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Paush Purnima Vrat – Discover the Spiritual Importance

पौष पूर्णिमा व्रत 2025: महत्व, विधि और संपूर्ण कथा

पौष पूर्णिमा व्रत का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। पौष मास की पूर्णिमा को यह व्रत रखा जाता है। इसे भगवान विष्णु और चंद्रमा की कृपा प्राप्ति का दिन माना जाता है। यह व्रत मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और पापों से मुक्ति दिलाने वाला है।

व्रत का मुहूर्त

पौष पूर्णिमा व्रत का समय पूर्णिमा तिथि के सूर्योदय से लेकर पूर्णिमा समाप्ति तक होता है।

2025 के लिए मुहूर्त:

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 जनवरी 2025, सुबह 5 बजकर 2 मिनट पर।
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 25 जनवरी 2025, रात 3:56 मिनट पर।

व्रत सामग्री और पूजन विधि

सामग्री:

  1. तांबे का लोटा।
  2. जल, दूध, पुष्प, चावल।
  3. दीपक, धूप, कपूर।
  4. पंचामृत और प्रसाद।

पूजन विधि:

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थान पर भगवान विष्णु और चंद्रमा की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीप जलाकर धूप अर्पित करें।
  4. मंत्र “ॐ सों सोमाय नमः” का जाप करें।
  5. चंद्रमा को अर्घ्य दें।
  6. पंचामृत और प्रसाद वितरण करें।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

क्या खाएं:

  • फल, दूध, और साबूदाना।
  • सेंधा नमक से बनी वस्तुएं।

क्या न खाएं:

  • अनाज और तामसिक भोजन।
  • प्याज और लहसुन।

पौष पूर्णिमा व्रत के लाभ

  1. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  3. पापों से मुक्ति मिलती है।
  4. वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
  5. चंद्रमा की कृपा मिलती है।
  6. रोगों से छुटकारा मिलता है।
  7. आर्थिक उन्नति होती है।
  8. परिवार में खुशहाली आती है।
  9. बच्चों की सफलता के योग बनते हैं।
  10. शत्रुओं का नाश होता है।
  11. भाग्य में वृद्धि होती है।
  12. बुरी आदतों से मुक्ति मिलती है।
  13. मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  14. सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
  15. दान-पुण्य के फल मिलते हैं।
  16. मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
  17. सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

व्रत के नियम

  1. सूर्योदय से पहले स्नान करें।
  2. व्रत के दौरान सात्विक आहार लें।
  3. झूठ, अहंकार और आलस्य से बचें।
  4. भगवान विष्णु और चंद्रमा की आराधना करें।
  5. पूर्णिमा तिथि के नियमों का पालन करें।

पौष पूर्णिमा व्रत संपूर्ण कथा

प्राचीन समय की बात है, एक राजा था जिसका नाम सौम्यकेतु था। राजा ने अपने जीवन में कई पाप कर्म किए थे, जिसके कारण उसे दुख और कष्ट सहने पड़े। एक दिन एक ऋषि उनके महल में आए और उन्हें बताया कि उनके कष्टों का निवारण पौष पूर्णिमा व्रत करने से होगा। ऋषि ने राजा को बताया कि इस व्रत में भगवान विष्णु और चंद्रमा की आराधना करनी चाहिए।

राजा ने पौष पूर्णिमा व्रत का पालन किया। व्रत के दिन उन्होंने प्रातः काल स्नान कर भगवान विष्णु और चंद्रमा का पूजन किया। ऋषि द्वारा बताए गए मंत्रों का जाप किया और चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप समाप्त हो गए। उनका जीवन सुखमय और शांति से भर गया। तभी से यह व्रत धर्मप्रेमियों द्वारा मनाया जाता है।

भोग और व्रत की समाप्ति

व्रत समाप्ति पर भगवान विष्णु को खीर, फल और पंचामृत का भोग लगाएं।

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सावधानियां

  1. व्रत के नियमों का पूर्ण पालन करें।
  2. व्रत के दौरान अन्न का सेवन न करें।
  3. मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें।

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मंत्र और उनके प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: व्रत का मुख्य मंत्र क्या है?

उत्तर: व्रत का मुख्य मंत्र “ॐ सों सोमाय नमः” है।

प्रश्न 2: मंत्र जाप कितनी बार करें?

उत्तर: मंत्र का जाप 108 बार करना उत्तम है।

प्रश्न 3: क्या व्रत केवल महिलाएं कर सकती हैं?

उत्तर: नहीं, यह व्रत सभी कर सकते हैं।

प्रश्न 4: क्या व्रत में चंद्र दर्शन आवश्यक है?

उत्तर: हां, चंद्र दर्शन से व्रत का फल पूर्ण होता है।

प्रश्न 5: क्या व्रत बिना स्नान के किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, स्नान व शुद्धता आवश्यक है।

प्रश्न 6: क्या बच्चे यह व्रत कर सकते हैं?

उत्तर: हां, सरल नियमों के साथ कर सकते हैं।

प्रश्न 7: व्रत के लाभ कितने दिनों में मिलते हैं?

उत्तर: यह व्यक्ति की श्रद्धा और नियम पालन पर निर्भर है।

प्रश्न 8: क्या व्रत में मांसाहार वर्जित है?

उत्तर: हां, मांसाहार पूरी तरह वर्जित है।

प्रश्न 9: क्या व्रत के दौरान दान करना आवश्यक है?

उत्तर: हां, दान व्रत का महत्वपूर्ण अंग है।

प्रश्न 10: क्या पूजा सामग्री में बदलाव किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, सामग्री परंपरा अनुसार ही होनी चाहिए।

प्रश्न 11: व्रत में खीर का भोग क्यों लगाया जाता है?

उत्तर: खीर चंद्रमा के प्रिय भोग में से एक है।

प्रश्न 12: क्या व्रत केवल हिंदू धर्म से संबंधित है?

उत्तर: मुख्यतः यह हिंदू धर्म से संबंधित है।

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