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Swarna Rekha Yakshini Mantra -Achieve Wealth and Success

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र: भौतिक सुख, संपन्नता और सफलता प्राप्ति का रहस्य

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र का जाप उन साधकों के लिए है जो आर्थिक, भौतिक और मानसिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए इसे धारण करना चाहते हैं। इस यक्षिणी मंत्र की महिमा अनेक धर्म ग्रंथों में की गई है और यह साधना करने वालों को अलौकिक शक्ति एवं संपन्नता का आशीर्वाद देती है।

दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र: “ॐ आपदध्वं दिशाश्वॆहिनिदानं पांतां मा सर्वतो दिशो”
अर्थ: यह मंत्र दसों दिशाओं की रक्षा करते हुए, साधक के चारों ओर सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः स्वर्णरेखा यक्षिणे क्लीं स्वाहा”

संपूर्ण अर्थ:

यह मंत्र विशेष रूप से धन, समृद्धि, सौभाग्य और मानसिक शांति को आकर्षित करने के लिए साधकों द्वारा जपा जाता है। इसके शब्द-चयन और ध्वनि तरंगें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, जो साधक के भीतर आत्मविश्वास और शांति को बढ़ाती हैं। इस मंत्र में हर बीजाक्षर का एक विशिष्ट अर्थ और शक्ति है:

  1. – यह ईश्वर का पवित्र शब्द है, जो आध्यात्मिक जागरण और ध्यान के लिए उपयोगी है।
  2. ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रः – ये बीजाक्षर यक्षिणी की अलौकिक शक्ति को जाग्रत करते हैं, जो साधक के जीवन में समृद्धि और उन्नति के द्वार खोलने में सहायक होते हैं।
  3. स्वर्णरेखा – इस शब्द का सीधा अर्थ है “सुनहरी रेखा,” जो संपन्नता और ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह यक्षिणी साधना द्वारा साधक के जीवन में सौभाग्य और धन की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
  4. क्लीं – यह बीज मंत्र प्रेम, आकर्षण और अनुकूलता का प्रतीक है। साधना के दौरान इसका जाप साधक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है।
  5. स्वाहा – यह मंत्र का अंतिम शब्द है, जो मंत्र को सिद्धि प्रदान करता है और इसके लाभों को स्थायी बनाता है।

संक्षिप्त रूप में, यह मंत्र यक्षिणी की कृपा से साधक के जीवन में सौभाग्य, सुख, समृद्धि, और शांति की स्थापना करता है। इसके नियमित जप से साधक को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

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जप काल में सेवन करने योग्य आहार

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र साधना के दौरान विशेष आहार का सेवन करना साधना की सफलता और साधक की ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होता है। इन आहारों का सेवन साधक के शरीर और मन को स्थिरता और शांति प्रदान करता है, जिससे साधना में ध्यान केंद्रित और उन्नत किया जा सके। जप काल में निम्नलिखित आहार का सेवन विशेष रूप से लाभकारी माना गया है:

  1. दूध और दूध से बने पदार्थ: दूध में सकारात्मक ऊर्जा और शांति प्रदान करने की शक्ति होती है। इसका नियमित सेवन साधक की मानसिक शक्ति और ऊर्जा को बढ़ाता है।
  2. फल: ताजे फल जैसे केला, सेब, अनार, और पपीता आदि साधक की आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और शरीर को तरोताजा रखते हैं।
  3. सूखे मेवे: काजू, बादाम, किशमिश, अखरोट जैसे सूखे मेवे का सेवन साधक की मानसिक स्थिरता बढ़ाने और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है। यह दिमागी थकान को दूर करते हैं और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  4. हरी सब्जियां: पालक, मेथी, और अन्य हरी सब्जियां शरीर को पोषण देती हैं, जिससे साधक का शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
  5. ताजा और हल्का भोजन: साधना के दौरान साधक को ताजे और हल्के भोजन का सेवन करना चाहिए, जैसे खिचड़ी, दलिया, सूप, आदि, जो पाचन में आसान हो और शरीर में भारीपन न लाए।
  6. शुद्ध जल: साधना के दौरान पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन करना आवश्यक है। यह शरीर को शुद्ध रखता है और साधना के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को संतुलित करता है।

