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Dasha mata Mantra for removing family obstacles

Dasha mata Mantra for removing family obstacles

दशामाता का व्रत दिन सोमवार 25 मार्च 2025

दशा माता की पूजा साधना चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को पूजा व्रत को किया जाता है, कहा जाता है कि दशा माता की पूजा साधना और व्रत करने से घर की दशा में सुधार आता है और दरिद्रता, वाद-विवाद, क्लेश व घर मे आने वाली हर तरह की समस्य का अंत होता है। इस दिन घर की महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठे लगाती हैं और फिर उसे लेकर पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं। इस व्रत में डोरे का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह दशा माता का डोरा कहलाता है, जिसे महिलाएं साल भर तक गले में धारण करती हैं।

दशा माता की पूजा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की दशाओं (कठिनाइयों) से मुक्ति दिलाना है। दशा माता को विशेष रूप से परिवार की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें विशेषतः स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो परिवार के समस्त सदस्यों की समृद्धि और कल्याण के लिए इस पूजा को करती हैं।

पूजा विधि व नियम

  1. स्नान: पूजा की शुरुआत में स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  2. कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें। कलश में पानी डालें, सुपारी, नारियल, चंदन, कुमकुम, अक्षत, इलायची, धूप, दीप, नौवें कुआँ के पानी से भरा तांबा, और कुछ धार्मिक पुस्तकें रखें।
  3. कलश पूजा: कलश पूजन करें।
  4. गणेश पूजा: गणेश जी की पूजा करें।
  5. देवी पूजा: दशा माता की मूर्ति के सामने आसन पर बैठें और पूजा करें।
  6. मंत्र जाप: “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दशायै नमः” मंत्र का जाप करें।
  7. प्रार्थना: अंत में, दशा माता से अपनी मनोकामनाएं मांगें और पूजा को समाप्त करें।

दशा माता की पूजा का महत्त्व है क्योंकि इससे व्यक्ति को संतुष्टि, समृद्धि, स्थिरता और सफलता प्राप्त होती है। ये देवी के नौ रूपों की पूजा के रूप में मानी जाती है।

मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

दशा माता मंत्र “॥ॐ ह्रीं क्लीं दशा माते सर्व कार्य सिद्धिं देही नमः॥” का अर्थ इस प्रकार है:

  • : यह ध्वनि ब्रह्माण्ड की सबसे पवित्र और मौलिक ध्वनि है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा और ईश्वर का प्रतीक है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति, ऊर्जा, और आशीर्वाद का प्रतीक है। यह मंत्र साधक के मन को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
  • क्लीं: यह मंत्र आकर्षण, प्रेम, और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की ओर आकर्षित करता है और सफलता की ओर मार्गदर्शन करता है।
  • दशा माते: यह दशा माता को संबोधित करता है, जो जीवन की दशाओं (अर्थात विभिन्न परिस्थितियों) की देवी हैं, और जो कठिन समय में रक्षा करती हैं।
  • सर्व कार्य सिद्धिं देही: इसका अर्थ है, “हे माता, मेरे सभी कार्यों को सिद्ध करो,” यानी माता से यह प्रार्थना की जा रही है कि वे साधक के सभी कार्यों को सफल बनाएं।
  • नमः: यह शब्द विनम्रता और समर्पण का प्रतीक है। इसका अर्थ है “नमन” या “साष्टांग प्रणाम”।

मंत्र का पूरा अर्थ

“हे दशा माता, मैं आपको प्रणाम करता/करती हूँ। कृपया मुझे आशीर्वाद दें और मेरे सभी कार्यों को सिद्ध (सफल) करें।”

इस मंत्र का जाप व्यक्ति की जीवन की सभी समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने और उन्हें सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए किया जाता है।

लाभ

  1. परिवारिक सुख: दशा माता की पूजा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  2. विघ्नों का नाश: जीवन में आने वाले सभी विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं।
  3. धन और संपत्ति की वृद्धि: यह पूजा धन और संपत्ति में वृद्धि करने में सहायक होती है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार: पूजा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है।
  6. कार्यक्षेत्र में सफलता: दशा माता की कृपा से कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
  7. मनोकामना पूर्ति: यह पूजा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सहायक होती है।
  8. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और उनकी बुरी योजनाएँ असफल होती हैं।
  9. धार्मिक उन्नति: धार्मिक दृष्टिकोण से यह पूजा अत्यधिक लाभकारी है।
  10. समाज में सम्मान: व्यक्ति को समाज में उच्च सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
  11. संतान सुख: यह पूजा संतान प्राप्ति और उनकी रक्षा में सहायक होती है।
  12. विवाह में सफलता: जो लोग विवाह में विलंब या समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें सफलता प्राप्त होती है।
  13. अकाल मृत्यु से रक्षा: पूजा से अकाल मृत्यु का खतरा समाप्त हो जाता है।
  14. मनोबल और साहस में वृद्धि: पूजा से मनोबल और साहस में वृद्धि होती है।
  15. भविष्य के भय से मुक्ति: पूजा करने से भविष्य के किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।

दशा माता मंत्र जप विधि

दशा माता मंत्र की विधि बहुत ही सरल और प्रभावी है। इसे करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन: दशा माता का मंत्र जप किसी भी शुभ दिन जैसे सोमवार, मंगलवार या गुरुवार को प्रारंभ किया जा सकता है।
  • अवधि: यह मंत्र जप ११ से २१ दिनों तक रोजाना करना चाहिए।
  • मुहूर्त: मंत्र जप का समय ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे के बीच) सबसे उत्तम माना जाता है। यदि यह संभव न हो, तो सूर्यास्त के बाद भी इसे किया जा सकता है।

सामग्री

मंत्र जप के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार है:

  • पीला वस्त्र (आसन के लिए)
  • रुद्राक्ष या तुलसी की माला (जप के लिए)
  • शुद्ध घी का दीपक
  • कुमकुम और चंदन
  • फूल और अक्षत
  • दशा माता की मूर्ति या चित्र
  • प्रसाद (मिठाई, फल)

मंत्र जप संख्या

  • रोजाना ११ माला का जप करें, जो कुल ११८८ मंत्र होते हैं।
  • यह जप ११ से २१ दिनों तक निरंतर करें।

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दशा माता मंत्र जप के नियम

  1. उम्र २० वर्ष के ऊपर: इस मंत्र जप को करने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम २० वर्ष होनी चाहिए।
  2. स्त्री-पुरुष कोई भी: यह मंत्र जप स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
  3. ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें: जप के दौरान नीले और काले रंग के कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से परहेज: जप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें: मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  6. शुद्धता का ध्यान: मंत्र जप के समय शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
  7. जप के लिए स्थिर और शुद्ध स्थान: मंत्र जप के लिए एक स्थिर और शुद्ध स्थान का चयन करें, जहाँ कोई व्यवधान न हो।

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दशा माता मंत्र जप के दौरान सावधानियाँ

  1. ध्यान और एकाग्रता: मंत्र जप के दौरान ध्यान और एकाग्रता को भंग नहीं होने देना चाहिए।
  2. शुद्धता का ध्यान: व्यक्तिगत शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। बिना स्नान के मंत्र जप न करें।
  3. स्थिरता: जप करते समय एक ही स्थान पर स्थिरता से बैठें।
  4. ब्रह्म मुहूर्त का पालन: मंत्र जप के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे उत्तम समय है, इसे प्राथमिकता दें।
  5. मन और शरीर को शुद्ध रखें: नकारात्मक विचारों और विकारों से दूर रहें।
  6. मंत्र जप के दौरान मौन व्रत: मंत्र जप करते समय मौन रहना उत्तम माना जाता है। अनावश्यक बातें न करें।
  7. आहार का ध्यान: मंत्र जप के दिनों में सात्विक आहार लें और मसालेदार, तामसिक भोजन से बचें।
  8. जप के स्थान की पवित्रता: जिस स्थान पर मंत्र जप कर रहे हों, उसकी पवित्रता बनाए रखें।
  9. परिवार के अन्य सदस्य: यदि घर के अन्य सदस्य भी इस समय अनुशासन का पालन करें, तो उत्तम रहेगा।
  10. विशेष ध्यान: जप करते समय विशेष रूप से दशा माता का ध्यान करते रहें और उनके आशीर्वाद की कामना करें।

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दशा माता मंत्र से संबंधित सामान्य प्रश्न और उत्तर

प्रश्न: क्या दशा माता की पूजा सिर्फ महिलाएं कर सकती हैं?
उत्तर: नहीं, यह पूजा स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
प्रश्न: क्या दशा माता की पूजा किसी विशेष दिन ही करनी चाहिए?
उत्तर: दशा माता की पूजा किसी भी शुभ दिन जैसे सोमवार, मंगलवार या गुरुवार को की जा सकती है।
प्रश्न: क्या पूजा के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?
उत्तर: हाँ, पूजा के दौरान व्रत रखना शुभ माना जाता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न: क्या इस पूजा में मांसाहार और मद्यपान का त्याग करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, इस पूजा के दौरान मांसाहार और मद्यपान का त्याग करना चाहिए।
प्रश्न: क्या पूजा के दौरान कुछ विशेष कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर: हाँ, सफेद या पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। नीले और काले कपड़ों से बचना चाहिए।
प्रश्न: क्या पूजा के समय कोई विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, पीले या सफेद वस्त्र का आसन उपयोग करें।
प्रश्न: क्या इस पूजा को घर में करना उचित है?
उत्तर: हाँ, इस पूजा को घर में शुद्ध और पवित्र स्थान पर किया जा सकता है।
प्रश्न: क्या दशा माता की पूजा के लिए कोई विशेष मुहूर्त होता है?
उत्तर: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे तक) सबसे शुभ माना जाता है।
प्रश्न: क्या इस पूजा को करने से शत्रुओं से बचाव होता है?
उत्तर: हाँ, दशा माता की पूजा करने से शत्रुओं से रक्षा होती है।
प्रश्न: क्या इस पूजा से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं?
उत्तर: हाँ, यह पूजा विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक होती है।
प्रश्न: क्या यह पूजा सिर्फ व्यक्ति विशेष के लिए की जाती है?
उत्तर: नहीं, यह पूजा पूरे परिवार की समृद्धि और कल्याण के लिए की जा सकती है।

