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Vaishnav Devi Shakti Peeth for Wishes

Vaishnav Devi Shakti Peeth for Wishes

वैष्णो देवी शक्तिपीठ: देवी महिमा और अद्वितीय शक्ति

वैष्णो देवी शक्तिपीठ हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। इसे माता वैष्णो देवी का पवित्र निवास माना जाता है, जहाँ देवी तीन स्वरूपों में विराजमान हैं। यहाँ आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और यह स्थान आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। वैष्णो देवी का यह पवित्र धाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

देवी महिमा

वैष्णो देवी शक्तिपीठ की महिमा अद्वितीय है। यह मान्यता है कि माता वैष्णो देवी, त्रिकुट पर्वत पर विराजमान हैं और यहाँ माँ महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ माता की अराधना करता है, उसे समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है। माँ वैष्णो देवी की कृपा से भक्तों को असीम सुख-शांति प्राप्त होती है।

वैष्णो देवी मंदिर की पौराणिक कथा

वैष्णो देवी मंदिर की पौराणिक कथा बेहद प्राचीन और अद्भुत है। ऐसा कहा जाता है कि माता वैष्णो देवी, भगवान विष्णु की आराधना में लीन थीं। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। देवी का जन्म एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जहाँ उनका नाम त्रिकुटा रखा गया। लेकिन उन्हें बाद में वैष्णवी के नाम से भी जाना गया। छोटी उम्र से ही वे भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और संसार को पापों से मुक्त करने का प्रण लिया। उन्होंने कठोर तपस्या की और अधर्म का नाश करने की शक्ति प्राप्त की।

कहते हैं कि जब महादैत्य रावण ने पृथ्वी पर अत्याचार करना शुरू किया, तब माँ वैष्णो देवी ने उस समय के महान योद्धा राम की सहायता करने का निर्णय लिया। राम को देखते ही देवी ने विवाह का प्रस्ताव रखा, परंतु राम ने उन्हें समझाया कि वे इस जीवन में एक पतिव्रता नारी सीता के पति हैं। राम ने देवी से यह भी कहा कि कलियुग में वे उन्हें पहचान लेंगे और उनका विवाह करेंगे। तब तक, वैष्णो देवी ने हिमालय के त्रिकुट पर्वत पर ध्यानस्थ होकर तपस्या की।

देवी की गुफा में प्रवेश और भवन निर्माण की कथा

समय बीतने के बाद, वैष्णो देवी को भैरवनाथ नामक एक तांत्रिक साधु ने परेशान किया। उन्होंने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं माना। अंततः देवी ने अपनी गुफा में शरण ली। भैरवनाथ उनका पीछा करता रहा। देवी ने अपनी शक्ति से उसका अंत कर दिया।

वैष्णो देवी – लाभ

शक्ति पीठों का विशेष महत्व तब से है जब माता सती का अंग पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिरा था। वैष्णो देवी शक्तिपीठ पर माता के कंठ का गिरना बताया जाता है। (कुछ विद्वानों के अनुसार यहां पर देवी का मस्तिष्क गिरा था) कंठ गिरने से यह स्थान अत्यंत पवित्र माना गया है और इसके दर्शन के विशेष लाभ बताए गए हैं:

  1. शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है।
  2. जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
  3. समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है।
  4. आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  5. कार्यों में सफलता मिलती है।
  6. घर-परिवार में सुख-शांति रहती है।
  7. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  9. शिक्षा में सफलता मिलती है।
  10. नौकरी-व्यवसाय में उन्नति होती है।
  11. संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
  12. वैवाहिक जीवन में सुख मिलता है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  14. भाग्य में सुधार होता है।
  15. भय और शत्रुओं से रक्षा होती है।
  16. मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  17. आध्यात्मिक उन्नति होती है।

वैष्णो देवी की खासियत

वैष्णो देवी की सबसे खास बात यह है कि यह शक्तिपीठ त्रिकुट पर्वत पर स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए भक्तों को एक कठिन यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा में भक्तों को देवी के प्रति अपनी असीम श्रद्धा का प्रमाण देना होता है। यात्रा के दौरान “जय माता दी” के जयकारों से वातावरण गूँज उठता है। देवी के दर्शन करना यहाँ के भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव होता है, जो उन्हें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह प्रदान करता है।

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पूजा सामग्री

वैष्णो देवी की पूजा में निम्नलिखित सामग्री का उपयोग होता है:

  • नारियल
  • चुनरी
  • फूल
  • कपूर
  • अगरबत्ती
  • दीपक
  • मिठाई
  • चंदन
  • कुमकुम
  • मौली

पूजा विधि मंत्र सहित

माता वैष्णो देवी की पूजा में निम्न मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी माना गया है:

मंत्र:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं वैष्णव्यै नमः”
इस मंत्र का 108 बार जाप करें। माता को नारियल और चुनरी अर्पित करें। दीपक जलाकर माता की आरती करें और प्रसाद बांटें।

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वैष्णो देवी शक्तिपीठ के प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: वैष्णो देवी किस पर्वत पर स्थित है?
उत्तर: वैष्णो देवी त्रिकुट पर्वत पर स्थित है।

प्रश्न 2: माता वैष्णो देवी के दर्शन के क्या लाभ हैं?
उत्तर: माता के दर्शन से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और दुखों से मुक्ति मिलती है।

प्रश्न 3: माता वैष्णो देवी के तीन स्वरूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर: माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं।

प्रश्न 4: वैष्णो देवी यात्रा कितनी कठिन है?
उत्तर: यात्रा कठिन है, लेकिन श्रद्धा और आस्था से पूरी होती है।

प्रश्न 5: वैष्णो देवी मंदिर की विशेषता क्या है?
उत्तर: मंदिर पर्वत की गुफा में स्थित है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक है।

प्रश्न 6: वैष्णो देवी की पूजा में क्या सामग्री चाहिए?
उत्तर: नारियल, चुनरी, फूल, कपूर, दीपक, मिठाई आदि आवश्यक हैं।

प्रश्न 7: वैष्णो देवी की यात्रा में किन चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: श्रद्धा, संयम और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 8: क्या माता वैष्णो देवी शक्तिपीठ में विशेष पर्व होते हैं?
उत्तर: नवरात्रि का पर्व यहाँ विशेष रूप से मनाया जाता है।

प्रश्न 9: माता वैष्णो देवी को कौन-सा मंत्र प्रिय है?
उत्तर: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं वैष्णव्यै नमः” मंत्र माता को प्रिय है।

प्रश्न 10: माता वैष्णो देवी की कथा किससे संबंधित है?
उत्तर: माता की कथा राजा रत्नाकर और भगवान विष्णु से संबंधित है।

प्रश्न 11: वैष्णो देवी के दर्शन का सर्वोत्तम समय कौन-सा है?
उत्तर: नवरात्रि और अन्य प्रमुख हिंदू पर्वों का समय सर्वोत्तम माना जाता है।

प्रश्न 12: वैष्णो देवी यात्रा कैसे की जाती है?
उत्तर: यात्रा पैदल, घोड़े या पालकी के माध्यम से की जाती है।

इस प्रकार, वैष्णो देवी शक्तिपीठ में देवी की पूजा और दर्शन से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

Tara Tarini Shaktipeeth- Divine Blessings Unveiled

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तारा तारिणी शक्तिपीठ का रहस्य – देवी सती के अंग गिरने से जुड़ी कथा और पूजा सामग्री

तारा तारिणी शक्तिपीठ उड़ीसा राज्य के गंजाम जिले में स्थित है। ये तारा पीठ या स्तन पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस पवित्र स्थल पर माता सती के स्तन गिरे थे। तारा तारिणी को शक्तिस्वरूपा और तारिणी अर्थात् मुक्ति दिलाने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।

तारा तारिणी शक्तिपीठ की सम्पूर्ण कथा

तारा तारिणी शक्तिपीठ उड़ीसा के गंजाम जिले में स्थित है। यह स्थान हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस पवित्र स्थल पर माता सती के स्तन गिरे थे, जिसके कारण इसे स्तनपीठ कहा जाता है। देवी तारा तारिणी की महिमा से यह स्थान अत्यंत पावन और शक्तिशाली माना जाता है। भक्तगण यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और संकटों से मुक्ति के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने माता सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। तारा तारिणी शक्तिपीठ भी उन्हीं में से एक है। यहां पर माता सती के स्तन गिरे थे, और इसीलिए इसे अत्यंत पवित्र शक्तिपीठ माना जाता है।

यहां की देवी को तारा और तारिणी नामों से जाना जाता है। तारा का अर्थ होता है “तारने वाली” और तारिणी का अर्थ है “मुक्ति दिलाने वाली”। यह देवी अपने भक्तों को संकटों से उबारती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं। तारा तारिणी की महिमा की चर्चा पुराणों और धर्मग्रंथों में भी मिलती है।

तारा तारिणी की कथा से जुड़ी विशेष घटनाएं

एक बार उड़ीसा के गंजाम जिले में एक भक्त को माता सती ने स्वप्न में दर्शन दिए। उन्होंने भक्त को आदेश दिया कि वह एक पवित्र स्थान पर उनकी प्रतिमा की स्थापना करे। भक्त ने निर्देशों का पालन करते हुए देवी की मूर्ति स्थापित की और वहां मंदिर का निर्माण किया। धीरे-धीरे यह स्थान अत्यधिक प्रसिद्ध हो गया और दूर-दूर से लोग यहां देवी की आराधना के लिए आने लगे।

तारा तारिणी शक्तिपीठ में प्रत्येक वर्ष बड़े धूमधाम से तारा तारिणी मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में हजारों भक्तगण देवी के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि इस मेले में आने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। देवी की कृपा से उनके जीवन में आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।

तारा तारिणी शक्तिपीठ की यात्रा करने से न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ हो जाते हैं। इस स्थान की यात्रा से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी मिलता है।

तारा तारिणी पूजा और मान्यताएं

तारा तारिणी की पूजा करने के लिए भक्तगण विशेष पूजा सामग्री लेकर आते हैं। इस शक्तिपीठ में नारियल, लाल वस्त्र, चंदन, कुमकुम, फूल-माला, और भोग चढ़ाने की परंपरा है। माना जाता है कि तारा तारिणी की पूजा विधि अत्यंत सरल और प्रभावशाली होती है। देवी की आराधना करने से उनके भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पूजा के समय भक्तगण देवी के सामने दीप जलाते हैं और चंदन, कुमकुम और फूल अर्पित करते हैं। इसके बाद नारियल फोड़कर देवी को समर्पित किया जाता है। पूजा के अंत में भोग अर्पित किया जाता है, जिसमें लड्डू, फल और पान-सुपारी शामिल होते हैं। तारा तारिणी की पूजा विधि के दौरान मंत्रों का जाप भी किया जाता है, जिससे पूजा और अधिक प्रभावशाली बन जाती है।

तारा तारिणी शक्तिपीठ में विशेष रूप से चैत्र मास के दौरान भक्तगण यहां आकर देवी की आराधना करते हैं। इस महीने में यहां बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और तारा तारिणी देवी से अपने जीवन के कष्टों का निवारण मांगते हैं। देवी के प्रति भक्तों का अगाध विश्वास है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से तारा तारिणी की पूजा करता है, उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

तारा तारिणी शक्तिपीठ की धार्मिक महत्ता

तारा तारिणी शक्तिपीठ केवल उड़ीसा ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में अत्यधिक धार्मिक महत्व वाला स्थान है। यहां आने वाले भक्तगण देवी की महिमा से अभिभूत होते हैं और देवी के प्रति अपनी अटूट आस्था व्यक्त करते हैं। शक्तिपीठ होने के नाते इस स्थान का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है।

देवी तारा तारिणी की पूजा करने से जीवन में आने वाले सभी संकट और परेशानियां दूर हो जाती हैं। साथ ही, भक्तगण अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करते हैं। तारा तारिणी की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है, जहां यह शक्तिपीठ एक विशेष स्थान रखता है।

