विंध्यवाशिनी कवचम् पाठ- भरपूर सुख समृद्धि पाये
विंध्यवाशिनी कवचम् पाठ सुरक्षा व मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है। इस कलियुग हर ब्यक्ति को करना चाहिये। देवी विंध्यवाशिनी को समस्त ब्रह्मांड की शक्ति माना जाता है, जो अपने भक्तों की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करती हैं। विंध्यवाशिनी कवचम् का पाठ करने से साधक को देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो उसे जीवन के सभी संकटों और बाधाओं से बचाती है। इस कवच का नियमित पाठ जीवन में समृद्धि, शांति, और सफलता प्रदान करता है।
कवचम्
ध्यानम्
विन्ध्याचल स्थिते देवि विंध्यवासिनि विश्रुते।
त्वं देवि जगतां मातः शक्तिरूपे नमोऽस्तु ते॥
कवचम्
ॐ अस्य श्री विंध्यवासिनी कवच स्तोत्र महा-मंत्रस्य,
श्री महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री विन्ध्यवासिनी देवता।
श्री विन्ध्यवासिनी प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
ॐ विन्ध्यवासिनी शिरः पातु, ललाटं महिषासुरार्चिता।
चक्षुषी कालिका पातु, श्रोत्रे चामुण्डिका सदा॥ 1॥
पातु मे नासिका देवी, वदनं वैष्णवी सदा।
वक्षः पातु जगन्माता, हृदयं पार्वती मम॥ 2॥
कटिं कुष्माण्डिनी पातु, उरू शाकम्भरी तथा।
जानुनी भैरवी पातु, महाकाली च पादयोः॥ 3॥
सर्वाण्यङ्गानि मे देवी, महात्रिपुरसुन्दरी।
सर्वकार्याणि सिद्ध्यन्तु, प्रसन्ना परमेश्वरी॥ 4॥
एवं स्तुत्वा द्विजो नित्यं, त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।
विन्ध्यवासिन्याः प्रसादेन, सर्वत्र विजयी भवेत्॥ 5॥
विंध्यवाशिनी कवचम् का अर्थ
ध्यानम्
- विन्ध्याचल स्थिते देवि विंध्यवासिनि विश्रुते।अर्थ: हे देवी, जो विंध्याचल पर्वत पर स्थित और प्रसिद्ध हैं, आपको नमन है।
- त्वं देवि जगतां मातः शक्तिरूपे नमोऽस्तु ते॥अर्थ: हे देवी, जो संसार की माता और शक्ति रूपा हैं, आपको प्रणाम है।
कवचम्
- ॐ विन्ध्यवासिनी शिरः पातु, ललाटं महिषासुरार्चिता।अर्थ: हे देवी विंध्यवासिनी, मेरे सिर की रक्षा करें, और महिषासुर द्वारा आराधित देवी मेरे ललाट की रक्षा करें।
- चक्षुषी कालिका पातु, श्रोत्रे चामुण्डिका सदा॥अर्थ: मेरी आंखों की रक्षा कालिका देवी करें और मेरे कानों की रक्षा सदैव चामुण्डिका देवी करें।
- पातु मे नासिका देवी, वदनं वैष्णवी सदा।अर्थ: मेरी नासिका की रक्षा देवी करें और मेरे मुख की रक्षा सदैव वैष्णवी देवी करें।
- वक्षः पातु जगन्माता, हृदयं पार्वती मम॥अर्थ: मेरे वक्ष स्थल की रक्षा जगन्माता करें और मेरे हृदय की रक्षा पार्वती देवी करें।
- कटिं कुष्माण्डिनी पातु, उरू शाकम्भरी तथा।अर्थ: मेरी कटि की रक्षा कुष्माण्डिनी देवी करें और मेरी जांघों की रक्षा शाकम्भरी देवी करें।
- जानुनी भैरवी पातु, महाकाली च पादयोः॥अर्थ: मेरे घुटनों की रक्षा भैरवी देवी करें और मेरे पैरों की रक्षा महाकाली देवी करें।
- सर्वाण्यङ्गानि मे देवी, महात्रिपुरसुन्दरी।अर्थ: मेरे सभी अंगों की रक्षा महात्रिपुरसुन्दरी देवी करें।
- सर्वकार्याणि सिद्ध्यन्तु, प्रसन्ना परमेश्वरी॥अर्थ: हे परमेश्वरी देवी, प्रसन्न होकर मेरे सभी कार्यों को सिद्ध करें।
- एवं स्तुत्वा द्विजो नित्यं, त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।अर्थ: इस प्रकार जो ब्राह्मण त्रिसन्ध्या (तीन समय) श्रद्धा के साथ नित्य देवी की स्तुति करता है,
- विन्ध्यवासिन्याः प्रसादेन, सर्वत्र विजयी भवेत्॥अर्थ: विंध्यवासिनी देवी की कृपा से वह व्यक्ति सभी स्थानों पर विजयी होता है।
लाभ
पाठ का नियमित पाठ करने से साधक को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ पर 15 प्रमुख लाभ दिए गए हैं:
- शत्रुओं का नाश: इसका पाठ शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा करता है।
- मानसिक शांति: मानसिक तनाव और चिंता को दूर कर शांति प्रदान करता है।
- भय से मुक्ति: सभी प्रकार के भय, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक, से मुक्ति मिलती है।
- धन और समृद्धि: आर्थिक उन्नति और धन की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य की सुरक्षा: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा: नकारात्मक शक्तियों और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा मिलती है।
- विद्या और ज्ञान की प्राप्ति: विद्यार्थियों के लिए विद्या और ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है।
- परिवार की सुरक्षा: परिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- मनोकामना पूर्ति: साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक प्रगति होती है।