Vakratunda ganesha mantra victory

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वक्रतुण्ड गणेश मंत्र – सभी कार्यों में सफलता और बाधाओं से मुक्ति का अचूक उपाय

वक्रतुण्ड गणेश मंत्र जीवन के सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी है। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है, और उनके वक्रतुण्ड रूप का यह मंत्र विशेष रूप से विघ्नों को दूर करने और सभी कार्यों को सफल बनाने में सहायक होता है। इस मंत्र के नियमित जाप से कार्यसिद्धि, बाधा निवारण और मन की शांति प्राप्त होती है।

मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:
ॐ गं वक्रतुंडाय गणेशाय कार्य सिद्धिं देही नमः।
अर्थ: “हे भगवान वक्रतुण्ड गणेश, मुझे आशीर्वाद दें और मेरे सभी कार्यों को सफल बनाएं।”

वक्रतुण्ड गणेश मंत्र लाभ

  1. सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  2. कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  3. मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
  4. पारिवारिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
  5. नौकरी और व्यवसाय में उन्नति होती है।
  6. धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  7. मन की इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  8. शिक्षा और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  9. समर्पण और श्रद्धा की भावना बढ़ती है।
  10. संबंधों में सुधार आता है।
  11. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  12. शुभ संयोग प्राप्त होते हैं।
  13. समाज में मान-सम्मान मिलता है।
  14. नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं से रक्षा होती है।
  15. परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
  16. कानूनी विवादों से छुटकारा मिलता है।
  17. जीवन में आत्मविश्वास और सकारात्मकता बढ़ती है।

मंत्र विधि

  • दिन: मंगलवार या बुधवार को मंत्र जप शुरू करें।
  • अवधि: 11 से 21 दिन तक नियमित जाप करें।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) में जाप करना सबसे शुभ होता है।
  • विधि: गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। लाल वस्त्र पहनें। शांत और एकाग्र मन से इस मंत्र का जप करें।

वक्रतुण्ड गणेश मंत्र जप सामग्री

  • गणेश जी की प्रतिमा या चित्र
  • लाल या पीले वस्त्र
  • लाल चंदन
  • घी का दीपक
  • दूर्वा घास
  • मोदक या लड्डू का प्रसाद
  • रुद्राक्ष माला

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मंत्र जप संख्या

प्रत्येक दिन 11 माला जपें। एक माला में 108 मंत्र होते हैं, इस प्रकार रोज 1188 मंत्रों का जप किया जाता है।

वक्रतुण्ड गणेश मंत्र जप के नियम

  1. 20 वर्ष से अधिक आयु के लोग इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
  2. पुरुष और स्त्रियाँ दोनों के लिए मंत्र जप उपयुक्त है।
  3. ब्लू और ब्लैक रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
  4. धूम्रपान, मांसाहार, और मद्यपान से दूर रहें।
  5. मंत्र जाप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।

मंत्र जप में सावधानियां

  • स्नान के बाद ही मंत्र का जाप करें।
  • मन और वातावरण को शुद्ध रखें।
  • आसन का चयन सही हो; लकड़ी या सूती आसन का उपयोग करें।
  • जप के समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
  • किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच से बचें।

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वक्रतुण्ड गणेश मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: क्या वक्रतुण्ड गणेश मंत्र से कार्य सिद्धि होती है?

उत्तर: हां, यह मंत्र विशेष रूप से कार्यों में सफलता और विघ्नों से मुक्ति के लिए प्रभावी है।

प्रश्न 2: मंत्र जाप का सबसे अच्छा समय क्या है?

उत्तर: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) जाप के लिए सर्वोत्तम समय है।

प्रश्न 3: क्या महिलाएं इस मंत्र का जाप कर सकती हैं?

उत्तर: हां, महिलाएं और पुरुष दोनों ही इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

प्रश्न 4: मंत्र जप कितने दिनों तक करना चाहिए?

उत्तर: कम से कम 11 दिन और अधिकतम 21 दिन तक रोजाना जाप करें।

प्रश्न 5: क्या मंत्र जाप के दौरान कोई विशेष दिशा में बैठना चाहिए?

उत्तर: हां, पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 6: मंत्र जाप के लिए कौन सी माला का प्रयोग करना चाहिए?

उत्तर: रुद्राक्ष माला का उपयोग इस मंत्र के लिए उत्तम माना जाता है।

प्रश्न 7: क्या धूम्रपान और मद्यपान मंत्र जाप के दौरान वर्जित हैं?

उत्तर: हां, धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहना आवश्यक है।

प्रश्न 8: क्या इस मंत्र का जाप से मानसिक शांति मिलती है?

उत्तर: हां, यह मंत्र मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।

प्रश्न 9: क्या इस मंत्र का जाप करने से कर्ज़ से मुक्ति मिलती है?

उत्तर: हां, यह मंत्र आर्थिक बाधाओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

प्रश्न 10: क्या इस मंत्र से पारिवारिक जीवन में सुधार होता है?

उत्तर: हां, इस मंत्र से पारिवारिक जीवन में सुख, समृद्धि, और सौहार्द बढ़ता है।

प्रश्न 11: क्या मंत्र जाप के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?

उत्तर: व्रत रखने की आवश्यकता नहीं है, परंतु सात्विक आहार ग्रहण करें।

प्रश्न 12: क्या इस मंत्र का जाप कानूनी विवादों में सफलता दिला सकता है?

उत्तर: हां, वक्रतुण्ड गणेश मंत्र कानूनी विवादों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।

Dhumravarna ganesha mantra-devotion & intelligence

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धूम्रवर्ण गणेश मंत्र – मानसिक शांति, समृद्धि व सफलता पाने का शक्तिशाली उपाय

धूम्रवर्ण गणेश मंत्र, भगवान गणेश का शक्तिशाली मंत्र माना जाता है। ये गणेश धुएं के समान धूसर रंग के होते हैं, जो साधक को मानसिक शांति, आत्मबल, और सफलता प्रदान करते है।

मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:

ॐ गं ग्लौं धूम्रवर्णे नमः

अर्थ:

  • “ॐ” – ब्रह्मांडीय ध्वनि, परमेश्वर का प्रतीक।
  • “गं” – गणेश बीज मंत्र, जो बुद्धि और समृद्धि का प्रतीक है।
  • “ग्लौं” – धूम्रवर्ण गणेश की विशेष शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
  • “धूम्रवर्णे” – भगवान गणेश के धूम्रवर्ण रूप को संदर्भित करता है।
  • “नमः” – समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक।

धूम्रवर्ण गणेश मंत्र के लाभ

  1. मानसिक शांति और संतुलन।
  2. समृद्धि और धन की प्राप्ति।
  3. आत्मविश्वास और साहस की वृद्धि।
  4. सभी प्रकार के बाधाओं का निवारण।
  5. परिवारिक कलह का अंत।
  6. बुद्धि और विवेक में वृद्धि।
  7. सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
  8. व्यापार में सफलता।
  9. मनोबल और आत्मबल की वृद्धि।
  10. भय, चिंता और तनाव से मुक्ति।
  11. स्वास्थ्य में सुधार।
  12. आध्यात्मिक उन्नति।
  13. शत्रुओं पर विजय।
  14. बाधाओं से निपटने की शक्ति।
  15. छात्रों के लिए अध्ययन में एकाग्रता।
  16. रोगों से मुक्ति।
  17. ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवाह।

मंत्र जप विधि

जप के दिन, अवधि और मुहुर्त

  • शुभ दिन: बुधवार या गणेश चतुर्थी।
  • जप की अवधि: 11 से 21 दिन।
  • मुहुर्त: सुबह ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे) सर्वोत्तम।

सामग्री

  1. पीले या लाल रंग के वस्त्र।
  2. गणेश की मूर्ति या चित्र।
  3. हल्दी की माला या रुद्राक्ष माला।
  4. शुद्ध जल, अक्षत (चावल), फूल।
  5. घी का दीपक और धूप।

संख्या

  • प्रतिदिन 11 माला (1 माला = 108 मंत्र)।
  • कुल 11 माला का मतलब 1188 मंत्र प्रतिदिन।

मंत्र जप के नियम

  1. उम्र 20 वर्ष के ऊपर।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों मंत्र जप कर सकते हैं।
  3. नीले और काले कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से परहेज करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. शुद्धता और स्वच्छता बनाए रखें।
  7. नियमित रूप से एक ही समय पर जप करें।
  8. मंत्र जप के दौरान शांतिपूर्ण वातावरण हो।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियां

  1. शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. मंत्र जप में किसी भी प्रकार की अशुद्धता न हो।
  3. ध्यान केंद्रित और मन शांत रखें।
  4. किसी भी प्रकार की नकारात्मकता या अहंकार से बचें।
  5. हमेशा श्रद्धा और समर्पण के साथ जप करें।
  6. भोजन में सात्विकता बनाए रखें।
  7. मंत्र जप के बाद मौन रहें और ध्यान करें।

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धूम्रवर्ण गणेश मंत्र संबंधित प्रश्न और उत्तर

1. धूम्रवर्ण गणेश कौन हैं?