इस शक्तिपीठ की यात्रा करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से लाभ होता है। श्रद्धालु यहां देवी के दर्शन करके अपने दुखों का निवारण करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं।

तारा तारिणी शक्तिपीठ की विशेष लाभ

  1. मनोकामनाओं की पूर्ति।
  2. मानसिक शांति।
  3. रोगों से मुक्ति।
  4. आर्थिक समृद्धि।
  5. बुरी शक्तियों से रक्षा।
  6. मानसिक स्थिरता।
  7. परिवार में शांति।
  8. दीर्घायु का आशीर्वाद।
  9. ज्ञान प्राप्ति।
  10. आत्मिक शुद्धि।
  11. देवी कृपा से संतति सुख।
  12. विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान।
  13. सामाजिक प्रतिष्ठा।
  14. आध्यात्मिक उन्नति।
  15. विपत्तियों से मुक्ति।
  16. कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय।
  17. व्यापार में सफलता।

तारा तारिणी शक्तिपीठ की खासियत

तारा तारिणी शक्तिपीठ की प्रमुख खासियत यह है कि यहां आने वाले भक्तों की समस्त समस्याओं का समाधान होता है। माना जाता है कि देवी तारा तारिणी विशेष रूप से उन लोगों की मदद करती हैं जो संकट में होते हैं। देवी का यह शक्तिपीठ न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है।

तारा तारिणी की पूजा सामग्री

  1. लाल वस्त्र।
  2. चंदन।
  3. कुमकुम।
  4. नारियल।
  5. अगरबत्ती।
  6. फूल-माला।
  7. दीपक।
  8. भोग (लड्डू, फल)।
  9. पान-सुपारी।
  10. जल, दूध, दही।

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तारा तारिणी पूजा विधि

  1. सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. तारा तारिणी देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
  3. चंदन, कुमकुम और फूल अर्पित करें।
  4. नारियल और भोग चढ़ाएं।
  5. 11 बार देवी के मंत्र का जाप करें।
  6. पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।
  7. मंत्र – ॐ स्त्रीं तारा तुतारे नमः

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तारा शक्तिपीठ प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: तारा तारिणी शक्तिपीठ कहां स्थित है?

उत्तर: यह उड़ीसा राज्य के गंजाम जिले में स्थित है।

प्रश्न 2: यहां कौन से देवी का अंग गिरा था?

उत्तर: माता सती के स्तन इस स्थान पर गिरे थे।

प्रश्न 3: तारा तारिणी का क्या अर्थ है?

उत्तर: तारा का अर्थ है तारने वाली, और तारिणी का अर्थ है मुक्ति देने वाली।

प्रश्न 4: तारा तारिणी की पूजा का शुभ समय क्या है?

उत्तर: सुबह और शाम का समय पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

प्रश्न 5: इस शक्तिपीठ की महिमा क्या है?

उत्तर: देवी तारा तारिणी संकटों से मुक्त करती हैं और इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

प्रश्न 6: इस शक्तिपीठ में कौन-कौन सी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं?

उत्तर: नारियल, चंदन, कुमकुम, फूल, और भोग चढ़ाए जाते हैं।

प्रश्न 7: इस शक्तिपीठ का प्रमुख त्योहार कौन सा है?

उत्तर: तारा तारिणी मेला यहां का प्रमुख त्योहार है।

प्रश्न 8: तारा तारिणी शक्तिपीठ की यात्रा का लाभ क्या है?

उत्तर: भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।

प्रश्न 9: यहां पर आने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

उत्तर: मार्च और अप्रैल के महीने यात्रा के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं।

प्रश्न 10: इस स्थल का धार्मिक महत्व क्या है?

उत्तर: यह शक्तिपीठ देवी सती के गिरने वाले स्थानों में से एक है।

प्रश्न 11: कौन-कौन सी चीजें पूजा में अनिवार्य होती हैं?

उत्तर: नारियल, फूल, चंदन, कुमकुम, और दीपक अनिवार्य हैं।

प्रश्न 12: तारा तारिणी शक्तिपीठ की यात्रा क्यों करनी चाहिए?

उत्तर: जीवन की समस्याओं का समाधान और देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए यहां की यात्रा करनी चाहिए।

Kamakhya Shakti Peeth- Power of Tantra

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कामाख्या शक्तिपीठ मे अंबूवाची मेला 2025: कामाख्या देवी का रजस्वला पर्व

कामाख्या शक्तिपीठ असम के गुवाहाटी में स्थित एक पवित्र और प्राचीन मंदिर है। यह स्थान देवी कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं। यहाँ देवी का योनि अंग गिरा था, और यह स्थल महाशक्तिपीठों में से एक है।

अंबूवाची मेला मुहुर्त २०२५

अंबूवाची मेला 2025 का आयोजन 22 जून से 25 जून तक असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में होगा। यह चार दिवसीय पर्व देवी कामाख्या की मासिक धर्म अवधि का प्रतीक है और इसे भक्ति व प्राकृतिक उर्वरता का महोत्सव माना जाता है। इस दौरान, मंदिर के गर्भगृह के द्वार बंद रहेंगे, और यह समझा जाता है कि देवी अपने मासिक धर्म में हैं। 25 जून को सुबह के समय, जब यह माना जाता है कि देवी का मासिक चक्र समाप्त हो गया है, मंदिर फिर से खुलता है, और पूजा-अर्चना की जाती है।

यह मेला देवी की मासिक ऋतु का प्रतीक है। अंबूवाची के समय मंदिर के कपाट तीन दिनों तक बंद रहते हैं। यह मेला तांत्रिकों का प्रमुख पर्व होता है और हजारों साधक इसमें सम्मिलित होते हैं।

अंबूवाची मेले में भारी संख्या में साधु-संत, तांत्रिक और श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। मेले में असमिया संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है, जिसमें स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक नृत्य-संगीत शामिल हैं। इस मेले में शामिल होना एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो भक्तों को देवी के आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

मेला स्थल पर पहुँचने के लिए गुवाहाटी हवाई अड्डे, गुवाहाटी रेलवे स्टेशन या कामाख्या रेलवे स्टेशन का उपयोग कर सकते हैं। मेले के दौरान विभिन्न प्रकार के आवास विकल्प भी उपलब्ध होते हैं, जिनमें होटल, गेस्ट हाउस और होमस्टे शामिल हैं। यदि आप इस आयोजन में सम्मिलित होना चाहते हैं, तो पहले से योजना बना लें ताकि आपकी यात्रा और आवास का प्रबंध सुगम हो सके।

देवी की महिमा

कामाख्या देवी का महत्व असीम है। वे शक्ति और सामर्थ्य की देवी मानी जाती हैं, और उनकी पूजा से इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

देवी का कौन सा अंग गिरा था?

कामाख्या शक्तिपीठ पर देवी सती का योनि अंग गिरा था। इसे तांत्रिक साधनाओं और पवित्र स्त्रीत्व का प्रतीक माना जाता है।

कामाख्या देवी के लाभ और खासियतें

  1. मंत्र सिद्धि: यहाँ तांत्रिक साधनाओं के द्वारा मंत्रों की सिद्धि प्राप्त होती है।
  2. रजस्वला देवी का प्रतीक: देवी का योनि अंग इस मंदिर का मुख्य आस्था केंद्र है।
  3. सृष्टि की शक्ति: देवी कामाख्या स्त्री ऊर्जा और सृजन शक्ति का प्रतीक हैं।
  4. तांत्रिक साधना: यह स्थान तांत्रिकों की पहली पसंद है।
  5. शक्तिपीठ में सिद्धियां: यहाँ साधना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
  6. इच्छा पूर्ति: यहाँ की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  7. शांति और समृद्धि: देवी की कृपा से जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
  8. आध्यात्मिक ज्ञान: यहाँ पूजा करने से आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है।
  9. ध्यान और साधना: यहाँ ध्यान करने से अद्वितीय अनुभव होता है।
  10. समृद्धि और स्वास्थ्य: देवी की पूजा से स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
  11. तांत्रिक शक्तियाँ: यहाँ तांत्रिक शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है।
  12. साधना के लिए उपयुक्त: यह स्थान साधकों के लिए आदर्श है।
  13. रहस्यमय अनुभव: यहाँ साधना करने से रहस्यमय अनुभव होते हैं।
  14. आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र: यह स्थान आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है।
  15. तांत्रिक विधियाँ: यहाँ तांत्रिक विधियाँ विकसित हुई हैं।
  16. विध्वंस और सृजन का संगम: यहाँ विध्वंस और सृजन शक्ति का संगम होता है।
  17. अमूर्त तत्त्वों का अनुभव: यहाँ के दर्शन से रोमांच का अनुभव होता है।

रजस्वला का लाल कपड़ा

मासिक ऋतु के दौरान, देवी के रजस्वला के रूप का प्रतीक लाल कपड़ा पूजित होता है। इसे विशेष शक्ति का वाहक माना जाता है।

तांत्रिकों की पहली पसंद – कामाख्या शक्तिपीठ

यह स्थान तांत्रिक साधनाओं के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। तांत्रिक इसे अपनी साधना का प्रमुख केंद्र मानते हैं।

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पूजा विधि

कामाख्या शक्तिपीठ में पूजा विधि में विशेष मंत्रों का जाप, ध्यान, और देवी को पुष्प, फल, और सिंदूर अर्पित करना शामिल है।

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प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: कामाख्या शक्तिपीठ कहाँ स्थित है?
उत्तर: असम के गुवाहाटी में।

प्रश्न 2: देवी का कौन सा अंग गिरा था?
उत्तर: योनि अंग।

प्रश्न 3: यहाँ की पूजा का क्या लाभ है?
उत्तर: इच्छाओं की पूर्ति और शांति।

प्रश्न 4: तांत्रिकों के लिए यह स्थल क्यों खास है?
उत्तर: यह तांत्रिक साधनाओं का प्रमुख केंद्र है।

प्रश्न 5: अंबूवाची मेला क्या है?
उत्तर: देवी की मासिक ऋतु का प्रतीक।

प्रश्न 6: रजस्वला का लाल कपड़ा क्या दर्शाता है?
उत्तर: देवी के मासिक चक्र का प्रतीक।

प्रश्न 7: यहाँ कितने शक्तिपीठ हैं?
उत्तर: यह 51 शक्तिपीठों में से एक है।

प्रश्न 8: क्या तांत्रिक यहाँ साधना करते हैं?
उत्तर: हाँ, तांत्रिक साधना के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है।

प्रश्न 9: कामाख्या देवी का प्रमुख पर्व क्या है?
उत्तर: अंबूवाची मेला।

प्रश्न 10: क्या यहाँ मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है?
उत्तर: हाँ, यहाँ मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है।

प्रश्न 11: यहाँ साधना के दौरान क्या ध्यान में आता है?
उत्तर: विशेष आध्यात्मिक अनुभव।

प्रश्न 12: यहाँ की पूजा विधि क्या है?
उत्तर: विशेष मंत्रों और पूजन सामग्री का प्रयोग।

कामाख्या शक्तिपीठ एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है, जो तांत्रिक साधनाओं, देवी के रजस्वला स्वरूप और अंबूवाची मेले के लिए प्रसिद्ध है।

Saubhagya Panchami Pujan for Prosperity & Fortune

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सौभाग्य पंचमी २०२४: सुख, समृद्धि और सौभाग्य का पर्व – संपूर्ण पूजन विधि और कथा

सौभाग्य पंचमी पूजन सौभाग्य, समृद्धि, और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। ये पूजन लाभ पंचम पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूजन करने से से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस पर्व को विशेष रूप से दांपत्य जीवन की खुशहाली और आर्थिक उन्नति के लिए मनाया जाता है।

सौभाग्य पंचमी पूजन मुहूर्त 2024

इस वर्ष सौभाग्य पंचमी का पर्व 10 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त सुबह 9:30 से 11:45 तक है। यह समय पूजा के लिए अति शुभ माना गया है और इस दौरान पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

