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Anant Chaturdashi Vrat – Path to Prosperity

अनंत चतुर्दशी व्रत – सुख-समृद्धि का मार्ग और संपूर्ण कथा

अनंत चतुर्दशी व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र त्योहार माना जाता है। यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा होती है। अनंत चतुर्दशी का त्योहार धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इसे अनंत भगवान की कृपा प्राप्ति का पर्व माना जाता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत मंत्र व उसका अर्थ

अनंत चतुर्दशी व्रत मंत्र:

“ॐ ऐं श्रीं लक्ष्मी नारायणाय नमो नमः”

मंत्र का अर्थ:

  • ॐ: यह बीज मंत्र ब्रह्मांड की अनंत शक्ति का प्रतीक है। यह परमात्मा का स्वरूप है।
  • ऐं: यह सरस्वती का बीज मंत्र है, जो ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। यह हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है।
  • श्रीं: यह लक्ष्मी का बीज मंत्र है, जो धन, समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है।
  • लक्ष्मी नारायणाय: यह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। भगवान विष्णु को “नारायण” के रूप में जाना जाता है, और लक्ष्मी उनकी शक्ति हैं।
  • नमो नमः: इसका अर्थ है “मैं बार-बार नमन करता हूँ।” यह परमात्मा के प्रति गहरी श्रद्धा और समर्पण का भाव व्यक्त करता है।

संपूर्ण अर्थ:

यह मंत्र भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करता है। इसमें उनके प्रति आस्था, ज्ञान, और समृद्धि की कामना की जाती है। इस मंत्र के जाप से भगवान विष्णु और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र जीवन में सुख-शांति, धन, और ज्ञान की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। अनंत चतुर्दशी व्रत के दौरान इस मंत्र का जाप करने से अनंत भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व

अनंत चतुर्दशी व्रत करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। इसे करने से सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। अनंत चतुर्दशी का व्रत संतान प्राप्ति और वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने के लिए भी किया जाता है। इस व्रत से भक्तों को भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।

Lakshmi-Ganesha Pujan shivir on anant chaturdashi

किस देवी-देवता की पूजा करें?

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। साथ ही, गणेश जी की भी पूजा की जाती है, क्योंकि अनंत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन का दिन भी होता है। इस दिन अनंत धागा धारण करने की भी परंपरा है।

व्रत में क्या खाएं, क्या न खाएं?

व्रत में साधारण फलाहार किया जाता है। व्रतधारी फल, दूध, दही, साबूदाना, और कुट्टू का आटा खा सकते हैं। प्याज, लहसुन, अनाज, और तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित है। व्रत का पालन सादगी और शुद्धता से करना चाहिए।

व्रत का समय कब से कब तक?

अनंत चतुर्दशी का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होकर चतुर्दशी तिथि की समाप्ति तक रखा जाता है। इस व्रत को करने से पहले सूर्योदय के समय स्नान कर पूजा की जाती है।

अनंत चतुर्दशी व्रत से 12 लाभ

  1. भगवान विष्णु की कृपा से सभी दुख दूर होते हैं।
  2. जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  3. संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  4. वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।
  5. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  6. आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  7. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  8. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  9. कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
  10. पापों का नाश होता है।
  11. मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  12. परिवार में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत के नियम

  1. सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत प्रारंभ करें।
  2. व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करें।
  3. अनंत धागा धारण करें।
  4. व्रत में फलाहार का सेवन करें।
  5. पूरे दिन मन और वचन से पवित्र रहें।
  6. तामसिक भोजन और विचारों से दूर रहें।
  7. किसी प्रकार का क्रोध न करें।
  8. दूसरों की मदद करें।
  9. व्रत के दौरान ईश्वर का ध्यान करें।
  10. रात को जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
  11. अगली सुबह व्रत का पारण करें।
  12. व्रत का पारण केवल शुद्ध भोजन से करें।

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अनंत चतुर्दशी की संपूर्ण कथा

प्राचीन समय की बात है, जब सुमंत नाम के एक ब्राह्मण ऋषि थे। सुमंत अत्यंत विद्वान और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। उनकी पत्नी दीक्षा भी धर्मपरायण थीं। सुमंत और दीक्षा की एक सुंदर और गुणवान बेटी थी, जिसका नाम शीला था। शीला के गुणों और सौंदर्य की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी।

जब शीला विवाह योग्य हो गई, तो सुमंत ने उसके लिए योग्य वर की खोज शुरू की। उन्होंने कौंडिन्य नामक एक विद्वान ब्राह्मण को शीला के लिए वर के रूप में चुना। शीला और कौंडिन्य का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण था।

एक दिन शीला ने एक वृद्ध महिला से अनंत चतुर्दशी व्रत के बारे में सुना। वृद्ध महिला ने उसे बताया कि इस व्रत को करने से जीवन में सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। साथ ही, भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है। शीला ने इस व्रत को करने का निश्चय किया और पूरी श्रद्धा के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत किया।