धूम्रवर्ण गणेश भगवान गणेश का एक रूप है, जिनका रंग धुएं जैसा धूसर होता है।

2. इस मंत्र का क्या उद्देश्य है?

इस मंत्र का उद्देश्य बाधाओं को दूर कर, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करना है।

3. मंत्र जप का सबसे अच्छा समय क्या है?

ब्रह्म मुहूर्त, सुबह 4-6 बजे, सबसे उत्तम समय है।

4. मंत्र जप के दौरान कौन से वस्त्र पहनें?

पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है।

5. क्या इस मंत्र को कोई भी कर सकता है?

हाँ, 20 वर्ष से ऊपर का कोई भी व्यक्ति इस मंत्र का जप कर सकता है।

6. क्या स्त्रियां भी मंत्र जप कर सकती हैं?

हाँ, स्त्रियां भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं।

7. मंत्र जप के दौरान क्या सावधानियां बरतें?

धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें, और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

8. मंत्र जप कितने दिनों तक करना चाहिए?

मंत्र जप 11 से 21 दिनों तक किया जा सकता है।

9. मंत्र जप के दौरान कितनी माला करनी चाहिए?

रोजाना 11 माला (कुल 1188 मंत्र) जपें।

10. मंत्र जप करते समय क्या खाने-पीने से बचना चाहिए?

मांसाहार, धूम्रपान और मद्यपान से बचें।

11. मंत्र जप का परिणाम कब मिलता है?

नियमित और श्रद्धापूर्ण जप से कुछ ही दिनों में सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं।

12. क्या मंत्र जप के बाद ध्यान करना चाहिए?

हाँ, मंत्र जप के बाद ध्यान करने से मन और आत्मा शुद्ध होती है।

Shurpkarna ganesha mantra for wisdom

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शूर्पकर्ण गणेश मंत्र – जीवन की बाधाओं को दूर करने का अद्भुत उपाय

शूर्पकर्ण गणेश मंत्र का जप करना कार्य मे सफलता पाने के लिये शुभ माना जाता है। ये भगवान गणेश का एक विशेष रूप हैं, जिनके कान बड़े और शूर्प (सूप) के समान होते हैं। उनके इस रूप का प्रतीक अर्थ यह है कि वह सभी नकारात्मक बातों को हटाकर सकारात्मकता ग्रहण करते हैं। शूर्पकर्ण गणेश का मंत्र जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर मानसिक शांति और सफलता दिलाने में सहायक है।

मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:

ॐ ग्लौं शूर्पकर्ण गणेशाय नमः

अर्थ:

  • “ॐ” – ब्रह्मांडीय ध्वनि, जो सृष्टि की शक्ति का प्रतीक है।
  • “ग्लौं” – गणेश के विशिष्ट शक्ति का बीज मंत्र।
  • “शूर्पकर्ण” – भगवान गणेश के बड़े कानों को दर्शाता है, जो नकारात्मकता को दूर करते हैं।
  • “गणेशाय” – भगवान गणेश के प्रति संबोधन।
  • “नमः” – समर्पण और आदर का प्रतीक।

मंत्र के लाभ

  1. नकारात्मकता को दूर करता है।
  2. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  3. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  4. ज्ञान और विवेक में सुधार।
  5. समृद्धि और धन की प्राप्ति।
  6. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  7. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. पारिवारिक जीवन में शांति आती है।
  9. बाधाओं को दूर करता है।
  10. आध्यात्मिक प्रगति में मदद करता है।
  11. मानसिक एकाग्रता बढ़ाता है।
  12. व्यापार और नौकरी में सफलता।
  13. सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
  14. जीवन में संतुलन और सामंजस्य लाता है।
  15. भय और तनाव को कम करता है।
  16. रिश्तों में सुधार लाता है।
  17. अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

शूर्पकर्ण गणेश मंत्र जप विधि

जप के दिन, अवधि और मुहुर्त

  • शुभ दिन: बुधवार, चतुर्थी तिथि, या विशेष पर्व।
  • जप की अवधि: 11 से 21 दिन तक।
  • मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सर्वोत्तम समय होता है।

मंत्र जप सामग्री

  1. शुद्ध जल और अक्षत।
  2. फूल, विशेषकर लाल या पीले।
  3. रुद्राक्ष या हल्दी की माला।
  4. घी का दीपक और धूप।
  5. भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र।
  6. शुद्ध आसन (कुश या ऊन का)।

मंत्र जप संख्या

  • प्रतिदिन 11 माला जपें।
  • एक माला में 108 मंत्र होते हैं, इस प्रकार 11 माला में कुल 1188 मंत्र होते हैं।
  • 11 से 21 दिनों तक इस संख्या का पालन करें।

शूर्पकर्ण गणेश मंत्र जप के नियम

  1. 20 वर्ष की आयु से ऊपर का व्यक्ति जप कर सकता है।
  2. स्त्री और पुरुष, दोनों जप कर सकते हैं।
  3. नीले और काले वस्त्र पहनने से बचें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. शुद्ध वातावरण में जप करें।
  7. प्रतिदिन एक ही समय पर जप करें।
  8. पूजा के दौरान पूर्ण मनोयोग और शांति का ध्यान रखें।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियां

  1. शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  2. पूजा स्थान स्वच्छ और शांतिपूर्ण होना चाहिए।
  3. जप के समय कोई भी बाहरी विघ्न न हो।
  4. नकारात्मक सोच से दूर रहें।
  5. भोजन में सात्विकता बनाए रखें।
  6. किसी भी प्रकार की अपवित्रता से बचें।
  7. मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही तरीके से करें।

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शूर्पकर्ण गणेश मंत्र संबंधित प्रश्न और उत्तर

1. शूर्पकर्ण गणेश कौन हैं?

शूर्पकर्ण गणेश, भगवान गणेश का रूप हैं, जिनके कान बड़े होते हैं। वे नकारात्मकता को दूर करते हैं।

2. इस मंत्र का उद्देश्य क्या है?

मंत्र का उद्देश्य जीवन की बाधाओं को दूर कर शांति, सफलता और समृद्धि प्राप्त करना है।

3. मंत्र जप का सबसे उपयुक्त समय क्या है?

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उपयुक्त समय है।

4. मंत्र जप के दौरान कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?

पीले या लाल वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। नीले और काले कपड़े न पहनें।

5. क्या महिलाएं इस मंत्र का जप कर सकती हैं?

हाँ, महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं। कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है।

6. मंत्र जप कितने दिनों तक करना चाहिए?

मंत्र जप 11 से 21 दिनों तक किया जा सकता है, विशेष दिनों या पर्वों पर जप करें।

7. मंत्र जप के दौरान क्या आहार लें?

सात्विक भोजन करें और मांसाहार, मद्यपान से परहेज करें।

8. मंत्र जप के दौरान कौन सी सामग्री आवश्यक है?

रुद्राक्ष या हल्दी माला, शुद्ध जल, अक्षत, फूल, दीपक, और भगवान गणेश की मूर्ति का प्रयोग करें।

9. मंत्र जप के बाद ध्यान क्यों करना चाहिए?

मंत्र जप के बाद ध्यान करने से मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।

10. मंत्र जप का प्रभाव कितने दिनों में दिखाई देता है?

श्रद्धा और समर्पण से किए गए मंत्र जप का प्रभाव कुछ दिनों में महसूस होता है।

11. क्या इस मंत्र का जप किसी भी समय किया जा सकता है?

सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में जप करें, परंतु अन्य समय पर भी जप किया जा सकता है।

12. क्या मंत्र जप के दौरान विशेष नियमों का पालन आवश्यक है?

हाँ, शारीरिक और मानसिक शुद्धता, ब्रह्मचर्य, और सात्विकता का पालन आवश्यक है।

Sumukh ganesha mantra for all obstacles

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सुमुख गणेश मंत्र – सुंदरता और समृद्धि के लिए शक्तिशाली उपाय

चारों दिशाओ से अपने भक्तों की रक्षा करने वाले भगवान गणेश का सुमुख गणेश मंत्र बहुत ही शक्तिशाली माना जाता हैं। सुमुख गणेश भगवान गणेश का एक ऐसा रूप है, जिसमें उनका चेहरा सुंदर और आकर्षक होता है। सुमुख का अर्थ “सुंदर मुख” है, जो शुभता और सुंदरता का प्रतीक है। सुमुख गणेश मंत्र का नियमित जप जीवन में शांति, समृद्धि और सुंदरता को आमंत्रित करता है।

सुमुख गणेश मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:

ॐ गं ग्लौं सुमुखे नमः

अर्थ:

  • “ॐ” – ब्रह्मांड की आदिशक्ति का प्रतीक, जो समस्त सृष्टि में विद्यमान है।
  • “गं” – गणेश बीज मंत्र, जो समृद्धि और बुद्धि का प्रतीक है।
  • “ग्लौं” – गणेश की विशेष शक्तियों को संचारित करता है।
  • “सुमुखे” – भगवान गणेश के सुंदर मुख (सुमुख) को संबोधित करता है।
  • “नमः” – आदर और श्रद्धा के साथ समर्पण का प्रतीक है।