संपूर्ण सौभाग्य पंचमी की पूजन कथा

सौभाग्य पंचमी की कथा एक प्राचीन समय की है। एक धनी व्यापारी अपनी पुत्री की शादी को लेकर चिंतित था। उसकी पुत्री का विवाह के बाद दांपत्य जीवन अच्छा नहीं चल रहा था। व्यापारी ने कई उपाय किए, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। तब उसने एक साधु से मार्गदर्शन लिया।

साधु ने व्यापारी को सौभाग्य पंचमी के दिन विशेष पूजा और व्रत का सुझाव दिया। व्यापारी ने पूरी श्रद्धा से देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की। उसने सौभाग्य पंचमी का व्रत भी रखा और अपनी पुत्री के लिए सौभाग्य की कामना की। पूजा के बाद व्यापारी की पुत्री के जीवन में सौभाग्य लौट आया।

उसके दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आई और उसके घर की आर्थिक स्थिति भी सुधर गई। इस घटना के बाद, व्यापारी ने समाज में इस पूजा का महत्व बताया। धीरे-धीरे सौभाग्य पंचमी पर्व की ख्याति फैल गई। इस पर्व को अब सभी लोग सौभाग्य और समृद्धि प्राप्ति के लिए मनाते हैं।

व्रत और पूजन से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए यह पर्व आज भी लोकप्रिय है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य मिलकर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। सौभाग्य पंचमी पर विशेष रूप से दांपत्य जीवन की खुशहाली के लिए व्रत और पूजा की जाती है।

सौभाग्य पंचमी पूजन विधि: आरती तक

पूजन सामग्री

पूजन के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर
  • धूप, दीपक, कपूर, रोली, चावल, पंचामृत, पुष्प, फल, मिठाई

पूजन की विधि

  1. स्नान और तैयारी: स्नान कर साफ कपड़े पहनें।
  2. मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल को साफ कर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीपक जलाना: दीपक जलाकर पूजा प्रारंभ करें।
  4. आरती और प्रसाद: लक्ष्मी माता की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।

मंत्र

  • मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”

सौभाग्य पंचमी के दिन क्या खाएँ और क्या न खाएँ

सौभाग्य पंचमी पर शुद्ध सात्विक भोजन करें और तामसिक आहार से परहेज करें। इस दिन लहसुन, प्याज, और मांसाहार का त्याग करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। फलाहार और हल्का भोजन ग्रहण करना सर्वोत्तम होता है।

सौभाग्य पंचमी के पूजन का समय और नियम

सूर्योदय से दोपहर तक पूजा का समय श्रेष्ठ होता है। पूरे श्रद्धा और ध्यान से पूजा करें। इस दिन व्रत रखने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

सौभाग्य पंचमी पूजन से प्रमुख लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि में वृद्धि – माता लक्ष्मी की कृपा से धन और संपत्ति में वृद्धि होती है।
  2. सौभाग्य का आशीर्वाद – इस पूजा से जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य प्राप्त होता है।
  3. दांपत्य जीवन में खुशहाली – यह पूजन दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य को बढ़ाता है।
  4. नकारात्मक ऊर्जा का नाश – पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है।
  5. व्यापार और नौकरी में सफलता – देवी लक्ष्मी की कृपा से कार्यों में उन्नति और सफलता प्राप्त होती है।
  6. स्वास्थ्य में सुधार – पूजा से मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. पारिवारिक समृद्धि – परिवार में एकता और समृद्धि बनी रहती है।
  8. शत्रु बाधाओं से मुक्ति – पूजा से शत्रु और बाधाओं का नाश होता है।
  9. संतान सुख की प्राप्ति – सौभाग्य पंचमी की पूजा से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
  10. धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति – पूजा से धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है।
  11. मानसिक शांति का अनुभव – पूजा के बाद मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  12. सकारात्मक सोच का विकास – पूजा से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  13. भाग्य में सुधार – देवी लक्ष्मी की कृपा से जीवन में भाग्य का सुधार होता है।
  14. परिवार में खुशियों का संचार – पूजा से परिवार में प्रेम, खुशियां और सुख-शांति बनी रहती है।
  15. संकटों का नाश – देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद से जीवन के सभी संकट और कठिनाइयों का समाधान होता है।

सौभाग्य पंचमी पूजन का महत्व और परिचय

सौभाग्य पंचमी पूजन सौभाग्य, समृद्धि, और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस पर्व को विशेष रूप से दांपत्य जीवन की खुशहाली और आर्थिक उन्नति के लिए मनाया जाता है।

सौभाग्य पंचमी की पूजन कथा

प्राचीन काल में एक धनी व्यापारी था जिसकी पुत्री का विवाह सौभाग्य पंचमी के दिन हुआ था। विवाह के बाद उस परिवार में समृद्धि आई और लक्ष्मी माता की कृपा बनी रही। तब से यह पर्व सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक बन गया। कहते हैं कि इस दिन व्रत करने से देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती।

सौभाग्य पंचमी पूजन विधि: आरती तक

पूजन सामग्री

पूजन के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर
  • धूप, दीपक, कपूर, रोली, चावल, पंचामृत, पुष्प, फल, मिठाई

पूजन की विधि

  1. स्नान और तैयारी: स्नान कर साफ कपड़े पहनें।
  2. मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल को साफ कर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीपक जलाना: दीपक जलाकर पूजा प्रारंभ करें।
  4. आरती और प्रसाद: लक्ष्मी माता की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।

मंत्र

  • मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”

सौभाग्य पंचमी के दिन क्या खाएँ और क्या न खाएँ

सौभाग्य पंचमी पर शुद्ध सात्विक भोजन करें और तामसिक आहार से परहेज करें। इस दिन लहसुन, प्याज, और मांसाहार का त्याग करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। फलाहार और हल्का भोजन ग्रहण करना सर्वोत्तम होता है।

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सौभाग्य पंचमी के पूजन का समय और नियम

सूर्योदय से दोपहर तक पूजा का समय श्रेष्ठ होता है। पूरे श्रद्धा और ध्यान से पूजा करें। इस दिन व्रत रखने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

सौभाग्य पंचमी पूजन के लाभ

  1. आर्थिक उन्नति होती है।
  2. घर में सुख-शांति बनी रहती है।
  3. नकारात्मकता का नाश होता है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. जीवन में सौभाग्य बढ़ता है।

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सौभाग्य पंचमी पूजन से जुड़े प्रश्न और उत्तर

सौभाग्य पंचमी का महत्व क्या है?

  • यह पर्व सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है।

2. सौभाग्य पंचमी का पूजन मुहूर्त क्या है?

  • शुभ मुहूर्त सुबह 9:30 से 11:45 तक है।

3. सौभाग्य पंचमी पूजन के दौरान क्या करें और क्या न करें?

  • पूजा के दौरान सात्विक रहें और तामसिक आहार न लें।

4. पूजन के समय कौन से मंत्र का उच्चारण करें?

  • “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें।

5. पूजा के दिन क्या खाना चाहिए?

  • फलाहार और हल्का भोजन।

6. पूजन विधि में क्या-क्या सामग्री लगती है?

  • धूप, दीपक, रोली, फल, मिठाई।

7. पूजन के लाभ क्या हैं?

  • जीवन में समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

8. सौभाग्य पंचमी पूजन की कथा क्या है?

  • यह सौभाग्य और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।

9. सौभाग्य पंचमी व्रत का क्या महत्व है?

  • व्रत करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

10. पूजन के बाद क्या करें?

  • आरती के बाद प्रसाद वितरित करें।

11. पूजा का समय कब से कब तक होता है?

  • सूर्योदय से दोपहर तक।

12. पूजन के दौरान कौन-कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?

  • शुद्धता, मन की पवित्रता और संकल्प के साथ पूजा करनी चाहिए।

सौभाग्य पंचमी पूजन हमें सुख-समृद्धि प्रदान करता है और देवी लक्ष्मी की कृपा से जीवन में आर्थिक उन्नति होती है। इस पावन अवसर पर पूरी श्रद्धा के साथ पूजन करें और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करें।

Kamakhya Mantra – Overcome Obstacles & Challenges

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कामख्या मंत्र जाप: तंत्र बाधा, विवाह समस्या और जीवन सुधार के लिए अचूक साधना

कामख्या मंत्र देवी कामख्या के विशेष साधकों के लिए अति प्रभावी और शक्ति प्रदान करने वाला मंत्र है। यह मंत्र व्यक्ति की इच्छाओं को पूर्ण करने, समस्याओं से छुटकारा दिलाने और जीवन में सुख-शांति लाने के लिए प्रयोग होता है। इसका नियमित जाप व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटों और बाधाओं को दूर करता है। देवी कामख्या को तांत्रिक शक्तियों की देवी माना जाता है और उनके इस मंत्र का प्रयोग मनोकामना पूर्ति, तंत्र बाधा, विवाह समस्या और जीवन में सफलता के लिए किया जाता है।

विनियोग मंत्र

विनियोग मंत्र इस प्रकार है:

“ॐ अस्य श्री कामख्या महा-मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, कामाख्या देवी देवता, मम सर्व मनोकामना सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः”

यह विनियोग मंत्र देवी का आह्वान कर साधक को मंत्र सिद्धि प्राप्ति हेतु शक्ति प्रदान करता है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

दिग्बंधन मंत्र इस प्रकार है:

“ॐ आपसरोर इंद्राय नमः। वायुर्वै विष्णुवर्मा। आप यामो नमः। पृथिव्यै चन्द्रमा दिग्बंधनाय नमः॥”

अर्थ: यह मंत्र साधक की रक्षा हेतु दसों दिशाओं में सुरक्षा का घेरा बनाता है और उसकी साधना के दौरान किसी भी प्रकार की बाधाओं को रोकता है।

कामख्या मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

कामख्या मंत्र:
“ॐ क्लीं क्लीं कामख्या क्लीं क्लीं नमः॥”

अर्थ: इस मंत्र का जाप देवी कामख्या के आह्वान के लिए किया जाता है। ‘क्लीं’ बीज मंत्र देवी की आकर्षण शक्ति और मनोकामना पूर्ति की ऊर्जा को व्यक्त करता है। जब साधक इस मंत्र का जाप करता है, तो देवी उसकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं और उसे हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति दिलाती हैं।

कामख्या मंत्र के लाभ

  1. कार्य में रुकावट दूर करना।
  2. विघ्न बाधाओं से मुक्ति।
  3. तंत्र बाधा से सुरक्षा।
  4. ऊपरी बाधाओं से छुटकारा।
  5. मनोकामना की पूर्ति।
  6. विवाहित जीवन की समस्याओं का समाधान।
  7. मन पसंद जीवन साथी की प्राप्ति।
  8. परिवार में शांति।
  9. धन प्राप्ति।
  10. वैवाहिक समस्याओं से निजात।
  11. सामाजिक मान-सम्मान में वृद्धि।
  12. शत्रु बाधा का नाश।
  13. मानसिक शांति और संतुलन।
  14. आत्मविश्वास में वृद्धि।
  15. अनिष्ट शक्तियों से सुरक्षा।
  16. संतान प्राप्ति।
  17. व्यवसायिक उन्नति।

पूजा सामग्री और मंत्र विधि

मंत्र जप के लिए आवश्यक सामग्री:

  • सिंदूर
  • लाल फूल (रोज़ बदला जाए)
  • लाल कपड़ा

विधि:

  1. सिंदूर और लाल फूल को सामने रखकर मंत्र जप करें।
  2. प्रतिदिन ११ माला (११८८ मंत्र) जपें।
  3. पूजा के समय लाल फूल रोज बदलें और पुराने फूलों को एकत्रित करें।
  4. साधना समाप्त होने के बाद फूलों को पीसकर सिंदूर में मिलाएं, और उन्हें लाल कपड़े में बांधकर किसी पवित्र स्थान पर रखें।
  5. साधना समाप्ति के बाद किसी गरीब को भोजन या फल दान करें।

मंत्र जप का समय, अवधि और मुहूर्त

कामख्या मंत्र का जप किसी शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए। इसके लिए अमावस्या, पूर्णिमा, या नवरात्रि के विशेष दिनों का चयन सर्वोत्तम रहता है।

जप की अवधि: ११ दिन तक नियमित ११ माला (११८८ मंत्र) रोज़ जप करें।

मंत्र जप के नियम

  1. साधक की आयु २० वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों इस साधना को कर सकते हैं।
  3. नीले या काले कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप की सावधानियां

  1. साधना के समय पूरे मन और श्रद्धा के साथ मंत्र जप करें।
  2. जप के दौरान किसी भी प्रकार के विकार, क्रोध या तनाव से बचें।
  3. यदि साधना के दौरान कोई बाधा महसूस हो, तो तुरंत तांत्रिक गुरु की सलाह लें।

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महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1: कामख्या मंत्र क्या है?

