सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम क्या है?
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम भगवान सुब्रह्मण्य को समर्पित एक प्राचीन स्तोत्र है। भगवान सुब्रह्मण्य, जिन्हें कार्तिकेय या मुरुगन भी कहा जाता है, शक्ति और साहस के देवता माने जाते हैं। इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसमें भुजंग प्रयात छंद का उपयोग किया गया है, जो भगवान सुब्रह्मण्य की महिमा का गुणगान करता है और भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की शक्ति रखता है।
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम का संपूर्ण पाठ और उसका अर्थ
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम का पाठ भगवान सुब्रह्मण्य की स्तुति और उनकी महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र आदिशंकराचार्य द्वारा रचित है और इसमें भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की जाती है।
संपूर्ण पाठ:
- सदा बालरूपापि विघ्नाद्रिहन्त्री
महादन्तिवक्त्रापि पञ्चास्यमान्या।
विधीन्द्रादिमृग्या गणेशाभिधा मे
विधत्तां श्रियं कापि कल्याणमूर्तिः॥1॥ - नमः केदारनाथाय गंगाधराय
नमः सोमसूर्याग्निनेत्राय तुभ्यम्।
नमः कालकूटाय शम्भो महेश
नमः स्वर्गपावि त्रिनेत्राय तुभ्यम्॥2॥ - सुरारातिनाशं सुरापालि देवम्
भुजङ्गप्रयातं नमामि स्वरूपम्।
दया सिंधुमाम्नाय दीनानुकम्पम्
सदा भक्त रक्षं भजे शक्तिपुत्रम्॥3॥ - जया देव्ये नमस्तुभ्यं गौरी पुत्राय धीमहि।
तन्नो दण्डाय प्रचोदयात्॥4॥ - नमः शङ्करस्यात्मजायाखिलेश
प्रियायारिजित्वा गणाधीशपूज्य।
सदानन्ददात्रे मुदाकर्षणाय
प्रणम्याद्य ते तावकं भावयामः॥5॥ - नमस्ते महादेव सन्नन्दिनेभ्यः
सुरेन्द्रैर्विभूषाय खण्डैर्महाभ्यः।
भवद्भावितानां भवायानुकम्पे
नमस्ते महापापहारिन् कुरुष्व॥6॥ - हरो मन्दिरशायिनोऽल्पाकृतेश्च
मुखं योगमायामयं ये न विद्मः।
नमः सद्धारकाय प्रणम्याधिजातम्
प्रणम्यास्त्रिणेत्राय दुर्गाधिपाय॥7॥
अर्थ:
- अर्थ: हमेशा बालरूप में रहने पर भी जो विघ्नों का नाश करता है, बड़े दाँतों वाला, पांच मुखों वाला, ब्रह्मा और इंद्र आदि देवताओं द्वारा पूजित गणेश जी हमें अनंत कल्याण और सम्पत्ति प्रदान करें।
- अर्थ: केदारनाथ, गंगाधर, सोम, सूर्य और अग्नि नेत्रधारी, कालकूट का पान करने वाले महेश्वर को नमस्कार है, जो त्रिनेत्रधारी और स्वर्ग के पवित्र मार्ग का रक्षक है।
- अर्थ: सुरों के शत्रुओं का नाश करने वाले, देवों के पालक, भुजंग प्रयात छंद में स्वरूप की स्तुति करने वाले, दया के सागर, वेदों के ज्ञाता, दीनों पर दया करने वाले, भक्तों की सदा रक्षा करने वाले, शक्तिपुत्र सुब्रह्मण्य को मैं नमन करता हूँ।
- अर्थ: हे गौरीपुत्र, तुम्हें प्रणाम! तुम देवी के पुत्र हो, हमारी बुद्धि को प्रकाशित करो, हमें सन्मार्ग पर चलाओ।
- अर्थ: हे शंकर के आत्मज, समस्त देवताओं के प्रिय, शत्रुओं के विजेता, गणेश के पूज्य, आनंद प्रदान करने वाले, तुम्हें बारंबार प्रणाम करता हूँ और आपकी भक्ति में मग्न रहता हूँ।
- अर्थ: हे महादेव, महान् देवों और इन्द्र के द्वारा विभूषित, जो भक्तों के कल्याण के लिए उपस्थित होते हैं, उन्हें प्रणाम, जो महान् पापों का नाश करने वाले हैं।
- अर्थ: मन्दिर में निवास करने वाले और योगमाया के रूप में न जानने वाले हर, हे त्रिनेत्रधारी, दुर्गा के स्वामी, तुम्हें प्रणाम।
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम के लाभ
- शत्रुओं से सुरक्षा: इस स्तोत्र का पाठ शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- धन और समृद्धि: धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
- विवाह संबंधित समस्याएं: विवाह संबंधित समस्याओं का समाधान होता है।
- बाधाओं का नाश: जीवन की सभी बाधाओं का नाश होता है।
- शांति और स्थिरता: मन में शांति और स्थिरता आती है।