मंत्र के लाभ

  1. समृद्धि और धन की प्राप्ति।
  2. मानसिक शांति और संतुलन।
  3. जीवन में सभी बाधाओं का निवारण।
  4. आत्मविश्वास और साहस की वृद्धि।
  5. व्यापार और कार्यक्षेत्र में सफलता।
  6. पारिवारिक संबंधों में सुधार।
  7. शत्रुओं से सुरक्षा।
  8. बुद्धि और विवेक में वृद्धि।
  9. नकारात्मकता से मुक्ति।
  10. आध्यात्मिक जागरूकता में वृद्धि।
  11. स्वास्थ्य में सुधार।
  12. छात्रों के लिए अध्ययन में एकाग्रता।
  13. मन की शांति और संतुलन।
  14. प्रेम और संबंधों में सुधार।
  15. रोगों से मुक्ति।
  16. जीवन में सकारात्मकता का संचार।
  17. दीर्घकालिक समस्याओं का समाधान।

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सुमुख गणेश मंत्र जप विधि

जप के दिन, अवधि और मुहूर्त

  • शुभ दिन: बुधवार, गणेश चतुर्थी या चतुर्थी तिथि।
  • जप की अवधि: 11 से 21 दिनों तक।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सर्वोत्तम समय है।

सामग्री

  1. पीले या लाल वस्त्र।
  2. भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र।
  3. शुद्ध जल और अक्षत।
  4. हल्दी या रुद्राक्ष की माला।
  5. घी का दीपक और धूप।
  6. फूल, विशेषकर लाल या पीले।

संख्या

  • प्रतिदिन 11 माला (एक माला में 108 मंत्र)।
  • कुल 11 माला जपने से 1188 मंत्र रोज होते हैं।
  • जप की अवधि 11 से 21 दिनों तक हो सकती है।

नियम

  1. मंत्र जप 20 वर्ष की आयु से ऊपर के लोग कर सकते हैं।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
  3. नीले और काले रंग के वस्त्र न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. शुद्धता और स्वच्छता बनाए रखें।
  7. एक ही स्थान और समय पर नियमित जप करें।
  8. पूजा स्थल शांत और स्वच्छ होना चाहिए।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियां

  1. शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  2. मन और शरीर को संतुलित रखें।
  3. पूजा स्थल को स्वच्छ और पवित्र बनाए रखें।
  4. किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचें।
  5. मंत्र जप के बाद कुछ समय के लिए ध्यान करें।
  6. भोजन में सात्विकता का पालन करें।
  7. अनुशासन और श्रद्धा के साथ जप करें।

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सुमुख गणेश मंत्र संबंधित प्रश्न और उत्तर

1. सुमुख गणेश कौन हैं?

सुमुख गणेश भगवान गणेश का एक सुंदर और आकर्षक रूप हैं, जो शुभता और सुंदरता का प्रतीक है।

2. इस मंत्र का क्या उद्देश्य है?

मंत्र का उद्देश्य जीवन की बाधाओं को दूर कर शांति, समृद्धि और सौंदर्य प्राप्त करना है।

3. मंत्र जप का सबसे उपयुक्त समय क्या है?

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) जप के लिए सबसे उत्तम समय है।

4. कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?

मंत्र जप के दौरान पीले या लाल वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। नीले और काले कपड़े न पहनें।

5. क्या महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं?

हाँ, महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं, कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है।

6. मंत्र जप कितने दिनों तक करना चाहिए?

मंत्र जप 11 से 21 दिनों तक किया जा सकता है, विशेष अवसरों पर भी जप किया जा सकता है।

7. मंत्र जप के दौरान कौन सी सामग्री आवश्यक है?

माला (रुद्राक्ष या हल्दी), शुद्ध जल, अक्षत, दीपक, धूप और फूल आवश्यक हैं।

8. क्या इस मंत्र का जप किसी भी समय कर सकते हैं?

सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में जप करना उचित है, लेकिन अन्य समय पर भी किया जा सकता है।

9. मंत्र जप के दौरान क्या आहार लेना चाहिए?

सात्विक आहार का पालन करें और मांसाहार, मद्यपान, धूम्रपान से परहेज करें।

10. मंत्र जप का परिणाम कितने दिनों में मिलता है?

श्रद्धा और समर्पण के साथ किए गए जप का परिणाम कुछ ही दिनों में दिखाई देने लगता है।

11. क्या विशेष परिस्थितियों में मंत्र जप के नियम बदल सकते हैं?

मंत्र जप के दौरान सभी नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, लेकिन व्यक्तिगत स्थितियों के आधार पर मार्गदर्शन लिया जा सकता है।

12. क्या मंत्र जप के बाद ध्यान करना आवश्यक है?

हाँ, मंत्र जप के बाद ध्यान करना मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

Karna Matangi Mantra for Wisdom & Success

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कर्ण मातंगी मंत्र जाप विधि – शांति और समृद्धि के लिए

कर्ण मातंगी मंत्र का नियमित जप से आंतरिक शक्ति व आज्ञा चक्र का जागरण होता है। कर्ण मातंगी आने वाली घटनाओं का आभास कराने वाली व ज्ञान व योग्यता को बढाने वाली, महाविद्या मातंगी का स्वरूप मानी जाती हैं, इनकी कृपा से हादसा होने के पहले ही संकेत मिलना शुरु हो जाता है। वे ज्ञान, कला, संगीत और विद्या की देवी भी मानी जाती हैं और इन्हे महाकाली की सहायिका के रूप में भी पूजा जाता है। कर्ण मातंगी मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को ज्ञान, विद्या, और कला में वृद्धि होती है।

मंत्र व उसका अर्थ

कर्ण मातंगी मंत्र

॥ॐ ह्रीं कर्ण मातंगेश्वरी सर्व कार्य साधय साधय नमः॥

मंत्र का अर्थ

इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है:

  • : यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है, जो ईश्वर और ऊर्जा का प्रतीक है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र है, जो देवी मातंगी की कृपा और शक्ति को जगाता है।
  • कर्ण मातंगेश्वरी: यह देवी मातंगी का विशेष रूप है, जो कानों से संबंधित समस्याओं का समाधान करती हैं और मानसिक शांति प्रदान करती हैं।
  • सर्व कार्य साधय साधय: इसका अर्थ है “सभी कार्यों को सिद्ध करें, सफल करें।”
  • नमः: यह विनम्रता और समर्पण का प्रतीक है, जिसका अर्थ है “आपको नमन।”

विस्तृत अर्थ

यह मंत्र देवी कर्ण मातंगी की आराधना करता है, जो साधक के जीवन के सभी कार्यों को सफल बनाने और विशेष रूप से कानों से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने में सहायक हैं। साधक इस मंत्र के माध्यम से देवी मातंगी से प्रार्थना करता है कि वे उसकी सभी बाधाओं को दूर करें और मानसिक शांति प्रदान करें।

लाभ

  1. ज्ञान और विद्या की प्राप्ति: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति को ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है, जिससे उसकी शिक्षा और उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  2. कला और संगीत में सफलता: इस मंत्र का जाप करने से कला और संगीत में सफलता मिलती है।
  3. मनोबल और साहस: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति का मनोबल और साहस बढ़ता है, जिससे वह जीवन के चुनौतियों का सामना करने में सफल होता है।
  4. कर्म सफलता: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के कर्म सफल होते हैं और उसे अपनी मनोदशा में समानता मिलती है।
  5. बुद्धि और बुद्धिमत्ता: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति की बुद्धि और बुद्धिमत्ता बढ़ती है, जिससे उसे समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद मिलती है।
  6. भय का नाश: इस मंत्र के जाप से भय का नाश होता है और व्यक्ति को नई ऊर्जा मिलती है।
  7. स्वास्थ्य और दीर्घायु: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति का स्वास्थ्य सुधरता है और उसे दीर्घायु मिलती है।
  8. कामना पूर्ति: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं और उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  9. संतुलन और सहयोग: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति को जीवन में संतुलन और सहयोग मिलता है।
  10. धर्म और नैतिकता: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति की धर्म और नैतिकता में सुधार होता है।
  11. आत्मविश्वास: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और उसे अपने क्षेत्र में प्रसिद्धी मिलती है।
  12. कल्याण और समृद्धि: कर्ण मातंगी मंत्र के जाप से व्यक्ति को शांती और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

स्थल पर स्वच्छता और शांति का ध्यान रखना चाहिए। इससे ऊर्जा सकारात्मक बनी रहती है।

कर्ण मातंगी मंत्र जप विधि

मंत्र जाप की अवधि और संख्या

साधक को कर्ण मातंगी मंत्र का जाप लगातार 11 से 21 दिन तक करना चाहिए। रोजाना 11 माला मंत्र (यानी 1188 बार) जपना चाहिए। यह संख्या साधक की ऊर्जा और एकाग्रता को बढ़ाती है।

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

कर्ण मातंगी मंत्र का जाप किसी भी शुभ मुहूर्त में किया जा सकता है। इसे विशेष रूप से मंगलवार या शुक्रवार से शुरू करना शुभ होता है। मंत्र जाप की अवधि 11 से 21 दिन होनी चाहिए। इसके लिए प्रातःकाल या संध्या समय उपयुक्त माना जाता है। इस समय साधक को शांत मन से मंत्र का जाप करना चाहिए।

मंत्र जप के लिए आवश्यक सामग्री

  • पीला या लाल वस्त्र
  • रुद्राक्ष माला
  • दीपक और धूपबत्ती
  • पीला चंदन और पुष्प
  • जल का पात्र

नियम

  1. साधक की आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों यह साधना कर सकते हैं।
  3. मंत्र जाप के दौरान ब्लू या ब्लैक कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मांसाहार और मद्यपान से दूर रहें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।

