गायत्री चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शुभता, शांति और समृद्धि का संचार होता है।
गायत्री चालीसा
गायत्री चालीसा एक लोकप्रिय धार्मिक पाठ है जिसमें 40 चौपाइयाँ होती हैं। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सकारात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
श्री गायत्री चालीसा
जयति जयति जय गायत्री माता।
सद्गुण सद्भाव सुमति विधाता॥
त्रिपदात्रय महाशक्ति धारी।
सर्व जगत की त्राता तुम्हारी॥
सप्त स्वरूपा षड्भुजा वाली।
सकल विश्व की हो रखवाली॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ाऊँ।
सुमन पत्र से तुम्हे मनाऊँ॥
शुद्ध बुद्धि औ निर्मल मानस।
होवे तुम्हारी कृपा प्रभामय॥
अखिल विश्व निवासिनी माता।
दया दृष्टि से सब सुखदाता॥
वेद त्रयी मम मंत्र पुनीता।
जाप करूँ मैं यथा पुनीता॥
रोग शोक दारिद्र्य मिटावे।
अघ अज्ञान मोह भ्रम हटावे॥
सर्व पाप नष्ट कर डारे।
सर्व दुःख संताप निवारे॥
शुद्ध सत्त्वगुण साधक प्राणी।
धारण करैं अहो वर दानी॥
लक्ष्मी वीणा वर कर धारण।
विपुल धर्म उपकार निवर्तन॥
त्रिपदा सुरसरिता सुखकारी।
शांति प्रज्ञा नीतिनियारी॥
अक्षर चौबीसहिं निज ध्यावा।
जपे नित्य श्रद्धा मन लावा॥
सिद्ध मंत्र जो वेदन रचायो।
महर्षि विश्वामित्र पठायो॥
संपुट पाठ करौं मन लाई।
ध्यान धारि जोशी जप जाई॥
पाठ करौं शुभ संगति साजे।
सकल मनोरथ होय समाजे॥
गायत्री जय जय जप मांही।
पारस मणि समान गुण सांहीं॥
त्राहि त्राहि संकट हरना।
विषम सम संकट को टरना॥
प्रेम सहित निज काज सवारौ।
सकल विघ्न बाधा विनिवारौ॥
मंगल कामना पूरन करिहौं।
दुर्वासना दुष्कर्म टरिहौं॥
सद्गति सुखमय जीव बनायौ।
सकल अघा निदान मिटायौ॥
कामधेनु तुल्य अति सुखकारी।
विष्णुप्रिया ब्रह्माणी माया॥
गायत्री महिमा अति भारी।
जो सत्संगी सो सुखकारी॥
पाठ करै जो मन अनुमाना।
सो पावे धन जन्म निराना॥
सकल कामना ताहि सिद्धि होई।
धर्म नीरस सब संताप खोई॥
साधक सुलभ कष्ट औ दुख नाहीं।
जो यह मंत्र निधि मनमानी॥
सिद्ध साधिका तीनो काल।
पाठ करै सो पावे उरमाल॥
सर्वज्ञ समरथ यह वरदानी।
त्रय तप जापक पुण्यरानी॥
स्वरचित यह चालीसा पद।
जो नर नारी नित्य करै मन।
मन इच्छित फल सो पावै।
कभी न संकटकाल सतावै॥
चतुर्वेद प्रमाण पुराण।
शुभ सुकृत तिथि पावन मान॥
अति पुण्य यह पाठ जो जावे।
निरखत ही फल जाति लावे॥
गायत्री जयति जयति भगवती।
सत्सुकृत पुण्य सुमति सुनीति॥
गायत्री चालीसा के लाभ
- मानसिक शांति: गायत्री चालीसा का पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता आती है।
- ध्यान केंद्रित करना: नियमित रूप से पाठ करने से ध्यान केंद्रित करने की शक्ति बढ़ती है।
- नकारात्मक ऊर्जा से बचाव: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी दृष्टि से रक्षा होती है।
- सकारात्मकता: जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि होती है।
- बुद्धि विकास: बुद्धि की वृद्धि होती है और समझ बढ़ती है।
- स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- धन वृद्धि: आर्थिक स्थिति में सुधार और धन की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
- संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है।
- धार्मिक लाभ: धार्मिक और पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है।
- शत्रु पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- वास्तु दोष निवारण: घर में वास्तु दोष निवारण होता है।
- कार्य में सफलता: हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
- स्मरण शक्ति: स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
- सुखद भविष्य: भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
- मनोबल में वृद्धि: मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- पापों से मुक्ति: जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है।
- शुभ फल प्राप्ति: सभी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
- अच्छी संगति: अच्छे लोगों की संगति मिलती है और बुरी संगति से बचाव होता है।
पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)
दिन: गायत्री चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन रविवार और गुरुवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
अवधि: यह पाठ लगभग 10-15 मिनट का होता है। इसे ४० दिन तक सूर्योदय और सूर्यास्त के समय करना उत्तम होता है।
मुहूर्त:
- प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
- सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।
विधि:
- स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
- स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
- आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
- दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
- पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
- गायत्री मंत्र: सबसे पहले गायत्री मंत्र का 3 बार जाप करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
- चालीसा पाठ: फिर गायत्री चालीसा का पाठ करें।
- आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
- प्रणाम: अंत में माँ गायत्री को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।