Shashti Devi Vrat – Child Protection Puja
षष्ठी देवी व्रत: संतान सुरक्षा के लिये पूजा विधि, मुहूर्त, लाभ और कथा
षष्ठी देवी व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। इस व्रत को विशेष रूप से संतान प्राप्ति, संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। षष्ठी देवी को संतान की रक्षक माना जाता है और इस व्रत की पूजा विधि भी अत्यंत सरल है। इस व्रत को करने से महिलाओं को मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और देवी का आशीर्वाद मिलता है।
व्रत का मुहूर्त
षष्ठी देवी व्रत आमतौर पर हर महीने की षष्ठी तिथि को किया जाता है। व्रत का शुभ मुहूर्त सूर्य उदय से पहले शुरू होता है और सूर्योदय के समय व्रत की पूजा की जाती है। खासकर, यह व्रत चैत्र, कार्तिक और मार्गशीर्ष महीने में अधिक महत्वपूर्ण होता है। व्रत करने से पहले, पंचांग देखकर मुहूर्त की सही जानकारी अवश्य लें।
षष्ठी देवी व्रत कैसे करें?
व्रत करने से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजन स्थल को साफ कर षष्ठी देवी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। धूप, दीप, अक्षत, फूल, रोली, और नैवेद्य अर्पित करें।
षष्ठी देवी व्रत का मंत्र:
ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै नमः।
इस मंत्र का 108 बार जाप करें और देवी से संतान सुख की कामना करें। पूजा के बाद व्रत कथा का पाठ करें और प्रसाद बांटें।
व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं
व्रत में फलाहार करें। इसमें फल, दूध, दही, मेवा, और मखाना खाया जा सकता है। अनाज और नमक का सेवन वर्जित होता है। कई लोग इस दिन विशेष फलाहारी भोजन जैसे साबूदाने की खिचड़ी, सिंघाड़े के आटे की रोटी, और आलू की सब्जी भी ग्रहण करते हैं। व्रत के दौरान तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन) से बचना चाहिए।
षष्ठी देवी व्रत रखने के अद्भुत लाभ
- संतान प्राप्ति का आशीर्वाद।
- संतान की लंबी आयु।
- परिवार में शांति और सुख-समृद्धि।
- मनोवांछित फल की प्राप्ति।
- स्वास्थ्य में सुधार।
- मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धि।
- विवाह में आने वाली बाधाओं का निवारण।
- आर्थिक तंगी से छुटकारा।
- दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य।
- समाजिक मान-सम्मान की वृद्धि।
- कार्यक्षेत्र में सफलता।
- विपत्तियों से सुरक्षा।
- मनोकामनाओं की पूर्ति।
- देवता और पूर्वजों का आशीर्वाद।
- रोगों से मुक्ति।
- सुखमय गृहस्थ जीवन।
- बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा।
व्रत करने के महत्वपूर्ण नियम
- व्रत के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें।
- शुद्ध भाव से पूजा करें और दिनभर उपवास रखें।
- पूजा के समय लाल वस्त्र पहनें।
- व्रत के दौरान क्रोध, झूठ और अहंकार से दूर रहें।
- व्रत कथा को परिवार के साथ मिलकर सुनें।
षष्ठी देवी व्रत की संपूर्ण कथा
प्राचीन काल में, एक गरीब ब्राह्मण परिवार में पति-पत्नी रहते थे। उनका जीवन गरीबी में बीत रहा था, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चिंता थी कि उनके कोई संतान नहीं थी। संतान की कमी से वे अत्यंत दुखी रहते थे और हर दिन ईश्वर से संतान प्राप्ति की प्रार्थना करते थे।
एक दिन, ब्राह्मण ने संतान प्राप्ति के लिए कई स्थानों पर यज्ञ और पूजा करवाई, लेकिन कोई फल नहीं मिला। वे हर उपाय विफल होते देख निराश हो गए। उनके मन में यही सवाल था कि आखिर उन्हें संतान क्यों नहीं मिल रही है।
एक दिन, ब्राह्मण और उनकी पत्नी ने गांव के एक ज्ञानी साधु से मिलने का निश्चय किया। साधु ने उनकी समस्या सुनकर उन्हें बताया कि यदि वे षष्ठी देवी का व्रत करेंगे, तो उनकी संतान प्राप्ति की मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। साधु ने उन्हें षष्ठी देवी की पूजा-विधि और व्रत की विधि विस्तार से समझाई और बताया कि षष्ठी देवी संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं।
साधु के निर्देशानुसार, ब्राह्मण और उनकी पत्नी ने षष्ठी देवी का व्रत रखा। उन्होंने पूरी श्रद्धा से देवी की पूजा की और उपवास रखा। पूजा के दौरान उन्होंने षष्ठी देवी का मंत्र “ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै नमः” का जाप किया। कुछ ही समय बाद, उनकी पत्नी गर्भवती हो गई। ब्राह्मण दंपति बहुत प्रसन्न हुए और देवी का आभार मानने लगे।