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सावधानियां

  1. मंत्र जाप करते समय मन को शांत रखें। ध्यान भटकने से साधना प्रभावित होती है।
  2. साधक को प्रतिदिन एक ही स्थान पर साधना करनी चाहिए।
  3. मंत्र जाप के दौरान गलत उच्चारण न करें। मंत्र की शक्ति घट सकती है।
  4. शरीर और मन को शुद्ध रखें। कोई नकारात्मक विचार न आने दें।
  5. साधना के दौरान किसी प्रकार की हड़बड़ी न करें। धैर्य से मंत्र का जाप करें।

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कर्ण मातंगी मंत्र: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. कर्ण मातंगी कौन हैं?
कर्ण मातंगी देवी मातंगी का एक विशिष्ट रूप हैं, जिन्हें संगीत, कला, और वाणी की देवी माना जाता है। वे तंत्रिक देवी हैं और विशेष रूप से विद्या, ज्ञान और संगीत की प्राप्ति के लिए पूजी जाती हैं।

2. कर्ण मातंगी का मंत्र क्या है?
कर्ण मातंगी का प्रमुख मंत्र है:
“ॐ ह्रीं कर्ण मातंगेश्वरी सर्व कार्य साधय साधय नमः।”

3. कर्ण मातंगी का मंत्र जाप कैसे और कब करना चाहिए?
कर्ण मातंगी का मंत्र जाप प्रातःकाल या सायंकाल में स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठकर किया जा सकता है। मंत्र जाप के दौरान मन को एकाग्र रखें और पूर्ण श्रद्धा के साथ जाप करें।

4. कर्ण मातंगी की पूजा कैसे की जाती है?
कर्ण मातंगी की पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें और मंत्र जाप करें।

5. कर्ण मातंगी का मंत्र जाप करने से क्या लाभ होते हैं?
कर्ण मातंगी का मंत्र जाप करने से व्यक्ति को संगीत, कला, विद्या, और वाणी में दक्षता प्राप्त होती है। यह मंत्र जाप करने से मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।

6. कर्ण मातंगी का मंत्र जाप करने से कितने दिनों में फल मिलता है?
मंत्र जाप का फल व्यक्ति की श्रद्धा, समर्पण, और निरंतरता पर निर्भर करता है। नियमित जाप करने से शीघ्र ही शुभ परिणाम मिलते हैं।

7. क्या कर्ण मातंगी का मंत्र जाप किसी विशेष संख्या में करना चाहिए?
मंत्र जाप की संख्या व्यक्ति की श्रद्धा और समय पर निर्भर करती है, लेकिन 108 बार जाप करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

Adya kali ashtottar shatnamavali

Adya kali ashtottar shatnamavali

आद्या काली अष्टोत्तर शतनामावली शत्रु मुक्ति व मनोकामना पूर्ण करने वाली

आद्या काली अष्टोत्तर शतनामावली मां काली के 108 नामों का पाठ करने से भक्त को मां काली की कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति भय मुक्त होकर उसे उच्च स्तर का ज्ञान, शक्ति और साहस प्राप्त होता है। शतनामावली का जाप करने से उसे नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। इस आद्या काली अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ कम से कम ४१ दिन तक अवश्य करना चाहिये।

अष्टोत्तर शतनामावली

कालिका
श्मशानकल्याणी
भद्रकाली
कालरात्रि
चामुण्डा
वीरकपाला
ज्वालामुखी
आर्या
महाविद्या
कपालिनी
गुह्यकाली
गोप्त्री
मातर्यकाली
कालिकाप्रिया
कालकामिनी
कालिकाजननी
भगवती
कुट्टिमा
शूलहस्ता
कालिकानन्दिनी
वैष्णवी
कालरुपा
कालिकाश्री
दुर्गा
दुर्गतिप्रदा
महाप्रलयकारिणी
श्रेष्ठा
अक्षोभ्या
अमृता
वरारोहा
चण्डिका
महाचण्डी
चण्डारुणा
चण्डकपालिनी
चण्डीकटाह
कौलिनी
कराली
क्रोधिनी
कामरूपा
क्रूररूपा
कालरात्री
कालिकान्विता
कालिन्यै
कालिकाल्पा
कृपानिधे
कालरूपिणी
कालिविद्या
कालिसंवित्त्री
कालिदर्पहरा
कालिमात्रे
कालिपाशहस्ता
कालिदुर्गा
कालिदासखण्डा
कालिदेवी
कालिकापाण्डुरंगी
कालिकाचिन्तामणि
कालिकाधारा
कालिजीवा
कालिदोषहरा
कालिदानवपारिणी
कालिमृत्युनाशिनी
कालिवाहिनी
कालिसंवाहिनी
कालिदीर्घदृष्टि
कालिचर्चिता
कालिकाराध्या
कालिकाचण्डी
कालिमार्गप्रकाशिनी
कालिजीवनदायिनी
कालिनीलया
कालिनिष्ठा
कालिवाहना
कालिदानवपालिनी
कालिजीवना
कालिवादिनी
कालिन्यरक्षिता
कालिपातिनी
कालिनीर्घुणी
कालिवाहिनी
कालिभक्तप्रिया
कालिदुर्गा
कालिविमर्शना
कालिप्रिया
कालिसंहारिणी
कालिकात्मिका
कालिवातरिणी
कालिकागमनी
कालिकाकार्यसाधिनी
कालिनीलया
कालिप्रियङ्गना
कालिपाशहस्ता
कालिमृत्युविमोचनी
कालिसंहारिणी
कालिप्रीतिदायिनी
कालिनीलया
कालिनिष्ठा
कालिमृत्युविमोचनी
कालिकाकार्यसाधिनी
कालिविवर्धिनी
कालित्रैलोक्यविनाशिनी
कालिमृत्युविमोचिनी
कालिचर्चिता
कालिनिष्ठा
कालिपाशहस्ता
कालिनीलया
कालिनिष्ठा
कालिभक्तप्रिया
कालिकाधारा

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लाभ

  1. आध्यात्मिक प्रगति: व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा में तेजी आती है और उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  2. आत्मबल में वृद्धि: यह जाप करने से मानसिक और भावनात्मक शक्ति मिलती है।
  3. संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाले कठिनाइयों और संकटों से बचाव होता है।
  4. शत्रु नाश: शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है और उनके द्वारा किये गए कुप्रभावों से मुक्ति मिलती है।
  5. धन-संपत्ति में वृद्धि: आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
  6. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. भय निवारण: यह जाप करने से सभी प्रकार के भयों से मुक्ति मिलती है।
  8. मनोवांछित फल प्राप्ति: इच्छाओं की पूर्ति और लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती है।
  9. कुंडली दोष निवारण: कुंडली के दोषों को दूर करने में सहायक है।
  10. सद्गुणों का विकास: व्यक्ति के भीतर सकारात्मक गुणों का विकास होता है।
  11. ध्यान में स्थिरता: ध्यान करने की क्षमता और ध्यान में स्थिरता प्राप्त होती है।
  12. रोगों से मुक्ति: विभिन्न रोगों और शारीरिक समस्याओं से राहत मिलती है।
  13. भक्ति में वृद्धि: भगवान काली के प्रति भक्ति में वृद्धि होती है।
  14. संतान सुख: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
  15. परिवारिक शांति: परिवार में शांति, सामंजस्य, और प्रेम बढ़ता है।

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सामान्य प्रश्न

  1. ये अष्टोत्तर शतनामावली क्या है?
    • यह देवी काली के १०८ पवित्र नामों की सूची है, जिनका जाप करके भक्त उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
  2. इस जाप को कब और कैसे करना चाहिए?
    • इसे रोज़ सुबह या शाम के समय, एकांत में या मंदिर में, शुद्ध मन और पवित्र वस्त्र पहनकर करना चाहिए।
  3. क्या इस जाप को किसी विशेष दिन पर करना चाहिए?
    • यह जाप किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से अमावस्या, काली पूजा, या नवरात्रि के दौरान इसे करना अधिक फलदायी माना जाता है।
  4. क्या इस जाप को करने के लिए किसी विशेष वस्त्र या माला की आवश्यकता होती है?
    • लाल या काले वस्त्र पहनना उत्तम होता है और रुद्राक्ष या चंदन की माला से जाप करना लाभकारी होता है।
  5. क्या इस जाप को किसी विशेष संख्या में करना आवश्यक है?
    • इसे १०८ बार, ११ बार, या २१ बार करने की परंपरा है। श्रद्धानुसार संख्या बढ़ाई जा सकती है।
  6. क्या इस जाप को किसी गुरु की उपस्थिति में करना आवश्यक है?
    • यह आवश्यक नहीं है, लेकिन गुरु के मार्गदर्शन में किया गया जाप अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
  7. क्या इस जाप को महिलाएं भी कर सकती हैं?
    • हाँ, इस जाप को सभी महिलाएं और पुरुष कर सकते हैं।
  8. क्या जाप करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए?
    • जाप करते समय शुद्धता, एकाग्रता, और श्रद्धा का पालन करना महत्वपूर्ण है।
  9. इस जाप से किन-किन समस्याओं का समाधान हो सकता है?
    • शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक समस्याओं के समाधान में यह जाप सहायक हो सकता है।
  10. क्या इस जाप को करने के बाद कोई विशेष अनुष्ठान करना आवश्यक है?
    • यदि संभव हो, तो जाप के बाद देवी काली की पूजा, हवन, और प्रसाद अर्पित करना चाहिए।

Daksheshwar mahadev mantra for wish & protection

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पाप मुक्ति व मनोकामना पूर्ण करने वाले दक्षेश्वर महादेव मंत्र का जाप करने से आर्थिक भौतिक व पारिवारिक तरक्की होती है। इसके अलावा अनेको लाभ मिलते है जैसे कि:

  • शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है।
  • मन की शांति और एकाग्रता में वृद्धि होती है।
  • नकारात्मक विचारों और भावनाओं से मुक्ति मिलती है।
  • भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
  • जीवन में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
  • इच्छाओं की पूर्ति होती है।

जाप करने की विधि

  • सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • शांत स्थान पर बैठें।
  • भगवान शिव का ध्यान करें।
  • दक्षेश्वर महादेव मंत्र- ॥ॐ ह्रौं दक्षेश्वराय नमः॥
  • दक्षेश्वर महादेव मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • मंत्र का जाप करते समय रुद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।

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कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • मंत्र का जाप एकाग्रता और श्रद्धा के साथ करें।
  • मंत्र का जाप नियमित रूप से करें।
  • मंत्र का जाप करते समय मन में कोई भी नकारात्मक विचार न लाएं।

दक्षेश्वर महादेव मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है। यह मंत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और जीवन में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए बहुत ही उपयोगी है।

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दक्षेश्वर महादेव मंत्र से जुड़े सामान्य प्रश्न

1. दक्षेश्वर महादेव कौन हैं?