- भय का नाश: जीवन में सभी प्रकार के भय का नाश होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
- मानसिक शांति: मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है।
- परिवारिक कल्याण: परिवारिक कल्याण और सौहार्द बढ़ता है।
- बुद्धि और विवेक में वृद्धि: बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
- कर्मफल से मुक्ति: पूर्व जन्म के कर्मों के फल से मुक्ति मिलती है।
- भगवान की कृपा: भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्त होती है।
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम विधि
- दिन: मंगलवार और शुक्रवार को विशेष रूप से पाठ करना शुभ माना जाता है।
- अवधि (41 दिन): इस स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से किया जाता है।
- मुहुर्त: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे तक) या सूर्यास्त के समय पाठ करना उत्तम होता है।
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सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम के नियम
- पूजा की गोपनीयता: साधना और पूजा को गुप्त रखना चाहिए।
- शुद्धता का पालन: पूजा स्थल और साधक की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
- व्रत का पालन: साधक को 41 दिनों तक व्रत का पालन करना चाहिए।
- वेद मंत्रों का उच्चारण: सुब्रह्मण्य स्तोत्रम के साथ वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम में सावधानियां
- शुद्धता का ध्यान: शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- वाणी का संयम: साधना के दौरान वाणी का संयम आवश्यक है।
- उचित समय: पाठ के लिए उचित समय का चयन करें।
- सकारात्मक मनोवृत्ति: साधना के समय मनोवृत्ति सकारात्मक होनी चाहिए।
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सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम पाठ – प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम का अर्थ क्या है?
उत्तर: सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम भगवान सुब्रह्मण्य की स्तुति का स्तोत्र है जो उनकी शक्ति और महिमा का वर्णन करता है।
प्रश्न 2: इसे कौन कर सकता है?
उत्तर: कोई भी भक्त जो भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा पाना चाहता है, इसे कर सकता है।
प्रश्न 3: पाठ का सर्वश्रेष्ठ समय क्या है?
उत्तर: ब्रह्ममुहूर्त और सूर्यास्त का समय सबसे शुभ माना जाता है।
प्रश्न 4: 41 दिन की साधना क्यों की जाती है?
उत्तर: 41 दिन की साधना मन और शरीर की शुद्धि के लिए की जाती है।
प्रश्न 5: सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम का पाठ कैसे करें?
उत्तर: एकांत स्थान पर शांत मन से सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम का पाठ करें।
प्रश्न 6: क्या इसके विशेष दिन हैं?
उत्तर: मंगलवार और शुक्रवार विशेष दिन माने जाते हैं।
प्रश्न 7: क्या इसे विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?
उत्तर: सादा जल, पुष्प, और अगरबत्ती पर्याप्त होते हैं।
प्रश्न 8: क्या इसे गुप्त रखना चाहिए?
उत्तर: हां, साधना और पूजा को गुप्त रखना चाहिए।
प्रश्न 9: क्या कोई सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर: शुद्धता और वाणी का संयम आवश्यक है।
प्रश्न 10: क्या इसे नियमित रूप से करना चाहिए?
उत्तर: हां, नियमित रूप से करने से ही लाभ मिलता है।
प्रश्न 11: क्या साधना के दौरान व्रत रखना जरूरी है?
उत्तर: हां, साधना के दौरान व्रत रखने से मनोबल बढ़ता है।
प्रश्न 12: सुब्रह्मण्य भुजंग स्तोत्रम के लाभ क्या हैं?
उत्तर: शत्रुओं से रक्षा, मानसिक शांति, और आध्यात्मिक उन्नति इसके प्रमुख लाभ हैं।
प्रश्न 13: क्या इस स्तोत्र का पाठ बच्चों को कराया जा सकता है?
उत्तर: हां, बच्चों को भी यह पाठ कराया जा सकता है, विशेषकर बुरे स्वप्न से बचने के लिए।