महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – जो शत्रुओं को आपसे दूर रखे
शत्रु को नष्ट करने वाली महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र, देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करने वाला एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र विशेष रूप से देवी के महिषासुर का वध करने के महान कार्य को स्मरण करता है। महिषासुर एक बलशाली राक्षस था जिसे देवी दुर्गा ने युद्ध में पराजित किया था। यह स्तोत्र आदिशक्ति दुर्गा के अद्वितीय साहस, शक्ति और करुणा का गुणगान करता है।
स्तोत्र और उसका अर्थ:
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें उनकी शक्ति, सौंदर्य, और उनकी विजय का वर्णन किया गया है। इसमें देवी दुर्गा के महिषासुर का वध करने की महिमा का बखान है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए अत्यधिक प्रभावशाली और प्रेरणादायक माना जाता है।
श्लोक १:
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते। गिरिवरविन्ध्य शिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक २:
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते। त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिंधुसुते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ३:
अयि जगदम्ब मधम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते। शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ४:
अयि शतमखादि शिरोऽधिनिकृत्य शिरः फलदानकृतप्रमते। दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते। दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ५:
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते। त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिंधुसुते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ६:
अयि शरनाम्रणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ७:
अयि कमलवासिनि सम्भवसन्निधिकुलविलासिनि तुल्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
श्लोक ८:
अयि हरिरमणविलासिनि हसिकुलमहिषासुरमर्दिनि देवते। शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
संपूर्ण अर्थ १-४
हे पर्वतराज हिमालय की पुत्री, आप संपूर्ण पृथ्वी को आनंदित करने वाली हैं, आप विश्व को मोहित करने वाली हैं। आपको नंदी द्वारा वंदित किया जाता है। आप महान पर्वत विंध्य के शिखर पर निवास करती हैं, और भगवान विष्णु के साथ खेल करती हैं। आप महादेव (शिव) के परिवार की देवी हैं, जिनका परिवार विशाल और शुभ कार्यों से भरा हुआ है। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
देवी, आप देवताओं पर कृपा करने वाली, असुरों का नाश करने वाली और अपने भक्तों के आनंद में प्रसन्न रहने वाली हैं। आप तीनों लोकों का पालन करने वाली हैं और भगवान शंकर को प्रसन्न करती हैं। आप पापों को नष्ट करने वाली हैं और घोष (शत्रुओं की चीख) में प्रसन्न रहती हैं। आप दनु के पुत्रों के क्रोध को शांत करती हैं, दिति के पुत्रों के अहंकार को नष्ट करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
हे जगदम्बा, आप प्रेम और ममता की मूर्ति हैं, कदम्ब वन में रहने में आनंदित होती हैं और सदा मुस्कान धारण करती हैं। आप हिमालय पर्वत के शिखरों पर निवास करती हैं और आपके मधुर वचन हर किसी के लिए मधुर हैं। आपने मधु और कैटभ नामक दैत्यों का नाश किया और राक्षसों का वध करने में कुशल हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
हे देवी, आप इन्द्र और अन्य देवताओं के शत्रुओं का सिर काटकर उनकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। आप दुष्ट प्रवृत्तियों और दानवों के क्रूर विचारों को नष्ट करने में सक्षम हैं। आप उनकी बुरी योजनाओं और कुटिल विचारों का अंत करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
संपूर्ण अर्थ ४-८
देवी, आप देवताओं पर कृपा करने वाली, असुरों का नाश करने वाली और अपने भक्तों के आनंद में प्रसन्न रहने वाली हैं। आप तीनों लोकों का पालन करने वाली हैं और भगवान शंकर को प्रसन्न करती हैं। आप पापों को नष्ट करने वाली हैं और घोष (शत्रुओं की चीख) में प्रसन्न रहती हैं। आप दनु के पुत्रों के क्रोध को शांत करती हैं, दिति के पुत्रों के अहंकार को नष्ट करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
हे देवी, आप हिमालय पर्वत के शिखरों पर निवास करती हैं और आपकी मधुर वाणी सबके हृदय को मोह लेती है। आप मधु और कैटभ जैसे दैत्यों का संहार करने में सक्षम हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
देवी, आप कमल वन में निवास करती हैं, और आप सभी जीवों की उत्पत्ति का आधार हैं। आप मधु और कैटभ जैसे दुष्टों का नाश करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
हे देवी, आप भगवान विष्णु की प्रिया हैं, और आप महिषासुर जैसे राक्षसों का वध करती हैं। आप हिमालय के शिखरों पर निवास करती हैं और आपकी मधुर वाणी सबको प्रिय है। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!
