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Shiva Mahima Strot for Wealth & Family Peace

शिव महिम्न स्तोत्र: रोग व आर्थिक समस्या से मुक्ति

सबका दुख नष्ट करने वाले शिव महिम्न स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है। इसे रावण के भक्ति भाव से प्रेरित होकर पुष्पदन्त नामक गन्धर्व द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र शिवभक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और इसे पढ़ने या सुनने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है।

शिव महिम्न स्तोत्र: संपूर्ण पाठ और हिंदी अर्थ

शिव महिम्न स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है और इसे भगवान शिव के प्रति भक्ति का श्रेष्ठ स्तोत्र माना जाता है। इस स्तोत्र को पुष्पदन्त नामक गन्धर्व द्वारा रचित माना जाता है। आइए, संपूर्ण शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ और उसका हिंदी अर्थ समझें:

१. महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी

स्तोत्रं ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।
अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः॥ १ ॥

अर्थ:
हे भगवान शिव! आपकी महिमा का पार पाना संभव नहीं है। यदि मैं आपकी महिमा का वर्णन करने का प्रयास करता हूँ, तो वह प्रयास भी अपूर्ण होगा। आपके गुणों की सही-सही व्याख्या नहीं की जा सकती। जो लोग आपकी स्तुति करने का प्रयास करते हैं, वे अपने सामर्थ्य के अनुसार ही आपकी स्तुति कर पाते हैं।


२. अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः

अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।
स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदे तुर्वत्स्ना वणिगिव लिखितं नैव गति:॥ २॥

अर्थ:
भगवान शिव! आपकी महिमा वाणी और मन से परे है। वेद भी आपकी महिमा का पूर्णतः वर्णन करने में असमर्थ हैं। आपकी स्तुति कोई कैसे कर सकता है, जब आपके गुण और स्वरूप का सही ज्ञान ही संभव नहीं है। आपकी महिमा को समझने और वर्णन करने के लिए हमारा ज्ञान और हमारी बुद्धि पर्याप्त नहीं है।


३. मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः

तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम्।
मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः
पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता॥ ३॥

अर्थ:
हे भगवान शिव! आपकी वाणी मधुर और अमृत के समान है। आपकी महिमा का वर्णन करने में वेद भी असमर्थ हैं। मैं आपकी स्तुति करने का प्रयास कर रहा हूँ, यह जानते हुए भी कि मेरी वाणी अपर्याप्त है। फिर भी, मैं इस प्रयास को एक पुण्य कार्य मानकर इसे करता हूँ।


४. तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत्

त्रयीवस्तु व्यस्तं तिसृषु गुणभिन्नासु तनुषु।
अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं
विहन्तुं व्याक्रोशीं विधिहरिहरन्ते जगदिदम्॥ ४॥

अर्थ:
भगवान शिव! आपकी महिमा इतनी महान है कि आपने सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति, संरक्षण और विनाश का कार्य किया है। आप तीनों गुणों (सत्त्व, रज, तम) में भिन्न रूप धारण करते हैं और सृष्टि को संचालित करते हैं।


५. हरिस्ते साहस्रं कमलबलिमाधाय पदयोः

यदेकोने तस्मिन्निजमुदहरन्नेत्रकमलम्।
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषा
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम्॥ ५॥

अर्थ:
भगवान विष्णु ने आपकी पूजा में सहस्रों कमल चढ़ाए, और जब एक कमल कम पड़ गया, तो उन्होंने अपनी आँख का कमल चढ़ा दिया। आपकी भक्ति में उनका यह अद्वितीय समर्पण देखने लायक है। त्रिपुरों के नाश के लिए आपका यह रूप जगत के लिए अमूल्य है।


६. क्रतौ सुप्ते जाग्रत् त्वमसि फलयोगे क्रियाफले

यथा प्रार्थ्यां प्रीतीं विधदति सतमर्णाय च।
अतः साक्षी त्वं न स्थिरदरिवन्दं गिरिसुतां
नटत्वं चाधीशं शरणद रमन्ते सकलभूः॥ ६॥

अर्थ:
जब सभी यज्ञ क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब भी आप जागृत रहते हैं और यज्ञों के फल को वितरित करते हैं। आप ही साक्षी हैं और सम्पूर्ण सृष्टि आपकी शरण में है। आप इस सृष्टि के सर्वोच्च नियंत्रक और पालनकर्ता हैं।


७. अशेषं देवानां बलमसुरेणापि निहतम्

यदेतस्मिन्नुपेक्षितविकृतिरलक्षितविभु:।
अयि स्त्रैणं विद्ध्यं सुकृतमखिलं त्वन्मुखकम्
क्व वा शीतलं भवति परिपालनं तेऽत्र सकृती॥ ७॥