उत्तर: कामख्या मंत्र देवी कामख्या की साधना का एक शक्तिशाली मंत्र है जो मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।

प्रश्न 2: कामख्या मंत्र का अर्थ क्या है?

उत्तर: कामख्या मंत्र देवी की आकर्षण शक्ति, तांत्रिक शक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए जाप किया जाता है।

प्रश्न 3: कामख्या मंत्र से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर: कामख्या मंत्र से रुकावटें, तंत्र बाधाएं, ऊपरी बाधाएं दूर होती हैं और इच्छाओं की पूर्ति होती है।

प्रश्न 4: कामख्या मंत्र का जाप कब करना चाहिए?

उत्तर: कामख्या मंत्र का जाप अमावस्या, पूर्णिमा, नवरात्रि जैसे शुभ दिनों में करना चाहिए।

प्रश्न 5: मंत्र जप की अवधि कितनी होनी चाहिए?

उत्तर: ११ दिन तक नियमित रूप से ११ माला (११८८ मंत्र) रोज़ जप करना चाहिए।

प्रश्न 6: कामख्या मंत्र के जप में कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?

उत्तर: सिंदूर, लाल फूल, लाल कपड़ा, और पूजा के अन्य सामान कामख्या मंत्र जप के लिए आवश्यक हैं।

प्रश्न 7: मंत्र जप के दौरान कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?

उत्तर: साधक को संयम, ब्रह्मचर्य, और पवित्रता का पालन करना चाहिए। धूम्रपान और मांसाहार से बचना चाहिए।

प्रश्न 8: कामख्या मंत्र कौन कर सकता है?

उत्तर: २० वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

प्रश्न 9: क्या मंत्र जप में विशेष वस्त्र पहनने चाहिए?

उत्तर: मंत्र जप के दौरान नीले और काले कपड़े न पहनें। साधना में लाल या सफेद वस्त्र पहनें।

प्रश्न 10: कामख्या मंत्र से किस प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं?

उत्तर: यह मंत्र तंत्र बाधा, ऊपरी बाधा, शत्रु बाधा और मानसिक समस्याओं को दूर करता है।

Narasimha Chetak Mantra – Protection from Tantra Blockages

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भगवान नृसिंह चेटक मंत्र: नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति और सुरक्षा का उपाय

नृसिंह चेटक मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है जो सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने और सुरक्षा प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। भगवान नृसिंह, जो भगवान विष्णु का एक उग्र रूप हैं, की कृपा से साधक सभी तंत्र बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त हो सकता है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

साधना के दौरान, दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र उच्चारित किया जाता है ताकि साधक के चारों ओर सुरक्षा कवच स्थापित हो सके।

मुख्य मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र:
॥ ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय सर्वाणि तन्त्र बाधाः नष्टुं कुरु कुरु हुं फट्ट ॥
अर्थ:
यह मंत्र साधक के चारों ओर सुरक्षा कवच बनाता है और सभी तांत्रिक बाधाओं को नष्ट करने के लिए भगवान नृसिंह से प्रार्थना करता है।

नृसिंह चेटक मंत्र के लाभ

  1. सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा
  2. तांत्रिक बाधाओं का निवारण
  3. पारिवारिक कल्याण
  4. स्वास्थ्य में सुधार
  5. मानसिक शांति
  6. समृद्धि में वृद्धि
  7. आत्मबल में वृद्धि
  8. दुश्मनों पर विजय
  9. रोग निवारण
  10. आर्थिक वृद्धि
  11. आशीर्वाद की प्राप्ति
  12. आध्यात्मिक विकास
  13. सफलता में वृद्धि
  14. मानसिक शांति और स्फूर्ति
  15. ब्रह्मचर्य और संयम
  16. आंतरिक शांति
  17. जीवन में स्थिरता और संतोष

नृसिंह चेटक मंत्र की साधना विधि

साधना के लिए भगवान नृसिंह की तस्वीर को सामने रखें। ११ काली मिर्च के दाने रखें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। प्रतिदिन सूर्यास्‍त के समय दक्षिण मुख होकर ११ माला (११८८ मंत्र) का जाप करें। साधना ११ दिनों तक लगातार करें। समाप्ति के बाद, काली मिर्च के दानों को काले कपड़े में बांधकर घर में रखें।

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मंत्र जप के नियम

  • उम्र २० वर्ष से ऊपर होनी चाहिए
  • साधक स्त्री या पुरुष कोई भी हो सकता है
  • नीले और काले कपड़े न पहनें
  • धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें

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नृसिंह चेटक मंत्र – सामान्य प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर

1. नृसिंह चेटक मंत्र क्या है?

यह एक शक्तिशाली मंत्र है जो तंत्र बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करता है।

2. नृसिंह चेटक मंत्र कब जपें?

मंगलवार और शनिवार को करना उत्तम है, लेकिन इसे किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है।

3. मंत्र जप के लिए किस सामग्री की आवश्यकता है?

भगवान नृसिंह की तस्वीर, ११ काली मिर्च, सरसों का तेल, और दीपक।

4. मंत्र का जप कितने दिन करें?

११ दिनों तक लगातार ११ माला (११८८ मंत्र) का जप करें।

5. जप के दौरान कौन से नियम पालन करें?

धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।

6. क्या स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं?

हाँ, २० वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री और पुरुष दोनों इसे कर सकते हैं।

7. जप के समय कौन सा वस्त्र पहने?

साधारण रंग के वस्त्र पहनें; नीले और काले रंग से बचें।

8. मंत्र जप किस दिशा में करें?

सूर्यास्त के समय दक्षिण मुख होकर जप करना उचित है।

9. मंत्र का जप क्यों किया जाता है?

नकारात्मक ऊर्जाओं और तंत्र बाधाओं से मुक्ति के लिए।

10. मंत्र जप की विधि क्या है?

भगवान नृसिंह की तस्वीर के सामने बैठकर सरसों के तेल का दीपक जलाकर जप करें।

11. जप के बाद काली मिर्च का क्या करें?

काली मिर्च को काले कपड़े में बांधकर घर में रखें।

12. मंत्र जप के बाद क्या दान करें?

भोजन या फल का दान करें, पैसे का दान न करें।

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उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र: बाधाओं को हराने और मनोकामना पूर्ण करने का मार्ग

उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र भगवान गणेश का एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है, जिसका जाप साधकों को अत्यधिक आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान करता है। गणेशजी को लंबोदर के रूप में जाना जाता है, जो समस्त बाधाओं को हरने वाले और सभी कार्यों को निर्विघ्न पूर्ण करने वाले देवता हैं। यह मंत्र विशेष रूप से उच्छिष्ठ महात्म के रूप में गणपति की पूजा के लिए उपयोग किया जाता है। इसका नियमित जाप करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।

विनियोग मंत्र

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ठ लंबोदर महागणपति मंत्रस्य, वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री उच्छिष्ठ लंबोदर महागणपति देवता, श्रीमं उच्छिष्ठ लंबोदर गणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।

विनियोग मंत्र का उद्देश्य है कि इस मंत्र से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है वह साधक के द्वारा की जा रही साधना में पूर्णता प्रदान करे।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र

ॐ भद्रं नो अपि वातय मन्युः सर्वथा रक्षा मां सर्वं दिशायें रक्षा नो अस्तु स्वाहा।।

इस मंत्र का जाप दसों दिशाओं में सुरक्षा और ऊर्जा को बढाता है, जिससे साधक किसी भी नकारात्मक शक्ति से सुरक्षित रहता है।

उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

(“दत्तात्रेय तंत्र” के अनुसार)

॥ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ठ महात्मने क्रां क्रीं ह्रां घे घे उच्छिष्ठ स्वाहा॥

यह मंत्र भगवान गणेश के हस्तिमुख (हाथी जैसे मुख) और लंबोदर (लंबे पेट वाले) रूप को समर्पित है। ‘उच्छिष्ठ’ का अर्थ है ‘जो बचा हुआ हो’, जिसका संबंध साधना में सामग्रियों के अवशेषों से है। इस मंत्र का जाप करने से गणेशजी साधक को हर प्रकार की बाधा से मुक्त करते हैं और उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं।

मंत्र का भावार्थ:

  • हस्तिमुखाय: हाथी के मुख वाले गणेशजी को प्रणाम।
  • लंबोदराय: लंबोदर यानी लंबी तोंद वाले गणेश को नमन।
  • उच्छिष्ठ महात्मने: उच्छिष्ठ रूपी महात्मा के प्रति समर्पण।
  • क्रां क्रीं ह्रां घे घे: बीज मंत्र, जो ऊर्जा और शक्ति का संचार करते हैं।
  • स्वाहा: मंत्र की पूर्णता।

उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र के लाभ

  1. सभी प्रकार की बाधाओं का नाश।
  2. धन-समृद्धि का आगमन।
  3. व्यापार में उन्नति।
  4. स्वास्थ्य में सुधार।
  5. शत्रुओं पर विजय।
  6. मानसिक शांति।
  7. आध्यात्मिक विकास।
  8. पारिवारिक समस्याओं का समाधान।
  9. विवाह में आ रही रुकावटें दूर होना।
  10. बुद्धि और विवेक में वृद्धि।
  11. आत्मविश्वास में वृद्धि।
  12. जीवन में स्थिरता।
  13. गणेशजी की कृपा प्राप्ति।
  14. संतान प्राप्ति।
  15. कार्यों में सफलता।
  16. कर्ज से मुक्ति।
  17. दीर्घायु और सुखमय जीवन।

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पूजा सामग्री और विधि

  • सामग्री: दुर्वा (दूर्वा घास), लौंग, माला (रुद्राक्ष या चंदन), तांबे का पात्र, जल।
  • विधि: दुर्वा को सामने रखकर और मुंह में एक लौंग रखकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह जाप श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाना चाहिए।

मंत्र जाप का दिन, अवधि, मुहूर्त

मंत्र जाप किसी भी शुभ दिन से प्रारंभ किया जा सकता है, जैसे बुधवार, जो गणेशजी का दिन होता है। मुहूर्त के लिए प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त सबसे उत्तम समय माना जाता है।

अवधि

इस मंत्र का जाप 11 से 21 दिनों तक रोज़ाना करना चाहिए। इसे 21 दिनों तक जारी रखने से अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं।

उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र जाप की विधि

  • मंत्र संख्या: 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करें।
  • दिन: 11 से 21 दिन तक नियमित रूप से करें।
  • माला: रुद्राक्ष या चंदन की माला का उपयोग करें।

मंत्र जप के नियम

  1. साधक की आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
  3. नीले या काले कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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मंत्र जप में सावधानियां

  1. जाप के दौरान ध्यान और मानसिक शांति बनाए रखें।
  2. दुर्वा और लौंग के बिना मंत्र जप अधूरा माना जाता है।
  3. जाप के समय अपने आसन और स्थान को साफ रखें।

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उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र क्या है?

उत्तर: उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र भगवान गणेश का एक शक्तिशाली मंत्र है, जो जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है और साधक की हर मनोकामना पूरी करता है।

प्रश्न 2: इस मंत्र का जाप कौन कर सकता है?

उत्तर: 20 वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष इस मंत्र का जाप कर सकते हैं, जो नियमों का पालन करने में सक्षम हैं और शुद्धता का ध्यान रखते हैं।

प्रश्न 3: मंत्र का जाप कब करना चाहिए?

