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Jivitputrika Vrat – A Mother’s Sacred Fast

जीवित्पुत्रिका व्रत – संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का पावन पर्व

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जीतिया के नाम से भी जाना जाता है, संतान की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में होता है। यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। माताएँ पूरे श्रद्धा और आस्था से इस व्रत का पालन करती हैं ताकि उनके बच्चे स्वस्थ, दीर्घायु और सफल हों।

जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत ये व्रत कब किया जाता है

जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास की कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। इस दिन माताएँ अपने बच्चों की सुरक्षा और उनके दीर्घायु के लिए उपवास करती हैं। व्रत की शुरुआत सप्तमी के दिन निर्जला उपवास से होती है, और इसका समापन अष्टमी तिथि के दूसरे दिन किया जाता है। इस व्रत की धार्मिक महत्ता बहुत अधिक होती है और इसे खासतौर पर पुत्र की सलामती के लिए रखा जाता है।

जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत विधि

व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले होती है। महिलाएँ संकल्प लेकर निर्जला उपवास करती हैं। भगवान जीवित्पुत्रिका की पूजा की जाती है, और इस व्रत के दौरान निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

मंत्र:
“ॐ जीवात्माय नमः।”
इस मंत्र का जाप 108 बार किया जाता है। इसके साथ ही पितरों की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

  • खाएं:
    व्रत से पहले महिलाएँ सात्विक भोजन करती हैं। जौ, गेहूँ, और चने का सेवन किया जा सकता है। फल और दूध भी लिया जाता है।
  • न खाएं:
    व्रत के दिन कोई भी अनाज या पानी का सेवन नहीं किया जाता है। तली-भुनी चीजें, मांसाहार और प्याज-लहसुन से बचना चाहिए।

जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत कब से कब तक रखें

व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से होती है और यह अष्टमी के दिन समाप्त होता है। महिलाएँ 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण के साथ समाप्त होता है।

जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत के लाभ

  1. संतान की दीर्घायु होती है।
  2. बच्चे बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं।
  3. संतान सुखी और स्वस्थ रहते हैं।
  4. पारिवारिक सुख और शांति बनी रहती है।
  5. माताओं की इच्छा पूरी होती है।
  6. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  7. मातृभक्ति का विकास होता है।
  8. वंशवृद्धि होती है।
  9. मानसिक शांति मिलती है।
  10. परिवार में एकता और सद्भावना बढ़ती है।
  11. माताएँ आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करती हैं।
  12. पारिवारिक समृद्धि बढ़ती है।
  13. नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा होती है।
  14. समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  15. बच्चों की पढ़ाई में प्रगति होती है।
  16. बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनता है।
  17. आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।

व्रत के नियम

  1. व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए।
  2. सूर्योदय से पहले स्नान कर संकल्प लें।
  3. दिनभर निर्जला उपवास रखें।
  4. संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए पूजा करें।
  5. फलाहार या जल का सेवन न करें।
  6. अष्टमी तिथि के अगले दिन व्रत का पारण करें।
  7. व्रत के दौरान कठोर परिश्रम से बचें।
  8. मन को शुद्ध और एकाग्र रखें।
  9. दिनभर भगवान की पूजा और ध्यान करें।
  10. शाम को जीवित्पुत्रिका की कथा सुनें।
  11. व्रत के दिन किसी का अपमान न करें।
  12. व्रत के दिन वाद-विवाद और कलह से बचें।

जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत की संपूर्ण कथा

प्राचीन काल में राजा जीमूतवाहन धर्मपरायण और परोपकारी थे। उनका राज्य सभी सुखों से सम्पन्न था, परंतु वह राजपाट त्यागकर वनों में रहने लगे। वन में रहने के दौरान उन्होंने देखा कि नाग जाति का एक व्यक्ति अत्यधिक दुखी है। पूछने पर पता चला कि गरुड़ देवता प्रतिदिन एक नाग का भक्षण करते हैं, और आज उस व्यक्ति के पुत्र की बारी है। यह सुनकर राजा जीमूतवाहन को बहुत दुःख हुआ।

