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Vat purnima vrat – Prosperity & Good fortune

वट पूर्णिमा व्रत २०२५- सुख सैभाग्य बढायें

सौभाग्यवती का आशिर्वाद देने वाली वट पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस व्रत का आयोजन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन होता है। यह मुहुर्थ मंगलवार १० जून २०२५ को है। यह व्रत वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा के रूप में किया जाता है और इसे अखंड सौभाग्य, दीर्घायु, और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है।

वट पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि

  1. स्नान और पूजा की तैयारी: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए वट वृक्ष के पास जाएं या घर पर ही किसी बर्तन में वट वृक्ष की टहनी रखें।
  2. व्रत का संकल्प: व्रत का संकल्प लें और भगवान गणेश का ध्यान करें।
  3. वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष की जड़ में जल, दूध, और पवित्र गंगा जल अर्पित करें। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर धागा (कच्चा सूत) लपेटें और तीन या सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें।
  4. पूजन सामग्री: पूजा के लिए धूप, दीप, नैवेद्य, रोली, मौली, सिंदूर, चावल, फल, मिठाई, और सुहाग की सामग्री (चूड़ी, बिंदी, मेहंदी आदि) का उपयोग करें।
  5. कथा सुनना या पढ़ना: व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। यह कथा सावित्री और सत्यवान की कहानी पर आधारित होती है जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था।
  6. आरती और प्रार्थना: पूजा के अंत में वट वृक्ष की आरती करें और भगवान से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

व्रत का महत्व

  • पति की लंबी उम्र: वट पूर्णिमा व्रत करने से पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
  • अखंड सौभाग्य: व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
  • पारिवारिक समृद्धि: व्रत करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

सावधानियां

  • व्रत का पालन पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करना चाहिए।
  • पूजा के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखें।
  • इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को निराहार रहना चाहिए, केवल फलाहार किया जा सकता है।
  • मंत्रः “ॐ ऐं श्रीं क्रीं सर्व इच्छा पुर्तिं देही देही नमः” “OM AIM SHREEM SARVA ICHCHHA PURTIM DEHI DEHI NAMAHA”

Know about rama ekadashi vrat

वट पूर्णिमा व्रत की संपूर्ण कथा

प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति और रानी मलविका संतान प्राप्ति के लिए कठोर तप कर रहे थे।
उनकी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें सावित्री नाम की अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और गुणी कन्या का वरदान मिला।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, राजा अश्वपति ने उसे स्वयं वर चुनने का अधिकार प्रदान किया।

सावित्री और सत्यवान की कथा

सावित्री ने सत्यवान नामक राजकुमार को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना।
सत्यवान अपने अंधे पिता के साथ जंगल में साधारण जीवन व्यतीत कर रहा था।
सत्यवान की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसकी शेष आयु केवल एक वर्ष बची थी।
सावित्री ने इसे अपनी नियति मानकर सत्यवान से विवाह करने का दृढ़ निश्चय किया।
राजा अश्वपति और अन्य लोगों ने सावित्री को इसके परिणामों के बारे में चेतावनी दी।
इसके बावजूद सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह किया।

सत्यवान की मृत्यु का दिन

विवाह के बाद सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में रहने लगी और उसकी सेवा में लग गई।
सत्यवान अत्यंत बुद्धिमान और धर्मपरायण व्यक्ति था, लेकिन उसकी अल्पायु सावित्री के लिए चुनौती बनी।
सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन आ गया, और वह लकड़ी काटने जंगल गया।
सावित्री भी उसके साथ जंगल गई, जहाँ सत्यवान अचानक गिर पड़ा और बेहोश हो गया।

यमराज से संवाद

सत्यवान की आत्मा लेने के लिए यमराज वहां पहुंचे।
सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे सत्यवान की आत्मा को न ले जाने की प्रार्थना की।
सावित्री की तप, निष्ठा और तर्क शक्ति ने यमराज को प्रभावित कर दिया।
यमराज ने सावित्री को तीन वरदान देने का निर्णय लिया।
सावित्री ने अपने ससुर के नेत्रों की ज्योति और राज्य वापस मांगा।
तीसरे वरदान में उसने सत्यवान के साथ लंबी आयु का वरदान मांगा।

यमराज ने सावित्री की भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर सत्यवान का जीवन वापस कर दिया।
इस प्रकार सावित्री ने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से अपने पति को मृत्यु से बचा लिया।
वट पूर्णिमा व्रत इसी कथा से जुड़ा है, जो पतिव्रता धर्म और निष्ठा का प्रतीक है।

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वट पूर्णिमा व्रत सामान्य प्रश्न

1. वट पूर्णिमा व्रत क्या है?
वट पूर्णिमा व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इसमें वट (बड़) वृक्ष की पूजा होती है।

2. वट पूर्णिमा व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में प्रचलित है।

3. इस व्रत का धार्मिक महत्व क्या है?
धार्मिक मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस लिया था, इसलिए इसे व्रत में पूजनीय माना गया है।

4. व्रत की पूजा विधि क्या है?
व्रतधारी महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटकर उसकी पूजा करती हैं, साथ ही सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती और सुनाती हैं।

5. व्रत के दिन उपवास का नियम क्या है?
इस दिन विवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं, और संध्या के समय व्रत खोलती हैं। व्रत के दौरान फलाहार किया जाता है।

6. व्रत से किस प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं?
वट पूर्णिमा व्रत करने से पति की लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसे महिलाओं के सोलह श्रृंगार का भाग भी माना जाता है।

7. क्या अविवाहित महिलाएं भी यह व्रत कर सकती हैं?
यह व्रत मुख्यतः विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन अविवाहित महिलाएं भी अपने भावी पति के लिए इसे कर सकती हैं।

8. सावित्री और सत्यवान की कथा का महत्व क्या है?
सावित्री की तपस्या और अपने पति के प्रति समर्पण को इस व्रत का आधार माना गया है, जिससे यह दांपत्य जीवन में स्थिरता और प्रेम का प्रतीक है।

BOOK (३० APRIL 2025) MAHALAKSHMI PUJAN SHIVIR (AKSHAYA TRITIYA) AT DIVYAYOGA ASHRAM (ONLINE/ OFFLINE)

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