अर्धनारीश्वर कवचम् क्या होता है?
अर्धनारीश्वर कवचम् भगवान शिव और माता पार्वती के संयुक्त रूप, अर्धनारीश्वर की कृपा पाने के लिए किया जाता है। अर्धनारीश्वर स्वरूप में भगवान शिव और माता पार्वती एक साथ विराजमान हैं, जो आधा भाग शिव और आधा भाग पार्वती के रूप में दिखते हैं। यह कवचम् भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह जीवन के सभी क्षेत्रों में संतुलन और समृद्धि प्रदान करता है।
अर्धनारीश्वर कवचम् के लाभ
- आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आत्मा की उन्नति होती है और भगवान शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।
- मानसिक शांति: कवचम् के नियमित पाठ से मन में शांति और स्थिरता बनी रहती है।
- संकटों का नाश: जीवन के सभी संकटों और बाधाओं का नाश होता है।
- धन और समृद्धि: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन की प्राप्ति होती है।
- शत्रुओं से सुरक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा मिलती है।
- स्वास्थ्य लाभ: शरीर स्वस्थ रहता है और सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।
- संतान प्राप्ति: जिनके संतान नहीं है, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- वैवाहिक जीवन में सुख: दांपत्य जीवन में सुख-शांति और समझ बनी रहती है।
- दीर्घायु की प्राप्ति: साधक को दीर्घायु और स्वास्थ्य लाभ होता है।
- अकाल मृत्यु का निवारण: अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
- कार्य में सफलता: सभी कार्यों में सफलता और उन्नति प्राप्त होती है।
- भाग्य वृद्धि: साधक के भाग्य में वृद्धि होती है और अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।
- विद्या और ज्ञान की प्राप्ति: ज्ञान, विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है।
- परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का माहौल बनता है।
- समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
अर्धनारीश्वर कवचम् की विधि
- दिन और मुहूर्त: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ सोमवार या पूर्णिमा के दिन प्रारंभ करना उत्तम माना जाता है। शुभ मुहूर्त में पूजा आरंभ करें।
- अवधि (41 दिन): इस कवचम् का पाठ नियमित रूप से 41 दिनों तक किया जाना चाहिए। साधक को 41 दिनों तक नियमों का पालन करना आवश्यक है।
- पूजा की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ रखें। शिव और पार्वती की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और पुष्प अर्पित करें।
- कवचम् पाठ: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करें। 108 बार ‘ॐ अर्धनारीश्वराय नमः’ का जाप करें।
अर्धनारीश्वर कवचम् के नियम
- पूजा और साधना का समय: साधना का समय नियमित रखें, प्रातः काल या सायं काल का समय उपयुक्त है।
- साधना को गुप्त रखें: अपनी साधना को गुप्त रखें और अन्य लोगों को इसके बारे में न बताएं।
- शुद्धता का पालन: पूजा और साधना के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। शरीर और मन को पवित्र रखें।
- आहार में संयम: साधना के दौरान सात्विक आहार ग्रहण करें और मांसाहार, तामसिक भोजन से दूर रहें।
- ब्रह्मचर्य का पालन: 41 दिनों की साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
अर्धनारीश्वर कवचम् में सावधानियाँ
- शुद्धता बनाए रखें: पूजा स्थल की शुद्धता का ध्यान रखें और स्वयं भी स्वच्छ रहें।
- मन की एकाग्रता: मन को एकाग्र रखें और भगवान शिव और पार्वती की आराधना में पूरी तरह लीन रहें।
- नियमों का पालन: साधना के सभी नियमों का पालन करें और किसी भी प्रकार की गलती से बचें।
- अभिमान न करें: साधना के दौरान अभिमान से बचें और भगवान की कृपा के लिए विनम्र बने रहें।
- समय का पालन: निर्धारित समय पर ही पूजा करें और किसी भी दिन पूजा छोड़ें नहीं।
संपूर्ण अर्धनारीश्वर कवचम् और उसका अर्थ
ध्यानम्
अर्धकायं महादेवं परमकाण्टिसौहृदम्।
पार्वतीप्रियमम्भोजक्षीकुम्भस्थितविग्रहम्॥
वन्देऽहमर्धनारीश्वरं, सर्वानन्दकरं परम्।
अर्थ:
अर्धनारीश्वर, जो अर्धशरीर शिव और अर्धशरीर पार्वती हैं, अत्यंत सुन्दर और अद्वितीय हैं। मैं उस परम अर्धनारीश्वर की वंदना करता हूँ जो सम्पूर्ण आनंद देने वाले हैं।
कवचम्
ओंकारशिर: पातु, शंकरो भवतुमां सदा।
सर्वेश्वर: पातु वदनं, हृदयं पार्वती सदा॥
वक्ष:स्थलं पातु गिरिजा, हृत्कमलसंस्थिता।
नाभिं पातु सदा गौरी, पादौ पातु महेश्वर:॥
पार्वत्याः पृष्ठतः पातु, कंठे पातु महेश्वर:।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु, अर्धनारीश्वर: स्वयम्॥
सर्वापद्भ्य: सदा पातु, अर्धनारीश्वर: प्रभु:।
इत्येतत् कवचं दिव्यं, त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:॥
सर्वान् कामानवाप्नोति, अर्धनारीश्वरस्य च।
