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Varahi Yakshini Mantra for wishes

सिद्धियां व मनोकामना पूर्ण करने वाली वाराही यक्षिणी एक शक्तिशाली यक्षिणी हैं जो अपने साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धियों की प्राप्ति में मदद करती हैं। वह धन, समृद्धि, सुख, शांति और सर्वाधिकार की प्राप्ति के लिए उपासना की जाती हैं। उन्हें भय, चिंता, और संकटों से मुक्ति मिलती हैं और उन्हें रक्षा और सुरक्षा का अनुभव होता हैं। वाराही यक्षिणी की उपासना से साधक अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाते हैं और सफलता की ऊंचाइयों को छूने में समर्थ होते हैं।

वाराही यक्षिणी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ ह्रीं वाराही कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा

इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है और हर प्रकार की ऊर्जा का स्रोत है।
  • ह्रीं: यह शक्ति बीज मंत्र है, जो देवी की अनंत शक्ति को जागृत करता है।
  • वाराही: यह देवी वाराही का नाम है, जो कार्य सिद्धि की देवी मानी जाती हैं।
  • कार्य सिद्धिं कुरु कुरु: इसका अर्थ है “मेरे कार्यों को सिद्ध करो, सिद्ध करो।”
  • स्वाहा: यह शब्द संपूर्णता और समर्पण का प्रतीक है।

वाराही यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. कार्य सिद्धि: यह मंत्र हर कार्य को सफल बनाता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है।
  3. शत्रु नाश: यह मंत्र शत्रुओं को नष्ट करता है।
  4. धन और समृद्धि: मंत्र का जप धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
  5. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य लाने में सहायक होता है।
  6. स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है।
  7. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह भरता है।
  8. रिश्तों में सुधार: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है।
  9. आत्मविश्वास: आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
  10. धार्मिकता: धर्म और अध्यात्म में रुचि को प्रगाढ़ करता है।
  11. कर्मों की शुद्धि: पिछले कर्मों के दोषों को मिटाता है।
  12. मानसिक शांति: तनाव और चिंता को दूर करता है।
  13. सफलता: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  14. आकर्षण: व्यक्ति को अधिक आकर्षक बनाता है।
  15. संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति में सहायक होता है।
  16. भयमुक्ति: भय और असुरक्षा की भावना को दूर करता है।
  17. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सच्चे मार्गदर्शक की ओर ले जाता है।
  18. कर्म सुधार: अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है।
  19. सपनों की पूर्ति: इच्छाओं और सपनों को साकार करने में मदद करता है।
  20. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: नकारात्मक और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।

मंत्र विधि

दिन

वाराही यक्षिणी मंत्र का जप किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है, लेकिन विशेषतः मंगलवार और शुक्रवार का दिन इस कार्य के लिए अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन की हो सकती है। इस दौरान नियमित रूप से मंत्र जप करना आवश्यक है।

मुहुर्थ

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

सामग्री

  1. वाराही यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र
  2. पुष्प (खासकर लाल फूल)
  3. धूप/अगरबत्ती
  4. दीपक (घी का दीपक सर्वोत्तम होता है)
  5. आसन (साफ और पवित्र स्थान पर बैठने के लिए)
  6. जल पात्र
  7. मौली (रक्षा सूत्र)

वाराही यक्षिणी मंत्र जप

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक होनी चाहिए। रोजाना नियमित समय पर मंत्र जप करना आवश्यक है।