उत्तर: इस मंत्र का जाप ब्रह्ममुहूर्त में या शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। बुधवार को यह मंत्र जप विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।

प्रश्न 4: मंत्र का जाप कितने दिनों तक करना चाहिए?

उत्तर: उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र का जाप 11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।

प्रश्न 5: जाप के लिए कितनी माला जपें?

उत्तर: हर दिन 11 माला यानी 1188 मंत्र का जाप करना चाहिए।

प्रश्न 6: जाप के लिए कौन सी माला का प्रयोग करें?

उत्तर: रुद्राक्ष या चंदन की माला सबसे उपयुक्त होती है।

प्रश्न 7: क्या जाप के समय कोई वस्त्र नियम हैं?

उत्तर: हां, जाप के दौरान नीले और काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

प्रश्न 8: क्या खाने-पीने के कोई नियम हैं?

उत्तर: धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहार और अन्य तामसिक वस्तुओं का सेवन वर्जित है। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 9: उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र का लाभ क्या है?

उत्तर: यह मंत्र धन, समृद्धि, स्वास्थ्य, शांति, बाधा नाश, और सफलता प्रदान करता है।

प्रश्न 10: क्या इस मंत्र से शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो सकती है?

उत्तर: हां, इस मंत्र का जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और शत्रु बाधाएं दूर होती हैं।

प्रश्न 11: मंत्र जप के दौरान किन सावधानियों का पालन करें?

उत्तर: जाप के समय मन को शांत रखें, लौंग और दुर्वा का उपयोग अवश्य करें, और शुद्धता बनाए रखें।

प्रश्न 12: क्या उच्छिष्ठ लंबोदर मंत्र से संतान सुख प्राप्त हो सकता है?

उत्तर: हां, इस मंत्र का जाप संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है, जो इस समस्या से जूझ रहे दंपत्तियों को लाभ प्रदान करता है।

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त्रिविक्रम (वामन) व्रत 2024: जाने अनजाने किये गये पाप कर्म से मुक्ति व अद्भुत लाभ

त्रिविक्रम व्रत जिसे वामन व्रत भी कहा जाता है, भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव को समर्पित है। यह व्रत धर्म, सत्य और न्याय की स्थापना के लिए जाना जाता है। त्रिविक्रम (वामन) अवतार ने राजा बलि को अहंकार से मुक्त कर मोक्ष दिलाया। इस व्रत के पालन से मनुष्य पापों से मुक्त होता है और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि प्राप्त करता है।

त्रिविक्रम (वामन) व्रत का दिन व मुहूर्त 2024

त्रिविक्रम (वामन) व्रत 2024 में वामन द्वादशी का पर्व 15 सितंबर 2024, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन व्रत और पूजा करने का विशेष महत्व होता है।

मुहूर्त 2024:

  • द्वादशी तिथि प्रारंभ: 14 सितम्बर 2024 को रात्रि 08:41 बजे से
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 15 सितम्बर 2024 को शाम 06:12 बजे तक

इस दौरान दिनभर शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा-अर्चना और व्रत करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।

व्रत सामग्री का उपयोग व विधि

व्रत के दौरान प्रयोग की जाने वाली सामग्री में पंचामृत, पीले पुष्प, तुलसी, गाय का घी, कपूर, धूप, फल, मिठाई, जल, और दीपक शामिल होते हैं।

  1. सबसे पहले भगवान वामन की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  2. पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें।
  3. पीले पुष्प और तुलसी चढ़ाएं।
  4. गाय के घी से दीपक जलाएं और कपूर से आरती करें।

मंत्र:

“ॐ त्रिविक्रमाय नमो नमः” का 108 बार जप करें।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

व्रत के दौरान सात्विक भोजन करें। व्रत के नियमों के अनुसार अनाज और नमक का सेवन न करें। फल, दूध, और पानी का सेवन किया जा सकता है। तामसिक और मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए।

त्रिविक्रम (वामन) व्रत के लाभ

  1. जीवन में समृद्धि आती है।
  2. पापों से मुक्ति मिलती है।
  3. मन को शांति मिलती है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  6. परिवार में सुख-शांति बढ़ती है।
  7. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
  8. भगवान विष्णु की कृपा मिलती है।
  9. धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
  10. अहंकार नष्ट होता है।
  11. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  12. संतान सुख प्राप्त होता है।
  13. रोगों से मुक्ति मिलती है।
  14. मानसिक तनाव कम होता है।
  15. समाज में मान-सम्मान मिलता है।
  16. बुरे कर्मों का अंत होता है।
  17. जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

व्रत के नियम

  1. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. झूठ, चोरी या किसी भी प्रकार का गलत आचरण न करें।
  3. पूरे दिन उपवास रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  4. यदि शारीरिक कारणों से उपवास संभव न हो तो फलाहार करें।

त्रिविक्रम व्रत की संपूर्ण कथा

त्रिविक्रम (वामन) व्रत की कथा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह कथा भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन की महिमा का वर्णन करती है। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया। उन्होंने राजा बलि के अहंकार को समाप्त कर धर्म और सत्य की स्थापना की।

कथा के अनुसार, राजा बलि दानवीर और महान शासक थे। वे असुर कुल में जन्मे थे, लेकिन वे अपने धर्म और भक्ति के कारण पूजनीय माने जाते थे। राजा बलि ने अपनी भक्ति और शक्ति से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवता, विशेष रूप से इंद्र, उनकी शक्ति से चिंतित थे। इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे बलि के अत्यधिक अहंकार और अधर्म से मुक्ति दिलाएं।

भगवान विष्णु ने तब वामन अवतार धारण किया। वामन, एक छोटे ब्राह्मण के रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि, जो दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे, ने बिना सोचे-समझे इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि वामन वास्तव में भगवान विष्णु हैं।

वामन ने अपना विशाल रूप धारण किया और पहले पग में धरती और दूसरे पग में आकाश नाप लिया। जब तीसरे पग की बारी आई, तो राजा बलि ने समझ लिया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है। उन्होंने वामन से कहा कि वे अपना तीसरा पग उनके सिर पर रखें। वामन ने ऐसा ही किया और राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया। लेकिन उनकी भक्ति और दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया और हर वर्ष वामन द्वादशी के दिन उनके सम्मान में पूजा करने का आदेश दिया।

वामन अवतार का महत्व और संदेश

त्रिविक्रम (वामन) व्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि भले ही हम कितने ही शक्तिशाली क्यों न हो जाएं, अहंकार का त्याग करना आवश्यक है। अहंकार और अधर्म से पतन निश्चित है।

व्रत का भोग

भगवान को पीले रंग का भोजन जैसे खीर, लड्डू, और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। प्रसाद को सभी के साथ बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।

व्रत की शुरुआत व समाप्ति

व्रत सूर्योदय से प्रारंभ करें और भगवान वामन की पूजा करके प्रारंभिक संकल्प लें। संध्या समय पुनः आरती कर के व्रत का समापन करें।

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व्रत में सावधानियाँ

  1. व्रत करते समय मन को शुद्ध रखें।
  2. अहंकार या द्वेष से बचें।
  3. व्रत के नियमों का कठोरता से पालन करें।
  4. किसी भी प्रकार का गलत आचरण न करें।

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त्रिविक्रम (वामन) व्रत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: त्रिविक्रम व्रत किसके लिए विशेष फलदायी है?
उत्तर: त्रिविक्रम व्रत उन लोगों के लिए विशेष फलदायी है जो धन, समृद्धि, और शांति चाहते हैं।

प्रश्न 2: व्रत के दौरान क्या खाया जा सकता है?
उत्तर: फल, दूध, और पानी का सेवन किया जा सकता है, लेकिन अनाज और नमक से परहेज करें।

प्रश्न 3: इस व्रत का आध्यात्मिक लाभ क्या है?
उत्तर: इस व्रत से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।

प्रश्न 4: त्रिविक्रम व्रत में किस मंत्र का जाप करना चाहिए?
उत्तर: “ॐ त्रिविक्रमाय नमः” मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।

प्रश्न 5: त्रिविक्रम व्रत की पूजा सामग्री में क्या-क्या शामिल होता है?
उत्तर: पंचामृत, तुलसी, पीले पुष्प, दीपक, धूप, कपूर, और फल शामिल होते हैं।

प्रश्न 6: व्रत के समय किस दिशा में बैठना चाहिए?
उत्तर: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए।

प्रश्न 7: व्रत का पालन कौन कर सकता है?
उत्तर: इस व्रत का पालन कोई भी व्यक्ति कर सकता है जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 8: त्रिविक्रम व्रत का दिन क्या है?
उत्तर: भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को त्रिविक्रम व्रत किया जाता है।

प्रश्न 9: व्रत के क्या नियम होते हैं?
उत्तर: इस व्रत में ब्रह्मचर्य, सत्य, और संयम का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 10: त्रिविक्रम (वामन) अवतार का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: वामन अवतार ने राजा बलि के अहंकार को समाप्त कर धर्म की स्थापना की थी।

प्रश्न 11: व्रत का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: व्रत का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को अहंकार मुक्त करना और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना है।

प्रश्न 12: त्रिविक्रम व्रत से क्या समस्याएं दूर होती हैं?
उत्तर: आर्थिक तंगी, पारिवारिक कलह, और रोगों से मुक्ति मिलती है।

Dhanteras Pujan Significance, Rituals, and Benefits

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धनत्रयोदशी (धनतेरस) पूजन 2024: समृद्धि और स्वास्थ्य

धनत्रयोदशी, जिसे धनतेरस भी कहा जाता है, दिवाली उत्सव का पहला दिन होता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। ‘धन’ का अर्थ है समृद्धि और ‘तेरस’ का अर्थ है तेरहवां दिन। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और आरोग्य का वास होता है।

धनतेरस पर नई वस्तुएं, विशेषकर बर्तन और आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह संपत्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक होता है। यह पूजा न केवल आर्थिक उन्नति के लिए की जाती है, बल्कि आरोग्य और दीर्घायु के लिए भी विशेष महत्व रखती है।

धनतेरस पूजन मुहूर्त 2024

वर्ष 2024 में धनत्रयोदशी (धनतेरस) का पूजन मुहूर्त इस प्रकार है:

  • तिथि: 28 अक्टूबर 2024
  • पूजन का शुभ समय: सायंकाल 06:00 PM से 08:00 PM
  • प्रदोष काल: 05:40 PM से 08:20 PM
  • वृषभ काल: 06:30 PM से 08:30 PM

यह समय अत्यंत शुभ माना जाता है, जब घर की लक्ष्मी पूजन करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

धनत्रयोदशी (धनतेरस) पूजन विधि: मंत्र और सामग्री के साथ

पूजन सामग्री

  1. लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियाँ
  2. चांदी/तांबे के सिक्के
  3. दीपक, तेल और रुई
  4. हल्दी, कुमकुम, अक्षत (चावल)
  5. सुपारी, पान के पत्ते
  6. मिठाई (खीर या लड्डू)
  7. धूप और अगरबत्ती
  8. गंगाजल, दूध और शहद
  9. एक तांबे या पीतल का पात्र
  10. कलश और नया बर्तन

पूजा विधि

  1. सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करें और माँ लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्तियों को स्थापित करें।
  2. दीपक जलाएं और पूजा का संकल्प लें।
  3. सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें।
  4. लक्ष्मी जी की पूजा करते समय “ॐ ऐं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
  5. उन्हें चावल, फूल, मिठाई, और जल अर्पित करें।
  6. लक्ष्मी जी के साथ कुबेर देवता और धन्वंतरि की पूजा भी करें।
  7. कुबेर मंत्र ॐ यक्षपति कुबेराय नमः

धन्वंतरि पूजा मंत्र

“ॐ नमो भगवते धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय, सर्वामय विनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णवे नमः” या “ॐ ह्रां ह्रौं धनवंतरे नमः”.