दक्षेश्वर महादेव भगवान शिव का वह रूप हैं जो दक्ष प्रजापति के यज्ञ के समय प्रकट हुए थे। उन्होंने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के अहंकार को नष्ट किया था।

2. दक्षेश्वर महादेव का मंत्र क्या है?

दक्षेश्वर महादेव के लिए साधारण मंत्र है:
“ॐ नमः शिवाय”
यह मंत्र भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे लोकप्रिय और शक्तिशाली मंत्रों में से एक है।

3. दक्षेश्वर महादेव मंत्र का क्या महत्व है?

यह मंत्र भगवान शिव की कृपा पाने, शांति प्राप्त करने और जीवन की समस्याओं का समाधान पाने के लिए जपा जाता है। यह साधक को मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।

4. दक्षेश्वर महादेव का मंदिर कहाँ स्थित है?

दक्षेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार के पास कनखल में स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया था।

5. दक्षेश्वर महादेव मंत्र कब जपना चाहिए?

सुबह या संध्या के समय शिव मंदिर में या घर पर शांत वातावरण में इस मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है। सोमवार को विशेष रूप से शिव की पूजा के लिए उत्तम दिन माना जाता है।

6. दक्षेश्वर महादेव मंत्र के कितने जाप करने चाहिए?

साधक को कम से कम 108 बार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। अधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए, इसे 5 माला (540 बार) या 11 माला (1188 बार) भी जप सकते हैं।

7. क्या कोई विशेष नियम हैं जो मंत्र जाप करते समय पालन करने चाहिए?

जी हाँ, मंत्र जाप करते समय शुद्धता, एकाग्रता और ध्यान का पालन करना चाहिए। शुद्ध वस्त्र पहनें और ध्यान रखें कि मन शांत और नकारात्मक विचारों से मुक्त हो।

8. क्या इस मंत्र का कोई विशेष फल होता है?

दक्षेश्वर महादेव का मंत्र साधक को मानसिक शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है।

9. क्या यह मंत्र हर कोई जप सकता है?

हाँ, स्त्री, पुरुष और बच्चे, कोई भी इस मंत्र का जाप कर सकता है। भगवान शिव सर्वसुलभ देवता हैं और सभी के लिए उनके दरवाजे खुले हैं।

10. इस मंत्र का उच्चारण कैसे करें?

मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और धीरे-धीरे करें। ध्यान रखें कि उच्चारण में शुद्धता बनी रहे। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का शांत मन से जाप करें।

11. क्या इस मंत्र का जाप करने से जीवन की समस्याओं का समाधान होता है?

हाँ, इस मंत्र का नियमित और सच्चे मन से जाप करने से जीवन में आने वाली कई बाधाएं दूर होती हैं। शिव की कृपा से साधक को सफलता और सुख की प्राप्ति होती है।

12. दक्षेश्वर महादेव मंत्र से कौन से दोष समाप्त होते हैं?

इस मंत्र से पितृ दोष, कालसर्प दोष और अन्य ज्योतिषीय दोषों का निवारण होता है। साथ ही, मानसिक तनाव, डर और नकारात्मकता भी समाप्त होती है।

13. क्या दक्षेश्वर महादेव के मंत्र के साथ कोई विशेष पूजा की जाती है?

जी हाँ, दक्षेश्वर महादेव की पूजा में जलाभिषेक, बिल्वपत्र, चंदन, धूप और दीपक के साथ शिवलिंग की पूजा की जाती है। रुद्राभिषेक विशेष रूप से प्रभावशाली होता है।

14. क्या दक्षेश्वर महादेव के मंत्र का जाप किसी भी समय कर सकते हैं?

हालाँकि इसे सुबह और संध्या के समय जपना श्रेष्ठ माना जाता है, फिर भी साधक इसे दिन के किसी भी समय कर सकता है। रात्रि के शांत समय में भी मंत्र जप विशेष फलदायी होता है।

15. दक्षेश्वर महादेव मंत्र का प्रभाव कब दिखाई देता है?

मंत्र जाप का प्रभाव साधक की भक्ति, श्रद्धा और नियमितता पर निर्भर करता है। सही तरीके से और नियमपूर्वक मंत्र जाप करने से कुछ ही हफ्तों में सकारात्मक बदलाव अनुभव होने लगते हैं।

Neel tara mantra prosperity & health

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नील तारा मंत्र जप विधि, नियम और सावधानियाँ – सफलता और शांति के लिए

नील तारा मंत्र, एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है, जिसका उपयोग विशेष रूप से नील तारा देवी की कृपा पाने और अनेक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। नील तारा तिब्बती बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जिन्हें सुरक्षा, सफलता और समृद्धि प्रदान करने वाली माना जाता है। नील तारा मंत्र, देवी नील तारा को समर्पित है, जो करुणा और संकटों से उबारने वाली मानी जाती हैं। उनका मंत्र संकटों से मुक्ति, नकारात्मक शक्तियों से रक्षा, और आत्मिक उत्थान में सहायता करता है।

मंत्र

मंत्र: ॐ स्त्रीं नील तारे तुतारे स्वाहा

अर्थ:

  • “ॐ” का अर्थ सर्वशक्तिमान और ईश्वर की उपासना है।
  • “स्त्रीं” शक्ति का बीज मंत्र है।
  • “नील तारे” नील तारा देवी को संबोधित करता है।
  • “तुतारे” तारा देवी को संकटों और बुराइयों से रक्षा करने वाली कहते हैं।
  • “स्वाहा” आह्वान और समर्पण का प्रतीक है।

लाभ

  1. मानसिक शांति और संतुलन।
  2. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा।
  3. आर्थिक समृद्धि।
  4. स्वास्थ्य में सुधार।
  5. संकटों से मुक्ति।
  6. भाग्य में सुधार।
  7. आत्मबल और विश्वास में वृद्धि।
  8. भय से मुक्ति।
  9. ध्यान और साधना में प्रगति।
  10. व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं का समाधान।
  11. आध्यात्मिक शक्ति का विकास।
  12. कार्यों में सफलता।
  13. कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता।
  14. मानसिक स्पष्टता।
  15. संबंधों में सुधार।
  16. रोगों से मुक्ति।
  17. ज्ञान और विवेक की प्राप्ति।

मंत्र विधि

नील तारा मंत्र का जप विधिपूर्वक करने से अद्भुत लाभ होते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि नियमों का पालन किया जाए।

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  1. किसी शुभ मुहूर्त में मंत्र जप प्रारंभ करें।
  2. जप के लिए विशेषत: मंगलवार और शुक्रवार का दिन उत्तम होता है।
  3. जप की अवधि 11 से 21 दिनों तक हो सकती है।
  4. प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त के बाद जप करना श्रेष्ठ है।

मंत्र जप की संख्या

प्रतिदिन कम से कम 11 माला (1188 मंत्र) का जप करें। इससे देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

सामग्री

  1. नील या सफेद रंग का आसन।
  2. शुद्ध जल से भरा तांबे का पात्र।
  3. काले तिल या रुद्राक्ष की माला।
  4. धूप और दीपक।
  5. शुद्ध आहार और साधारण वस्त्र पहनें।

मंत्र जप के नियम

  1. आयु 20 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  2. स्त्री या पुरुष, कोई भी इस मंत्र का जप कर सकता है।
  3. नीले या काले कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. जप के समय संयम और शुद्धता बनाए रखें।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियाँ

  1. मन शांत रखें, विचार नकारात्मक न हों।
  2. मंत्र जप के दौरान निरंतर एक ही स्थान पर ध्यान केंद्रित करें।
  3. जप के बाद देवी को धन्यवाद देना न भूलें।
  4. घर के भीतर शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
  5. आहार में हल्का और सात्विक भोजन लें।

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नील तारा मंत्र से जुड़े प्रश्न और उत्तर

1. नील तारा कौन हैं?

नील तारा बौद्ध धर्म की प्रमुख देवी हैं, जो संकटों से रक्षा करती हैं।

2. नील तारा मंत्र का क्या महत्व है?

यह मंत्र नकारात्मक शक्तियों से रक्षा और सफलता प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।

3. मंत्र का जप कौन कर सकता है?

20 वर्ष से ऊपर के स्त्री और पुरुष कोई भी जप कर सकते हैं।

4. जप के दौरान क्या पहनना चाहिए?

सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनें। नीले और काले कपड़े न पहनें।

5. मंत्र जप कितनी माला करनी चाहिए?

प्रति दिन 11 माला (1188 मंत्र) जप करें।

6. मंत्र जप के लिए कौन से दिन उपयुक्त हैं?