अर्थ:
जब असुरों ने देवताओं की शक्ति को समाप्त कर दिया था, तब आपने अपनी कृपा से उन्हें पुनः सशक्त किया। आपकी कृपा से ही देवता अपनी शक्तियों को पुनः प्राप्त कर सके। आपकी इस महानता के कारण ही आप सदा पूजनीय हैं।


८. कृतज्ञायां कान्तं पदमुपचितं रामसुभगे

पदं तत्र चैवं प्रमथपतिना तन्त्रितमिदम्।
निविश्य स्वे वस्त्रं समुपहितमिन्द्रं पुरमथ
दधाना क्षेमेण श्रियमभिसमीचीनपदवीं॥ ८॥

अर्थ:
आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने आपको अर्चना की। आपके चरणों में निवास करने से ही सभी देवताओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


९. नमोऽन्तः पारे स्थिरचरविकरैरप्रथयसे

यथाऽव्यक्तं ते ब्रह्म सदसदिति भावेन जनम्।
तमोयुक्तस्त्वामभिदधति विष्णुः स्तुतिषु च
शिवः श्रेयोऽभ्येति क्वचिदपि स वैरोप्यमियते॥ ९॥

अर्थ:
आपको नमस्कार है, जो सृष्टि के चर और अचर दोनों रूपों में व्याप्त हैं। आपको न जानने वाले भी आपकी स्तुति करते हैं, और इस प्रकार आप सभी के लिए कल्याणकारी हैं। आपके बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।


१०. प्रणामाचार्याणां तव परिरक्षीणमखिलं

कियन्तं यान्तं मम परममङ्गं परमिशम्।
न यथान्य: कार्ये त्रिभुवननितान्तं च विदितं
स्वयं प्रपन्नं त्वां किल किलिकिनाः संत्यजसि॥ १०॥

अर्थ:
आप सृष्टि के सभी कार्यों को नियंत्रित करते हैं और त्रिभुवन के प्रभु हैं। जब भी कोई भक्त आपकी शरण में आता है, तो आप उसे कभी नहीं छोड़ते। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।


११. अनादेराद्यं त्वां पुरुषमनिशं ब्रह्मशिरसि

प्रसादाद्दत्तं ते हृदयमश्वत्थमुनिनः।
इति त्वामारब्धे ध्रुवचरमुदेत्येव मनसो
जगत्क्रतौ वैरं विधियति हि ते दण्डकपटः॥ ११॥

अर्थ:
आप अनादि और अनंत हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सभी आपके ही अंश हैं। जब भी सृष्टि में कोई विपत्ति आती है, तो आप ही उसका निवारण करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।


१२. न भूतो न भूयो भवति भवताप्यौपनिषद:

कृपणाः सङ्घोषं करिष्यमणशास्यस्य सुचराः।
अतः प्रातः कालं खलु भवतु मे संहितमिदं
नतु त्रातुः सत्यं हृदये न भवेयामलवपुः॥ १२॥

अर्थ:
आपकी महिमा का कोई अंत नहीं है। आप न तो भूतकाल में थे, न ही भविष्य में होंगे, आप सदा वर्तमान हैं। इस प्रकार आपकी स्तुति करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।


१३. न त्वां पश्यन्नु स्फुटमपि च मिथ्येत्यवधरो

न चास्मिन्वक्तव्य

ं मम वद मृषा त्वत्कथनम्।
अतोऽन्यं वन्दे प्रचलमखिलं त्वां सुकृतिनः
श्रयन्ते साक्षात् पततशि तु योऽत्युत्तरशतम्॥ १३॥

अर्थ:
आपका स्वरूप अद्वितीय है और आपकी महिमा अनंत है। आपकी स्तुति करने वाला भक्त सदा आपका ही गुणगान करता है। जो भी भक्त आपकी शरण में आता है, वह कभी भी असफल नहीं होता।


१४. निन्दा गर्ह्यां वा लवमणुसमानं न शरणं

प्रवृत्तं न ज्ञातं भवतुनि विपाकस्य समये।
इति द्वन्द्वं द्वन्द्वं ध्रुवमिह जनिः पुनरपि
ध्रुवं विष्णुर्हन्तुं सुखमधिवसन्तः सुखकृतः॥ १४॥

अर्थ:
आपके भक्तों की कोई निंदा नहीं कर सकता। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें सुख प्रदान करते हैं। आपकी कृपा से भक्तों को संसार के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।


