्जा बढ़ती है।
- क्रोध और बेचैनी कम होती है।
- नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- परिवार और संबंधों में भरोसा बढ़ता है।
- मानसिक तनाव में कमी आती है।
- कार्यक्षमता और फोकस बढ़ता है।
- आत्मबल में वृद्धि होती है।
- नकारात्मक ऊर्जा दूर महसूस होती है।
- कार्यों में निरंतरता विकसित होती है।
- असफलता का डर कम होता है।
- जीवन में सुरक्षा और शांति का अनुभव मिलता है।
विधि
1. स्थान तैयार करें
शांत और साफ स्थान चुनें। जमीन पर लाल आसन बिछाएं। एक दीपक जलाएं। वातावरण को शांत होने दें।
2. श्वास का अभ्यास करें
धीमे श्वास लें और गहरी श्वास छोड़ें। इस प्रक्रिया से मन शांत होता है और चक्र खुलने लगता है।
3. ध्यान मुद्रा में बैठें
रीढ़ सीधी रखें। हाथों को घुटनों पर रखें। आँखें हल्की बंद रखें। पूंछ के आधार वाले क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करें।
4. मूलाधार चक्र की कल्पना करें
लाल ऊर्जा का एक छोटा प्रकाश बिंदु कल्पित करें। यह बिंदु हर श्वास में और अधिक उज्ज्वल होता जाए।
5. मंत्र जप
मन ही मन यह मंत्र दोहराएं
“ॐ लं नमः”
इस मंत्र का कंपन मूलाधार चक्र को स्थिर करता है।
11 मिनट तक जप करें। चाहें तो लाल माला का उपयोग करें। इसके साथ माला लेने से लाभ और अधिक मिल सकता है।
6. पृथ्वी ऊर्जा ग्रहण करें
ध्यान के बाद दोनों हथेलियां जमीन पर रखें। महसूस करें कि पृथ्वी की ऊर्जा ऊपर उठ रही है।
7. कृतज्ञता व्यक्त करें
अंत में दिव्य ऊर्जा को धन्यवाद दें। यह कदम साधना को पूर्णता देता है।
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Heal Root Chakra – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. यह साधना किसे करनी चाहिए?
हर व्यक्ति कर सकता है जो डर, असुरक्षा और अस्थिरता महसूस करता है।
2. क्या इससे तुरंत लाभ मिलता है?
पहले दिन से मानसिक शांति मिलती है। गहरा लाभ कुछ दिनों में महसूस होता है।
3. क्या कोई विशेष दिशा रहे?
पूरे अभ्यास के दौरान पूर्व या दक्षिण दिशा उपयुक्त मानी जाती है।
4. क्या यह अभ्यास सुबह करना जरूरी है?
सुबह सबसे अच्छा समय है। हालांकि शाम भी उपयुक्त रहती है।
5. क्या मंत्र जप के बिना साधना होगी?
हो सकती है। लेकिन मंत्र जप से ऊर्जा तेजी से सक्रिय होती है।
6. क्या इस साधना से डर समाप्त होता है?
हाँ। यह साधना भीतर गहरी सुरक्षा का भाव जगाती है।
7. क्या यह विधि रोज करनी चाहिए?
कम से कम 11 दिन लगातार करें। इससे ऊर्जा स्थिर होती है।
मूलाधार चक्र जीवन की स्थिरता, सुरक्षा और आत्मविश्वास का आधार है। जब यह चक्र कमजोर होता है तो जीवन दिशा खो देता है। व्यक्ति डर, तनाव और चिंता का अनुभव करता है। DivyayogAshram के मार्गदर्शन से यह चक्र फिर से संतुलित होता है।
इस लेख में मूलाधार चक्र का महत्व, इसके लाभ और इसकी पूरी शुद्धि प्रक्रिया को सरल भाषा में समझाया गया है। मंत्र, ध्यान और श्वास अभ्यास इस चक्र को जल्दी संतुलित करते हैं। “ॐ लं नमः” मंत्र का कंपन मन और शरीर दोनों को स्थिर करता है।
जिन लोगों को आर्थिक असुरक्षा, डर, स्थिरता की कमी, करियर में रुकावट और पारिवारिक तनाव का सामना करना पड़ता है, उनके लिए यह साधना बहुत लाभदायक है। यह विधि प्रतिदिन 10 से 15 मिनट लेती है और साधक कुछ ही दिनों में बदलाव महसूस करने लगता है।
मूलाधार चक्र की शुद्धि शरीर में ऊर्जा का सही प्रवाह बनाती है। माइंड फोकस बढ़ता है। नींद सुधरती है। आत्मबल बढ़ता है। और मन में एक स्थिर शांत ऊर्जा जन्म लेती है।
यहां बताई गई विधि किसी भी आयु के व्यक्ति के लिए सुरक्षित है। साधना के दौरान कमरे में शांत वातावरण रखें। लाल आसन का उपयोग करें। दीपक जलाएं। और कृतज्ञता का भाव बनाए रखें।







