Shakambhari Vrat - Procedure, Benefits, Rituals

Shakambhari Vrat – Procedure, Benefits, Rituals

शाकम्भरी व्रत: विधि, मुहूर्त और संपूर्ण कथा के साथ अद्भुत लाभ

शाकम्भरी व्रत देवी शाकम्भरी को समर्पित एक पवित्र व्रत है, जिसे विशेषकर महिलाओं द्वारा श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है। देवी शाकम्भरी को ‘सब्जी और फल’ की देवी माना जाता है, जो पृथ्वी को हरियाली और अनाज से भर देती हैं। शाकम्भरी व्रत के दौरान, भक्त देवी की पूजा कर उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।

शाकम्भरी व्रत का मुहूर्त

शाकम्भरी व्रत का मुहूर्त पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से नवमी तक होता है। इस समय में देवी शाकम्भरी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। व्रत का सही मुहूर्त जानने के लिए पंचांग का सहारा लिया जाता है।

शाकम्भरी व्रत विधि

शाकम्भरी व्रत की विधि विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होती है। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। देवी शाकम्भरी का पूजन करने के लिए एक साफ स्थान पर देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजन में पुष्प, फल, और विशेषत: सब्जियों का अर्पण करें। शाकम्भरी मंत्र से देवी की पूजा करें।

शाकम्भरी व्रत मंत्र

“ॐ शाकम्भरी देव्यै नमः”
इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

व्रत के दौरान साधारण और सात्विक भोजन का सेवन किया जाता है। इस व्रत में फलाहार और सब्जियों का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि देवी शाकम्भरी सब्जियों की देवी हैं। मांसाहार, अनाज और तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।

निषेध खाद्य पदार्थ

  1. मांसाहार और तामसिक भोजन।
  2. लहसुन और प्याज।
  3. अनाज और मसालेदार भोजन।

शाकम्भरी व्रत के लाभ

  1. परिवार में समृद्धि और खुशहाली आती है।
  2. रोगों से मुक्ति मिलती है।
  3. मानसिक शांति और आत्मिक संतुष्टि मिलती है।
  4. घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  5. स्वास्थ्य लाभ होता है।
  6. धन की प्राप्ति होती है।
  7. व्यवसाय में सफलता मिलती है।
  8. संकटों से मुक्ति मिलती है।
  9. बच्चे और परिवार की सुरक्षा होती है।
  10. आत्मबल और इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है।
  11. मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  12. जीवन में स्थिरता आती है।
  13. देवी की कृपा से भयमुक्त जीवन मिलता है।
  14. शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है।
  15. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  16. नकारात्मक प्रभावों से रक्षा होती है।
  17. पृथ्वी की समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

व्रत के नियम

  1. व्रत के दिन पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. व्रत के दौरान झूठ बोलने से बचें।
  3. व्रत के समय में मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें।
  4. नियमित रूप से शाकम्भरी मंत्र का जाप करें।
  5. व्रत के समय किसी की निंदा या आलोचना से बचें।

शाकम्भरी व्रत संपूर्ण कथा

प्राचीन काल की बात है, जब धरती पर भीषण अकाल पड़ा। कई वर्षों तक वर्षा नहीं हुई, जिससे भूमि सूख गई। अन्न, जल और फल-फूल सब समाप्त हो गए। मनुष्य और पशु-पक्षी सभी भूख और प्यास से पीड़ित होने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया और जीवन संकट में पड़ गया। धरती का हर जीव भगवान से सहायता की प्रार्थना करने लगा।

देवताओं ने इस भयंकर स्थिति को देखा और संकट के निवारण के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती से सहायता मांगी। भगवान शिव ने कहा कि केवल देवी शाकम्भरी ही इस समस्या का समाधान कर सकती हैं। देवी शाकम्भरी, जो मानवता की रक्षक हैं, सब्जियों, फल-फूलों और अनाजों की देवी मानी जाती हैं। उनकी कृपा से धरती पर हरियाली और समृद्धि आती है।

देवताओं की प्रार्थना पर देवी शाकम्भरी प्रकट हुईं। उनका सौम्य रूप अत्यंत सुंदर था। उनके चेहरे पर दया और करुणा का भाव था। उनके एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में हर प्रकार की सब्जियाँ थीं। उन्होंने धरती की सूखी भूमि को हरा-भरा करने का संकल्प लिया।

देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से धरती को हरे-भरे खेतों से भर दिया। चारों ओर सब्जियाँ, फल, अनाज और फूल उगने लगे। जल के स्रोत फूट पड़े और नदियाँ बहने लगीं। भूमि फिर से जीवनदायिनी हो गई और सभी प्राणियों की भूख-प्यास शांत हो गई।

देवी शाकम्भरी के इस अद्भुत चमत्कार से सभी प्राणी अत्यंत खुश हुए। उन्होंने देवी की आराधना शुरू की और व्रत का पालन किया।

व्रत भोग

शाकम्भरी व्रत के दिन देवी को भोग स्वरूप सब्जियाँ, फल, और दुग्ध उत्पाद अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही विशेष प्रकार का सात्विक भोजन तैयार कर देवी को अर्पित किया जाता है। पूजा समाप्ति के बाद इसे प्रसाद रूप में बांटा जाता है।

व्रत की शुरुवात और समाप्ति

व्रत की शुरुवात प्रातःकाल स्नान कर के होती है। व्रत की समाप्ति पूजा के बाद आरती करके और प्रसाद वितरण से होती है। इसके बाद व्रती फलाहार कर सकते हैं।

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सावधानियाँ

  1. व्रत के समय पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करें।
  2. व्रत के नियमों का पालन सख्ती से करें।
  3. पूजा के दौरान मन को स्थिर रखें और विकारों से दूर रहें।
  4. अशुद्ध और असावधानीपूर्वक किए गए व्रत का परिणाम नहीं मिलता है।

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शाकम्भरी व्रत से संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न: शाकम्भरी व्रत कब किया जाता है?

उत्तर: शाकम्भरी व्रत पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से नवमी तक किया जाता है।

प्रश्न: इस व्रत का मुख्य लाभ क्या है?

उत्तर: इस व्रत से परिवार में समृद्धि, शांति, और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न: व्रत के दौरान कौन सा भोजन करना चाहिए?

उत्तर: व्रत के दौरान फलाहार, सब्जियाँ, और दुग्ध उत्पाद ग्रहण करने चाहिए।

प्रश्न: क्या मांसाहार व्रत में सेवन किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, व्रत के दौरान मांसाहार से परहेज करना चाहिए।

प्रश्न: क्या शाकम्भरी व्रत केवल महिलाएँ करती हैं?

उत्तर: नहीं, यह व्रत कोई भी कर सकता है, चाहे स्त्री हो या पुरुष।

प्रश्न: व्रत के मंत्र कितने बार जाप किए जाने चाहिए?

उत्तर: शाकम्भरी मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।

प्रश्न: व्रत की पूजा विधि क्या है?

उत्तर: शाकम्भरी व्रत की पूजा विधि में देवी को फल, फूल, और सब्जियाँ अर्पित कर मंत्रों का जाप किया जाता है।