स्वर्णावती यक्षिणी मंत्र: भौतिक और आध्यात्मिक सुख का अद्भुत स्रोत
स्वर्णावती यक्षिणी मंत्र भौतिक सुखों को प्राप्त करने, व्यापार वृद्धि, सांसारिक समृद्धि, आर्थिक उन्नति, और जीवन में सफलता के लिए शक्तिशाली साधना है। यह मंत्र सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर व्यक्ति के जीवन में खुशहाली लाता है।
विनियोग मंत्र और उसका अर्थ
मंत्र:ॐ अस्य श्रीस्वर्णावती यक्षिणी मंत्रस्य, बृहस्पति ऋषिः, गायत्री छन्दः, स्वर्णावती यक्षिणी देवता, आर्थिक समृद्धि सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
अर्थ:
यह विनियोग मंत्र स्वर्णावती यक्षिणी साधना को आरंभ करने से पहले उच्चारित किया जाता है। इसमें ऋषि, छंद, और देवता का ध्यान करते हुए साधना का उद्देश्य बताया गया है।
यह मंत्र साधना को पूर्णता और सिद्धि प्रदान करने के लिए आवश्यक है।
दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ
- ॐ उत्तराय नमः।
- ॐ आग्नेयाय नमः।
- ॐ पूर्वाय नमः।
- ॐ नैऋत्याय नमः।
- ॐ दक्षिणाय नमः।
- ॐ वायव्याय नमः।
- ॐ पश्चिमाय नमः।
- ॐ ईशानाय नमः।
- ॐ ऊर्ध्वाय नमः।
- ॐ अधः स्तिथाय नमः।
मंत्र का अर्थ
यह दिग्बंधन मंत्र दसों दिशाओं की शुद्धि और सुरक्षा के लिए उच्चारित किया जाता है। हर दिशा के देवता को प्रणाम कर साधक साधना के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है।
अर्थ विस्तृत रूप में:
- ॐ अधः स्तिथाय नमः: नीचे की दिशा के देवता को नमन। यह स्थिरता और धरती मां का प्रतीक है।
- ॐ उत्तराय नमः: उत्तर दिशा के अधिपति को नमन। यह दिशा समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक है।
- ॐ आग्नेयाय नमः: आग्नेय दिशा के अधिपति को नमन। यह ऊर्जा और जोश का प्रतीक है।
- ॐ पूर्वाय नमः: पूर्व दिशा के देवता को प्रणाम। यह दिशा नई शुरुआत और सकारात्मकता का प्रतीक है।
- ॐ नैऋत्याय नमः: नैऋत्य दिशा के देवता को नमन। यह दिशा सुरक्षा और नकारात्मक ऊर्जा के निवारण का प्रतीक है।
- ॐ दक्षिणाय नमः: दक्षिण दिशा के देवता को प्रणाम। यह दिशा स्थायित्व और दृढ़ता का प्रतीक है।
- ॐ वायव्याय नमः: वायव्य दिशा के देवता को नमन। यह दिशा मानसिक शांति और स्वास्थ्य का प्रतीक है।
- ॐ पश्चिमाय नमः: पश्चिम दिशा के देवता को प्रणाम। यह दिशा समर्पण और आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है।
- ॐ ईशानाय नमः: ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा के देवता को नमन। यह दिशा आध्यात्मिकता और पवित्रता का प्रतीक है।
- ॐ ऊर्ध्वाय नमः: ऊपर की दिशा के देवता को प्रणाम। यह दिव्यता और आशीर्वाद का प्रतीक है।
महत्व:
दिग्बंधन मंत्र साधना के दौरान साधक और उसके आस-पास की ऊर्जा को संतुलित करता है। यह नकारात्मक प्रभावों से बचाता है और साधना को सफल बनाता है।
स्वर्णावती यक्षिणी मंत्र का पूरा अर्थ
मूल मंत्र:
ॐ ह्रीं यक्षिणेश्वरी आगच्छ स्वर्णावती क्लीं स्वाहा।
मंत्र का विस्तृत अर्थ:
- ॐ: यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। यह पूरे मंत्र में दिव्यता का संचार करता है।
- ह्रीं: यह बीज मंत्र है, जो शक्ति, आध्यात्मिकता, और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंत्र की सिद्धि को सुनिश्चित करता है।
- यक्षिणेश्वरी: इसका अर्थ है “यक्षिणियों की अधिष्ठात्री देवी।” यक्षिणेश्वरी देवी को धन, समृद्धि, और सांसारिक सुखों की दात्री माना जाता है।
- आगच्छ: इस शब्द का अर्थ है “आमंत्रण” या “आगमन।” यह देवी को साधक के पास आने और कृपा करने के लिए बुलाने का आह्वान है।
- स्वर्णावती: यह देवी का नाम है, जो स्वर्ण (सोना) और धन प्रदान करने की शक्ति रखती हैं।
- क्लीं: यह मंत्र का कामना बीज है, जो भौतिक इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक है।
- स्वाहा: यह शब्द मंत्र का समापन करता है। इसका अर्थ है “अर्पण” या “संपूर्ण समर्पण।” यह साधना की सिद्धि और सफलता के लिए देवी को अर्पण करने का प्रतीक है।
पूर्णार्थ:
यह मंत्र साधक द्वारा देवी स्वर्णावती यक्षिणी को बुलाने और उनसे भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि, आर्थिक स्थिरता, और सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना का प्रतीक है। इसमें साधक अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति पाने की कामना करता है।
जप के समय इन चीज़ों का सेवन अधिक करें
- दूध और दूध से बने पदार्थ।
- ताजे फल।
- शुद्ध और सात्विक आहार।
- मीठा और सूखा मेवा।
स्वर्णावती यक्षिणी मंत्र के लाभ
- व्यापार में अत्यधिक वृद्धि।
- आर्थिक स्थिरता।
- भौतिक सुखों में वृद्धि।
- मानसिक शांति।
- परिवार में सुख-शांति।
- जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति।
- कठिन कार्यों में सफलता।
- समाज में सम्मान।
- शत्रु बाधा से मुक्ति।
- नई ऊर्जा और आत्मविश्वास।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य।
- सकारात्मक सोच का विकास।
- रिश्तों में मधुरता।
- जीवन में समृद्धि।
- आध्यात्मिक जागरूकता।
- कार्यों में निरंतर सफलता।
- धन-धान्य की प्राप्ति।
- अनायास लाभ।
पूजा सामग्री और मंत्र विधि
सामग्री:
- शुद्ध जल।
- लाल वस्त्र।
- चंदन।
- अक्षत (चावल)।
- दीपक और कपूर।
- शुद्ध घी।
- पुष्प।
विधि:
- पूजा स्थान को शुद्ध करें।
- पूजा सामग्री को व्यवस्थित रखें।
- दीप प्रज्वलित करें और मंत्र का जप आरंभ करें।
- साधना के अंत में प्रसाद वितरित करें।
मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त
- शुभ मुहूर्त में मंत्र जप आरंभ करें।
- प्रातः काल या रात्री काल का समय उत्तम।
- रोज़ाना 20 मिनट तक 11 दिन तक मंत्र जप करें।
मंत्र जप के नियम
- 20 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति मंत्र जप कर सकता है।
- स्त्री और पुरुष दोनों साधना कर सकते हैं।
- नीले और काले कपड़े न पहनें।
- धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से बचें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
जप के दौरान सावधानियां
- शुद्ध और शांत वातावरण चुनें।
- मन को एकाग्र रखें।
- किसी भी नकारात्मक विचार को पास न आने दें।
मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: स्वर्णावती यक्षिणी मंत्र किसके लिए उपयुक्त है?
उत्तर: यह मंत्र हर उस व्यक्ति के लिए उपयुक्त है जो भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति चाहता है।
प्रश्न 2: मंत्र जप के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?
उत्तर: प्रातः काल या रात्री काल का समय सर्वोत्तम है।
प्रश्न 3: क्या यह मंत्र व्यापार वृद्धि में सहायक है?
उत्तर: हां, यह मंत्र व्यापार में सफलता और वृद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी है।
प्रश्न 4: मंत्र जप के दौरान कौन से नियम अनिवार्य हैं?
उत्तर: शुद्धता, सात्विकता, और ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।
प्रश्न 5: क्या स्त्रियां इस मंत्र का जप कर सकती हैं?
उत्तर: हां, स्त्रियां और पुरुष दोनों यह साधना कर सकते हैं।
प्रश्न 6: मंत्र जप का प्रभाव कब तक दिखता है?
उत्तर: नियमित जप और विश्वास के साथ यह मंत्र शीघ्र ही फल प्रदान करता है।
प्रश्न 7: क्या काले कपड़े पहन सकते हैं?
उत्तर: नहीं, काले और नीले कपड़े पहनने से बचें।
प्रश्न 8: क्या मंत्र जप के दौरान मांसाहार कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, मांसाहार पूरी तरह वर्जित है।
प्रश्न 9: क्या इस मंत्र के साथ यंत्र का उपयोग किया जा सकता है?
उत्तर: हां, स्वर्णावती यंत्र का उपयोग साधना को अधिक प्रभावी बनाता है।
प्रश्न 10: मंत्र जप के लिए कौन सी दिशा श्रेष्ठ है?
उत्तर: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ है।
प्रश्न 11: क्या यह मंत्र सांसारिक सुख प्रदान करता है?
उत्तर: हां, यह मंत्र सांसारिक सुखों की प्राप्ति का एक प्रभावी साधन है।
प्रश्न 12: मंत्र जप के लिए कितने दिन आवश्यक हैं?
उत्तर: 11 दिनों तक नियमित जप आवश्यक है।