- सफलता प्राप्ति: जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
- शारीरिक बल और ऊर्जा: शरीर में बल और ऊर्जा का संचार होता है।
- दुर्घटनाओं से सुरक्षा: दुर्घटनाओं और अनहोनी घटनाओं से बचाव होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- सामाजिक प्रतिष्ठा: समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान की वृद्धि होती है।
विधि
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दिन और अवधि
इसका पाठ शुक्रवार से शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे नियमित रूप से 41 दिन तक करना चाहिए। हर दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर कवच का पाठ करें।
मुहूर्त
इसका पाठ करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त (प्रातःकाल 4 से 6 बजे के बीच) सर्वोत्तम समय माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होता है, जो साधना के लिए उपयुक्त है।
नियम
- पूजा और साधना को गुप्त रखें: साधक को अपनी साधना को गोपनीय रखना चाहिए। इसे सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करना चाहिए।
- नियमितता बनाए रखें: पाठ को प्रतिदिन एक ही समय पर और एक ही स्थान पर करना चाहिए।
- शुद्धता: शरीर, मन और स्थान की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
- संयम: साधना के दौरान संयमित जीवन शैली अपनानी चाहिए। सात्विक भोजन का सेवन करें और तामसिक भोजन से बचें।
- समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण और श्रद्धा भाव से देवी की आराधना करें।
- शुद्ध उच्चारण: मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करें। उच्चारण में कोई त्रुटि नहीं होनी चाहिए।
- ध्यान और एकाग्रता: पाठ के समय मन को एकाग्र रखें और ध्यान भंग न होने दें।
सावधानियाँ
- अनुशासन का पालन करें: साधना के समय अनुशासन का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
- ध्यान भंग न हो: पाठ के समय किसी भी प्रकार का ध्यान भंग न होने दें। इसके लिए एकांत स्थान का चयन करें।
- शुद्धता का पालन करें: शरीर, वस्त्र, और स्थान की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
- सकारात्मक सोच बनाए रखें: साधना के दौरान सकारात्मक और शुद्ध विचारों को बनाए रखें।
- साधना स्थल पर शांति बनाए रखें: साधना स्थल को शांत और पवित्र रखें।
- समय का पालन: निश्चित समय पर ही पाठ करें, समय का पालन आवश्यक है।
- मंत्र उच्चारण में ध्यान रखें: मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करें, त्रुटि से बचें।
पाठ- प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: यह कवचम् क्या है?
उत्तर: यह देवी विंध्यवाशिनी की आराधना में किया जाने वाला एक पवित्र स्तोत्र है जो साधक को सुरक्षा और शक्ति प्रदान करता है।
प्रश्न 2: इसका पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: इसका पाठ शुक्रवार से शुरू करना शुभ माना जाता है और इसे ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए।
प्रश्न 3: इस कवचम् की अवधि क्या होती है?
उत्तर: इस पाठ की अवधि 41 दिन होती है।
प्रश्न 4: इस कवचम् के कितने लाभ हैं?
उत्तर: इस कवचम् के प्रमुख लाभ हैं जैसे शत्रुओं का नाश, मानसिक शांति, भय से मुक्ति आदि।
प्रश्न 5: क्या इस कवचम् साधना को गुप्त रखना चाहिए?
उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखना चाहिए और इसे सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 6: पाठ के दौरान किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?
उत्तर: पाठ के दौरान अनुशासन, शुद्धता, धैर्य, और समय का पालन करना चाहिए।
प्रश्न 7: क्या इसका पाठ शत्रुओं से रक्षा करता है?
उत्तर: हां, इसका पाठ शत्रुओं से रक्षा करता है।
प्रश्न 8: इस पाठ से धन की प्राप्ति होती है?
उत्तर: हां, यह पाठ आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति में सहायक होता है।
प्रश्न 9: क्या इसका पाठ मानसिक तनाव को दूर करता है?
उत्तर: हां, यह पाठ मानसिक तनाव और चिंता को दूर करता है।
प्रश्न 10: यह पाठ परिवार की सुरक्षा कैसे करता है?
उत्तर: इसका पाठ करने से परिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है और वे नकारात्मक शक्तियों से बचे रहते हैं।
प्रश्न 11: इस कवचम् से विद्या और ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है?
उत्तर: विद्यार्थी यदि इस कवचम् का पाठ नियमित रूप से करते हैं, तो उन्हें विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।