Aditya Hraday Strot for Antiaging Fame & Victory
आदित्य ह्रदय स्तोत्र: नाम, मान सम्मान बढाने वाला
आदित्य ह्रदय स्तोत्र सूर्य देव की स्तुति में लिखा गया एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में आता है, जहां भगवान राम को ऋषि अगस्त्य द्वारा यह मंत्र युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए दिया गया था। यह स्तोत्र मनुष्य को ऊर्जा, साहस, स्वास्थ्य और विजय दिलाने के लिए जाना जाता है। इसका पाठ विशेष रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है जो कठिन परिस्थितियों में आत्मबल और मानसिक शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं।
आदित्य हृदय स्तोत्र एक प्रसिद्ध हिंदू स्तोत्र है, जो भगवान सूर्य की स्तुति करता है। यह रामायण के युद्धकांड में आता है, जहाँ महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को इसका उपदेश दिया था। इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ पर संपूर्ण आदित्य हृदय स्तोत्र और उसका अर्थ प्रस्तुत है:
आदित्य हृदय स्तोत्र व उसका अर्थ
1. ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥
अर्थ: जब भगवान राम युद्ध में थक गए थे और रावण के सामने खड़े थे, तब उन्हें महर्षि अगस्त्य का उपदेश प्राप्त हुआ।
2. दैवतानि च तत्रान्ये द्रष्टुं अभ्यागता रणम्। उपगम्याब्रवीद् रामं अगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥
अर्थ: युद्ध को देखने के लिए अन्य देवता भी वहां आए थे। तब महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को उपदेश दिया।
3. राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्। येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसि॥
अर्थ: महर्षि अगस्त्य ने कहा: “हे महाबली राम, सुनो! यह सनातन और गुप्त मंत्र है, जिससे तुम सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे।”
4. आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। जयावहं जपं नित्यमक्षय्यं परमं शिवम्॥
अर्थ: यह आदित्य हृदय स्तोत्र पवित्र, सभी शत्रुओं का नाश करने वाला, और विजय देने वाला है। इसका नियमित जप अक्षय पुण्य और परम कल्याणकारी है।
5. सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्। चिन्ताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥
अर्थ: यह सभी मंगलों का कारण है, सभी पापों का नाश करने वाला है, चिंताओं और शोक को शांत करने वाला है, और उत्तम आयु प्रदान करने वाला है।
6. रश्मिमंतं समुद्यंतं देवासुरनमस्कृतम्। पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥
अर्थ: उस सूर्यदेव की पूजा करो, जो कि सभी देवताओं और असुरों द्वारा नमस्कार किए जाते हैं, और जो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं।
7. सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः। एष देवासुरगणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव सभी देवताओं के आत्मा हैं और ये अपनी किरणों से देवताओं और असुरों सहित सभी लोकों का पालन करते हैं।
8. एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः। महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कंद, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा और वरुण के रूप में हैं।
9. पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः। वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुत, मनु, वायु, अग्नि, प्रजाप्राण, ऋतुओं के कर्ता और प्रकाशक हैं।
10. आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्। सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूषा, किरणों से युक्त, सुवर्ण के समान, भानु, हिरण्यरेता और दिवाकर हैं।
11. हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्। तिमिरोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्तण्डकोऽंशुमान्॥
अर्थ: यह सूर्यदेव हरिदश्व, सहस्रों किरणों वाले, सात अश्वों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार, अंधकार का नाश करने वाले, शंभु, त्वष्टा, मार्तण्ड, और अंशुमान हैं।
12. हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः। अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव हिरण्यगर्भ, शिशिर का नाश करने वाले, ताप देने वाले, प्रकाशक, रवि, अग्निगर्भ, अदिति के पुत्र, शंख, और शिशिर का नाश करने वाले हैं।
13. व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः। घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव आकाश के स्वामी, अंधकार को भेदने वाले, ऋग, यजुर और साम वेदों के ज्ञाता, बादलों के वर्षा कराने वाले, मित्र, और विन्ध्याचल को पार करने वाले हैं।
14. आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः। कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव ताप देने वाले, मण्डलाकार, मृत्यु स्वरूप, पिंगल वर्ण वाले, सभी को तपाने वाले, कवी, विश्वस्वरूप, महातेजस्वी, रक्त वर्ण वाले, और सभी भूतों के उद्भव के कारण हैं।
15. नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः। तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥
अर्थ: यह सूर्यदेव नक्षत्रों, ग्रहों और ताराओं के स्वामी, विश्व के रचयिता, तेजस्वियों में सर्वश्रेष्ठ, और द्वादश रूपों वाले हैं। आपको नमन है।
16. नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥
अर्थ: पूर्व की दिशा के पर्वतों को नमन है, पश्चिम की दिशा के पर्वतों को नमन है। ज्योतिर्गणों के स्वामी और दिन के अधिपति सूर्य को नमन है।
17. जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः। नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥
अर्थ: जय को, जय देने वाले को, हर्यश्व को नमन है। सहस्रों किरणों वाले आदित्य को बारंबार नमन है।
18. नमो उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः। नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः॥
अर्थ: उग्र, वीर, सारंग, पद्म को विकसित करने वाले, और मार्तण्ड (सूर्य) को नमन है।
19. नमः तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे। नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः॥
अर्थ: अंधकार को नष्ट करने वाले, प्रकाश रूप, और लोकों के साक्षी सूर्य को नमन है। यह भगवान समस्त भूतों का नाश करते हैं और उन्हें पुनः उत्पन्न करते हैं।
20. नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः। पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥
अर्थ: यह भगवान समस्त भूतों का नाश करते हैं, उन्हें पुनः उत्पन्न करते हैं, और यह अपनी किरणों से पोषण, ताप और वर्षा करते हैं।
21. एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः। एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥
अर्थ: यह सूर्यदेव सोए हुए प्राणियों में जागते रहते हैं, और अग्निहोत्र के फल देने वाले हैं।
22. वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च। यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥
अर्थ: यह सूर्यदेव वेदों
, यज्ञों, और यज्ञों के फलों के रूप में विद्यमान हैं।
23. एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च। कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥
अर्थ: हे राघव (राम), जो भी व्यक्ति संकटों, कठिनाइयों, जंगलों और भय के समय में इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह कभी दुखी नहीं होता।
24. पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्। एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥
अर्थ: एकाग्रचित्त होकर इस देवताओं के देवता, जगत के स्वामी सूर्यदेव की पूजा करो। इस स्तोत्र का तीन बार जप करने पर तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे।
25. अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि। एवमुक्त्वा तदा अगस्त्यो जगाम स यथागतम्॥
अर्थ: हे महाबली राम, इस क्षण तुम रावण को मार डालोगे। ऐसा कहकर अगस्त्य ऋषि वहां से चले गए।
26. एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा। धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥
अर्थ: यह सुनकर महातेजस्वी राम का शोक समाप्त हो गया। वे प्रसन्न होकर इस स्तोत्र को धारण कर युद्ध के लिए तैयार हुए।
27. आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्। त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥
अर्थ: आदित्य हृदय स्तोत्र का जप करके और सूर्यदेव को देखकर राम को अत्यधिक हर्ष हुआ। फिर उन्होंने शुद्ध होकर धनुष उठाया।
28. रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्। सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥
अर्थ: राम ने प्रसन्नचित्त होकर रावण को देखा और युद्ध के लिए आगे बढ़े। उन्होंने रावण के वध के लिए पूर्ण समर्पण और यत्न किया।
29. अद्यवोच्चनमिष्यामि निर्घातं समरे त्वहम्। इत्यार्षेणैतं हर्षं वत्स इष्ट्वा युयुत्सति॥
अर्थ: आज मैं इस युद्ध में रावण का वध करूंगा। इस प्रकार यह महान हर्ष प्राप्त कर राम ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
30. एवमुक्त्वा ततः प्रभ्यं समुद्धृत्य स बाणवान्। सूर्यकान्तं समाश्रित्य महावीर्यो व्यमुञ्चत्॥
अर्थ: ऐसा कहकर राम ने बाणों से युक्त धनुष उठाया और महावीर्य के साथ सूर्य की ओर देखकर बाण चलाए।
31. आदित्यहृदयं पुण्यं यः पठेत्सततं नरः। सर्वपापविनिर्मुक्तो सर्वयुद्धेषु विजयति॥
अर्थ: जो व्यक्ति नियमित रूप से आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है और सभी युद्धों में विजय प्राप्त करता है।
32. सर्वग्रामेशु विख्यातं सर्वत्र विजयी भवेत्। एतच्छ्रुत्वा महातेजा युधिष्ठिरः प्रजापतिः॥
अर्थ: यह स्तोत्र सभी गांवों में प्रसिद्ध है और सभी स्थानों पर विजय प्राप्त करता है। इसका श्रवण और पाठ करने वाला महातेजस्वी व्यक्ति सभी युद्धों में विजयी होता है।
33. सूर्यदेव की यह महिमा अद्वितीय है। यह स्तोत्र अजेय, अक्षय और परम कल्याणकारी है। यह त्रिविध दुखों का नाश करने वाला, और सभी सुखों का प्रदाता है।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र के लाभ
- शत्रुओं पर विजय प्राप्ति: इस स्तोत्र का पाठ शत्रुओं पर विजय दिलाता है।
- आयुर्वृद्धि: यह आयु को बढ़ाता है और दीर्घायु प्रदान करता है।
- मानसिक शांति: आदित्य ह्रदय का नियमित पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है।
- चिंता और तनाव से मुक्ति: यह स्तोत्र चिंता और तनाव को दूर करता है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: इस स्तोत्र का पाठ आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
- सफलता: यह स्तोत्र जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दिलाने में सहायक है।
- शारीरिक स्वास्थ्य: आदित्य ह्रदय का पाठ शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक है।
- धन की प्राप्ति: इस स्तोत्र का पाठ धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