इस मंत्र के साथ भगवान धन्वंतरि का आह्वान करें और आरोग्य की प्रार्थना करें।

आरती

पूजन के अंत में लक्ष्मी जी की आरती करें। “ॐ जय लक्ष्मी माता” आरती का गायन करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।

धनतेरस पूजन के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं

धनतेरस के दिन शुद्ध और सात्विक भोजन करना चाहिए। हल्के भोजन जैसे खिचड़ी, पूड़ी, सब्जी और फलाहार ग्रहण करना उत्तम होता है। इस दिन मांसाहार, प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत रखने वाले लोग केवल फल, दूध और अन्य सात्विक आहार लें।

कब से कब तक करें धनतेरस पूजा

धनतेरस पूजन प्रदोष काल में किया जाना चाहिए, जो सूर्यास्त के बाद के समय को दर्शाता है। इस वर्ष 2024 में पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6:00 PM से 8:00 PM के बीच है। इस समय लक्ष्मी जी और धन्वंतरि की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। वृषभ काल में किया गया पूजन विशेष फलदायी होता है।

धनतेरस पूजन के नियम और सावधानियाँ

  1. पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा के दौरान शांत मन और एकाग्रता बनाए रखें।
  3. पूजन स्थल को साफ रखें और गंगाजल का छिड़काव करें।
  4. पूजा में नकारात्मक विचार न लाएं और क्रोध से बचें।
  5. पूजन के समय पूरे परिवार को एकत्रित करना शुभ माना जाता है।
  6. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन लोहे के बर्तन और वस्त्र न खरीदें।
  7. दीपक जलाना और घर के मुख्य द्वार पर जल रखकर स्वागत करना शुभ है।

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धनतेरस पूजा के लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि और संपत्ति का वास।
  2. घर में सुख-शांति का स्थाई निवास।
  3. रोगों से मुक्ति और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति।
  4. व्यापार और व्यवसाय में उन्नति।
  5. परिवार में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।
  6. दुष्ट शक्तियों से रक्षा।
  7. मां लक्ष्मी की कृपा से सौभाग्य बढ़ता है।
  8. कुबेर देवता का आशीर्वाद मिलता है।
  9. मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति।
  10. जीवन में स्थिरता और संतुलन।
  11. आपसी समझ और सामंजस्य में वृद्धि।
  12. धन-संपत्ति में निरंतर बढ़ोतरी।
  13. कार्यक्षेत्र में मान-सम्मान की प्राप्ति।
  14. भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से दीर्घायु।
  15. व्यापार में अनुकूलता और लाभ।
  16. सुख-समृद्धि और वैभव की वृद्धि।
  17. परिवार में हर प्रकार की विघ्न-बाधा से मुक्ति।

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धनतेरस पूजा संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: धनतेरस का क्या महत्व है?
उत्तर: धनतेरस दिवाली का पहला दिन है। इसे माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस दिन का महत्व धन, समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति से जुड़ा है।

प्रश्न 2: धनतेरस पर कौन-कौन से देवताओं की पूजा की जाती है?
उत्तर: इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, धन्वंतरि और कुबेर देवता की पूजा की जाती है। लक्ष्मी से धन, धन्वंतरि से आरोग्य, और कुबेर से संपत्ति की प्रार्थना की जाती है।

प्रश्न 3: धनतेरस के दिन क्या खरीदना शुभ माना जाता है?
उत्तर: धनतेरस पर सोने-चांदी के आभूषण, बर्तन, धनिया, और नए वस्त्र खरीदना शुभ माना जाता है। ये वस्तुएं समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं।

प्रश्न 4: धनतेरस पर पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त क्या होता है?
उत्तर: धनतेरस पर पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में होता है, जो सूर्यास्त के बाद का समय है। 2024 में यह शाम 6:00 PM से 8:00 PM के बीच है।

प्रश्न 5: धनतेरस के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए?
उत्तर: इस दिन शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। मांसाहार, प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित होता है। व्रत रखने वाले लोग केवल फल और दूध का सेवन करते हैं।

प्रश्न 6: क्या धनतेरस पर लोहा खरीदना शुभ होता है?
उत्तर: शास्त्रों के अनुसार धनतेरस पर लोहे से बनी वस्तुएं खरीदना शुभ नहीं माना जाता है। इसके स्थान पर तांबा, चांदी या सोना खरीदना बेहतर होता है।

प्रश्न 7: धनतेरस पर दीपक जलाने का क्या महत्व है?
उत्तर: धनतेरस पर दीपक जलाना समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। मुख्य द्वार पर दीप जलाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है ताकि वे घर में प्रवेश करें और समृद्धि लाएं।

प्रश्न 8: धनतेरस पर किस दिशा में दीपक जलाना चाहिए?
उत्तर: धनतेरस पर दीपक मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर जलाना चाहिए। इससे नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और घर में सुख-शांति आती है।

Gajendra Moksha Stotra – Free from Debt

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गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र: कर्ज मुक्ति का रहस्य

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र, जिसे भगवान विष्णु के प्रमुख स्तोत्रों में गिना जाता है, भक्तों के लिए अत्यंत महत्व रखता है। यह स्तोत्र उस घटना पर आधारित है जब गजेंद्र नामक एक हाथी ने संकट में पड़कर भगवान विष्णु का आह्वान किया और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। इस स्तोत्र का पाठ करने से कर्ज, दुख, संकट मुक्ति के साथ मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। भक्तगण इसे नियमित रूप से पढ़कर अपने जीवन की समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।

संपूर्ण गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र और उसका अर्थ

संपूर्ण गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र

ॐ श्री गणेशाय नमः।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

श्री गजेंद्र उवाच:

ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्छिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥1॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥2॥

यः स्वात्मनीदं निजमायया सृजन्गुणव्यूतिकर्ता च गुणेशु गूढः।
तेनैव दु:खस्वनमध्वनीमिषं नरं नृसिंहं शरणं प्रपद्ये॥3॥

कल्पं गते यः सति सन्द्रुहावृतं स्वयं निनायाखिलसाधुसंस्तुतः।
अधिष्ठितो भूतगणेन भूरिभिर्विरिञ्चिरूपः प्रपदे तदक्षरम्॥4॥

यस्मान्न भूतेषु च विष्णुरात्मा कोऽप्येवमा वर्ततेऽभीक्ष्णमग्र्यम्।
विहाय तस्यैव सनाथ आत्मा तं वेद नित्यो हृदयेन वेदितम्॥5॥

तं प्रपद्ये स्वसमन्वितं हरिं सत्यं यतस्तं न विदुः स्वरूपिणम्।
सत्त्वेन तेनाश्रितमात्रनिर्जितं योगेश्वरानां गतिमन्धधिष्ण्यवित्॥6॥

न तेऽक्षिपातं न नृणां चिकीर्षुस्तं चैव सत्त्वानुगुणेन भेजे।
बुद्ध्यात्मना स्वेन गुणेन चास्य विष्वग्व्यपेतं जगदर्थमर्थितः॥7॥

स आत्ममायामनुप्रविष्ट आत्माऽत्मनं स्वकृतमप्यकार्षीत्।
अविद्यया चाप्युपलभ्यमानमात्मानमीशं प्रपद्येऽत्र वर्तते॥8॥

न वितृष्णया यजतां सपर्यया द्रविणक्रियायौक्षितयैर्मनोवचः।
न कर्मणा नापि वितायमर्चने तं भक्तियोगेन सदा प्रपद्यते॥9॥

वयं तु कर्मानुगुणानुरोधिना जीवन्मृतान्देहभृतां स्रुजेऽधिपः।
सर्वे हरेत्सङ्कटपङ्कजं ह्रदा नमः परं त्वां प्रपन्नं रुरुक्षे॥10॥

एवमादिस्तुवन्तं मन्मनाः पतिं पुरुषं यज्ञं स्वपरिचितोऽधिपः।
बुभुक्षितं सङ्कटहारिणं मुदा मुदा पुनः स्वर्गपदं च चिन्तयेत्॥11॥

इत्थं व्यासकलितं स्तोत्रं गजेन्द्रेण समर्पितम्।
श्रीपतेः श्रीयमध्यानं पापहारी प्रपद्यताम्॥12॥

संपूर्ण गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का अर्थ

गजेंद्र ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान विष्णु की स्तुति की, जो उनके दुखों को दूर करने और मोक्ष दिलाने के लिए की गई थी। यहाँ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के कुछ प्रमुख श्लोकों का सरल अर्थ प्रस्तुत है:

  1. पहला श्लोक:
    “मैं उस भगवान को प्रणाम करता हूँ, जो सबका मूल कारण हैं और जिनकी कृपा से यह सृष्टि चल रही है।”
  2. दूसरा श्लोक:
    “जो इस सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार के मूल हैं, मैं उन भगवान की शरण में जाता हूँ।”
  3. तीसरा श्लोक:
    “भगवान अपनी मायाशक्ति से इस संसार की रचना करते हैं और उसमें स्वयं छिपे रहते हैं। मैं उन भगवान की शरण में जाता हूँ।”
  4. चौथा श्लोक:
    “भगवान, जब भी इस संसार में अधर्म बढ़ता है, तो वे अवतार लेकर साधुओं की रक्षा करते हैं। मैं उन्हीं की शरण लेता हूँ।”
  5. पांचवां श्लोक:
    “भगवान विष्णु, जो सभी जीवों के आत्मा हैं और जो हर समय सबके अंदर विद्यमान रहते हैं, मैं उनकी शरण लेता हूँ।”
  6. छठा श्लोक:
    “मैं भगवान विष्णु की शरण में जाता हूँ, जो संसार की सबसे बड़ी शक्ति हैं और जिनकी महिमा का कोई अंत नहीं है।”
  7. सातवां श्लोक:
    “भगवान किसी भी जीव के कष्ट और समस्याओं को बिना किसी भेदभाव के दूर करते हैं। मैं उनकी शरण में हूँ।”
  8. आठवां श्लोक:
    “भगवान विष्णु अपनी मायाशक्ति से संसार के हर जीव की रक्षा करते हैं। मैं उनकी कृपा की प्रार्थना करता हूँ।”
  9. नवां श्लोक:
    “संसार के लोग भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से भगवान को प्राप्त कर सकते हैं, न कि केवल कर्मकांडों से।”
  10. दसवां श्लोक:
    “हम सभी भगवान के अधीन हैं, और वे हमारे सभी कष्टों को दूर कर सकते हैं। मैं उनकी शरण में हूँ।”

गजेंद्र ने भगवान विष्णु की स्तुति के माध्यम से अपने दुखों को समाप्त किया और अंततः मोक्ष प्राप्त किया। यह स्तोत्र समर्पण और भक्ति का प्रतीक है, जो हर संकट से मुक्ति दिलाने में सक्षम है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के लाभ

  1. कर्ज मुक्ति
  2. संकटों से रक्षा
  3. परिवार में सुख-समृद्धि।
  4. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा।
  5. शत्रुओं से रक्षा।
  6. मनोवांछित फल की प्राप्ति।
  7. आत्मिक शुद्धि।
  8. आध्यात्मिक उन्नति।
  9. भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति।
  10. भय और चिंता से मुक्ति।
  11. ग्रह दोषों का निवारण।
  12. न्यायालय या कानूनी मामलों में विजय।
  13. जीवन में स्थिरता।
  14. अनिष्ट शक्तियों से रक्षा।
  15. दीर्घायु और स्वस्थ जीवन।
  16. परिवार के सदस्यों का कल्याण।
  17. ईश्वर की विशेष कृपा से जीवन में संतुलन।

गजेंद्र मोक्ष की संपूर्ण कथा

गजेंद्र मोक्ष की कथा श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कंध में वर्णित है। यह कथा भगवान विष्णु की करुणा, उनके भक्तों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा और पूर्ण विश्वास का प्रतीक है।