मंगलवार और शुक्रवार को मंत्र जप करना श्रेष्ठ माना जाता है।

7. मंत्र जप का समय क्या होना चाहिए?

सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त के बाद जप करें।

8. क्या जप के दौरान कुछ विशेष सावधानी बरतनी चाहिए?

धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहार से बचें, और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

9. क्या मंत्र जप से आर्थिक समृद्धि मिलती है?

हाँ, नील तारा मंत्र आर्थिक समृद्धि और सफलता में सहायक होता है।

10. जप के दौरान किस प्रकार का भोजन करें?

सात्विक भोजन करें, मांसाहार से परहेज करें।

11. क्या नील तारा मंत्र से मानसिक शांति प्राप्त हो सकती है?

हाँ, यह मंत्र मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।

12. मंत्र जप के दौरान किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता होती है?

माला, धूप, दीपक, जल और साधारण वस्त्र की आवश्यकता होती है।

Shamshan kali Mantra for Strong Protection

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शमशान काली मंत्र -भय, बाधा और अंधकार का नाश

शमशान काली मंत्र माता काली का उग्र मंत्र माना जाता है। यह देवी उन साधकों को भय, मृत्यु, और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करती हैं जो गहन साधना में लीन होते हैं। शमशान काली की पूजा खासतौर पर श्मशान घाट में की जाती है, जहां देवी का उग्र रूप प्रकट होता है। शमशान काली मंत्र साधक के भीतर की नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करता है और उसे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है।

मंत्र व उसका अर्थ

मंत्र:
ॐ क्रीं श्मशान कालिकायै नमः
अर्थ:
इस मंत्र में “ॐ” ब्रह्मांडीय शक्ति को दर्शाता है, “क्रीं” काली की बीज मंत्र है जो उग्र शक्ति और विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। “श्मशान कालिकायै” देवी काली के श्मशान रूप को इंगित करता है, जो नकारात्मकता और भय का नाश करती हैं। “नमः” का अर्थ है समर्पण। इस मंत्र के द्वारा साधक देवी काली के उग्र रूप की शरण में आता है और उनसे सुरक्षा और शक्ति प्राप्त करता है।

मंत्र के लाभ

  1. मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  2. नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा मिलती है।
  3. भय और अज्ञानता का नाश होता है।
  4. साधक के भीतर साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  6. तांत्रिक साधना में विशेष सफलता मिलती है।
  7. मृत्यु और जीवन के रहस्यों को समझने में मदद मिलती है।
  8. बाधाओं और समस्याओं का निवारण होता है।
  9. दुश्मनों से बचाव और सुरक्षा मिलती है।
  10. साधक की आत्मा और शरीर शुद्ध होते हैं।
  11. कर्मों के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
  12. जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
  13. आत्म-साक्षात्कार की दिशा में प्रगति होती है।
  14. शारीरिक और मानसिक बीमारियों का नाश होता है।
  15. देवी काली की कृपा से धन, यश और वैभव की प्राप्ति होती है।

शमशान काली मंत्र विधि

शमशान काली मंत्र की साधना खासतौर पर तांत्रिक साधना के लिए होती है, जो किसी विशेष दिन, मुहूर्त और विधि के अनुसार की जाती है। इस मंत्र को जपने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करना चाहिए।

मंत्र जप का दिन और अवधि

इस मंत्र जप को आमतौर पर अमावस्या की रात या शनिवार के दिन प्रारंभ करना शुभ माना जाता है। मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक रखी जा सकती है। इस अवधि में साधक को नियम और संयम का पालन करना आवश्यक होता है।

मंत्र जप का मुहूर्त

रात का समय, विशेष रूप से मध्य रात्रि (12:00 AM से 3:00 AM), इस मंत्र साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस समय साधक को एकांत में बैठकर देवी काली का ध्यान करना चाहिए और शुद्ध मन से मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

शमशान काली मंत्र जप विधि

साधक को प्रतिदिन 11 माला (एक माला में 108 मंत्र होते हैं) का जप करना चाहिए। इस प्रकार, एक दिन में कुल 1188 मंत्रों का जप करना आवश्यक होता है। यह साधना साधक की मनोकामना और उद्देश्य के अनुसार 11, 15, या 21 दिन तक की जा सकती है। मंत्र जप के दौरान ध्यान शुद्ध और एकाग्र होना चाहिए।

शमशान काली मंत्र सामग्री

मंत्र जप के लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जा सकता है:

  • लाल या काले कपड़े का आसन
  • काले तिल या काले रंग की माला
  • सरसों का तेल
  • काले तिल या नींबू
  • काजल से बना दीपक
  • शुद्ध जल, फल, और मिठाई के रूप में भोग

शमशान काली मंत्र जप के नियम

मंत्र जप के समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक है:

  1. साधक की आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों इस साधना को कर सकते हैं।
  3. नीले या काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए।
  4. धूम्रपान, मांसाहार, और मदिरा का सेवन न करें।
  5. साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. जप से पहले शुद्ध स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।

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मंत्र जप के दौरान सावधानियाँ

  1. मंत्र जप के दौरान मन को शुद्ध और शांत रखें।
  2. साधना के समय किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच से दूर रहें।
  3. किसी भी प्रकार का संदेह या डर मन में न रखें, देवी काली पर पूर्ण विश्वास रखें।
  4. मंत्र जप के दौरान बीच में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।
  5. साधना के दौरान एकांत और शांत स्थान का चयन करें, ताकि ध्यान भंग न हो।
  6. साधना के बीच किसी को साधना के बारे में जानकारी न दें।

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श्मशान काली मंत्र: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

पृश्न उत्तर भाग १

1. श्मशान काली कौन हैं?
श्मशान काली माँ काली का एक उग्र रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से तांत्रिक साधनाओं में पूजा जाता है। वे शक्ति और विनाश की देवी मानी जाती हैं और श्मशान में निवास करती हैं।

2. श्मशान काली का मंत्र क्या है?
श्मशान काली का प्रमुख मंत्र है:
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं श्मशान काली क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।”

3. श्मशान काली का मंत्र जाप कैसे और कब करना चाहिए?
श्मशान काली का मंत्र जाप रात्रिकाल में या अर्धरात्रि (मध्यरात्रि) में श्मशान या एकांत स्थान पर करना चाहिए। मंत्र जाप के दौरान मन को एकाग्र रखें और पूर्ण श्रद्धा के साथ जाप करें।

4. श्मशान काली की पूजा कैसे की जाती है?
श्मशान काली की पूजा के लिए श्मशान या एकांत स्थान पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें लाल पुष्प, धूप, दीप, शराब, और मांस अर्पित करें। यह तांत्रिक विधि होती है, इसलिए इसे गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए।

5. श्मशान काली का मंत्र जाप करने से क्या लाभ होते हैं?
श्मशान काली का मंत्र जाप करने से व्यक्ति को अद्भुत शक्ति, आत्मविश्वास, और भय से मुक्ति मिलती है। यह मंत्र जाप तांत्रिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

6. श्मशान काली का मंत्र जाप करने से कितने दिनों में फल मिलता है?
मंत्र जाप का फल व्यक्ति की श्रद्धा, समर्पण, और निरंतरता पर निर्भर करता है। नियमित और विधिवत जाप करने से शीघ्र ही शुभ परिणाम मिलते हैं।

7. क्या श्मशान काली का मंत्र जाप किसी विशेष संख्या में करना चाहिए?
मंत्र जाप की संख्या व्यक्ति की श्रद्धा और समय पर निर्भर करती है, लेकिन कम से कम ५४० बार जाप करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

पृश्न उत्तर भाग २

8. श्मशान काली का व्रत कैसे रखा जाता है?
श्मशान काली का व्रत श्रद्धा और नियम के साथ रखा जाता है। व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और रात्रि के समय देवी की पूजा करते हैं।

9. क्या श्मशान काली का मंत्र केवल तांत्रिक साधकों द्वारा ही जाप किया जा सकता है?
श्मशान काली का मंत्र तांत्रिक साधनाओं में विशेष रूप से प्रयोग होता है, इसलिए इसे गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

10. क्या श्मशान काली का मंत्र जाप करने से भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है?
हां, श्मशान काली का मंत्र जाप करने से भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति सुरक्षित रहता है।

11. क्या श्मशान काली का मंत्र जाप करने से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है?
श्मशान काली का मंत्र जाप मुख्यतः तांत्रिक शक्तियों और आत्मबल की प्राप्ति के लिए किया जाता है। आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा उचित मानी जाती है।

12. श्मशान काली की पूजा के लिए कौन सा दिन विशेष है?
श्मशान काली की पूजा के लिए अमावस्या, काली चौदस, और अन्य विशेष तांत्रिक रात्रियाँ विशेष मानी जाती हैं।

13. क्या श्मशान काली का मंत्र जाप करने से मानसिक तनाव कम होता है?
श्मशान काली का मंत्र जाप करने से व्यक्ति को अद्भुत आत्मबल और मानसिक शांति प्राप्त होती है, जिससे मानसिक तनाव कम होता है।

14. क्या श्मशान काली का मंत्र जाप करने से संतान प्राप्ति में आ रही बाधाओं का निवारण होता है?
श्मशान काली का मंत्र जाप मुख्यतः तांत्रिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। संतान प्राप्ति के लिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा उचित मानी जाती है।

surya grahan

8 april 2024-surya grahan

सूर्य ग्रहण- 2025 का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को लगेगा

जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, और सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह या आंशिक रूप से रोक देता है।तब यह सूर्य ग्रहण कहलाता है। सूर्य ग्रहण के दिन योग, ध्यान, पूजा-पाठ, साधना व मंत्र जप अवश्य करना चाहिये।

सूर्य ग्रहण के ३ प्रकार

  • पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है, तो यह पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
  • आंशिक सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढक लेता है, तो यह आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
  • वलयाकार सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है, लेकिन सूर्य के चारों ओर एक चमकदार वलय दिखाई देता है, तो यह वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।

सावधानियां क्या बरते?

