कालरात्रि स्तोत्र- संकटों का अंत करने वाला अद्भुत स्तोत्र
कालरात्रि स्तोत्र का पाठ मां दुर्गा की सातवीं शक्ति, कालरात्रि देवी की आराधना का माध्यम है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भयानक संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी प्रकार के नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। यह स्तोत्र देवी कालरात्रि की शक्तियों को जाग्रत करता है और साधक को सुरक्षा और साहस प्रदान करता है। स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के सातवें दिन किया जाता है, लेकिन इसे अन्य समय पर भी 41 दिनों तक नियमित रूप से किया जा सकता है।
कालरात्रि स्तोत्र का संपूर्ण पाठ
“ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥कालरात्रि करालवदना घोररूपा महाबला।
क्रोधना रक्तवर्णा च कर्कशा कालदण्डिनी॥पिनाकधारिणी चैव खड्गखेटकधारिणी।
चर्मवासना नग्ना च श्मशानस्थलवासिनी॥नागयज्ञोपवीतां च करालवदनां पराम्।
पीनोन्नतपयोधरां ज्वालामालाकुलाकुलाम्॥जयंति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥”
कालरात्रि स्तोत्र का अर्थ
“ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥”
इस श्लोक में देवी कालरात्रि की स्तुति की गई है। उन्हें जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, और कपालिनी कहा गया है, जो संकटों से रक्षा करती हैं। ये देवी दुष्टों का नाश करने वाली, क्षमाशील और पालनकर्ता हैं। देवी के अलग-अलग रूपों का आह्वान कर, साधक उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।
“कालरात्रि करालवदना घोररूपा महाबला।
क्रोधना रक्तवर्णा च कर्कशा कालदण्डिनी॥”
इस श्लोक में देवी कालरात्रि का भयंकर और शक्तिशाली रूप वर्णित है। उनका चेहरा डरावना और शक्तिशाली है। वे क्रोधित, लाल वर्ण की हैं, और सभी प्रकार की बुराइयों का नाश करती हैं। कालदण्डिनी का मतलब है कि वे मृत्यु और समय की स्वामिनी हैं।
“पिनाकधारिणी चैव खड्गखेटकधारिणी।
चर्मवासना नग्ना च श्मशानस्थलवासिनी॥”
इस श्लोक में देवी के हथियार और उनके निवास का वर्णन है। वे पिनाक और खड्ग धारण करती हैं, और नग्न रूप में श्मशान में निवास करती हैं। यह उनके उग्र और निर्भीक स्वभाव को दर्शाता है, जो बुराई का संहार करता है।
“नागयज्ञोपवीतां च करालवदनां पराम्।
पीनोन्नतपयोधरां ज्वालामालाकुलाकुलाम्॥”
यहां देवी के रूप और शक्तियों का विस्तार से वर्णन है। वे नाग की यज्ञोपवीत धारण करती हैं, उनका चेहरा कराल (भयंकर) है, और उनके शरीर से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। यह उनकी अद्वितीय शक्ति और दुष्टों के प्रति उनके उग्र रूप को प्रदर्शित करता है।
“जयंति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥”
अंत में फिर से देवी को नमस्कार किया गया है, उन्हें जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, और अन्य रूपों में स्मरण कर, साधक उनके दिव्य गुणों को स्वीकार करता है और उनकी कृपा प्राप्त करता है।
कालरात्रि स्तोत्र के लाभ
- सुरक्षा: स्तोत्र का पाठ साधक को अदृश्य सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
- संकट मुक्ति: जीवन के भयानक संकटों से मुक्ति मिलती है।
- भूत-प्रेत बाधा: भूत-प्रेत और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।
- साहस: साधक में साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है।
- आर्थिक समृद्धि: आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और समृद्धि आती है।
- स्वास्थ्य लाभ: स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक शांति: मानसिक तनाव और अवसाद से राहत मिलती है।
- रोग निवारण: विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
