Sunday, December 22, 2024

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Shiva Apradh Kshama Strot for sin removing

शिव अपराध क्षमा स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भक्त अपनी भूलों और अपराधों के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना करते हैं। कोई भी साधना, पूजा, व्रत करने के पहले इस स्त्रोत का एक पाठ अवश्य करना चाहिये। यह स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है और भक्तों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करता है।

शिव अपराध क्षमा स्तोत्र का पाठ

आदिगुरु शंकराचार्य रचित

अद्वैतामृतवर्षिणं भगवतः अष्टादशायुः स्तोत्रम्।

अतिपापस्य पापस्य दुष्कृतस्य च कर्तुः।
शरणागतवत्सलः शरणागतवात्सल्येन॥

मम वन्द्यश्च सर्वस्मिन्नापि गुणेऽपि दुष्कृतिनम्।
मम जन्मान्तरेऽप्येष क्षमेताशेषकृद्विपाकम्॥

आयुर्देहं धियं चापि लसद्भक्तेर्ददातु मे।
ईशानः सर्वविज्ञोऽपि न मां त्यजतु किञ्चन॥

एष सर्वगतः शम्भुर्मम रक्षां विधातु मे।
शिवनामैकदायानां ह्यपहत्यामयानपि॥

सर्वजापमपि स्तोत्रं शिवेभ्यः परमं महत्।
नान्या गत्या ममाप्येष सत्सङ्गमपरायणः॥

तस्मादपि परं धाम शम्भोः शरणं गतः।
शिवनामैकदायानां ममाभीष्टं करोतु सः॥

महेश्वरं गुरुं नन्दिं शर्वं च त्रिपुरान्तकम्।
कालं कालान्तकं कालकालं च स्मराम्यहम्॥

नन्दिकेश्वरसम्बन्धं परमानन्दकन्दलम्।
नमामि शिवरूपं च वन्दे देवेश्वरीम् अपि॥

नमः शम्भो महेशाय कृत्तिवासाय वन्दे च।
सुरेशं वरदं देवमनुग्राह्यं महेश्वरम्॥

ईश्वरः सर्वलोकानां सच्चिदानन्दविग्रहः।
श्रीकण्ठः पार्वतीनाथः श्रीशम्भुः शंकरः शिवः॥

एतत्संकीर्त्यमानस्य भक्तस्य गुरुशर्मणः।
अपि पापानि यान्त्याशु द्रुतं नाशमुपागताः॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
लब्ध्वा कुलगुरुं सम्यक् त्रातारं न भयङ्करम्॥

वन्देऽहं विश्ववन्द्यं च पाण्ड्यवंशसमुद्भवम्।
शंकरं शंकराचार्यं शास्त्राचार्यं महेश्वरम्॥

शिवप्रोक्तं गुरुं नत्वा गुरुशास्त्रसमुद्भवम्।
नमः शिवाय शान्ताय गुरवे शान्तरूपिणे॥

गुरुशब्दस्य मन्वन्ते पार्वतीवल्लभप्रियः।
त्रिपुरारिर्गुरुस्त्राता जगद्गुरुरविर्भवः॥

गुरुं नत्वा गुरुं भक्त्या नान्यत् श्रेयः परं हि नः।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता हि तत्त्वतः॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन श्रीशम्भुं शरणं गतः॥

प्रणम्य शिरसा देवं जगद्रक्षाकरं विभुम्।
सर्वव्याधिविनाशं च त्वामहं शरणं गतः॥

शम्भो शङ्करशर्वेश शरण्य शंकराच्युत।
प्रसीद जगतां नाथ प्रसीद परमेश्वर॥

यस्त्वां शरणमित्युक्त्वा त्वामेवानुपलालयेत्।
न तस्य पुनरावृत्तिरिति मे निश्चिता मतिः॥

प्रसीद जगतां नाथ प्रसीद करुणाकर।
प्रसीद देवदेवेश न युक्तं तदन्यथा॥

कृपया परमेशान करुणां कुरु मे विभो।
वरं वा वरदं देव मुक्तिं वा मुक्तिदायिन॥

यत्तु सर्वाणि पापानि ब्रह्महत्या समानि च।
महान्त्यपि सुदुष्कारं दहन्ति शिवनामतः॥

शिवनामैकसङ्कीर्णो यस्तु भक्त्या परायणः।
तस्य पापानि दह्यन्ते यथा काष्ठमिवानले॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन शिवनामैकतत्त्वतः॥

सन्ततं सङ्कीर्यमाणं शिवनामैकसंयुतम्।
महापापोऽपि पापानी नयत्याशु शिवालयम्॥

प्रसीद शंकराधीश प्रसीद करुणाकर।
प्रसीद परमेशान तव भृङ्गीरिः परायणः॥

प्रसीद प्रसीद नाथ सर्वत्र तव शम्भो विभो।
प्रसीद जगतां नाथ तव पादाब्जं शरणम्॥

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स्तोत्र के लाभ

  1. अपराधों से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त अपने सभी अपराधों और पापों से मुक्ति पा सकते हैं।
  2. आध्यात्मिक शुद्धि: यह स्तोत्र भक्त की आत्मा को शुद्ध करता है और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है।
  3. शांति और सुख: इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
  4. भगवान शिव की कृपा: यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है।
  5. भय और कष्टों से रक्षा: इस स्तोत्र का पाठ करने से भय और कष्टों से रक्षा होती है।
  6. स्वास्थ्य में सुधार: इस स्तोत्र का नियमित पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
  7. सकारात्मकता का संचार: यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
  8. धन और समृद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  9. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र भक्त की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
  10. परिवार में शांति: यह स्तोत्र परिवार में शांति और सद्भावना बनाए रखने में सहायक होता है।
  11. मुक्ति की प्राप्ति: अंततः इस स्तोत्र का पाठ मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति में सहायक होता है।
  12. शत्रुओं से रक्षा: इस स्तोत्र का पाठ शत्रुओं से रक्षा करता है।
  13. संतान सुख: यह पाठ संतान सुख की प्राप्ति में सहायक होता है।
  14. विवाह में बाधा निवारण: इस स्तोत्र का पाठ विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
  15. आयु वृद्धि: यह स्तोत्र आयु वृद्धि और दीर्घायु का वरदान देता है।
  16. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि: यह स्तोत्र भक्त की भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि करता है।
  17. समस्त रोगों से मुक्ति: यह स्तोत्र सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  18. सुखद जीवन: इस स्तोत्र का पाठ सुखद और समृद्ध जीवन की प्राप्ति में सहायक होता है।

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