राजा इंद्रद्युम्न का शाप

सत्ययुग में इंद्रद्युम्न नामक एक प्रतापी राजा हुआ करता था। वह विष्णु के अनन्य भक्त थे और अत्यधिक धर्मपरायण थे। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न अपने आश्रम में भगवान विष्णु की तपस्या में लीन थे। उसी समय अगस्त्य ऋषि वहाँ आए, पर राजा इंद्रद्युम्न ने ध्यानावस्था में होने के कारण उनका स्वागत नहीं किया। इससे अगस्त्य ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा को शाप दे दिया, “तुमने मेरे आने पर सत्कार नहीं किया, इसलिए तुम्हें हाथी योनि में जन्म लेना होगा।”

इस शाप के कारण राजा इंद्रद्युम्न अगले जन्म में हाथी बने और उन्हें अपने पूर्व जन्म की याद नहीं रही। वह जंगल के एक तालाब के किनारे रहने लगे, जहाँ उनका नाम गजेंद्र रखा गया।

गजेंद्र का संकट

गजेंद्र जंगल में अपने परिवार के साथ एक झील में पानी पीने गया। जैसे ही वह पानी में उतरा, एक मगरमच्छ ने उसे अपने जबड़े से पकड़ लिया। गजेंद्र ने मगरमच्छ से बहुत संघर्ष किया, लेकिन मगरमच्छ ने उसे नहीं छोड़ा। गजेंद्र बहुत थक गया और उसने सहायता के लिए इधर-उधर देखा। उसके साथी हाथी भी उसकी मदद नहीं कर पाए।

इस कठिन समय में गजेंद्र को भगवान विष्णु की याद आई। उसने अपने पिछले जन्म के पुण्यों के प्रभाव से विष्णु स्तुति शुरू कर दी। उसने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की और अपनी सूंड में एक कमल का फूल उठाकर भगवान को अर्पित किया।

भगवान विष्णु का आगमन

गजेंद्र की प्रार्थना भगवान विष्णु तक पहुँची। गजेंद्र की निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु अपने गरुड़ वाहन पर सवार होकर तुरंत उसकी सहायता के लिए आए। जैसे ही भगवान विष्णु आए, उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया और गजेंद्र को उसके कष्ट से मुक्त किया।

मगरमच्छ का पूर्व जन्म

मगरमच्छ भी शापित था। वह पिछले जन्म में गंधर्व हूहू था, जो अपने घमंड के कारण ऋषि के शाप से मगरमच्छ बना था। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से वह भी अपने शाप से मुक्त हो गया और अपने असली रूप में वापस लौट आया।

गजेंद्र का मोक्ष

भगवान विष्णु ने गजेंद्र को मोक्ष प्रदान किया। उन्होंने उसे अपने धाम में स्थान दिया, जहाँ उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिली। गजेंद्र को भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति इस कथा को श्रवण करेगा या गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे भी हर संकट से मुक्ति मिलेगी और भगवान की कृपा प्राप्त होगी।

कथा का संदेश

गजेंद्र मोक्ष की यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान विष्णु अपने भक्तों की सच्ची भक्ति और विश्वास से प्रसन्न होते हैं। भले ही परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, यदि व्यक्ति सच्चे मन से भगवान को पुकारे, तो भगवान अवश्य उसकी सहायता के लिए आते हैं। गजेंद्र ने अपने संकट के समय में भगवान की शरण ली, और उनकी भक्ति ने उसे मोक्ष दिलाया।

इस कथा का मुख्य संदेश यह है कि संकट की घड़ी में भी भगवान पर विश्वास बनाए रखना चाहिए। भगवान विष्णु सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र की विधि

पाठ की विधि:

  1. पाठ प्रारंभ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान विष्णु का ध्यान करें और दीपक जलाएं।
  3. चावल, पुष्प, फल, और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. श्रद्धा और विश्वास के साथ स्तोत्र का पाठ करें।
  5. प्रत्येक श्लोक के बाद भगवान विष्णु को स्मरण करें।

दिन और अवधि:

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ किसी भी शुभ दिन जैसे गुरुवार या एकादशी को प्रारंभ किया जा सकता है। इसे 41 दिनों तक लगातार करने का विधान है।

मुहूर्त:

ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस समय में किया गया पाठ ईश्वर की कृपा शीघ्र प्राप्त करता है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के नियम

  1. पाठ के समय मन शांत और एकाग्र होना चाहिए।
  2. पाठ के दौरान नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  3. पाठ करने वाले को सात्विक भोजन करना चाहिए।
  4. स्तोत्र का पाठ एकांत में और गुप्त रूप से करें।
  5. नियमित समय और स्थान पर पाठ करें।
  6. गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र पाठ को किसी को बताए बिना साधना करें।

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गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र में सावधानी

  1. स्तोत्र का पाठ करते समय गलत उच्चारण न करें।
  2. श्रद्धा और विश्वास के बिना इसका पाठ न करें।
  3. कोई अशुद्ध वस्त्र या अशुद्ध स्थान पर बैठकर पाठ न करें।
  4. स्तोत्र पढ़ते समय अपने मन में अहंकार न लाएं।
  5. पाठ के बाद भगवान विष्णु का आभार व्यक्त करना न भूलें।

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गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र पाठ: प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का क्या महत्व है?
उत्तर: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भगवान विष्णु का एक प्रमुख स्तोत्र है जो संकटों से मुक्ति और मोक्ष प्रदान करता है।

प्रश्न 2: गजेंद्र कौन था?
उत्तर: गजेंद्र एक हाथी था जो संकट में भगवान विष्णु की शरण में आया और मोक्ष प्राप्त किया।

प्रश्न 3: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ किसे करना चाहिए?
उत्तर: जो व्यक्ति जीवन में संकटों से मुक्ति चाहता है और मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता है, उसे इसका पाठ करना चाहिए।

प्रश्न 4: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ कितने दिन करना चाहिए?
उत्तर: 41 दिनों तक नियमित रूप से इसका पाठ करने से विशेष लाभ होते हैं।

प्रश्न 5: इस स्तोत्र का पाठ किस समय करना चाहिए?
उत्तर: ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

प्रश्न 6: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति।

प्रश्न 7: स्तोत्र का पाठ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: मन की शुद्धि, श्रद्धा और सात्विक जीवनशैली का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 8: क्या गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ सभी कर सकते हैं?
उत्तर: हां, स्त्री-पुरुष, सभी इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

प्रश्न 9: क्या स्तोत्र पाठ के दौरान किसी विशेष पूजा की आवश्यकता होती है?
उत्तर: भगवान विष्णु की पूजा के साथ इसका पाठ किया जाता है।

प्रश्न 10: गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र किसके द्वारा रचा गया है?
उत्तर: यह स्तोत्र पौराणिक कथा से उत्पन्न है और इसे महाभारत व पुराणों में वर्णित किया गया है।

प्रश्न 11: क्या गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से ग्रह दोष दूर होते हैं?
उत्तर: हां, इस स्तोत्र के पाठ से ग्रह दोषों का निवारण होता है।

प्रश्न 12: क्या स्तोत्र का पाठ किसी विशेष समयावधि में करना आवश्यक है?
उत्तर: इसका पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से करने का विधान है, जिससे विशेष लाभ होते हैं।

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कालरात्रि चालीसा पाठ: भय और नकारात्मकता से मुक्ति

कालरात्रि चालीसा पाठ को शक्ति और साहस के प्रतीक देवी कालरात्रि की पूजा के रूप में जाना जाता है। देवी कालरात्रि माँ दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं, जो भक्तों को भय, बाधा और नकारात्मकता से मुक्ति दिलाती हैं। देवी कालरात्रि की पूजा विशेषकर भय और अज्ञानता को दूर करने के लिए की जाती है। इस चालीसा का नियमित पाठ मन की शांति और साहस प्रदान करता है।

यहाँ कालरात्रि चालीसा का संपूर्ण पाठ प्रस्तुत है। इस चालीसा का पाठ करने से माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त होती है और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।

कालरात्रि चालीसा पाठ

दोहा
जय अंबे काली, जगत की पालनहारी। कालरात्रि माता, दुख हरन हमारी॥

जो ध्यान धरै भक्त मन, सुर नर मुनि उबारि। कालरात्रि वंदना करै, सदा सुखनिधि दायि॥

चालीसा
जयति जय जय कालरात्रि माता।
दुख दूर करो हमारी त्राता॥
रुद्र रूप धारी माँ महाकाली।
भक्तों की सुन लो करुणा पाली॥

सिंहवाहिनी सवारी तुहारी।
असुर संहारिणी खड्ग धारी॥
रक्त बीज का किया संहार।
चंड-मुंड का कटे सिर वार॥

त्रिनेत्रधारी महाकाली अम्बा।
सब देवता करें तुज पर नम्बा॥
तुम हो दुर्गा, तुम हो भवानी।
संकट हरनी काली भवानी॥

शत्रु संहारिणी चामुंडा माता।
अघोर रूप तेरे सबको भाता॥
शक्ति रूप तेरा कोई न जाने।
भक्त तेरे गुण गाए यमूने॥

कालिका माँ तुज प्रणवैं हम।
तेरा चरण छूकर वंदन करैं हम॥
कृपा कर माँ संकट हरनी।
भक्त जनों के मन को तारणी॥

चमकती ज्वाला रूप तुहारा।
जो देखे डरके भागे सारा॥
महाकाली के चरित्र निराले।
देवी तेरी महिमा मतवाले॥

दीनन के तुम सहारे हो।
जो तेरी भक्ति में खोए सो॥
जय जय माता, जय कालरात्रि।
संकट हरणी, भक्तों की त्राता॥

दोहा
कालरात्रि माँ की महिमा अपरम्पार।
जो भी भजे, होय उसका उद्धार॥
संपूर्ण चालीसा पढ़े जो कोई।
मुक्त होय दुख सब होय सुखदाई॥

माँ कालरात्रि के इस चालीसा का पाठ नित्य रूप से करने से भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति और आंतरिक शांति प्राप्त होती है। इसे संकल्प लेकर विधिपूर्वक पढ़ें तो विशेष फल प्राप्त होता है।

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कालरात्रि चालीसा पाठ के लाभ

लाभ 1: नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

कालरात्रि चालीसा पाठ नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करता है। यह बुरी नजर और दुर्भावनाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

लाभ 2: भय और चिंता का नाश

यह पाठ करने से भय, चिंता और आशंकाओं का नाश होता है, जिससे मन में शांति और विश्वास बढ़ता है।

लाभ 3: दुश्मनों से सुरक्षा

माँ कालरात्रि दुश्मनों और शत्रुओं से रक्षा करती हैं। यह पाठ शत्रु बाधाओं को दूर करने में सहायक है।

लाभ 4: रोगों से मुक्ति

कालरात्रि चालीसा पाठ करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। यह स्वास्थ्य को सुधारता है।

लाभ 5: परिवार की सुरक्षा

यह पाठ परिवार के सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह घर में सुख-शांति बनाए रखता है।

लाभ 6: समृद्धि और खुशहाली

कालरात्रि चालीसा पाठ से आर्थिक उन्नति और समृद्धि प्राप्त होती है। यह धन-संपत्ति में वृद्धि लाता है।

लाभ 7: आत्मविश्वास में वृद्धि

माँ कालरात्रि की कृपा से आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है, जिससे जीवन में आत्मनिर्भरता आती है।

लाभ 8: बुरी संगति से मुक्ति

यह पाठ करने से व्यक्ति को बुरी संगति से दूर रखता है। यह उसे सच्चे मार्ग पर लाता है।

लाभ 9: मानसिक शांति

कालरात्रि चालीसा पाठ मानसिक शांति और संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। यह मन को शांत करता है।

लाभ 10: जीवन में सफलता

इस पाठ से जीवन में सफलता प्राप्त होती है। यह रुकावटों को दूर कर मार्ग प्रशस्त करता है।

लाभ 11: आध्यात्मिक उन्नति

यह पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाता है। यह आत्मा को शुद्ध करता है।

लाभ 12: संकटों से सुरक्षा

माँ कालरात्रि की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। यह सुरक्षा कवच बनता है।

लाभ 13: ध्यान और साधना में सहायता

यह पाठ ध्यान और साधना को प्रभावी बनाता है। यह साधना में गहरी अनुभूति लाता है।

लाभ 14: अपार शक्ति की प्राप्ति

कालरात्रि चालीसा पाठ से अपार शक्ति प्राप्त होती है, जिससे असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