  • सूर्य ग्रहण को नंगी आंखों से न देखें।
  • सूर्य ग्रहण को देखने के लिए विशेष चश्मे का उपयोग करें।
  • सूर्य ग्रहण को देखने के लिए वेल्डिंग गॉगल्स का उपयोग न करें।
  • सूर्य ग्रहण को देखने के लिए टेलिस्कोप या बाइनोकुलर का उपयोग न करें।

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सूर्य ग्रहण के प्रमुख लाभ

  1. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: सूर्य ग्रहण के समय किए गए पूजा और मंत्र जाप से वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, जिससे मानसिक शांति और सकारात्मकता प्राप्त होती है।
  2. पापों का नाश: इस समय की गई पूजा और दान से पिछले कर्मों से जुड़े पापों का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन में शुद्धता आती है।
  3. ग्रह दोषों की शांति: सूर्य ग्रहण के दौरान की गई पूजा और हवन से कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों की शांति होती है, जिससे जीवन में आ रही बाधाओं का निवारण होता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: ग्रहण के समय ध्यान और साधना करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
  5. स्वास्थ्य लाभ: सूर्य ग्रहण के समय ध्यान और योग करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, विशेषकर यदि यह ध्यान शुद्धता और शांति के उद्देश्य से किया गया हो।
  6. धन और समृद्धि: ग्रहण के समय किए गए दान और पूजा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन-संपत्ति की वृद्धि होती है।

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Surya Grahan Mantra For Wealth & Fame

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सूर्य ग्रहण मंत्र के जप से दूर करें ग्रहण दोष और पाएं जीवन में समृद्धि

सूर्य ग्रहण एक विशेष खगोलीय घटना होती है, जिसमें सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है। इस समय को ज्योतिष और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य ग्रहण के समय मंत्र जप का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इस समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय रहती है। सूर्य ग्रहण के दौरान जप किए गए मंत्रों से साधक को विशेष लाभ प्राप्त होता है। सूर्य ग्रहण का मंत्र जप जीवन में शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य लाने में सहायक होता है।

मंत्र व उसका अर्थ

मंत्र:
ॐ सूं आदित्याय नमः
अर्थ:
इस मंत्र में “ॐ” ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक है, “सूं” सूर्य देव का बीज मंत्र है, जो शक्ति, जीवन और प्रकाश का प्रतीक है। “आदित्याय” का अर्थ सूर्य देव होता है, जो सभी जीवों के जीवन का स्रोत हैं। “नमः” का अर्थ है समर्पण। इस मंत्र के द्वारा साधक सूर्य देव की शक्ति को अपनी जीवन ऊर्जा में समाहित करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता है।

मंत्र के लाभ

  1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  2. जीवन में सकारात्मकता और आशा का संचार होता है।
  3. ग्रहण दोष का निवारण होता है।
  4. साधक की जीवन शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
  6. आर्थिक समृद्धि और स्थिरता प्राप्त होती है।
  7. सूर्य देव की कृपा से सफलता और यश की प्राप्ति होती है।
  8. रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  9. मानसिक तनाव और अवसाद का नाश होता है।
  10. जीवन में सुख, शांति, और संतोष की अनुभूति होती है।
  11. करियर और व्यवसाय में उन्नति होती है।
  12. जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है।
  13. सूर्य ग्रहण के समय किए गए जप से बुरे प्रभावों का नाश होता है।
  14. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  15. सूर्य की कृपा से साधक को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन मिलता है।

सूर्य ग्रहण मंत्र विधि

सूर्य ग्रहण मंत्र जप की विधि बहुत ही सरल और प्रभावशाली होती है। ग्रहण के समय मंत्र जप विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इस समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय रहती है।

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मंत्र जप का दिन और अवधि

सूर्य ग्रहण के समय मंत्र जप का विशेष महत्व होता है। मंत्र जप का प्रारंभ सूर्य ग्रहण से 11 या 21 दिन पहले किया जा सकता है, और इसे ग्रहण के समय जारी रखना चाहिए। यह जप प्रतिदिन सूर्योदय के समय भी किया जा सकता है।

मंत्र जप का मुहूर्त

सूर्य ग्रहण के दौरान और ग्रहण समाप्त होने के बाद जप करना शुभ माना जाता है। यह समय सबसे शक्तिशाली और सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है। ग्रहण का समय विशेष रूप से इस साधना के लिए उचित होता है, और इसे शांत और एकांत में करना चाहिए।

सूर्य ग्रहण मंत्र जप विधि

इस मंत्र को सूर्य ग्रहण के दिन ११ से २१ माला का जप करना आवश्यक है। यानी 1188 या २२६८ मंत्र जप करना आवश्यक है।

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सूर्य ग्रहण मंत्र जप सामग्री

मंत्र जप के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • पीले या सफेद कपड़े का आसन
  • रुद्राक्ष या स्फटिक की माला
  • जल, फूल, और सूर्य देव के लिए भोग (फल, मिठाई)

सूर्य ग्रहण मंत्र जप के नियम

मंत्र जप के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन आवश्यक है:

  1. साधक की आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री-पुरुष कोई भी इस मंत्र जप को कर सकता है।
  3. नीले और काले रंग के कपड़े पहनने से बचें।
  4. धूम्रपान, मांसाहार, और मदिरा का सेवन न करें।
  5. साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  6. स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर ही जप करें।

मंत्र जप के दौरान सावधानियाँ

  1. जप करते समय मन को एकाग्र और शुद्ध रखें।
  2. नकारात्मक विचारों से दूर रहें और मन को शांत रखें।
  3. जप के दौरान किसी भी प्रकार का डर या संदेह मन में न रखें।
  4. सूर्य ग्रहण के समय जप एकांत और शांत स्थान पर करें।
  5. ग्रहण के समय जप करते समय पूर्ण विश्वास रखें कि यह आपकी साधना में सफलता प्रदान करेगा।
  6. साधना की समाप्ति के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना न भूलें।

सूर्य ग्रहण मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: सूर्य ग्रहण के समय मंत्र जप क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: सूर्य ग्रहण के समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय होती है, जिससे मंत्र जप के प्रभाव कई गुना बढ़ जाते हैं। इस समय किए गए जप से विशेष फल प्राप्त होते हैं और ग्रहण दोष का निवारण होता है।

प्रश्न 2: सूर्य ग्रहण के दौरान कौन सा मंत्र जपना चाहिए?

उत्तर: सूर्य ग्रहण के दौरान “ॐ सूं आदित्याय नमः” मंत्र का जप अत्यधिक प्रभावी होता है। यह मंत्र सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने में सहायक होता है।

प्रश्न 3: क्या सूर्य ग्रहण के समय केवल पुरुष ही मंत्र जप कर सकते हैं?

उत्तर: नहीं, सूर्य ग्रहण के समय स्त्री और पुरुष दोनों ही मंत्र जप कर सकते हैं। मंत्र जप के लिए कोई विशेष लिंग भेद नहीं है, केवल नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 4: सूर्य ग्रहण मंत्र जप के लिए कितने समय की साधना करनी चाहिए?

उत्तर: साधक इस मंत्र को सूर्य ग्रहण के दिन जप करना चाहिए।

प्रश्न 5: क्या सूर्य ग्रहण के समय कुछ खास नियम होते हैं?

उत्तर: हां, सूर्य ग्रहण के समय मंत्र जप के लिए खास नियम होते हैं जैसे कि शुद्ध स्नान, ब्रह्मचर्य का पालन, और धूम्रपान व मांसाहार से बचना। ग्रहण के समय सकारात्मक और शुद्ध मानसिकता बनाए रखना आवश्यक है।

प्रश्न 6: क्या ग्रहण के बाद मंत्र जप किया जा सकता है?

उत्तर: हां, ग्रहण समाप्त होने के बाद भी मंत्र जप करना शुभ माना जाता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद का समय भी साधना के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है।

प्रश्न 7: क्या सूर्य ग्रहण के समय अन्य मंत्रों का भी जप किया जा सकता है?

उत्तर: हां, सूर्य ग्रहण के समय अन्य मंत्रों का भी जप किया जा सकता है, लेकिन “ॐ सूं आदित्याय नमः” मंत्र सूर्य देव के लिए विशेष रूप से फलदायी है।

प्रश्न 8: क्या सूर्य ग्रहण मंत्र केवल ग्रहण के समय ही जपना चाहिए?

उत्तर: नहीं, सूर्य ग्रहण मंत्र को आप नियमित रूप से सूर्योदय के समय भी जप सकते हैं। ग्रहण के समय इसका प्रभाव अधिक होता है, लेकिन नियमित जप भी लाभकारी होता है।

प्रश्न 9: सूर्य ग्रहण मंत्र जप के लिए कौन सा आसन श्रेष्ठ होता है?

उत्तर: सूर्य ग्रहण मंत्र जप के लिए पीले या सफेद रंग के कपड़े का आसन श्रेष्ठ माना जाता है। यह रंग शुद्धता और सकारात्मकता का प्रतीक होते हैं।

प्रश्न 10: क्या मंत्र जप के लिए विशेष माला का उपयोग करना आवश्यक है?

उत्तर: हां, सूर्य ग्रहण मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष या स्फटिक माला का उपयोग करना अत्यधिक शुभ और प्रभावी होता है।