- दुश्मनों से रक्षा: शत्रुओं से रक्षा और विजय प्राप्त होती है।
- दुर्घटना से बचाव: दुर्घटनाओं से सुरक्षा मिलती है।
- परिवार की सुरक्षा: परिवार को सुरक्षा और शांति प्राप्त होती है।
- नकारात्मक विचारों का नाश: नकारात्मक विचारों का अंत होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- आध्यात्मिक प्रगति: आध्यात्मिक स्तर पर उन्नति मिलती है।
- विघ्नों का नाश: जीवन में आने वाले विघ्नों और बाधाओं का अंत होता है।
- वाणी की शक्ति: वाणी में शक्ति और प्रभावशीलता आती है।
- दिव्य अनुग्रह: देवी का दिव्य अनुग्रह और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कालरात्रि स्तोत्र विधि
- दिन: नवरात्रि के सातवें दिन या किसी भी शुभ दिन।
- अवधि: 41 दिनों तक नियमित रूप से।
- मुहुर्त: ब्रह्म मुहूर्त या संध्याकाल।
- विधि: देवी की मूर्ति या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाएं। लाल फूल, गुड़ और नारियल चढ़ाएं। ध्यानमग्न होकर स्तोत्र का पाठ करें।
कालरात्रि स्तोत्र के नियम
- पूजा का गोपनीयता: पूजा और साधना को गोपनीय रखें।
- व्रत: साधक को उपवास रखना चाहिए।
- सात्विक भोजन: केवल सात्विक भोजन का सेवन करें।
- नियमितता: 41 दिन तक नियमित पाठ करें।
- शुद्धता: मन, वचन और कर्म की शुद्धता का पालन करें।
- समर्पण: देवी के प्रति पूर्ण समर्पण और श्रद्धा रखें।
कालरात्रि स्तोत्र पाठ की सावधानियाँ
- भयमुक्त रहें: पाठ के दौरान भय या संकोच न रखें।
- सतर्कता: किसी भी प्रकार की व्याकुलता या व्याघात से बचें।
- साधना का समय: निर्धारित समय पर ही साधना करें।
- शुद्ध वस्त्र: साफ और शुद्ध वस्त्र पहनें।
- सत्संग: साधना के समय सद्गुरु के मार्गदर्शन का पालन करें।
कालरात्रि स्तोत्र पाठ- प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: कालरात्रि स्तोत्र का पाठ कब करें?
उत्तर: इसे नवरात्रि के सातवें दिन या किसी शुभ दिन करें।
प्रश्न 2: कालरात्रि स्तोत्र का महत्व क्या है?
उत्तर: यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश और सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 3: क्या कालरात्रि स्तोत्र पाठ के लिए व्रत रखना आवश्यक है?
उत्तर: हां, साधक को व्रत रखना चाहिए।
प्रश्न 4: क्या साधना को गुप्त रखना चाहिए?
उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखना चाहिए।
प्रश्न 5: कालरात्रि स्तोत्र का पाठ कितने दिन करना चाहिए?
उत्तर: इसे 41 दिनों तक नियमित करना चाहिए।
प्रश्न 6: क्या साधक को सात्विक भोजन करना चाहिए?
उत्तर: हां, केवल सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
प्रश्न 7: क्या कालरात्रि स्तोत्र पाठ से आर्थिक समृद्धि मिलती है?
उत्तर: हां, पाठ से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
प्रश्न 8: कालरात्रि स्तोत्र का पाठ कहां करना चाहिए?
उत्तर: पाठ घर में पूजा स्थल या मंदिर में करें।
प्रश्न 9: क्या स्तोत्र पाठ से मानसिक शांति मिलती है?
उत्तर: हां, पाठ से मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है।
प्रश्न 10: क्या कालरात्रि स्तोत्र से शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं?
उत्तर: हां, यह शत्रु बाधाओं का नाश करता है।
प्रश्न 11: स्तोत्र के पाठ के लिए कौन सा मुहुर्त श्रेष्ठ है?
उत्तर: ब्रह्म मुहूर्त या संध्याकाल का समय श्रेष्ठ है।
प्रश्न 12: क्या कालरात्रि स्तोत्र से स्वास्थ्य लाभ होता है?
उत्तर: हां, स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
इस प्रकार, कालरात्रि स्तोत्र का पाठ साधक को सुरक्षा, साहस, और देवी कालरात्रि की कृपा प्राप्त कराता है। नियमित रूप से विधि और नियमों का पालन करते हुए इसका पाठ करने से जीवन के सभी संकटों का निवारण होता है।