लाभ 15: दु:ख और क्लेश से मुक्ति

माँ कालरात्रि सभी दु:ख और क्लेशों को दूर करती हैं। यह पाठ सुखद जीवन देता है।

लाभ 16: सफलता और उन्नति

यह पाठ व्यक्ति को जीवन में सफल बनाता है। यह उन्नति और विकास के मार्ग खोलता है।

लाभ 17: मोक्ष की प्राप्ति

कालरात्रि चालीसा पाठ से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति को आवागमन से मुक्त करता है।

कालरात्रि चालीसा पाठ विधि

दिन, अवधि और मुहूर्त

  • कालरात्रि चालीसा पाठ विशेषकर कालरात्रि के दिन और नवरात्रि के सातवें दिन करें।
  • पाठ की अवधि ४१ दिनों तक होती है। यह नियमपूर्वक करने पर विशेष फलदायी होता है।
  • इस पाठ का उत्तम समय रात का होता है, विशेषकर मध्यरात्रि में माँ कालरात्रि का ध्यान करें।

पूजा विधि

  • सबसे पहले देवी कालरात्रि का ध्यान करें।
  • सफेद या लाल कपड़े पहनें।
  • देवी को नींबू, लाल फूल और गुड़हल के फूल चढ़ाएं।
  • फिर माँ कालरात्रि चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती करें।

कालरात्रि चालीसा पाठ के नियम

पूजा-साधना को गुप्त रखना

माँ कालरात्रि की साधना और पूजा को गुप्त रखें। इससे साधना की शक्ति बनी रहती है।

नियमितता बनाए रखें

नियमित रूप से कालरात्रि चालीसा का पाठ करें। यह अधिकतम ४१ दिनों तक करना अत्यंत लाभकारी होता है।

शुद्धता और सफाई का ध्यान

पूजा के समय शरीर और स्थान की शुद्धता का ध्यान रखें। यह साधना में प्रभावी होता है।

आहार और विचारों की शुद्धि

साधना के दौरान सात्त्विक आहार ग्रहण करें। अपने विचारों को सकारात्मक और निर्मल रखें।

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कालरात्रि चालीसा पाठ में सावधानी

नकारात्मक विचारों से बचें

पाठ के दौरान नकारात्मक विचारों से बचें। मन को एकाग्रचित्त और शांत बनाए रखें।

विधिपूर्वक पूजा करें

पूजा में कोई भी विधि गलत न हो। पूजा में विधि के अनुसार सामग्री का प्रयोग करें।

अपवित्र स्थान से बचें

पाठ को अपवित्र स्थान पर न करें। साफ और शांत जगह पर पाठ करें।

असमय में पूजा न करें

पाठ के लिए निर्धारित समय का पालन करें। असमय में पाठ करने से लाभ नहीं मिलता।

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कालरात्रि चालीसा पाठ के प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: कालरात्रि चालीसा पाठ क्यों करें?

उत्तर: यह पाठ भय और नकारात्मकता को दूर करता है, और आत्मविश्वास बढ़ाता है।

प्रश्न 2: कालरात्रि चालीसा का लाभ कब तक दिखने लगता है?

उत्तर: ४१ दिनों तक पाठ करने से लाभ मिलना शुरू हो जाता है।

प्रश्न 3: कालरात्रि चालीसा किस दिन पढ़ना चाहिए?

उत्तर: यह पाठ नवरात्रि के सातवें दिन और कालरात्रि तिथि को करना उत्तम है।

प्रश्न 4: कालरात्रि चालीसा का पाठ किस समय करना चाहिए?

उत्तर: मध्यरात्रि या रात के समय पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।

प्रश्न 5: क्या कालरात्रि चालीसा पाठ की अवधि निर्धारित होती है?

उत्तर: हाँ, इसे ४१ दिनों तक नियमित करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 6: क्या कालरात्रि चालीसा पाठ में कोई सामग्री चाहिए?

उत्तर: माँ कालरात्रि को लाल फूल, नींबू और गुड़हल के फूल अर्पित करें।

प्रश्न 7: कालरात्रि चालीसा पाठ से कौन से भय दूर होते हैं?

उत्तर: सभी प्रकार के भय, असुरक्षा और चिंता इस पाठ से दूर होते हैं।

प्रश्न 8: क्या कालरात्रि चालीसा पाठ गुप्त रखना चाहिए?

उत्तर: हाँ, इसे गुप्त रखना चाहिए ताकि साधना की शक्ति बनी रहे।

प्रश्न 9: क्या सभी लोग कालरात्रि चालीसा पाठ कर सकते हैं?

उत्तर: हाँ, कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है, विशेष नियमों का पालन करें।

प्रश्न 10: क्या कालरात्रि चालीसा पाठ से आध्यात्मिक लाभ मिलता है?

उत्तर: हाँ, यह पाठ आत्मिक शांति और उन्नति की ओर ले जाता है।

प्रश्न 11: कालरात्रि चालीसा पाठ के दौरान कौन-कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए?

उत्तर: मन को शांत और एकाग्र रखें। नकारात्मकता से बचें और शुद्धता का ध्यान रखें।

प्रश्न 12: क्या कालरात्रि चालीसा पाठ से मोक्ष प्राप्ति संभव है?

उत्तर: हाँ, इसे नियमित रूप से करने से मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

माँ कालरात्रि की कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि, और भय मुक्त जीवन मिलता है। उनके चालीसा का पाठ विधि, नियम, और श्रद्धा से करने से अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं।

Padmavati Mantra – Unlock Wealth and Prosperity

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पद्मावती मंत्र: शक्ति, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करने का रहस्य

पद्मावती मंत्र देवी पद्मावती की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है, जो भौतिक सुखों, रोजगार, व्यापार उन्नति और कर्ज मुक्ति जैसी समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है। इस मंत्र के नियमित जप से व्यक्ति जीवन में आर्थिक समृद्धि, शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त कर सकता है।

दिग्बंधन मंत्र (दसों दिशाओं का सुरक्षा कवच)

साधना के दौरान नकारात्मक ऊर्जाओं से बचने के लिए दिग्बंधन मंत्र का जप किया जाता है:
“ॐ नमोऽस्तु भद्रं सर्वभूतानि पश्यन्तु, दिग्बंधनमस्तु।”
इस मंत्र का अर्थ है कि सभी दिशाओं से सुरक्षा कवच तैयार हो, ताकि साधक को कोई नकारात्मक ऊर्जा या बाधा प्रभावित न कर सके।

पद्मावती मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

पद्मावती मंत्र:
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पद्मावती देव्यै क्लीं नमः”

अर्थ:
यह मंत्र देवी पद्मावती की शक्ति, समृद्धि और कृपा को आकर्षित करने के लिए है।

  • : ब्रह्मांड की शाश्वत ध्वनि, जो पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक है।
  • ऐं : ज्ञान और बुद्धि का बीज मंत्र, जो साधक को विवेक और समझ प्रदान करता है।
  • ह्रीं : आध्यात्मिक शक्ति और हृदय की पवित्रता का प्रतीक है, जो साधक की आत्मा को शुद्ध करता है।
  • श्रीं : लक्ष्मी और समृद्धि का बीज मंत्र, जो धन, सुख और वैभव की वृद्धि करता है।
  • पद्मावती देव्यै : देवी पद्मावती का नाम, जो धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी हैं।
  • क्लीं : आकर्षण, प्रेम और आंतरिक शक्ति का बीज मंत्र है, जो साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
  • नमः : समर्पण और श्रद्धा का भाव, जिससे साधक देवी को प्रणाम करता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।

यह मंत्र साधक को धन, समृद्धि, मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। नियमित जप से देवी की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

पद्मावती मंत्र के लाभ

  1. भौतिक सुखों में वृद्धि
  2. रोजगार में वृद्धि
  3. कर्ज से मुक्ति
  4. व्यापार में उन्नति
  5. नौकरी में प्रगति
  6. मानसिक शांति
  7. आत्मविश्वास में वृद्धि
  8. आर्थिक समृद्धि
  9. पारिवारिक सुख
  10. बाधाओं से मुक्ति
  11. नए अवसर प्राप्त होना
  12. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य
  13. उच्च शिक्षा में सफलता
  14. संतान प्राप्ति
  15. विवाह में अड़चन दूर होना
  16. शत्रुओं से सुरक्षा
  17. जीवन में स्थिरता और शांति

पूजा सामग्री एवं मंत्र विधि

मंत्र जप का दिन, अवधि, और मुहूर्त

मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष का दिन सबसे उत्तम माना जाता है। सुबह के समय, ब्रह्म मुहूर्त में यह जप किया जाना चाहिए। मंत्र साधना की अवधि ११ से २१ दिन रखी जा सकती है। इसमे ५० ग्राम धनिया लेकर माता पद्मावती की फोटो के सामने रखे और ११ से २१ माला यानी ११८८ से २२६८ मंत्र रोज जपे। साधना समाप्त होने के बाद किसी लाल कपड़े मे धनियां को बांधकर अपने गल्ले मे, घर, ऑफिस, दुकान मे रख दे।

पूजा सामग्री

  • पीले या सफेद वस्त्र
  • चंदन या कुमकुम
  • फूल, विशेषकर कमल
  • धूप, दीपक
  • शुद्ध जल
  • प्रसाद (गुड़, नारियल)

मंत्र जप की संख्या

प्रति दिन ११ माला (११८८ मंत्र) का जप करना चाहिए। नियमित रूप से इस मंत्र का जप ११ से २१ दिनों तक किया जा सकता है।

मंत्र जप के नियम

  1. मंत्र जप करने वाले की उम्र २० वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री-पुरुष दोनों यह मंत्र जप कर सकते हैं।
  3. नीले और काले वस्त्र न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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मंत्र जप में सावधानियां

  • मंत्र जप करते समय शुद्धता का ध्यान रखें।
  • मन को एकाग्र कर मंत्र का उच्चारण करें।
  • आसपास का वातावरण शांत और सकारात्मक होना चाहिए।
  • अशुद्ध मन से मंत्र जप न करें।

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पद्मावती मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1:पद्मावती मंत्र का क्या महत्व है?
उत्तर:पद्मावती मंत्र देवी पद्मावती की कृपा पाने के लिए अत्यंत प्रभावी है। यह मंत्र धन, सुख, मानसिक शांति और समृद्धि लाता है। इसके नियमित जप से व्यक्ति जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करता है।

प्रश्न 2:पद्मावती मंत्र किसे जपना चाहिए?
उत्तर:20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं। जो व्यक्ति भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखते हैं, वे इसका जप कर सकते हैं, बशर्ते वे नियमों का पालन करें।

प्रश्न 3:क्या नीले या काले वस्त्र पहनकर मंत्र जप कर सकते हैं?
उत्तर:नहीं, नीले और काले वस्त्र पहनकर मंत्र जप नहीं करना चाहिए। साधक को सफेद या पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 4:मंत्र जप का सबसे शुभ समय क्या है?
उत्तर:मंत्र जप का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे तक) होता है। इस समय वातावरण शांत और ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है।

प्रश्न 5:पद्मावती मंत्र का जप कितने दिन करना चाहिए?
उत्तर:साधक को 11 से 21 दिन तक नियमित रूप से मंत्र का जप करना चाहिए। इस अवधि के दौरान नियमों का पालन और एकाग्रता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 6:मंत्र जप की कुल संख्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर:प्रति दिन 11 माला, यानी 1188 मंत्र का जप करना चाहिए। इसका अर्थ है कि प्रति दिन 11 माला का जप साधक के लिए अनिवार्य माना जाता है।

प्रश्न 7:क्या पद्मावती मंत्र से रोजगार और व्यापार में उन्नति होती है?
उत्तर:हां, पद्मावती मंत्र से रोजगार में वृद्धि, व्यापार में उन्नति और कर्ज से मुक्ति के लाभ होते हैं। देवी की कृपा से साधक को आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है।