इन आहारों का सेवन साधक की साधना को शक्ति प्रदान करता है और शरीर व मन को संतुलित रखता है, जिससे साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।

स्वर्णरेखा यक्षिणी साधना के लाभ

  1. धन-संपत्ति में वृद्धि
  2. मानसिक शांति
  3. व्यवसाय में उन्नति
  4. रिश्तों में सुधार
  5. शत्रुओं पर विजय
  6. ऋण मुक्ति
  7. करियर में उन्नति
  8. आत्मबल वृद्धि
  9. सौभाग्य की प्राप्ति
  10. मनोकामना पूर्ण
  11. अद्वितीय आकर्षण शक्ति
  12. स्वस्थ और सफल जीवन
  13. सिद्धि प्राप्ति
  14. दैवीय शक्ति का अनुभव
  15. आर्थिक सुरक्षा
  16. मन की शांति
  17. करुणा और दया की वृद्धि
  18. सकारात्मकता और आंतरिक स्थिरता

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र साधना सामग्री और तिलक विधि

सामग्री: एक चम्मच अष्टगंध, हल्दी, घी का दीपक, पीला आसन।

  1. पीले आसन पर बैठें और सामने दीपक जलाएं।
  2. शक्ति मुद्रा में २० मिनट तक प्रतिदिन १८ दिनों तक मंत्र का जप करें।
  3. १८वें दिन अन्नदान करें।
  4. हल्दी और अष्टगंध में घी मिलाकर तिलक बनाएं, कार्य से बाहर जाने से पहले यह तिलक लगाएं। माथे पर न लगा सकें तो गले या कान के पीछे लगाएं।

मंत्र जप के दिन, अवधि और मुहूर्त

साधना का शुभारंभ शुक्ल पक्ष के गुरुवार को किया जाए। २० मिनट तक रोज १८ दिनों तक जाप करें।

स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र जप के नियम

  • आयु २० वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • स्त्री-पुरुष दोनों जप कर सकते हैं।
  • नीले और काले वस्त्र न पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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सावधानियाँ

  • साधना के समय पूर्ण श्रद्धा और संयम रखें।
  • गलत विचारों और अविश्वास से दूर रहें।

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स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: क्या तिलक को विशेष कार्य में बाहर निकलने से पहले ही लगाना है?
उत्तर: हां, यह तिलक विशेष कार्य में सफलता दिलाने में सहायक होता है।

प्रश्न: स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: यह मंत्र साधक को भौतिक सुख, समृद्धि, और आत्मबल प्राप्ति के लिए है।

प्रश्न: इस मंत्र का जाप कौन कर सकता है?
उत्तर: २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं, लेकिन संयमित जीवनशैली आवश्यक है।

प्रश्न: मंत्र जाप के दौरान कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?
उत्तर: सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनें। नीले और काले कपड़े पहनने से बचें।

प्रश्न: साधना के दौरान कौन से आहार का सेवन करना चाहिए?
उत्तर: दूध, फल, सूखे मेवे और शाकाहारी भोजन का सेवन करें।

प्रश्न: क्या मंत्र जप के समय किसी खास दिन या मुहूर्त का पालन करना चाहिए?
उत्तर: मंत्र का आरंभ शुक्ल पक्ष के गुरुवार को करना शुभ माना जाता है।

प्रश्न: मंत्र का प्रभाव कब तक रहता है?
उत्तर: उचित जप विधि और संयम के साथ किया गया मंत्र दीर्घकालिक लाभ प्रदान करता है।

प्रश्न: मंत्र जाप की अवधि क्या होनी चाहिए?
उत्तर: प्रतिदिन २० मिनट तक १८ दिनों तक इस मंत्र का जाप करें।

प्रश्न: क्या जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है?
उत्तर: हां, साधना में सफलता के लिए ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।

प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान धूम्रपान या मद्यपान कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, यह साधना के नियमों का उल्लंघन होगा और लाभ प्राप्त नहीं होंगे।

प्रश्न: क्या साधना के बाद कोई विशेष दान करना चाहिए?
उत्तर: १८वें दिन अन्नदान करना अति शुभ माना जाता है।

प्रश्न: साधना के लिए कौन सी मुद्रा का प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर: शक्ति मुद्रा में बैठकर जाप करें।

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