हर इच्छा को पूरी करने वाली लिंगाष्टक स्त्रोत बहुत ही शक्तिशाली माना गया है। यह आपकी हर इच्छा मनोकामना को पूर्ण करता है, शत्रुओं को दूर कर घर मे सुख समृद्धि बढाता है। इस स्त्रोत का पाठ सोमवार शुरु करके लगातार ४१ दिन तक करना चाहिये।
लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम् संस्कृत
ब्रह्ममुरारि-सुरार्चितलिङ्गम्
निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥1॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम्
कामदहम् करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥2॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम्
बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥3॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गम्
फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्।
दक्षसु़यज्ञविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥4॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम्
पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥5॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गम्
भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥6॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम्
सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।
अष्टदर्शनविनाशितलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥7॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गम्
सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥8॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥9॥
लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम् हिंदी
स्तोत्रम्
जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित है,
जो निर्मल और सुशोभित है।
जो जन्म और मृत्यु के दुखों को नष्ट करता है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥1॥
जो देवताओं और श्रेष्ठ ऋषियों द्वारा पूजित है,
जो कामना का दहन करने वाला और करुणा का भण्डार है।
जो रावण के अहंकार को नष्ट करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥2॥
जो सभी सुगंधित पदार्थों से लेपित है,
जो बुद्धि को बढ़ाने वाला है।
जो सिद्ध, सुर और असुरों द्वारा पूजित है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥3॥
जो स्वर्ण और रत्नों से सुशोभित है,
जो नागराज द्वारा घिरा है।
जो दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥4॥
जो कुमकुम और चंदन से लेपित है,
जो कमल के हार से सुशोभित है।
जो संचित पापों का नाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥5॥
जो देवताओं द्वारा पूजा और सेवा किया जाता है,
जो भाव और भक्ति से पूजित है।
जो सूर्य के करोड़ों किरणों के समान प्रदीप्त है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥6॥
जो अष्टदल कमल से घिरा है,
जो सभी सृष्टि का कारण है।
जो अष्ट दर्शन का विनाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥7॥
जो देवताओं के गुरु और श्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित है,
जो सुरवन के पुष्पों से सदा अर्चित है।
जो परात्पर और परमात्मा है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥8॥
लिंगाष्टक का यह पुण्य पाठ जो शिव के समक्ष करता है,
वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंदित होता है॥9॥