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Neelkanth Mahadev Kavach Path Evil Power

नीलकंठ कवच पाठ- शत्रु व बुरी शक्तियों से बचाने वाले

शिव के स्वरूप नीलकंठ कवच पाठ शक्तिशाली कवच है। यह कवच नकारात्मक ऊर्जा, शत्रुओं, बुरी शक्तियों और विषैले प्रभावों से रक्षा करता है। नीलकंठ शिव का वह स्वरूप है जिसमें उन्होंने समुद्र मंथन के समय निकले विष का पान किया था और अपने गले में धारण कर लिया था। इसीलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है।

संपूर्ण नीलकंठ कवचम् पाठ व उसका अर्थ

नीलकंठ कवचम् भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप का एक शक्तिशाली तांत्रिक कवच है। यह कवच विषैले प्रभावों, बुरी शक्तियों, शत्रुओं, और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है। भगवान शिव का नीलकंठ स्वरूप समुद्र मंथन के समय प्रकट हुआ था, जब उन्होंने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष का पान किया था। इस विष के प्रभाव से उनका गला नीला हो गया, जिससे उन्हें नीलकंठ कहा जाता है।

नीलकंठ कवचम् के श्लोक और उनका अर्थ

विनियोग

ॐ अस्य श्रीनीलकण्ठ कवचस्य ऋषिः ऋभुः, छन्दः अनुष्टुप्, देवता श्रीनीलकण्ठः, बीजं शिवः, शक्तिः पशुपतिः, कीलकं महेश्वरः, विनियोगः सर्वरोग निवारण, सर्वशत्रु नाशन, सर्वविष शमनार्थे पाठे विनियोगः।

अर्थ: इस नीलकंठ कवच का ऋषि ऋभु हैं, इसका छंद अनुष्टुप् है, और इसकी देवता भगवान नीलकंठ (शिव) हैं। इसका उपयोग सभी रोगों के निवारण, शत्रुओं के नाश, और विष के शमन के लिए किया जाता है।

नीलकंठ कवचम्

ॐ नीलकण्ठः शिरः पातु , फालं चन्द्रशेखरः।
नयने मे शिवः पातु, कर्णौ पातु महेश्वरः।

अर्थ: भगवान नीलकंठ मेरे सिर की रक्षा करें, चन्द्रशेखर (शिव) मेरे माथे की रक्षा करें। शिव मेरी आँखों की रक्षा करें, महेश्वर मेरे कानों की रक्षा करें।

नासिकायां सदाशिवः, मुखं पातु वृषध्वजः।
जिह्वां पातु महादेवः, दन्तान् पातु त्रिलोचनः।

अर्थ: सदाशिव मेरी नाक की रक्षा करें, वृषध्वज (ध्वज पर वृषभ धारण करने वाले शिव) मेरे मुख की रक्षा करें। महादेव मेरी जिह्वा की रक्षा करें, त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले शिव) मेरे दांतों की रक्षा करें।

स्कन्धौ पातु पशुपति, भुजौ मे पार्वतीपतेः।
हृदयं शंकरः पातु, नाभिं पातु शिवप्रियः।

अर्थ: पशुपति मेरे कंधों की रक्षा करें, पार्वतीपति (पार्वती के पति शिव) मेरे भुजाओं की रक्षा करें। शंकर मेरे हृदय की रक्षा करें, शिवप्रिय (पार्वती के प्रिय शिव) मेरी नाभि की रक्षा करें।

कटिं पातु जगद्व्यापी, ऊरू मे हरिः प्रभुः।
जानुनी मे जटाधारी, जङ्घे पातु कपर्दकः।

अर्थ: जगद्व्यापी (संपूर्ण जगत में व्याप्त शिव) मेरी कमर की रक्षा करें, हरि (शिव) मेरी जांघों की रक्षा करें। जटाधारी (जटा धारण करने वाले शिव) मेरे घुटनों की रक्षा करें, कपर्दक (मस्तक पर जटा धारण करने वाले शिव) मेरी जंघाओं की रक्षा करें।

गुल्फौ पातु गणाधीशः, पादौ विश्वेश्वरः प्रभुः।
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु, नीलकण्ठो निरन्तरम्।

अर्थ: गणाधीश (गणों के स्वामी शिव) मेरे टखनों की रक्षा करें, विश्वेश्वर (संपूर्ण विश्व के ईश्वर शिव) मेरे पैरों की रक्षा करें। नीलकंठ मेरे सभी अंगों की हमेशा रक्षा करें।

इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम्।
भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं सर्वसिद्धिदम्।

अर्थ: हे देवी, इस प्रकार मैंने तुम्हें यह परम अद्भुत कवच बताया है, जो भूत-प्रेत-पिशाचों का नाश करता है और सभी सिद्धियाँ प्रदान करता है।

यः पठेत्प्रातरुत्थाय नित्यं श्रद्धासमन्वितः।
तस्य वै भूतप्रेतादि न कदाचित्प्रवर्तते।

अर्थ: जो व्यक्ति नित्य श्रद्धापूर्वक प्रातः उठकर इस कवच का पाठ करता है, उस पर कभी भी भूत-प्रेत आदि का प्रभाव नहीं होता।

रोगाः सर्वे प्रणश्यन्ति विषं विद्रवते तथा।
दुष्टभूताः पलायन्ते सर्वत्र विजय भवेत्।