व्रत में क्या भोग लगाएं
षष्ठी देवी को फल, दूध, दही, और मिठाई का भोग लगाएं। विशेष रूप से हलवा, लड्डू, और खीर का प्रसाद बनाएं। प्रसाद को श्रद्धापूर्वक देवी को अर्पित करें और परिवार के सभी सदस्यों में बांटें।
व्रत करने का प्रारंभ और समापन
व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले की जाती है और संध्या के समय पूजा के बाद इसे समाप्त किया जाता है। व्रत को विधिपूर्वक समाप्त करने के बाद फल और प्रसाद ग्रहण करें। व्रत समाप्ति के समय पंचोपचार पूजन और देवी की आरती करें।
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व्रत के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- व्रत के दौरान कोई भी तामसिक आहार न लें।
- मन में किसी के प्रति द्वेष और ईर्ष्या का भाव न रखें।
- व्रत के समय व्रत कथा और मंत्रों का श्रद्धा पूर्वक जाप करें।
- यदि संभव हो तो व्रत के दिन जरूरतमंदों को दान दें।
षष्ठी देवी व्रत से जुड़े पूछे जाने वाले सवाल
H3: प्रश्न 1: षष्ठी देवी व्रत क्या है?
उत्तर:षष्ठी देवी व्रत एक धार्मिक उपवास है, जिसे संतान प्राप्ति और संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसे माताएं विशेष रूप से करती हैं ताकि उनकी संतान दीर्घायु और स्वस्थ रहें।
H3: प्रश्न 2: षष्ठी देवी का प्रमुख मंत्र क्या है?
उत्तर:षष्ठी देवी का प्रमुख मंत्र है:
“ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै नमः।“
इस मंत्र का जाप व्रत के दिन पूजा के दौरान करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
H3: प्रश्न 3: षष्ठी देवी व्रत किस दिन किया जाता है?
उत्तर:यह व्रत हर महीने की षष्ठी तिथि को किया जाता है, लेकिन विशेष रूप से चैत्र, कार्तिक और मार्गशीर्ष महीने में इस व्रत का अधिक महत्त्व होता है।
H3: प्रश्न 4: क्या इस व्रत को पुरुष भी कर सकते हैं?
उत्तर:हालांकि यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन पुरुष भी अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को कर सकते हैं।
H3: प्रश्न 5: व्रत के दौरान क्या भोजन करना चाहिए?
उत्तर:व्रत में फल, दूध, दही, मेवा, मखाना, और फलाहारी व्यंजन जैसे साबूदाने की खिचड़ी या सिंघाड़े के आटे की रोटी खाई जा सकती है। अनाज और नमक का सेवन नहीं किया जाता।
H3: प्रश्न 6: व्रत के दौरान कौन-से खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए?
उत्तर:व्रत के दौरान तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांस, मछली और अनाज का सेवन वर्जित है। साथ ही, अत्यधिक तला-भुना भोजन भी नहीं खाना चाहिए।
H3: प्रश्न 7: षष्ठी देवी व्रत की कथा क्या है?
उत्तर:व्रत कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए षष्ठी देवी की पूजा की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस कथा का पाठ व्रत के दौरान करना अनिवार्य होता है।
H3: प्रश्न 8: क्या व्रत की पूजा घर पर की जा सकती है?
उत्तर:हाँ, व्रत की पूजा घर पर की जा सकती है। पूजा स्थल को स्वच्छ कर षष्ठी देवी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और नियमपूर्वक पूजा करें।
H3: प्रश्न 9: व्रत करने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:व्रत करने से संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, और पारिवारिक शांति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, व्रत से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
H3: प्रश्न 10: व्रत की समाप्ति कैसे करनी चाहिए?
उत्तर:व्रत की समाप्ति पूजा और आरती के बाद की जाती है। व्रत समाप्त करने के बाद फल और प्रसाद ग्रहण करें। व्रत समाप्ति के समय देवी की आरती अवश्य करें।
H3: प्रश्न 11: क्या व्रत के दौरान दान देना अनिवार्य है?
उत्तर:दान देना अनिवार्य तो नहीं है, लेकिन व्रत के दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
H3: प्रश्न 12: क्या व्रत के दौरान नियमों का पालन न करने पर व्रत का फल नहीं मिलेगा?
उत्तर:व्रत का फल पूरी श्रद्धा और समर्पण से मिलता है। यदि किसी कारणवश किसी नियम का पालन नहीं हो पाता है, तो मन में क्षमा याचना कर देवी की पूजा करें।