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Shailputri Vrat- Story, Procedure, Benefits

शैलपुत्री व्रत- विधि, लाभ और महत्व

शैलपुत्री व्रत मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत माना जाता है। माता शैलपुत्री नवदुर्गा का पहला स्वरूप हैं, जिनकी पूजा उपासना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से जीवन में स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इनकी पूजा से भक्तों को शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। व्रत का पालन करने से मानसिक शांति, परिवार में सुख-शांति, और जीवन की समस्याओं का समाधान होता है।

व्रत विधि

व्रत के दिन साधक प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। माता शैलपुत्री का ध्यान कर इस मंत्र का जप करें:

“ॐ ह्रीं शैलपुत्र्यै दुं नमः”

  1. माँ शैलपुत्री को अक्षत, फूल, धूप और दीप अर्पित करें।
  2. मां को सफेद वस्त्र, दूध और दही का भोग लगाएं।
  3. दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें।
  4. सायं काल मां की आरती कर दिनभर का व्रत संपन्न करें।

शैलपुत्री व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

खाएं:
फल, सूखे मेवे, दूध, दही, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सेंधा नमक।

न खाएं:
अनाज, तला-भुना खाना, लहसुन, प्याज, मांसाहार, और सामान्य नमक।

कब से कब तक व्रत रखें

शैलपुत्री व्रत का पालन नवरात्रि के पहले दिन से किया जाता है। इस दिन भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखते हैं। कुछ भक्त इसे पूरे नवरात्रि तक जारी रखते हैं।

शैलपुत्री व्रत के लाभ

  1. मन की शांति प्राप्त होती है।
  2. मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
  3. परिवार में सुख-शांति का वास होता है।
  4. जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  5. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  6. धन की वृद्धि होती है।
  7. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  8. अध्यात्मिक उन्नति होती है।
  9. बच्चों की सफलता में वृद्धि होती है।
  10. संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  11. वैवाहिक जीवन में मिठास आती है।
  12. व्यापार में वृद्धि होती है।
  13. कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
  14. सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  15. भाग्य का उदय होता है।
  16. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  17. अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शैलपुत्री व्रत के नियम

  1. व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  3. नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  4. व्रत के दिन कोई तामसिक भोजन न करें।
  5. शैलपुत्री माँ के प्रति पूरी आस्था रखें।

शैलपुत्री व्रत की संपूर्ण कथा

माता शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ। पूर्व जन्म में, माता सती भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार, दक्ष प्रजापति ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। यह अपमान सती को सहन नही हुआ।

सती ने बिना निमंत्रण के यज्ञ में जाने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने उन्हें मना किया, परंतु सती ने उनकी बात नहीं मानी। यज्ञ स्थल पर पहुंचकर, सती ने देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है। यह दृश्य देखकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ।

सती ने यज्ञ के अग्निकुंड में आत्मदाह कर लिया। इस दुखद घटना को सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने वीरभद्र नामक राक्षस को उत्पन्न किया और दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया।

भगवान शिव ने सती के शरीर को लेकर तांडव नृत्य किया, जिससे ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव को शांत किया। भगवान शिव की क्रोध और दुख को देख, सती को पुनर्जीवित करने की कोशिश की गई।

सती का पुनर्जन्म हिमालय में हुआ, जहां वे शैलपुत्री के रूप में प्रकट हुईं। इस जन्म में, उन्होंने कठिन तपस्या की और भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया। उनकी तपस्या और भक्ति से भगवान शिव उनके समर्पण को देखकर प्रसन्न हुए।

इस प्रकार, माता शैलपुत्री ने हिमालय में तपस्या करके भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया और उनकी पूजा आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस व्रत को करने से भक्तों को मानसिक शांति, सुख, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

भोग

माँ शैलपुत्री को सफेद फूल और दूध से बने व्यंजन अत्यधिक प्रिय होते हैं। भोग के रूप में आप खीर, दही, और सफेद मिठाइयाँ चढ़ा सकते हैं। यह प्रसाद भक्तों के बीच बांटने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

व्रत कब शुरू और कब समाप्त करें

व्रत का आरंभ प्रातःकाल सूर्योदय के साथ होता है और यह सूर्यास्त के बाद आरती करने के पश्चात पूर्ण होता है। भक्त इस दिन निराहार रहते हैं और शाम को फलाहार करते हैं।

Know more about nav durga mantra

व्रत की सावधानियां

  1. व्रत के दौरान मानसिक शांति बनाए रखें।
  2. किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन से बचें।
  3. शुद्धता का ध्यान रखें।
  4. माता की कृपा के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखें।
  5. व्रत के दिन नकारात्मक विचारों से बचें।

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शैलपुत्री व्रत प्रश्न उत्तर

1. शैलपुत्री व्रत क्यों किया जाता है?
शैलपुत्री व्रत से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

2. व्रत में कौन-कौन से खाद्य पदार्थ खाए जा सकते हैं?
फल, दूध, दही, और साबूदाना खा सकते हैं।

3. क्या व्रत में अनाज खा सकते हैं?
नहीं, अनाज वर्जित है।

4. व्रत में कौन-कौन से मंत्र का जप किया जाता है?
“ॐ ह्रीं शैलपुत्र्यै दुं नमः” मंत्र का जप किया जाता है।

5. शैलपुत्री व्रत कब करना चाहिए?
नवरात्रि के पहले दिन यह व्रत किया जाता है।

6. क्या व्रत में पूरी आस्था आवश्यक है?
हाँ, पूरी आस्था और श्रद्धा आवश्यक है।

7. क्या महिलाएं व्रत रख सकती हैं?
हाँ, महिलाएं भी व्रत रख सकती हैं।

8. क्या व्रत में पानी पी सकते हैं?
हाँ, पानी और फलाहार कर सकते हैं।

9. व्रत की समाप्ति कैसे की जाती है?
सूर्यास्त के बाद आरती कर व्रत समाप्त करें।

10. क्या व्रत में शारीरिक परिश्रम करना चाहिए?
अधिक परिश्रम से बचना चाहिए।

11. क्या व्रत के दिन यात्रा कर सकते हैं?
यात्रा करने से बचें।

12. क्या व्रत के दौरान शांति बनाए रखना जरूरी है?
हाँ, व्रत में मानसिक शांति और स्थिरता महत्वपूर्ण है।

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