निर्जला एकादशी व्रत- मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत
निर्जला एकादशी व्रत, जिसे भीमसेनी एकादशी व्रत या पांडव निर्जला एकादशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त बिना पानी पिए पूरे दिन और रात उपवास रखते हैं, इसलिए इसे “निर्जला” (बिना जल के) एकादशी कहा जाता है।
निर्जल एकादशी का महत्व
- धार्मिक महत्व: मान्यता है कि निर्जल एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक लाभ: निर्जल एकादशी व्रत करने से व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- पौराणिक कथा: इस व्रत का सम्बन्ध महाभारत काल से है, जब भीम ने इसे रखा था। भीम, जो खाना खाने के बहुत शौकीन थे, ने एक दिन नारद मुनि की सलाह पर यह कठिन व्रत रखा और उन्हें इसका पूर्ण फल मिला।
व्रत विधि
- व्रत का संकल्प: व्रत की पूर्व संध्या पर ही यह संकल्प लें कि आप निर्जल एकादशी व्रत करेंगे।
- स्नान और पूजा: प्रातः काल स्नान कर के भगवान विष्णु की पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और ध्यान करें।
- निर्जला उपवास: पूरे दिन और रात बिना जल और भोजन के उपवास रखें। यह व्रत शुद्ध भाव और दृढ़ निश्चय से करना चाहिए।
- भगवान विष्णु का भजन: दिन भर भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें।
- द्वादशी को पारण: द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोजन करवा कर और उन्हें दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत साल की सबसे कठिन एकादशी मानी जाती है क्योंकि इसमें व्रती को पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहना होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी व्रत विशेष रूप से भीमसेन द्वारा किए गए व्रत के कारण प्रसिद्ध है, इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना और उनके नाम का कीर्तन करना अत्यंत फलदायी होता है। निर्जला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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निर्जला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भीमसेन को व्रत रखना कठिन लगता था। महाभारत के पांडवों में भीमसेन को खाने-पीने का अत्यधिक शौक था। युधिष्ठिर और द्रौपदी ने भीमसेन से एकादशी व्रत करने का आग्रह किया, लेकिन भीम अपनी भूख के कारण इसे नहीं कर पाते थे।
भीमसेन ने इस समस्या को लेकर महर्षि व्यास से समाधान मांगा। महर्षि व्यास ने भीमसेन को निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यदि भीम इस व्रत को एक दिन बिना जल और अन्न ग्रहण किए रखते हैं, तो उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा।
भीमसेन का व्रत और मोक्ष प्राप्ति
भीमसेन ने महर्षि व्यास के कहे अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखा और अपनी हर तरह की मनोकामना पूर्ण की।
निर्जला एकादशी व्रत सावधानियां
- इस व्रत को करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है।
- यदि स्वास्थ्य अनुमति नहीं देता है तो पानी पीकर या फलाहार करके भी यह व्रत किया जा सकता है, परन्तु इसका पूर्ण फल नहीं मिलेगा।
निर्जल एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की अपार कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी व्रत से लाभ
- मोक्ष की प्राप्ति: निर्जल एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का नाश कर व्यक्ति को भगवान विष्णु के परम धाम की ओर अग्रसर करता है।
- धर्म और पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत के फलस्वरूप व्यक्ति को अपार धर्म और पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
- आत्मा की शुद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से आत्मा की शुद्धि होती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: व्रत करने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इस व्रत से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
- भक्तिभाव में वृद्धि: व्रत करने से भगवान विष्णु के प्रति भक्तिभाव में वृद्धि होती है और उनके प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न होता है।
- पारिवारिक समृद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से पारिवारिक समृद्धि और सुख-शांति में वृद्धि होती है। भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- आध्यात्मिक जागरूकता: व्रत से आध्यात्मिक जागरूकता और ज्ञान में वृद्धि होती है। व्यक्ति जीवन के महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सत्यों को समझने में सक्षम होता है।
- पापों का नाश: इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है। यह व्रत व्यक्ति को पवित्र और निष्कलंक बनाता है।
- मनोबल में वृद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना दृढ़ता से कर पाता है।
- आयु वृद्धि: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से आयु में वृद्धि होती है और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
- सुख और शांति: इस व्रत के पालन से जीवन में सुख और शांति का संचार होता है। व्यक्ति के जीवन में आनंद और संतोष का भाव बना रहता है।
निर्जल एकादशी व्रत से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति होती है, जिससे उसका जीवन सुखमय और सफल बनता है।