- सूर्य देव की कृपा: इस स्तोत्र के जप से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
- संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाले संकटों से यह स्तोत्र मुक्ति दिलाता है।
- धार्मिक उन्नति: यह स्तोत्र धार्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।
- सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: आदित्य ह्रदय का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखता है।
- विपत्तियों का नाश: यह विपत्तियों और कष्टों का नाश करता है।
- प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: इस स्तोत्र का पाठ प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा दिलाता है।
- भाग्यवृद्धि: यह स्तोत्र भाग्यवृद्धि के लिए लाभकारी है।
- पारिवारिक सुख-शांति: आदित्य ह्रदय का पाठ पारिवारिक सुख-शांति बनाए रखने में सहायक है।
- व्यावसायिक उन्नति: इस स्तोत्र का पाठ व्यावसायिक क्षेत्र में उन्नति दिलाता है।
- दुर्बलताओं का नाश: यह दुर्बलताओं और कमजोरी को दूर करता है।
- ईश्वर की निकटता: आदित्य ह्रदय का पाठ ईश्वर की निकटता का अनुभव कराता है।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र विधि
मंत्र जप का दिन, अवधि, मुहुर्त
- दिन: रविवार को आदित्य ह्रदय का पाठ विशेष रूप से प्रभावकारी माना जाता है।
- अवधि: आदित्य ह्रदय का पाठ 21 दिनों तक नियमित रूप से किया जाना चाहिए।
- मुहुर्त: प्रातः काल सूर्योदय के समय आदित्य ह्रदय का पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र के नियम
- शुद्धता: पाठ से पहले और बाद में शुद्धता का पालन करें।
- सूर्य की उपासना: पाठ के दौरान सूर्य की उपासना करें और सूर्य को अर्घ्य दें।
- सात्विक आहार: सात्विक आहार का पालन करें और तामसिक आहार से बचें।
- नियमितता: इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
- श्रद्धा और भक्ति: आदित्य ह्रदय का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र सावधानी
- पवित्रता का ध्यान रखें: आदित्य ह्रदय का पाठ करते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
- वाणी की शुद्धता: पाठ के दौरान वाणी की शुद्धता बनाए रखें।
- अनुशासन: इस स्तोत्र के पाठ में अनुशासन का पालन करना आवश्यक है।
- नियमितता न छोड़ें: एक बार पाठ आरम्भ करने के बाद इसे नियमित रूप से पूरा करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र से संबंधित सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर
आदित्य हृदय स्तोत्र क्या है?
- आदित्य हृदय स्तोत्र एक प्राचीन हिंदू स्तोत्र है, जो भगवान सूर्य (आदित्य) की स्तुति में लिखा गया है। यह रामायण के युद्धकांड में आता है।
इस स्तोत्र की रचना किसने की?
- आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना महर्षि अगस्त्य ने की थी। उन्होंने इसे भगवान श्रीराम को युद्ध के दौरान सुनाया था।
आदित्य हृदय स्तोत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- इसका मुख्य उद्देश्य भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करना, जीवन में ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ाना, और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना है।
इस स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल में सूर्योदय के समय करना सबसे शुभ माना जाता है।
क्या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से लाभ होता है?
- हाँ, आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
क्या यह स्तोत्र किसी विशेष दिन पर ही पढ़ना चाहिए?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन किया जा सकता है, लेकिन रविवार को इसका पाठ विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
क्या इसे घर पर किया जा सकता है या मंदिर जाना चाहिए?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ घर पर ही किया जा सकता है, लेकिन इसे मंदिर में भी पढ़ा जा सकता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ के लिए कोई विशेष विधि है?
- इस स्तोत्र का पाठ करते समय शुद्ध वस्त्र पहनकर, शांत और एकांत स्थान पर बैठकर पाठ करना चाहिए।
क्या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय करना सबसे उत्तम माना जाता है, लेकिन इसे किसी भी समय किया जा सकता है।
इस स्तोत्र के पाठ से कौन से रोगों में लाभ मिलता है?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से मानसिक और शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है, जैसे तनाव, चिंता, और अन्य मानसिक विकार।
क्या आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ के लिए कोई विशेष पूजा की आवश्यकता होती है?
- नहीं, केवल स्तोत्र का पाठ करना पर्याप्त है, लेकिन यदि आप चाहें तो सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा कर सकते हैं।
क्या इसे बच्चे भी पढ़ सकते हैं?
- हाँ, बच्चे भी आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
क्या स्तोत्र का पाठ किसी विशिष्ट समस्या के समाधान के लिए किया जा सकता है?
- हाँ, इसे विशेष रूप से शत्रु निवारण, आत्मबल वृद्धि, और मानसिक शांति के लिए पढ़ा जाता है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है?
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि को आकर्षित करने में सहायक माना जाता है।
इस स्तोत्र का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
- आप इसे एक बार, तीन बार या 108 बार कर सकते हैं, लेकिन नियमपूर्वक और श्रद्धा से करना अधिक महत्वपूर्ण है।