माता कुष्मांडा का कवच पाठ बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है। ये माता, माँ दुर्गा के नौ रूपों में से चौथा रूप हैं, जिन्हें आदिशक्ति का अवतार माना जाता है। उनके नाम का अर्थ है “कु” (छोटा), “ष्मा” (अंडा) और “अंडा” (ब्रह्मांड), अर्थात् “छोटे से अंडे के आकार का ब्रह्मांड”। यह कहा जाता है कि देवी कुष्मांडा ने अपने दिव्य मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया। कुष्मांडा देवी कवचम् एक शक्तिशाली पाठ है जो देवी कुष्मांडा की कृपा और सुरक्षा को प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है।
कुष्मांडा देवी कवचम् का संपूर्ण पाठ और उसका अर्थ
कुष्मांडा देवी कवचम् पाठ
ॐ सर्वरूपायै सर्वेशायै सर्वशक्त्यै नमो नमः।
रुद्राण्यै नमो नित्यायै घोररूपायै ते नमः॥
सर्वसिद्धिप्रदायै च सर्वमंगलकारिण्यै।
कायच्छिद्रान् रक्ष सर्वांगं सर्वदेहि नमोऽस्तुते॥
जय कांचनमाणिक्यकलायै जय पाटलवासिन्यै।
जय देवि रौद्ररूपे जय देवि सुखप्रदे॥
सर्वजनवन्दिते देवि सर्वलोकवासिन्यै।
एषोऽस्माकं महाकायं कष्टान्मां पारयेश्वरी॥
कौमारी रक्षा मे च सर्वदोषविनाशिनि।
कृपा त्वं कुरु मे देवि त्राहि मां परमेश्वरी॥
कुष्मांडा देवी कवचम् का अर्थ
- ॐ सर्वरूपायै सर्वेशायै सर्वशक्त्यै नमो नमः: जो देवी सभी रूपों में विद्यमान हैं, सबकी ईश्वरी और सभी शक्तियों की स्वामी हैं, उन्हें मेरा नमन।
- रुद्राण्यै नमो नित्यायै घोररूपायै ते नमः: रुद्र की अर्धांगिनी, जो सदा विद्यमान हैं और घोर रूप धारण करने वाली हैं, उन्हें नमन।
- सर्वसिद्धिप्रदायै च सर्वमंगलकारिण्यै: आप सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं और सब प्रकार के मंगल कार्य करती हैं।
- कायच्छिद्रान् रक्ष सर्वांगं सर्वदेहि नमोऽस्तुते: हे देवी, मेरे शरीर के सभी अंगों की रक्षा करें और मुझे पूर्ण स्वास्थ्य दें, आपको नमन।
- जय कांचनमाणिक्यकलायै जय पाटलवासिन्यै: कांचन और माणिक्य के समान चमकने वाली देवी को जय हो, जो पाटल वस्त्र धारण करती हैं।
- जय देवि रौद्ररूपे जय देवि सुखप्रदे: रौद्र रूप धारण करने वाली और सुख देने वाली देवी को जय हो।
- सर्वजनवन्दिते देवि सर्वलोकवासिन्यै: जो देवी सभी जनों द्वारा पूजनीय हैं और सभी लोकों में निवास करती हैं।
- एषोऽस्माकं महाकायं कष्टान्मां पारयेश्वरी: हे देवी, इस महाकाय (बड़े शरीर) की रक्षा करें और मुझे कष्टों से पार कराएं।
- कौमारी रक्षा मे च सर्वदोषविनाशिनि: कौमारी देवी, जो सभी दोषों का विनाश करती हैं, मेरी रक्षा करें।
- कृपा त्वं कुरु मे देवि त्राहि मां परमेश्वरी: हे परमेश्वरी, मुझ पर कृपा करें और मुझे बचाएं।
कुष्मांडा देवी कवचम् के लाभ
- आध्यात्मिक जागृति: यह कवच साधक के भीतर आध्यात्मिक जागृति लाता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: यह कवच नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- धन और समृद्धि: देवी की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार और धन की वृद्धि होती है।
- आंतरिक शांति: साधक को मन की शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
- कष्टों का निवारण: जीवन के कष्ट और समस्याएँ दूर होती हैं।
- सुख और समृद्धि: पारिवारिक जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का विकास: साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास का विकास होता है।
- रोगों से मुक्ति: विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
- भय का नाश: साधक के सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है।
- शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं की बाधाओं और बुरी दृष्टि से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक संतुलन: यह कवच मानसिक संतुलन और स्थिरता बनाए रखने में सहायक है।