अर्थ: इसके पाठ से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं, विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है, दुष्ट भूत भाग जाते हैं, और साधक को सर्वत्र विजय प्राप्त होती है।

    नीलकंठ कवचम् के लाभ

    1. विषैले प्रभावों से सुरक्षा: यह कवच विषैले प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करता है।
    2. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: जीवन से नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है।
    3. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं के दुष्प्रभावों से बचाव करता है।
    4. मानसिक शांति: मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है।
    5. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ावा देता है।
    6. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।
    7. रोगों से मुक्ति: विभिन्न रोगों और बीमारियों से बचाव करता है।
    8. आकस्मिक दुर्घटनाओं से सुरक्षा: आकस्मिक दुर्घटनाओं और अनहोनी से बचाव करता है।
    9. सुख और समृद्धि: जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।
    10. भगवान शिव की कृपा: भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
    11. ध्यान की गहराई: साधक के ध्यान में गहराई आती है।
    12. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    13. मृत्यु भय का नाश: मृत्यु के भय का नाश करता है।

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    नीलकंठ कवचम् विधि

    नीलकंठ कवचम् का पाठ करने से पहले साधक को स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल को शुद्ध कर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और धूप-दीप से शिव का पूजन करें। कवच पाठ सोमवार से आरंभ करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। अवधि ४१ दिन की होती है, और नियमित पाठ एक ही समय पर करना चाहिए। मुहूर्त के लिए ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) सबसे अच्छा है।

    Shiva Navdurga Puja

    नीलकंठ कवचम् नियम

    1. पूजा विधि: शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र अर्पण करें।
    2. साधना को गुप्त रखें: साधना के बारे में किसी से चर्चा न करें।
    3. समर्पण और श्रद्धा: साधना पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ करें।
    4. व्रत का पालन: साधक को साधना के दौरान सोमवार का व्रत रखना चाहिए।
    5. शुद्ध आहार: शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करें, मांसाहार और शराब से बचें।

    नीलकंठ कवचम् सावधानी

    1. नियमों का पालन करें: साधना के नियमों का सख्ती से पालन करें।
    2. अधूरी साधना न करें: साधना को अधूरा न छोड़ें, यह हानिकारक हो सकता है।
    3. शुद्धता बनाए रखें: मन, वचन, और आचरण में शुद्धता बनाए रखें।
    4. शांति और स्थिरता: साधना के समय मन को शांत और स्थिर रखें।
    5. दिव्य शक्तियों का सम्मान: कवच का दुरुपयोग न करें, केवल आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए इसका प्रयोग करें।

    नीलकंठ कवचम् पाठ प्रश्न उत्तर

    1. प्रश्न: नीलकंठ कवचम् क्या है?
      उत्तर: नीलकंठ कवचम् भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप का तांत्रिक कवच है।
    2. प्रश्न: इसका मुख्य उद्देश्य क्या है?
      उत्तर: मुख्य उद्देश्य विषैले प्रभावों से सुरक्षा और आध्यात्मिक उन्नति है।
    3. प्रश्न: इस कवच का पाठ कब शुरू करना चाहिए?
      उत्तर: सोमवार से पाठ शुरू करना शुभ होता है।
    4. प्रश्न: साधना की अवधि कितनी होती है?
      उत्तर: साधना की अवधि ४१ दिन होती है।
    5. प्रश्न: साधना के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?
      उत्तर: साधना को गुप्त रखें और नियमों का पालन करें।
    6. प्रश्न: कवच का पाठ करने का समय क्या होना चाहिए?
      उत्तर: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) में पाठ करना उचित है।
    7. प्रश्न: इस कवच के कितने लाभ होते हैं?
      उत्तर: कवच के १३ लाभ होते हैं, जैसे विष से सुरक्षा, आत्मविश्वास में वृद्धि।
    8. प्रश्न: क्या नीलकंठ कवचम् का उपयोग सभी कर सकते हैं?
      उत्तर: हाँ, लेकिन पूरी श्रद्धा और नियमों का पालन आवश्यक है।
    9. प्रश्न: साधना के लिए कौन-सा आहार ग्रहण करना चाहिए?
      उत्तर: सात्विक और शुद्ध आहार ग्रहण करना चाहिए।
    10. प्रश्न: क्या नीलकंठ कवचम् का दुरुपयोग संभव है?
      उत्तर: हाँ, दुरुपयोग से नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
    11. प्रश्न: इस कवच का पाठ करने से क्या रोगों से मुक्ति मिलती है?
      उत्तर: हाँ, यह कवच विभिन्न रोगों से मुक्ति दिला सकता है।
    12. प्रश्न: क्या नीलकंठ कवचम् का पाठ किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया जा सकता है?
      उत्तर: हाँ, विषैले प्रभावों से सुरक्षा और आत्म-सुरक्षा के लिए किया जा सकता है।
    13. प्रश्न: साधना के दौरान क्या ध्यान रखना चाहिए?
      उत्तर: साधना को पूर्ण एकाग्रता, श्रद्धा और समर्पण के साथ करें।

    BOOK (29-30 MARCH 2025) PRATYANGIRA SADHANA SHIVIR AT DIVYAYOGA ASHRAM (ONLINE/ OFFLINE)

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