श्रीविष्णु अष्टकम्: शत्रु व बुरी नज़र से सुरक्षा
सबकी सुरक्षा करने वाला श्रीविष्णु अष्टकम् एक पवित्र और प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के आठ श्लोकों का एक संग्रह है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है और उनके विविध गुणों को समर्पित है। भगवान विष्णु को संपूर्ण ब्रह्मांड का पालनहार और रक्षक माना जाता है, और उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किया जाता है।
श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और इसे नियमित रूप से पढ़ा जाता है।
श्रीविष्णु अष्टकम् का संपूर्ण पाठ और उसका हिंदी में अर्थ
- श्लोक 1: शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्, वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
- श्लोक 2: शशाङ्कचूडामणिनां वज्राङ्कुशकुटारिकाम्। शङ्खचक्रगदापद्मान्धारयन्तं शङ्करम्॥
- श्लोक 3: कवचेन समायुक्तं लोहिताङ्गं पितामहम्। चतुर्भुजं ब्रह्मशिरः स्थिरमनन्दितं हसन्॥
- श्लोक 4: शशाङ्कवत् तु दधतं पद्मावणिसदास्पदः। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
- श्लोक 5: शङ्खचक्रधरं देवं क्षीराब्धिसयिनं हरिम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्॥
- श्लोक 6: सर्वदेवमयं नाथं विश्वेशं विश्वरूपिणम्। शान्ताकारं भवभयहरं वन्दे विष्णुं हरिं प्रभुम्॥
- श्लोक 7: शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
- श्लोक 8: शङ्खचक्रधरं देवं क्षीराब्धिसयिनं हरिम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
संपूर्ण अर्थ १ से ४ श्लोक
मैं भगवान विष्णु को नमन करता हूँ, जिनका स्वरूप शांति से परिपूर्ण है, जो शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के राजा हैं, और जिनका रंग मेघ के समान है। वे लक्ष्मी के प्रियतम, कमलनयन, और योगियों के ध्यान में आने वाले हैं। वे संसार के भय का नाश करते हैं और सभी लोकों के एकमात्र नाथ हैं।
वह भगवान विष्णु हैं जो अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करते हैं और जिनके हाथों में वज्र, अंकुश, कुल्हाड़ी, शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। वे शंकर (शिव) के समान पूज्य और शक्तिशाली हैं।
भगवान विष्णु कवच (रक्षा कवच) से सुसज्जित हैं और उनके अंग लालिमा लिए हुए हैं। वे चतुर्भुज धारी हैं और ब्रह्मा के सिर पर स्थित हैं। उनकी हंसी उनके आनंदमय स्वरूप को प्रकट करती है।
भगवान विष्णु के मस्तक पर शशांक (चंद्रमा) की तरह चमक रही है और वे पद्म (कमल) में निवास करते हैं। वे संसार के भय का नाश करने वाले हैं और सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं, उन्हें मेरा प्रणाम है।
संपूर्ण अर्थ ५ से ८ श्लोक
भगवान विष्णु, जो शंख और चक्र धारण करते हैं, जो क्षीर सागर (दूध के समुद्र) में शयन करते हैं, जो लक्ष्मी के प्रियतम और कमलनयन हैं, और जो योगियों के ध्यान में आते हैं, उन्हें मेरा नमन है।
मैं भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूँ, जो सभी देवताओं में समाहित हैं, जो विश्वेश्वर (विश्व के स्वामी) और विश्वरूपधारी हैं। उनका स्वरूप शांतिदायक है और वे संसार के भय को हरने वाले प्रभु हैं।
भगवान विष्णु, जिनका स्वरूप शांति से परिपूर्ण है, जो शेषनाग पर शयन करते हैं और जिनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के राजा हैं, और जो संसार के भय को हरने वाले हैं, उन्हें प्रणाम है।
भगवान विष्णु, जो शंख और चक्र धारण करते हैं, जो क्षीर सागर में शयन करते हैं, और जो सभी लोकों के एकमात्र नाथ हैं, उन्हें मेरा नमन है।
लाभ
श्रीविष्णु अष्टकम् का नियमित पाठ करने से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ पर 15 मुख्य लाभ दिए जा रहे हैं:
- आध्यात्मिक उन्नति: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
- मानसिक शांति: इसका नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है और तनाव से मुक्ति दिलाता है।
- रोगों से मुक्ति: इसके पाठ से शरीर स्वस्थ रहता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
- धन और समृद्धि की प्राप्ति: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
- कठिनाइयों से रक्षा: जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से बचाव के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी होता है।
- पारिवारिक सुख: इसके नियमित पाठ से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
- कार्य में सफलता: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
- भाग्य वृद्धि: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- विवाह और संतान सुख: जो व्यक्ति विवाह या संतान सुख की प्राप्ति चाहते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
- भय का नाश: इसका पाठ व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भय से मुक्त करता है।
- दुष्ट शक्तियों से रक्षा: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा या बुरी नजर का प्रभाव नहीं होता।
- ध्यान में एकाग्रता: इस स्तोत्र का पाठ ध्यान में एकाग्रता को बढ़ाता है और मन को स्थिर करता है।