१५. स्तुतिं वैरं कृत्वा हर शिव हर मामीह भयतः

अकारं सारा त्वरितमपि मातः किल शुभे।
अयं मृत्युः शम्भो रजतमणिवद्धृष्टभवतु
त्वतस्तत्तद्बन्धुं दृढततमनन्तं जगदिति॥ १५॥

अर्थ:
हे शिव! आपकी स्तुति करने से भक्तों के सभी भय समाप्त हो जाते हैं। आपकी कृपा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें संसार के सभी बंधनों से मुक्त करते हैं।

लाभ

  1. मानसिक शांति:
    शिव महिम्न स्तोत्र के नियमित पाठ से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा:
    यह स्तोत्र सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
  4. रोगों से मुक्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  5. आर्थिक समृद्धि:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  6. शत्रुओं से रक्षा:
    यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और व्यक्ति को सुरक्षित रखता है।
  7. घर में सुख-शांति:
    शिव महिम्न स्तोत्र के पाठ से घर में सुख-शांति और समृद्धि का माहौल बनता है।
  8. मोक्ष की प्राप्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है।
  9. संतान सुख:
    यह स्तोत्र संतान सुख प्रदान करता है और परिवार में खुशियों का आगमन होता है।
  10. कष्टों से मुक्ति:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
  11. धन-धान्य की प्राप्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ धन-धान्य और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में सहायक होता है।
  12. कार्य में सफलता:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  13. मनोकामना पूर्ति:
    यह स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होता है।
  14. शांति और समृद्धि:
    इस स्तोत्र का पाठ जीवन में शांति और समृद्धि लाता है।
  15. दिव्य आभा:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के चेहरे पर दिव्य आभा आती है।

विधि

  1. शुद्धता:
    इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले शुद्धता का ध्यान रखें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन:
    साधना करते समय कुश या ऊनी आसन का प्रयोग करें।
  3. मूर्ति या चित्र:
    भगवान शिव के सामने उनकी मूर्ति या चित्र रखें और दीप प्रज्वलित करें।
  4. पाठ का समय:
    इसका पाठ प्रातःकाल या संध्याकाल में करें। सोमवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  5. ध्यान और ध्यान मुद्रा:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान मुद्रा में बैठें और भगवान शिव का ध्यान करें।

नियम

  1. साधना को गुप्त रखें:
    अपनी साधना और पूजा को गुप्त रखें।
  2. नियमितता:
    इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करें।
  3. शुद्धता:
    पूजा के समय शरीर, मन, और वातावरण की शुद्धता बनाए रखें।
  4. उत्तम आचरण:
    साधना के दौरान उत्तम आचरण का पालन करें और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  5. आसन का पालन:
    साधना के दौरान एक ही आसन का प्रयोग करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. शुद्धता का ध्यान रखें:
    पूजा और साधना के दौरान शरीर और मन की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. नकारात्मक विचारों से दूर रहें:
    साधना के समय केवल सकारात्मक विचारों का ध्यान करें।
  3. नियमितता बनाए रखें:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
  4. पूजा सामग्री का ध्यान रखें:
    सभी पूजा सामग्री को शुद्ध और पवित्र रखें।

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सामान्य प्रश्न

  1. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
    • इसका पाठ सुबह और शाम के समय करना उत्तम होता है।
  2. क्या इसे किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    • इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन सोमवार को विशेष लाभ मिलता है।
  3. क्या महिलाएं भी इसे कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  4. क्या इसे घर पर कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
  5. इसका पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    • शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ दिन में एक बार करना पर्याप्त है।
  6. इसका पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
  7. क्या इसे गुप्त रूप से करना चाहिए?
    • हाँ, साधना को गुप्त रखना उत्तम होता है।
  8. क्या इसे मंदिर में करना आवश्यक है?
    • नहीं, इसे घर पर भी किया जा सकता है।
  9. क्या पाठ करते समय विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?
    • पाठ के दौरान “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।
  10. क्या शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ आर्थिक लाभ देता है?
    • हाँ, इसका पाठ आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है।
  11. क्या इससे शत्रुओं से रक्षा होती है?
    • हाँ, यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है।
  12. क्या इस स्तोत्र का प्रभाव तुरंत दिखाई देता है?
    • इसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देता है।
  13. क्या इसे रोज़ करना आवश्यक है?
    • हाँ, इसे रोज़ाना करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।
  14. क्या यह मानसिक शांति देता है?
    • हाँ, यह स्तोत्र मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
  15. क्या इसका पाठ मोक्ष प्राप्ति के लिए लाभकारी है?
    • हाँ, यह स्तोत्र मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है।

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