- विवेक और ज्ञान की प्राप्ति: साधक को विवेक और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- संकल्प शक्ति में वृद्धि: साधक की संकल्प शक्ति और दृढ़ता में वृद्धि होती है।
- माँ कुष्मांडा की विशेष कृपा: साधक को देवी कुष्मांडा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
विधि
दिन और अवधि
- अवधि: इस कवच का पाठ ४१ दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए।
- दिन: रविवार और बुधवार इस पाठ के लिए विशेष शुभ माने जाते हैं।
- समय: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) का समय सर्वोत्तम माना गया है।
मुहूर्त
- अष्टमी और नवमी तिथि को इस कवच का पाठ करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
- नवरात्रि के दौरान इस पाठ को करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कुष्मांडा देवी कवचम् का नियम और सावधानियां
नियम
- साधना को गुप्त रखें: साधना करते समय इसे गुप्त रखना आवश्यक है।
- शुद्ध आचरण: साधना के दौरान शुद्ध आचरण और विचार रखने चाहिए।
- नियमितता: प्रतिदिन नियमित रूप से इस कवच का पाठ करें।
- सात्विक भोजन: साधक को सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।
- आस्था और विश्वास: साधना के प्रति अटूट आस्था और विश्वास होना चाहिए।
सावधानियां
- अपवित्रता से बचें: साधना के दौरान किसी भी प्रकार की अपवित्रता से बचें।
- अनुचित आचरण: साधना के समय अनुचित आचरण और व्यवहार से बचना चाहिए।
- संशय: यदि मन में किसी प्रकार का संशय या अविश्वास है, तो इस साधना से दूर रहें।
- देवी का अपमान नहीं करें: देवी के मंत्र और कवच का किसी भी प्रकार से अपमान नहीं करना चाहिए।
कुष्मांडा देवी कवचम् पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: कुष्मांडा देवी कौन हैं? उत्तर: कुष्मांडा देवी माँ दुर्गा के नौ रूपों में से चौथा रूप हैं, जो सृष्टि की रचयिता मानी जाती हैं।
प्रश्न 2: कुष्मांडा देवी कवचम् का मुख्य उद्देश्य क्या है? उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य साधक को देवी कुष्मांडा की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करना है।
प्रश्न 3: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ कितने दिन तक करना चाहिए? उत्तर: इस कवच का पाठ ४१ दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए।
प्रश्न 4: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ कब करना चाहिए? उत्तर: इसका पाठ ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) में करना चाहिए।
प्रश्न 5: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ करने के लिए कौन से दिन शुभ होते हैं? उत्तर: रविवार और बुधवार को इसका पाठ करना विशेष शुभ होता है।
प्रश्न 6: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ करने से क्या लाभ होते हैं? उत्तर: यह कवच आध्यात्मिक जागृति, स्वास्थ्य में सुधार, धन और समृद्धि, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति, और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।
प्रश्न 7: क्या कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ किसी भी स्थान पर किया जा सकता है? उत्तर: हाँ, लेकिन स्थान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए।
प्रश्न 8: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ करने के लिए किन सावधानियों का पालन करना चाहिए? उत्तर: साधना को गुप्त रखना, शुद्ध आचरण और विचार, नियमितता, सात्विक भोजन और सद्भावना जैसे नियम पालन करना चाहिए।
प्रश्न 9: कुष्मांडा देवी कवचम् का अर्थ क्या है? उत्तर: कुष्मांडा देवी कवचम् का अर्थ है वह श्लोक या मंत्र जो देवी कुष्मांडा की कृपा और सुरक्षा के लिए रचा गया है।
प्रश्न 10: कुष्मांडा देवी कवचम् का पाठ करने से कौन से संकट दूर होते हैं? उत्तर: जीवन के अनेक संकट, शत्रु बाधा, मानसिक और शारीरिक कष्ट आदि इससे दूर होते हैं।