- सद्बुद्धि की प्राप्ति: यह पाठ व्यक्ति को सद्बुद्धि प्रदान करता है और उसे सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
विधि
श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने के लिए विशेष विधि का पालन किया जाता है। इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुभ मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायक होता है।
दिन: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे एकादशी, पूर्णिमा, या किसी विशेष त्योहार के दिन, जैसे वैकुंठ एकादशी, के दिन करना अधिक शुभ माना जाता है।
अवधि: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से किया जाता है। इस अवधि के दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करना चाहिए और पूजा का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
मुहूर्त: सुबह के समय ब्रह्ममुहूर्त (4:00 बजे से 6:00 बजे तक) में इसका पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।
नियम
श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:
- शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को भी स्वच्छ रखें।
- आसन: पाठ करते समय किसी पवित्र आसन पर बैठें, जैसे कि कुशासन, और स्थिरता के साथ पाठ करें।
- ध्यान: पाठ के दौरान भगवान विष्णु का ध्यान करें और उनकी छवि या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं।
- भक्तिभाव: पाठ के दौरान भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति बनाए रखें।
- मौन: पाठ करते समय मौन रहें और साधना को गुप्त रखें। इसे दूसरों के सामने प्रकट न करें।
- नियमितता: पाठ को नियमित रूप से 41 दिनों तक करें। अगर किसी कारणवश एक दिन छुट जाए तो पुनः शुरू करें।
- सात्विक आहार: इस अवधि के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करें और मांसाहार और नशे से दूर रहें।
- संगीत: यदि संभव हो, तो पाठ के दौरान मधुर संगीत या भजन का वातावरण बनाएं।
- ध्यान का अभ्यास: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान में बिताएं, जिससे मन और आत्मा को शांति मिल सके।
- व्रत: यदि संभव हो तो पाठ के दौरान व्रत का पालन करें, जिससे साधना का प्रभाव बढ़े।
सावधानियाँ
श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए:
- सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करें। मांसाहार और नशे से दूर रहें।
- ब्रह्मचर्य: पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- अधूरी साधना: साधना को अधूरा छोड़ने से बचें। इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
- समय की पाबंदी: पाठ को नियमित समय पर ही करें, जिससे मन एकाग्र रहेगा।
- मन की शुद्धता: पाठ के दौरान मन को शांत और शुद्ध रखें, नकारात्मक विचारों से बचें।
श्रीविष्णु अष्टकम् के सामान्य प्रश्न
1. श्रीविष्णु अष्टकम् क्या है?
- यह भगवान विष्णु के आठ श्लोकों का संग्रह है, जो उनकी महिमा और गुणों का वर्णन करता है।
2. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कब करना चाहिए?
- इसे किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन ब्रह्ममुहूर्त में इसका पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
3. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसी विशेष अवसर पर किया जा सकता है?
- हां, इसे एकादशी, पूर्णिमा, या वैकुंठ एकादशी के दिन विशेष रूप से किया जाता है।
4. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
- इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ एक बार या अधिक बार करना चाहिए। नियमित रूप से 41 दिनों तक इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
5. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसे करना चाहिए?
- कोई भी व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, जो भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा रखता हो, इसका पाठ कर सकता है।
6. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ उपवास के साथ करना आवश्यक है?
- उपवास करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यदि संभव हो तो उपवास के साथ पाठ करने से इसका प्रभाव बढ़ता है।
7. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किस प्रकार करना चाहिए?
- पाठ को शांत और शुद्ध वातावरण में, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए, ध्यानपूर्वक करें।
8. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने से क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
- पाठ के दौरान किसी भी प्रकार की अशुद्धि से बचें, साफ वस्त्र पहनें, और मन को शुद्ध रखें।
9. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ साधारण दिनों में भी किया जा सकता है?
- हां, इसे साधारण दिनों में भी किया जा सकता है। यह किसी विशेष दिन पर निर्भर नहीं करता है।
10. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने के बाद क्या करना चाहिए?
- पाठ के बाद भगवान विष्णु को फूल, जल, और प्रसाद अर्पित करें और उनसे प्रार्थना करें।