दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र देवी दुर्गा के शक्तिशाली मंत्रों का शक्तिशाली स्त्रोत है, जिसमें सात श्लोक होते हैं। ये सात श्लोक दुर्गा सप्तशती (दुर्गा महात्म्यम्) से लिए गए हैं और इन्हें अत्यधिक फलदायक और सिद्धिदायक माना जाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्त को सभी प्रकार की समस्याओं, भय, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। देवी दुर्गा की कृपा से जीवन में समृद्धि, शांति, और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
स्तोत्र: संपूर्ण पाठ और अर्थ
दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र
- ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥ 1॥ अर्थ: देवी महामाया सभी ज्ञानी व्यक्तियों के चित्त को भी मोह में डाल देती हैं और अपनी शक्ति से उन्हें अपने वश में कर लेती हैं।
- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता॥ 2॥ अर्थ: हे दुर्गे! आपका स्मरण करने से भय और विपत्ति का नाश होता है। स्वस्थ मनुष्य यदि आपको स्मरण करें तो आप उन्हें शुभ बुद्धि प्रदान करती हैं। आप दरिद्रता, दुःख, और भय को दूर करने वाली हैं और सदा सबका उपकार करने के लिए तत्पर रहती हैं।
- सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायाणि नमोऽस्तु ते॥ 3॥ अर्थ: हे गौरी! आप सभी मंगलों में सबसे उत्तम मंगलदायिनी, शिवस्वरूपा, और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं। तीन नेत्रों वाली, नारायणी देवी, आपको नमस्कार है।
- शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायाणि नमोऽस्तु ते॥ 4॥ अर्थ: हे देवी नारायणी! आप शरण में आए हुए दुखियों का उद्धार करने के लिए सदा तत्पर रहती हैं और सभी प्रकार की पीड़ाओं को हरने वाली हैं। आपको प्रणाम है।
- सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ 5॥ अर्थ: हे देवी दुर्गे! आप सभी स्वरूपों में स्थित, सभी की ईश्वरी और सभी शक्तियों से युक्त हैं। आप हमें सभी प्रकार के भय से बचाएं। आपको प्रणाम है।
- रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥ 6॥ अर्थ: जब आप प्रसन्न होती हैं तो सभी रोगों को नष्ट कर देती हैं और जब रुष्ट होती हैं तो समस्त अभिलषित कामनाओं का नाश कर देती हैं। जो लोग आपकी शरण लेते हैं, वे कभी विपत्तियों में नहीं पड़ते और जो आपकी शरण में आते हैं, वे सभी प्रकार से सुरक्षित रहते हैं।
- सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्॥ 7॥ अर्थ: हे अखिल विश्व की अधीश्वरी! आप सभी प्रकार की बाधाओं का नाश करने वाली हैं। इसी प्रकार हमारे शत्रुओं का भी नाश करें।
लाभ
- भय से मुक्ति: इसका पाठ करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।
- धन-धान्य की प्राप्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ आर्थिक समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति कराता है।
- शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं से सुरक्षा और उनके नाश के लिए यह स्तोत्र अत्यधिक प्रभावी है।
- स्वास्थ्य लाभ: इसका पाठ रोगों से मुक्ति दिलाता है और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
- मानसिक शांति: यह स्तोत्र मानसिक तनाव को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है।
- संकट से सुरक्षा: जीवन के सभी संकटों से सुरक्षा प्रदान करने में यह स्तोत्र सहायक है।
- परिवार की सुरक्षा: परिवार के सदस्यों के लिए सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
- धार्मिक उन्नति: इसका पाठ व्यक्ति के धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: यह स्तोत्र सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- विघ्नों का निवारण: जीवन में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करता है।
- भाग्य वृद्धि: भाग्य में वृद्धि और सफलता प्राप्ति के लिए यह स्तोत्र अत्यधिक लाभकारी है।
- शक्ति और साहस: यह स्तोत्र शक्ति और साहस प्रदान करता है।
- दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा: बुरी शक्तियों और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- कार्यों में सफलता: यह स्तोत्र सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है।
- अशुभ प्रभावों से मुक्ति: किसी भी प्रकार के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है।
स्तोत्र विधि
दिन: इस का पाठ किसी भी दिन आरंभ किया जा सकता है, लेकिन मंगलवार, शुक्रवार, और नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है।
अवधि: इस स्तोत्र का पाठ कम से कम 41 दिनों तक निरंतर करना शुभ माना जाता है।
मुहूर्त: सुबह ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) या शाम को सूर्यास्त के समय (6:00 से 7:30 बजे के बीच) इसका पाठ करना शुभ होता है।
स्तोत्र के नियम
- पूजा विधि: स्नान करने के बाद, एक स्वच्छ और शांत स्थान पर देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर इसका पाठ करना चाहिए। पाठ करते समय देवी को पुष्प, धूप, और नैवेद्य अर्पित करें।
- गुप्त साधना: इस का पाठ एकांत में और गोपनीय रूप से करना चाहिए। साधना को गुप्त रखना आवश्यक होता है ताकि साधक की ऊर्जा और ध्यान भंग न हो।
- शुद्धता: साधक को शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रहकर ही यह पाठ करना चाहिए।
- समर्पण भाव: पाठ करते समय पूर्ण समर्पण और श्रद्धा का भाव होना चाहिए।
पाठ में सावधानियाँ
- नियमितता: इस का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। यदि किसी कारणवश पाठ करना संभव न हो, तो अगले दिन उसे पूरा करें।
- एकाग्रता: पाठ करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए। ध्यान भटकने से स्तोत्र का प्रभाव कम हो सकता है।
- शुद्ध वातावरण: शुद्ध और पवित्र स्थान पर ही इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- अन्य साधनाओं का संयोजन: अन्य तांत्रिक साधनाओं के साथ इस का पाठ न करें, जब तक कि किसी योग्य गुरु से मार्गदर्शन न लिया गया हो।
स्तोत्र पाठ- प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: यह स्तोत्र क्या है?
उत्तर: यह स्तोत्र देवी दुर्गा के सात शक्तिशाली श्लोकों का संग्रह है, जो भक्तों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं और भय से मुक्ति दिलाने में सहायता करता है।
प्रश्न 2: इस स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: इसे ब्रह्म मुहूर्त में (सुबह 4:00 से 6:00 बजे) या शाम को सूर्यास्त के समय (6:00 से 7:30 बजे) करना चाहिए।
प्रश्न 3: इस स्तोत्र का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ कम से कम 41 दिनों तक निरंतर करना चाहिए।
प्रश्न 4: इस स्तोत्र का महत्व क्या है?
उत्तर: यह स्तोत्र देवी दुर्गा की महिमा का बखान करता है और भक्तों को सभी प्रकार के संकटों, भय, और विपत्तियों से बचाता है।
प्रश्न 5: इस के पाठ के क्या लाभ हैं?
उत्तर: इस स्तोत्र के पाठ से भय, रोग, दरिद्रता, और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति प्राप्त होती है।
प्रश्न 6: इसका पाठ कैसे करें?
उत्तर: स्नान करने के बाद, स्वच्छ स्थान पर दीपक जलाकर देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न 7: इसके के नियम क्या हैं?
उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ गोपनीय रूप से, नियमित रूप से, और पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए।
प्रश्न 8: क्या इस पाठ को किसी भी समय किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन ब्रह्म मुहूर्त या सूर्यास्त के समय इसका विशेष महत्व है।
प्रश्न 9: क्या इसका पाठ केवल नवरात्रि में ही किया जा सकता है?
उत्तर: नहीं, इसका पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि के समय इसका विशेष फल प्राप्त होता है।
प्रश्न 10: इस स्तोत्र के पाठ के लिए क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर: नियमितता, एकाग्रता, शुद्धता, और अन्य साधनाओं से संयोजन न करना आवश्यक है।
प्रश्न 11: इसका का पाठ कैसे शुरू करें?
उत्तर: इसे शुद्ध शरीर और मन से, देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर शुरू करें।