काल भैरव कवच – भय, संकट और शत्रुओं से सुरक्षा
काल भैरव कवचम् एक शक्तिशाली और प्रभावशाली कवच है, जो भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह कवच साधक को भय, रोग, शत्रुओं और दुर्घटनाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। काल भैरव भगवान शिव के उग्र रूप हैं, जो समय के स्वामी और सभी बुराइयों का नाश करने वाले हैं। इस कवच का पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो जीवन में बाधाओं और संकटों का सामना कर रहे हैं।
संपूर्ण काल भैरव कवचम् व उसका अर्थ
काल भैरव कवचम् पाठ:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कालभैरवाय नमः।
ॐ अस्य श्रीकालभैरव कवचस्य।
महाकाल ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः।
श्री कालभैरव देवता।
ॐ बीजं। नमः शक्तिः।
मम सर्वरक्षा हेतुः जपे विनियोगः।
ध्यानम् :
ध्यायेन्नीलोत्पलाभं शशिधरमुकुटं चंद्रवक्त्रं त्रिनेत्रं,
वृश्चीकं शूलदण्डं, डमरुक शयनं खड्गपाशं दधानम्।
बीभत्सं पूर्णचंद्रप्रभविमलमणिं रक्तवर्णं करालं,
वन्देऽहं कालभैरवं, घनरवमखिलं शंकरं पञ्चवक्त्रम्॥
श्लोक 1:
ॐ कालभैरवः पातु शीर्षं, भालं भूतविनाशकः।
नयने दण्डनित्यः पातु, कर्णौ कालप्रभंजनः॥
अर्थ:
हे काल भैरव! आप मेरे सिर और भाल की रक्षा करें। भूतों का नाश करने वाले दंडनित्य मेरी आंखों और कानों की रक्षा करें।
श्लोक 2:
घ्राणं पातु महाकालः, वक्त्रं पातु महेश्वरः।
जिव्हां पातु महामुण्डः, कण्ठं पातु महाबलः॥
अर्थ:
महाकाल मेरी नाक और महेश्वर मेरे मुख की रक्षा करें। महामुण्ड मेरी जिव्हा और महाबल मेरे कण्ठ की रक्षा करें।
श्लोक 3:
स्कन्धौ पातु क्षमासूरिः, भुजौ पातु चतुर्भुजः।
करौ पातु कृपानाथः, वक्षः पातु विशालवक्षः॥
अर्थ:
क्षमासूरि मेरे स्कन्ध और चतुर्भुज मेरे भुजाओं की रक्षा करें। कृपानाथ मेरे कर और विशालवक्ष मेरे वक्ष की रक्षा करें।
श्लोक 4:
हृदयं पातु हरिश्मश्रुः, उदरं पातु कपालभृत्।
नाभिं पातु गुणातीशः, कटिं पातु महाबलः॥
अर्थ:
हरिश्मश्रु मेरे हृदय और कपालभृत मेरे उदर की रक्षा करें। गुणातीश मेरी नाभि और महाबल मेरी कटि की रक्षा करें।
श्लोक 5:
ऊरु पातु जगद्व्यापी, जानुनी पातु भैरवः।
जंघे पातु महादेवः, पादौ पातु मृतुंजयः॥
अर्थ:
जगद्व्यापी मेरे ऊरु और भैरव मेरे जानुनी की रक्षा करें। महादेव मेरी जंघे और मृतुंजय मेरे पादों की रक्षा करें।
श्लोक 6:
सर्वाण्यन्यानि चाङ्गानि, पातु मृत्युञ्जयः सदा।
एतद्धि कवचं दिव्यं, त्रैलोक्यविजयप्रदम्॥
अर्थ:
मृत्युंजय मेरे सभी अंगों की सदैव रक्षा करें। यह दिव्य कवच त्रैलोक्य में विजय प्रदान करता है।
श्लोक 7:
यः पठेत्प्रातरुत्थाय, स भैरवसमीपगः।
रिपवः सन्ति सन्तप्ताः, कालभैरवकिङ्कराः॥
अर्थ:
जो इसे प्रातःकाल उठकर पढ़ता है, वह भैरव के समीप रहता है। उसके शत्रु तप्त रहते हैं और काल भैरव के सेवक होते हैं।
श्लोक 8:
राज्यं प्राप्तो भवेद्देवि, पठनात्कवचस्य तु।
भुक्तिं मुक्तिं च लभते, नात्र कार्या विचारणा॥
अर्थ:
इस कवच के पठन से साधक राज्य प्राप्त करता है और भोग-मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
श्लोक 9:
महापातकयुक्तोऽपि, मुक्तः स्यात्पठनान्नरः।
कालभैरवकृपया, सर्व सिद्धिमवाप्नुयात्॥
अर्थ:
महापापी भी इसका पाठ करने से काल भैरव की कृपा से मुक्त हो जाता है और सभी सिद्धियों को प्राप्त करता है।
काल भैरव कवचम् के लाभ
- भयमुक्ति: सभी प्रकार के भय और आतंक से मुक्ति।
- रोगनाशक: गंभीर और असाध्य रोगों से रक्षा।
- शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और विजय प्राप्ति।
- दुर्घटना से बचाव: दुर्घटनाओं और आपदाओं से सुरक्षा।
- आर्थिक समृद्धि: आर्थिक संकटों का निवारण और समृद्धि।
- कालदोष निवारण: कुंडली के कालदोष से मुक्ति।