व्रत के दौरान शीला ने भगवान विष्णु की पूजा की और अनंत धागा धारण किया। यह धागा एक धागा था, जिसमें चौदह गांठें लगी थीं। यह धागा भगवान विष्णु के अनंत रूप का प्रतीक था। शीला ने यह धागा अपने हाथ में बांधा और पूरे मन से भगवान की आराधना की।

अनंत धागा तोड़ने की घटना और परिणाम

कुछ समय बाद कौंडिन्य ने शीला के हाथ में अनंत धागा देखा। उन्होंने इस धागे का महत्व नहीं समझा और इसे तुच्छ समझा। कौंडिन्य ने क्रोध में आकर धागा तोड़ दिया और उसे आग में फेंक दिया। शीला ने अपने पति को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माने।

धागा तोड़ने के बाद कौंडिन्य और शीला के जीवन में दुख और कठिनाइयां आने लगीं। उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी और घर में कलह होने लगी। कौंडिन्य ने शीला को इसके लिए दोषी ठहराया। उन्होंने शीला को छोड़ने का निर्णय लिया और जंगल की ओर चल पड़े।

जंगल में भटकते हुए कौंडिन्य को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि उनके जीवन में आई कठिनाइयों का कारण अनंत धागा तोड़ना था। कौंडिन्य ने अपने कृत्य पर पछताया और भगवान विष्णु से क्षमा याचना करने का निर्णय लिया। उन्होंने सच्चे मन से अनंत भगवान की आराधना की और क्षमा की प्रार्थना की।

भगवान विष्णु ने कौंडिन्य की सच्ची भक्ति और पश्चाताप से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने कौंडिन्य को बताया कि अनंत चतुर्दशी व्रत के दिन अनंत धागा धारण करने से अनंत सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। धागा तोड़ने से जीवन में कठिनाइयां आती हैं। भगवान ने कौंडिन्य को क्षमा किया और उन्हें आशीर्वाद दिया।

कौंडिन्य ने अनंत भगवान की कृपा से फिर से अपने जीवन में सुख-शांति प्राप्त की। वे शीला के पास लौट आए और दोनों ने मिलकर अनंत चतुर्दशी का व्रत पुनः किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके जीवन की सभी कठिनाइयां समाप्त हो गईं और उन्हें अनंत सुख की प्राप्ति हुई।

इस प्रकार, अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे करने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है। जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। यह व्रत संतान सुख, आर्थिक समृद्धि और वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने वाला है। इसलिए, अनंत चतुर्दशी का व्रत श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। अनंत भगवान की कृपा से सभी संकटों का समाधान होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत भोग

अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु को फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर मिलाई जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में मोदक का भी महत्व है, विशेषकर गणेश विसर्जन के समय।

सावधानी

  1. व्रत के दौरान मन और वचन की पवित्रता बनाए रखें।
  2. अनंत धागा पूरी श्रद्धा से धारण करें।
  3. पूजा विधि को सही तरीके से पालन करें।
  4. किसी प्रकार का अहंकार या बुरा विचार मन में न आने दें।
  5. व्रत के दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरतें।

प्रश्न: अनंत चतुर्दशी व्रत क्यों करते हैं?

उत्तर: अनंत चतुर्दशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न: अनंत चतुर्दशी पर किसकी पूजा होती है?

उत्तर: इस दिन भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा की जाती है।

प्रश्न: व्रत के दौरान क्या खाया जा सकता है?

उत्तर: व्रत में फल, दूध, दही, और साबूदाना खाया जा सकता है।

प्रश्न: व्रत का समय कब से कब तक होता है?

उत्तर: व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होकर चतुर्दशी तिथि की समाप्ति तक चलता है।

प्रश्न: व्रत करने से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर: व्रत से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं।

प्रश्न: व्रत में किन चीजों से बचना चाहिए?

उत्तर: व्रत में अनाज, प्याज, लहसुन, और तामसिक भोजन से बचना चाहिए।

प्रश्न: अनंत धागा क्या होता है?

उत्तर: अनंत धागा एक पवित्र धागा होता है जिसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए धारण किया जाता है।

प्रश्न: व्रत का पारण कब और कैसे करें?

उत्तर: व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद शुद्ध भोजन से करें।

प्रश्न: अनंत चतुर्दशी की कथा क्या है?

उत्तर: अनंत चतुर्दशी की कथा में कौंडिन्य ऋषि ने अनंत भगवान की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर किया।

प्रश्न: व्रत के दौरान कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?

उत्तर: व्रत में पूजा, अनंत धागा धारण, फलाहार और पवित्रता का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: व्रत में कौन से भोग लगाए जाते हैं?

उत्तर: भगवान विष्णु को फल, मिठाई, पंचामृत, और मोदक का भोग लगाया जाता है।

प्रश्न: व्रत के समय कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए?

उत्तर: व्रत के दौरान मन की पवित्रता, पूजा विधि का सही पालन और लापरवाही से बचना चाहिए।

प्रश्न: व्रत के लिए कौन से दिन अनुकूल होते हैं?

उत्तर: अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है, जो शुभ और पवित्र मानी जाती है।

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