आयु: प्रजां धनं धान्यं, सौभाग्यं सुमनोहरम्॥
दास्यत्येव सदा तस्मै, अर्धनारीश्वर: प्रभु:।
हिंदी अर्थ:
- “ओंकारशिर: पातु, शंकरो भवतुमां सदा।”
शिवजी मेरे मस्तक की रक्षा करें, और सदैव मेरे साथ रहें। - “सर्वेश्वर: पातु वदनं, हृदयं पार्वती सदा॥”
शिवजी मेरे मुख की रक्षा करें और पार्वतीजी मेरे हृदय की रक्षा करें। - “वक्ष:स्थलं पातु गिरिजा, हृत्कमलसंस्थिता।”
मेरे वक्षस्थल (छाती) की रक्षा गिरिजा करें, जो हृदय-कमल में निवास करती हैं। - “नाभिं पातु सदा गौरी, पादौ पातु महेश्वर:॥”
गौरी मेरी नाभि की रक्षा करें और महेश्वर (शिव) मेरे पांवों की रक्षा करें। - “पार्वत्याः पृष्ठतः पातु, कंठे पातु महेश्वर:।”
पार्वती मेरी पीठ की रक्षा करें और महेश्वर मेरे कंठ (गले) की रक्षा करें। - “सर्वाङ्गं मे सदा पातु, अर्धनारीश्वर: स्वयम्॥”
अर्धनारीश्वर स्वयं मेरे संपूर्ण शरीर की सदैव रक्षा करें। - “सर्वापद्भ्य: सदा पातु, अर्धनारीश्वर: प्रभु:।”
प्रभु अर्धनारीश्वर सदैव मुझे सभी आपदाओं से बचाएं। - “इत्येतत् कवचं दिव्यं, त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:॥”
जो इस दिव्य कवच का तीनों संध्याओं (प्रातः, मध्यान्ह, संध्या) में पाठ करता है, - “सर्वान् कामानवाप्नोति, अर्धनारीश्वरस्य च।”
वह सभी इच्छाएं प्राप्त करता है और अर्धनारीश्वर की कृपा पाता है। - “आयु: प्रजां धनं धान्यं, सौभाग्यं सुमनोहरम्॥”
आयु, संतान, धन-धान्य और सुंदर सौभाग्य प्राप्त करता है। - “दास्यत्येव सदा तस्मै, अर्धनारीश्वर: प्रभु:”
प्रभु अर्धनारीश्वर उसे सदैव आशीर्वाद देते हैं।
अर्धनारीश्वर कवचम् का अर्थ और महत्व
अर्धनारीश्वर कवचम् का नियमित पाठ व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति, और जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन प्राप्त करने में मदद करता है। यह कवच न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करता है, बल्कि जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से भी बचाता है। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से साधक को दीर्घायु, समृद्धि, और परिवार में सुख-शांति मिलती है। इस कवच का पाठ भक्त को जीवन में उन्नति, सफलता, और आध्यात्मिक समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।
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अर्धनारीश्वर कवचम् से संबंधित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ कब और कैसे किया जाना चाहिए?
उत्तर: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ प्रातः काल या सायं काल में, शुद्ध स्थान पर करना चाहिए।
प्रश्न: क्या अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ केवल पुरुष ही कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
प्रश्न: क्या अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए?
उत्तर: हां, इस कवचम् का नियमित पाठ करने से भगवान शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।
प्रश्न: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ कितने समय तक करना चाहिए?
उत्तर: इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए, जो साधना की अवधि मानी जाती है।
प्रश्न: क्या अर्धनारीश्वर कवचम् पाठ के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता है?
उत्तर: नहीं, इसे घर के पूजा स्थल पर भी शुद्धता और नियमों का पालन करते हुए किया जा सकता है।
प्रश्न: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ किस मुहूर्त में करना चाहिए?
उत्तर: शुभ मुहूर्त जैसे सोमवार या पूर्णिमा के दिन से आरंभ करना श्रेष्ठ माना जाता है।
प्रश्न: क्या इस कवचम् के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?
उत्तर: व्रत रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन साधना के दौरान शुद्धता और संयम का पालन आवश्यक है।
प्रश्न: अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ करने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं?
उत्तर: मानसिक शांति, संकटों का नाश, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक सुख-शांति प्राप्त होती है।
प्रश्न: क्या इस कवचम् के दौरान मांसाहार का सेवन किया जा सकता है?
उत्तर: नहीं, इस दौरान मांसाहार और तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह वर्जित है।
प्रश्न: क्या साधना के दौरान किसी विशेष प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
उत्तर: साधना के दौरान स्वच्छ और सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
प्रश्न: क्या अर्धनारीश्वर कवचम् का पाठ बच्चों द्वारा भी किया जा सकता है?
उत्तर: हां, बच्चे भी इसे कर सकते हैं, लेकिन उन्हें सरलता और भक्ति से पाठ करना चाहिए।