स्तोत्र के लाभ
- आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- साहस और शक्ति: शक्ति का गुणगान करते हुए यह स्तोत्र व्यक्ति को भी साहस और शक्ति प्रदान करता है।
- रक्षा और संरक्षण: इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों और बुराईयों से रक्षा करता है।
- धार्मिक उन्नति: यह स्तोत्र भक्त को धार्मिकता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
- मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति और संतोष प्रदान करता है।
- समस्याओं का समाधान: देवी दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।
- विपत्तियों से मुक्ति: यह स्तोत्र भक्त को विपत्तियों और कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
- स्वास्थ्य लाभ: इस स्तोत्र का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- भय और चिंता का नाश: इस स्तोत्र का पाठ भय और चिंता को दूर करता है और आत्म-विश्वास बढ़ाता है।
- सद्बुद्धि का विकास: यह स्तोत्र व्यक्ति को सद्बुद्धि और विवेक प्रदान करता है।
- धन और समृद्धि: देवी दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र धन और समृद्धि का वरदान देता है।
- संकल्प की दृढ़ता: यह स्तोत्र व्यक्ति के संकल्प को मजबूत बनाता है।
- ईश्वर के प्रति भक्ति: यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा का विकास करता है।
- कुल का कल्याण: यह स्तोत्र न केवल पाठक बल्कि उसके पूरे परिवार और वंश का कल्याण करता है।
विधि
- दिन: इस स्तोत्र को किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार और नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व होता है।
- अवधि: इस स्तोत्र की साधना की अवधि 41 दिनों तक हो सकती है। इस दौरान इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर करना चाहिए।
- मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे) इस स्तोत्र के पाठ के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जिससे साधना का प्रभाव बढ़ता है।
नियम
- शुद्धि और साफ-सफाई: स्तोत्र पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा स्थल को भी शुद्ध और साफ रखना आवश्यक है।
- एकाग्रता: इस स्तोत्र के पाठ के दौरान मन को देवी दुर्गा के स्वरूप पर एकाग्र रखना चाहिए। बाहरी विकर्षणों से दूर रहकर देवी के रूप का ध्यान करना चाहिए।
- संयम और सात्विकता: साधना के दौरान संयम और सात्विकता का पालन करना चाहिए। सात्विक भोजन करना, असत्य, हिंसा आदि से बचना चाहिए।
- नियमितता: इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। अगर 41 दिनों की साधना कर रहे हैं, तो इसे किसी भी दिन छोड़े बिना प्रतिदिन करना चाहिए।
- गुप्तता: साधना और पूजा को गुप्त रखना चाहिए। इसे दूसरों को न बताकर देवी के प्रति समर्पण और श्रद्धा भाव बनाए रखना चाहिए।
- आरती और दीपक: स्तोत्र पाठ के बाद देवी दुर्गा की आरती करें और दीपक जलाकर उनकी कृपा का ध्यान करें।
- प्रसाद: साधना के बाद देवी को प्रसाद अर्पित करें और उसे परिवार के सदस्यों में बांटें।
सावधानी
- नियमितता में विघ्न न डालें: साधना के दौरान किसी भी प्रकार की नियमितता में विघ्न न डालें। इसे एक निश्चित समय पर और नियमपूर्वक करें।
- ध्यान में एकाग्रता: स्तोत्र के दौरान ध्यान को भटकने न दें। मन को देवी के स्वरूप में स्थिर रखने का प्रयास करें।
- शुद्धता बनाए रखें: साधना के समय तन-मन की शुद्धता का ध्यान रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को अपने अंदर प्रवेश न करने दें।
- आशंका से बचें: इस स्तोत्र की साधना में श्रद्धा और विश्वास रखें। किसी भी प्रकार की आशंका या शंका को मन में स्थान न दें।
- सात्विक जीवनशैली: साधना के दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करें। अहिंसा, सत्य, और संयम का जीवन जीने का प्रयास करें।
सामान्य प्रश्न
- महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र किसने रचा है?
- इस स्तोत्र का रचनाकार आदि शंकराचार्य माने जाते हैं।
- इस स्तोत्र का पाठ किसके लिए लाभकारी है?
- यह स्तोत्र सभी के लिए लाभकारी है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो मानसिक शांति, साहस, और शक्ति की खोज में हैं।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
- हां, यह स्तोत्र विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार, और नवरात्रि के दिनों में अधिक फलदायी माना जाता है।
- इस स्तोत्र के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
- इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति, साहस, शक्ति, और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए?
- हां, ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायी माना जाता है, लेकिन इसे अन्य समय पर भी किया जा सकता है।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता है?
- हां, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ महिलाओं द्वारा किया जा सकता है?
- हां, महिलाएं भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं और देवी की कृपा प्राप्त कर सकती हैं।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ समूह में किया जा सकता है?
- हां, इसे समूह में भी किया जा सकता है, लेकिन व्यक्तिगत साधना का विशेष महत्व होता है।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से भय और चिंता दूर होती है?
- हां, इस स्तोत्र के पाठ से भय और चिंता का नाश होता है और आत्म-विश्वास बढ़ता है।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं?
- हां, देवी की कृपा से यह स्तोत्र शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है।