राजा जीमूतवाहन ने उस नाग व्यक्ति के पुत्र की जगह खुद को गरुड़ देवता के सामने प्रस्तुत कर दिया। गरुड़ देवता ने उन्हें पकड़ लिया और आकाश में उड़ गए। तभी राजा जीमूतवाहन की सत्यनिष्ठा और परोपकार की भावना देखकर गरुड़ देवता ने उन्हें छोड़ दिया और नागों का भक्षण करना बंद कर दिया।

इस प्रकार राजा जीमूतवाहन के इस महान त्याग और सत्यनिष्ठा के कारण नाग जाति का उद्धार हुआ। उसी समय से यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की सुरक्षा, दीर्घायु और समृद्धि के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनका जीवन सुखमय होता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा माताओं को अपने बच्चों के प्रति त्याग और समर्पण का प्रतीक सिखाती है।

व्रत में भोग

जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान भगवान को मीठा भोग अर्पित किया जाता है। महिलाएँ फल, मिष्ठान्न और दूध का भोग चढ़ाती हैं। इस भोग को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

व्रत कब शुरू और कब समाप्त करें

जीवित्पुत्रिका व्रत सप्तमी तिथि को शुरू होता है और अष्टमी तिथि को समाप्त होता है। व्रत का समापन अष्टमी के अगले दिन पारण के साथ किया जाता है। पारण के समय महिलाएँ फल और जल का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं।

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व्रत के दौरान सावधानियाँ

  1. व्रत के दौरान जल का सेवन न करें।
  2. भारी शारीरिक कार्य से बचें।
  3. पूजा में मन को एकाग्र रखें।
  4. व्रत के नियमों का कठोरता से पालन करें।
  5. किसी का अनादर या अपमान न करें।
  6. व्रत के दिन संयमित और शुद्ध आचरण रखें।
  7. व्रत के दौरान क्रोध और वाद-विवाद से बचें।

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जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: जीवित्पुत्रिका व्रत का क्या महत्व है?

उत्तर: यह व्रत संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सफलता के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2: यह व्रत कब किया जाता है?

उत्तर: यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण अष्टमी तिथि को किया जाता है।

प्रश्न 3: व्रत के दौरान क्या खाया जा सकता है?

उत्तर: व्रत के दिन निर्जला उपवास रखा जाता है, कुछ भी खाया नहीं जाता।

प्रश्न 4: इस व्रत की पूजा विधि क्या है?

उत्तर: जीवित्पुत्रिका की पूजा की जाती है, और 108 बार मंत्र जाप किया जाता है।

प्रश्न 5: व्रत का पारण कब किया जाता है?

उत्तर: व्रत का पारण अष्टमी के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।

प्रश्न 6: इस व्रत के दौरान किन चीजों से बचना चाहिए?

उत्तर: व्रत के दिन जल, अनाज, और तली-भुनी चीजों से बचना चाहिए।

प्रश्न 7: व्रत के लिए संकल्प कैसे लिया जाता है?

उत्तर: सूर्योदय से पहले स्नान करके संकल्प लिया जाता है।

प्रश्न 8: व्रत के दौरान पूजा का समय कब होता है?

उत्तर: पूजा का समय दिनभर होता है, खासकर शाम को कथा सुननी चाहिए।

प्रश्न 9: इस व्रत की कथा क्या है?

उत्तर: व्रत की कथा राजा श्रेयस और उनकी संतान की लंबी आयु से जुड़ी है।

प्रश्न 10: व्रत के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?

उत्तर: व्रत के दौरान कठोर परिश्रम और जल का सेवन नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 11: क्या व्रत केवल पुत्र के लिए किया जाता है?

उत्तर: यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।

प्रश्न 12: क्या यह व्रत सभी महिलाएँ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, यह व्रत सभी महिलाएँ अपनी संतान की भलाई के लिए कर सकती हैं।

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