वाराही यक्षिणी मंत्र जप संख्या

मंत्र जप की संख्या एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

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मंत्र जप के नियम

  1. स्नान: जप से पहले स्नान कर लें।
  2. पवित्र स्थान: पवित्र और शांति वाले स्थान पर बैठें।
  3. आसन: एक साफ और पवित्र आसन का प्रयोग करें।
  4. समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण भाव और एकाग्रता के साथ मंत्र जप करें।
  5. रोजाना नियमित समय: रोजाना एक ही समय पर मंत्र जप करें।
  6. माला: रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला का प्रयोग करें।
  7. ध्यान: वाराही यक्षिणी का ध्यान करते हुए मंत्र जप करें।
  8. सकारात्मक सोच: जप के दौरान सकारात्मक सोच और भाव रखें।
  9. नियमितता: जप को नियमित रूप से करें, बिना किसी दिन का छोड़ें।
  10. स्वच्छता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  11. द्रव्य: जप के दौरान या बाद में वाराही यक्षिणी को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  12. लाल पुष्प: वाराही यक्षिणी को लाल पुष्प अर्पित करें।
  13. धूप-दीप: धूप-दीप जलाकर वाराही यक्षिणी की आरती करें।
  14. मौन: जप के समय मौन रहें और बाहरी विचारों से बचें।
  15. श्रद्धा: श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र जप करें।
  16. धैर्य: मंत्र के फलों के लिए धैर्य रखें, तुरंत परिणाम की अपेक्षा न करें।
  17. शुद्धि: मानसिक और शारीरिक शुद्धि बनाए रखें।
  18. व्रत: मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करें, यदि संभव हो तो।
  19. सहजता: सहज और सरल मन से मंत्र जप करें।
  20. ध्यान और ध्यान: जप के बाद कुछ समय ध्यान करें और वाराही यक्षिणी के चरणों में ध्यान लगाएं।

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वाराही यक्षिणी मंत्र जप सावधानी

  1. ध्यान और एकाग्रता: जप के दौरान ध्यान भटकने से बचें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए।
  3. नियमितता: जप को बिना किसी व्यवधान के नियमित रूप से करें।
  4. शुद्धता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता बनाए रखें।
  5. समय का पालन: रोजाना एक ही समय पर जप करें।
  6. धैर्य: धैर्य रखें और जल्दबाजी में न हों।
  7. सकारात्मकता: सकारात्मक और शांत मन से जप करें।
  8. विचार शुद्धि: नकारात्मक विचारों से बचें।
  9. सामग्री का ध्यान: जप के लिए आवश्यक सामग्री जैसे माला, आसन आदि का ध्यान रखें।
  10. शारीरिक स्थिति: स्वस्थ और संयमित शारीरिक स्थिति में जप करें।
  11. पर्यावरण: शांति और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर जप करें।
  12. संवेदना: जप के दौरान संवेदनशीलता और श्रद्धा बनाए रखें।
  13. धर्म और नियम: धर्म और नियमों का पालन करें।
  14. नियमित अभ्यास: नियमित अभ्यास से मंत्र जप का प्रभाव बढ़ता है।
  15. प्रेरणा: स्वयं को प्रेरित और उत्साहित रखें।
  16. भक्ति: भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करें।
  17. समर्पण: पूरी तरह से वाराही यक्षिणी के प्रति समर्पित रहें।
  18. संतुलन: शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखें।
  19. स्वस्थ भोजन: स्वास्थ्यवर्धक और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  20. सहजता: जप को सहज और सरल बनाएं।

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वाराही यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: मंत्र जप के दौरान किन चीजों का त्याग करना चाहिए?
उत्तर: नकारात्मक विचार, आलस्य, अव्यवस्थित जीवनशैली, और अधार्मिक कर्मों का त्याग करना चाहिए।।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी कौन हैं?
उत्तर: वाराही यक्षिणी देवी दुर्गा का एक रूप हैं और दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र क्या है? उत्तर: ॐ ह्रीं वाराही कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।

प्रश्न: इस मंत्र का अर्थ क्या है?
उत्तर: यह मंत्र देवी वाराही से कार्य सिद्धि की प्रार्थना करता है।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र के लाभ क्या हैं?
उत्तर: यह कार्य सिद्धि, शत्रु नाश, धन, स्वास्थ्य, और सौभाग्य प्रदान करता है।

प्रश्न: मंत्र जप की विधि क्या है?
उत्तर: प्रातःकाल या संध्याकाल में, साफ और पवित्र स्थान पर, स्नान करके, एकाग्रता और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की अवधि क्या होनी चाहिए?
उत्तर: 11 से 21 दिन तक रोजाना जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर: एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

प्रश्न: जप के दौरान किस सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: वाराही यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र, पुष्प, धूप/अगरबत्ती, दीपक, आसन, जल पात्र, मौली।

प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो व्रत का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप के बाद क्या करना चाहिए?
उत्तर: जप के बाद ध्यान करें और वाराही यक्षिणी के चरणों में ध्यान लगाएं।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र के कौन-कौन से बीज मंत्र शामिल हैं?
उत्तर: ह्रीं बीज मंत्र शामिल है।

BOOK (३० APRIL 2025) MAHALAKSHMI PUJAN SHIVIR (AKSHAYA TRITIYA) AT DIVYAYOGA ASHRAM (ONLINE/ OFFLINE)

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