Mata matangi mantra for fulfil dreams

बडे से बडे सपने को पूरा करने वाली महाविद्या माता मातंगी हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी मानी जाती हैं, जिनकी पूजा तंत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती है। वे अक्षय पात्रा में स्थित हैं मातंगी देवी का संबंध मातंग ऋषि से माना जाता है, जो एक प्रमुख ऋषि और तांत्रिक कवि थे।

माता मातंगी को योग्यता, विद्या, कला, और बुद्धि की देवी माना जाता है। उनकी पूजा से विद्यार्थी और विद्याधन की प्राप्ति होती है, और उन्हें बुद्धि और समझ में वृद्धि होती है। माता मातंगी की पूजा का विधान तांत्रिक होता है और इसमें मंत्र जप, ध्यान, और अनुष्ठान की विशेष विधियां होती हैं।

आम तौर पर माता मातंगी की मूर्ति काली माँ के साथ जुड़ी होती है, जिससे उनका संबंध माता काली से भी माना जाता है। माता मातंगी की पूजा का मुख्य उद्देश्य विद्या, कला, और बुद्धि की प्राप्ति करना होता है

माता मातंगी का परिचय

माता मातंगी को संगीत, कला, शिक्षा और विद्या की देवी माना जाता है। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं और उन्हें “तांत्रिक सरस्वती” भी कहा जाता है। उनकी उपासना से साधक को योग्यता, कला, संगीत, अभिनय, शिक्षा, ऊंचे सपने, विवाहित जीवन, और जीवन साथी से संबंधित अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

मंत्र का उच्चारण विधि

  1. समय: इस मंत्र का उच्चारण सुबह के समय या संध्या के समय करना सर्वोत्तम होता है।
  2. स्थान: शांत और पवित्र स्थान का चयन करें, जहां किसी प्रकार की बाधा न हो।
  3. आसन: सफेद या पीले रंग के आसन पर बैठें।
  4. माला: रुद्राक्ष या स्फटिक की माला का उपयोग करें।
  5. मंत्र जप की संख्या: प्रतिदिन 108 बार मंत्र का जप करें।
  6. आवश्यक सामग्री: सफेद पुष्प, हल्दी की गांठ, चंदन, और दीपक जलाएं।
  7. मंत्रः ॐ ह्रीं मातंगेश्वरी क्लीं मतंग स्वाहा. “OM HREEM MAATANGESHWARI KLEEM MATAM SVAHA.”

मंत्र जप का समय

इस मंत्र का जप प्रतिदिन 21 दिनों तक करना चाहिए। हर दिन 108 बार मंत्र का जप करना अत्यंत लाभकारी होता है।

साधना के दौरान सावधानियाँ

  1. आयु: इस मंत्र का अभ्यास केवल 20 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति ही करें।
  2. शुद्धता: साधक को शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होना चाहिए।
  3. आहार: तामसिक भोजन और मदिरा से बचें।
  4. संकल्प: मंत्र जप शुरू करने से पहले संकल्प लें और साधना पूरी होने तक उसे न तोड़ें।
  5. गोपनीयता: अपनी साधना को गुप्त रखें और अनावश्यक रूप से किसी को न बताएं।
  6. विश्राम: साधना के बाद थोड़ा विश्राम अवश्य करें।

माता मातंगी मंत्र के लाभ

  1. संगीत और कला में निपुणता: यह मंत्र साधक को संगीत और कला में निपुण बनाता है।
  2. शिक्षा में सफलता: माता मातंगी की कृपा से शिक्षा में उन्नति और उत्कृष्टता प्राप्त होती है।
  3. अभिनय में उत्कृष्टता: यह मंत्र अभिनय में निपुणता और सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है।
  4. योग्यता में वृद्धि: यह मंत्र साधक की योग्यता और प्रतिभा को बढ़ाता है।
  5. सृजनात्मकता का विकास: सृजनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  6. बुद्धिमत्ता में वृद्धि: यह मंत्र साधक की बुद्धिमत्ता और समझ को बढ़ाता है।
  7. सपनों की प्राप्ति: ऊंचे सपनों को साकार करने में मदद करता है।
  8. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मविश्वास और आत्मबल को बढ़ाता है।
  9. धैर्य और संयम: धैर्य और संयम को बढ़ावा देता है।
  10. विवाहित जीवन में सुख: विवाहित जीवन में शांति और सुख का संचार करता है।
  11. जीवन साथी का सहयोग: जीवन साथी के साथ मधुर संबंध और सहयोग को बढ़ाता है।
  12. सकारात्मक सोच: नकारात्मक विचारों को समाप्त कर सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है।
  13. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
  14. आध्यात्मिक ज्ञान: आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभव को बढ़ाता है।
  15. मानसिक शांति: मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  16. प्रभावशाली व्यक्तित्व: साधक के व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है।
  17. रचना की शक्ति: सृजन और रचना की शक्ति को बढ़ाता है।
  18. मनोकामनाएँ पूर्ण: साधक की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।
  19. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  20. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति में सहायक होता है।

साधना की अवधि

इस मंत्र की साधना 21 दिनों तक करनी चाहिए। प्रतिदिन 108 बार मंत्र जप करना आवश्यक है। इस दौरान साधक को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और साधना के प्रति पूरी निष्ठा रखनी चाहिए।

अंत में

माता मातंगी का मंत्र अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली है। इसका सही विधि और नियमों का पालन करते हुए जप करने से साधक को योग्यता, कला, संगीत, अभिनय, शिक्षा, ऊंचे सपने, विवाहित जीवन, और जीवन साथी से संबंधित अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। साधना के दौरान सभी सावधानियों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि साधक को पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके।

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