योगिनी एकादशी व्रत- पाप नष्ट कर अध्यात्मिक उन्नति करे
योगिनी एकादशी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है जिसे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति दिलाने और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है। योगिनी एकादशी का वर्णन पुराणों में विशेष स्थान रखता है और इसे सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का व्रत माना जाता है।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को योगिनी एकादशी की कथा सुनाई। इस कथा के अनुसार, अलकापुरी नगरी में कुबेर नामक राजा का राज्य था। कुबेर शिव जी के परम भक्त थे और उनका एक माली था, जिसका नाम हेममाली था। हेममाली का कार्य राजा के लिए पूजा हेतु पुष्प लाना था।
हेममाली का विवाह विशालाक्षी नामक स्त्री से हुआ था। वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता था। एक दिन, हेममाली अपनी पत्नी के साथ समय बिताने में इतना खो गया कि वह राजा के लिए पुष्प लाना भूल गया। राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाया, लेकिन जब उसे पता चला कि वह अपने कर्तव्यों में लापरवाही कर रहा है, तो वह अत्यंत क्रोधित हो गया।
राजा का श्राप और हेममाली की पीड़ा
क्रोध में आकर, राजा कुबेर ने हेममाली को श्राप दिया। राजा ने कहा कि वह कुष्ठ रोग से ग्रस्त होकर वन में भटकता रहेगा और अपने पापों का प्रायश्चित करेगा। श्राप मिलते ही, हेममाली का शरीर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। उसकी अवस्था दयनीय हो गई, और वह दुखी होकर वन में चला गया।
हेममाली ने कई दिनों तक दुख सहा और पीड़ा में भटकता रहा। एक दिन, वह महर्षि मार्कंडेय के आश्रम में पहुंचा और अपनी सारी व्यथा सुनाई। महर्षि मार्कंडेय ने उसकी समस्या को समझा और उसे समाधान का मार्ग बताया।
महर्षि मार्कंडेय की सलाह और हेममाली का उद्धार
महर्षि मार्कंडेय ने हेममाली को योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस व्रत से सारे पाप धुल जाते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती है।
योगिनी एकादशी व्रत की विधि
योगिनी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत की विधि निम्नलिखित है:
व्रत की पूर्व संध्या
- स्नान और शुद्धता: व्रत की पूर्व संध्या को स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और मन को शुद्ध एवं पवित्र रखें।
- संकल्प: संध्याकाल में भगवान विष्णु की पूजा करें और अगले दिन एकादशी व्रत का संकल्प लें।
व्रत के दिन
- स्नान और पूजा: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें तुलसी दल, फल, पुष्प, धूप-दीप आदि अर्पित करें।
- व्रत का पालन: दिनभर निराहार (बिना अन्न ग्रहण किए) रहें और भगवान विष्णु के नाम का जाप करें। यदि संभव हो तो निर्जल व्रत रखें, अन्यथा जल और फलाहार ले सकते हैं।
- ध्यान और कथा: दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान करें और योगिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
- सत्संग और सेवा: इस दिन सत्संग का आयोजन करें और गरीबों, जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
- रात्रि जागरण: रात्रि में भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहें और जागरण करें।
- मंत्रः “ॐ ह्रीं योगिनेश्वरी क्लीं विष्णुवे नमः” “OM HREEM YOGINESHWARI KLEEM VISHNUVE NAMAHA”
व्रत के अगले दिन (द्वादशी)
- पारणा: द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पूजा करें और व्रत का पारण करें। पारण के समय भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
योगिनी एकादशी व्रत का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के लाभ पहुंचाता है:
- पापों से मुक्ति: इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: योगिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं।
- धन और समृद्धि: इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
- सुख-शांति: यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
- भक्ति और श्रद्धा: इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति की भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
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योगिनी एकादशी व्रत के नियम
योगिनी एकादशी व्रत के कुछ विशेष नियम होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक होता है:
- अहिंसा: इस दिन अहिंसा का पालन करें और किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहें।
- सात्विक भोजन: यदि फलाहार करना हो तो सात्विक और शुद्ध भोजन का सेवन करें।
- व्रत की शुद्धता: व्रत के दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें।
- सत्य व्रत: इस दिन असत्य भाषण, छल-कपट आदि से दूर रहें और सत्य का पालन करें।
- भक्ति और ध्यान: भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहें और अधिक से अधिक समय ध्यान और जाप में बिताएं।
अंत मे
योगिनी एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है और यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। अतः योगिनी एकादशी व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए और इसके समस्त लाभ प्राप्त करने के लिए नियमों का पालन करना आवश्यक है।