- प्रभावशाली व्यक्तित्व: आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व की प्राप्ति।
- शांति और सुख: मानसिक शांति और सुख-समृद्धि।
- आत्मविश्वास वृद्धि: आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि।
- संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी सुरक्षा।
- अदृश्य शक्तियों से सुरक्षा: बुरी आत्माओं और अदृश्य शक्तियों से रक्षा।
- कर्ज से मुक्ति: कर्ज और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति।
- जीवन में स्थिरता: जीवन में स्थायित्व और संतुलन।
- ध्यान और साधना में सफलता: ध्यान और साधना में सफलता प्राप्ति।
- समाज में सम्मान: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा।
काल भैरव कवचम् की विधि
- दिन: रविवार या मंगलवार को आरंभ करें।
- अवधि: 41 दिन लगातार पाठ करें।
- मुहुर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सर्वोत्तम है।
- विधि: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें, भैरव मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं, और काले तिल का नैवेद्य अर्पित करें।
काल भैरव कवचम् के नियम
- गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखें, किसी से चर्चा न करें।
- पवित्रता: मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
- अभक्ष्य भोजन से बचें: प्याज, लहसुन, मांस और शराब का सेवन न करें।
- नियमितता: 41 दिन नियमित पाठ करें, बिना किसी बाधा के।
- संकल्प: आरंभ में संकल्प लें और श्रद्धा से पाठ करें।
काल भैरव कवचम् की सावधानियाँ
- सुरक्षा: पाठ के समय सुरक्षित और शांत स्थान का चयन करें।
- गंभीरता: इस साधना को हल्के में न लें, पूर्ण गंभीरता से करें।
- प्राणायाम: पाठ से पहले प्राणायाम करें ताकि मन एकाग्र हो।
- अनुष्ठान पूर्णता: 41 दिन पूरे किए बिना साधना न छोड़ें।
- शुद्धता: शुद्धता का ध्यान रखें और विधि का पालन करें।
काल भैरव कवचम् – प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: काल भैरव कवचम् क्या है?
उत्तर: काल भैरव कवचम् भगवान काल भैरव की सुरक्षा प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली स्तोत्र है। यह साधक को बुराइयों, भय और शत्रुओं से बचाता है।
प्रश्न 2: काल भैरव कौन हैं?
उत्तर: काल भैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं। वे समय के स्वामी हैं और सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का नाश करते हैं।
प्रश्न 3: काल भैरव कवचम् का पाठ कब किया जाता है?
उत्तर: काल भैरव कवचम् का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, परंतु अष्टमी और रविवार विशेष माने जाते हैं।
प्रश्न 4: क्या काल भैरव कवचम् का पाठ 41 दिन करना आवश्यक है?
उत्तर: हां, पूर्ण फल प्राप्ति के लिए 41 दिन नियमित रूप से काल भैरव कवचम् का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न 5: काल भैरव कवचम् के क्या लाभ हैं?
उत्तर: इस कवच के पाठ से साधक को भय, शत्रु, रोग, और दुर्घटनाओं से सुरक्षा मिलती है। यह धन, सफलता, और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
प्रश्न 6: क्या काल भैरव कवचम् साधना को गुप्त रखना चाहिए?
उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखना चाहिए। यह साधना की शक्ति और प्रभाव को बनाए रखता है।
प्रश्न 7: काल भैरव कवचम् के पाठ के लिए कौन सा मुहूर्त उत्तम है?
उत्तर: काल भैरव कवचम् के पाठ का उत्तम मुहूर्त रात्रि का समय है, विशेषकर अर्धरात्रि।
प्रश्न 8: क्या काल भैरव कवचम् को विशेष आसन पर बैठकर करना चाहिए?
उत्तर: हां, काल भैरव कवचम् का पाठ करते समय काले कपड़े और कुश के आसन का प्रयोग शुभ माना जाता है।